भारत में वनों की स्थिति पर केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के भारतीय वन सर्वेक्षण (Forest Survey of India) की द्विवार्षिक 16वीं वन स्थिति रिपोर्ट-2019, 30 दिसम्बर, 2019 को जारी हुई। इस रिपोर्ट के अनुसार (सन्दर्भ वर्ष: 2017) देश में कुल वनाच्छादित क्षेत्र 712249 वर्ग किमी. है, अर्थात् कुल भू- भाग का 21.67% है। ज्ञातव्य है कि दो वर्ष पूर्व सन्दर्भ वर्ष 2017 में यह 708273 (21.54%) वर्ग किमी. था। इस प्रकार इन दो वर्षों में वन क्षेत्र में 3976 वर्ग किमी. (0.56%) की वृद्धि हुई है।
• 15वीं वन रिपोर्ट वर्ष 2017 में देश में मैंग्रोव वन का क्षेत्रफल 4921 वर्ग किमी. था, जो बढ़कर 16वीं वन रिपोर्ट 2019 में 4975 वर्ग किमी हो गया। जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 0.15 प्रतिशत है ज्ञातव्य है कि वैश्विक स्तर पर मैंग्रोव वन में भारत की हिस्सेदारी 3% है। ध्यातव्य है कि देश के कुल मैंग्रोव आवरण का 42.45% (2112 वर्ग किमी) क्षेत्रफल केवल पं. बंगाल के सुन्दर वन क्षेत्र का है।
16वीं वन रिपोर्ट : 2019 के अनुसार, देश के कुल वन क्षेत्र का 13.93% अतिसघन वन, 43.30% मध्यम सघन वन तथा 42.75% खुले वन से आच्छदित था। ध्यातव्य है कि, अति सघन वन का सर्वाधिक क्षेत्रफल अरुणांचल प्रदेश में है जबकि मध्यम सघन वन एवं खुले वन का सर्वाधिक क्षेत्रफल मध्य प्रदेश में है।
रिपोर्ट के अनुसार देश में कुल 15 राज्यों/केन्द्रशासित क्षेत्रों में वनावरण उनके भू-भाग के 33 प्रतिशत से अधिक है। इनमें 7 राज्यों/केन्द्रशासित क्षेत्रों (मिजोरम, लक्षद्वीप, अंडमान निकोबार, अरुणाचल प्रदेश, नगालैण्ड, मेघालय व मणिपुर) में यह भूभाग के 75 प्रतिशत से अधिक जहाँ हैं, वहीं 8 राज्यों/केन्द्रशासित क्षेत्रों (त्रिपुरा, गोवा, सिक्किम, केरल, उत्तराखण्ड, दादरा एवं नगर हवेली, छत्तीसगढ़ व असोम) में यह उनके भूभाग के 33 प्रतिशत से 75 प्रतिशत के बीच है।
• देश में सम्पूर्ण बांस धारण क्षेत्र (Bamboo Bearing Area) 16.00 मिलियन हेक्टेयर है।
• भारत में रिकॉर्डेड वन क्षेत्रफल के अन्तर्गत सरकारी अभिलेखों में ‘बन’ के रूप में अभिलिखित क्षेत्रफल शामिल होता है, चाहे उसमें वनावरण/वृक्षावरण हों अथवा न हों। वन स्थिति रिपोर्ट 2019 में रिकॉर्डेड वन क्षेत्रफल की स्थिति अधोलिखित है। यथा
रिकॉर्डेड वन | |
वन | क्षेत्रफल (वर्ग किमी.) |
1. आरक्षित वन (Reserved forest) | 4,34,705 |
2. संरक्षित वन (Protected forest) | 2,19,432 |
3. अवर्गीकृत वन (Unclassed forest) | 1,13,881 |
कुल वन (3) | 7,67,419 |
कुल भौगोलिक क्षेत्र का % | 23.34 |
• वन स्थिति रिपोर्ट : 2019 में देश के वनों में कुल कार्बन स्टॉक (Carbon Stock) 7124.6 मिलियन टन होने का संगणन किया गया है। जो कि विगत् आकलन की तुलना में 42.6 मिलियन टन की वृद्धि दर्शाता है। ज्ञातव्य है कि भारत के INDC के तहत् वन क्षेत्र हेतु 2.5 से 3.0 बिलियन टन CO, का अतिरिक्त कार्बन ह्रास (Carban Sink) सृजित करने का लक्ष्य रखा गया है। उपर्युक्त वृद्धि इस दिशा में भारत के प्रयासों को रेखांकित करती है।
• राष्ट्रीय कृषि वानिकी अनु. केन्द्र, झाँसी (उ.प्र.) में स्थित है। *
• केन्द्रीय मरूक्षेत्र अनुसंधान संस्थान जोधपुर (राजस्थान) में स्थित है। *
• राष्ट्रीय वन नीति 1952 एवं 1988 के अनुसार देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 33.3% भाग (पर्वतीय क्षेत्रों में 66.67%) वनाच्छादित होना चाहिए। *
• बाद में वन संरक्षण अधिनियम, 1980 तथा राष्ट्रीय वन नीति, 1988 बनाया गया।
• भारत में प्रतिव्यक्ति वनों का औसत 0.2 से 0.11 हेक्टेयर मात्र है। * विश्व में वनों का औसत प्रति व्यक्ति आकलन 0.6 हेक्टेयर है।
• राष्ट्रीय वन नीति 1988 के अनुसार आदर्श रूप में हिमालय पर्वत और दक्षिणी पठार एवं पहाड़ी क्षेत्रों की कुल भूमि के 66.67% भू- भाग तथा मैदानों की 25% भूमि पर वनों का विस्तार होना चाहिए। *
• वन रिपोर्ट : 2019 में पर्वतीय एवं जन जातीय जिलों के वनावरण में क्रमशः 544 वर्ग किमी० और 1181 वर्ग किमी. की वृद्धि हुई है। ध्यातव्य है कि देश में कुल 140 पर्वतीय और 218 जनजातीय जिले हैं। पर्वतीय और जनजातीय जिलों के सम्पूर्ण भौगोलिक क्षेत्रफल का क्रमशः 40.30% (28,4006 वर्ग किमी0) और 27.92% (3,14,197 वर्ग किमी०) भाग वनों से आवृत है।
• पूर्वोत्तर के राज्यों में समग्र वनावरण 65.05 प्रतिशत (170541 वर्ग किमी०) विगत् आकलन से 765 वर्ग किमी. कम; देश के कुल वनावरण का लगभग एक चौथाई भाग है।
• देश के विभिन्न वन प्रकार समूहों में वन रिपोर्ट 2019 में शीर्ष तीन क्षेत्रफल धारी वन प्रकार समूह हैं- उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती (Tropical Dry deiduous) वन (40.86%), उष्ण कटिबंधीय नम पर्णपाती (Tropiced Moist deciduous) वन (17.65%) और उष्ण कटिबंधीय अर्द्ध-आर्द्र सदाबहारी (Tropical Semi-Evergreen) वन (9.27%)।
• देश के 14 फिजियोग्राफिक क्षेत्रों (Physiographic zones) में क्षेत्रफल की दृष्टि से सर्वाधिक वृक्षावरण क्रमशः मध्य उच्चभूमि (11534 वर्ग किमी०), पूर्वी दक्कन (10663 वर्ग किमी०) एवं पश्चिमी तट (9445 वर्ग किमी०) में है। पूर्वी हिमालय क्षेत्र में न्यूनतम वृक्षावरण (610 वर्ग किमी०) है क्योंकि यह क्षेत्र अधिकांशतः प्राकृतिक वनों के अंतर्गत आता है। भौगोलिक क्षेत्र (Geographi- cal zones) के प्रतिशत के रूप में सर्वाधिक वनावरण क्रमशः पश्चिमी तट (8.31%) पश्चिमी घाट (5.58%) एवं पूर्वी दक्कन (3.19%) में है।
• वर्षा की मात्रा और तापमान जलवायु के दो प्रमुख तत्व हैं जो प्राकृतिक वनस्पति पर प्रभाव डालते हैं भारत में तापमान की अपेक्षा वर्षा की मात्रा का अधिक प्रभाव पड़ता है, क्योंकि वर्षा की मात्रा के अनुसार ही वनस्पति में भिन्नता पायी जाती है।*
• भारत में वन महोत्सव के जन्म दाता डा. के. एम. मुंशी थे।
• भारत सरकार ने वन महोत्सव कार्यक्रम लागू किया था -1950 में।
• देहरादून स्थित फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इण्डिया संस्थान द्वारा प्रति दो वर्षों के अन्तराल पर यह रिपोर्ट प्रकाशित की जाती है। पहली भारत वन स्थिति रिपोर्ट 1987 (सन्दर्भित वर्ष 1981-83) में तैयार की गई थी। उक्त रिपोर्ट इस श्रृंखला में 16वीं रिपोर्ट है।
• विश्व का कुल वन क्षेत्र 3995 मिलियन हेक्टेयर है, जो कि सम्पूर्ण वैश्विक भू-क्षेत्र का 30.7% है (स्रोत: WB)। ध्यातव्य है कि संसार के शीर्ष चार वन क्षेत्रधारी राष्ट्र हैं- रूस, ब्राजील, कनाडा एवं अमेरिका। जबकि सकल भूमि क्षेत्रफल के प्रतिशत की दृष्टि से शीर्ष तीन वनाच्छादित राष्ट्र हैं- सूरीनाम (98.3%) गैबोन (90.0%) एवं सेशेल्स (88.41%)। (स्रोत- FAO) भूटान में देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल के 70% भाग पर वनावरण बनाये रखने का प्रावधान है।
प्राकृतिक वनस्पति (Natural Vegetation)
प्राकृतिक वनस्पति से अभिप्राय उसी पौधा समुदाय से है, जो लंबे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगता है और इसकी विभिन्न प्रजातियाँ वहाँ पाई जाने वाली मिट्टी और जलवायु परिस्थितयों में यथासंभव स्वयं को ढाल लेती हैं।
भारत में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती हैं। हिमालय पर्वतों पर शीतोष्ण कटिबन्धीय वनस्पतियाँ उगती हैं; पश्चिमी घाट तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह में उष्ण कटिबन्धीय वर्षा वन पाए जाते हैं; डेल्टा क्षेत्रों में उष्ण कटिबन्धीय वन व मैंग्रोव तथा राजस्थान के मरुस्थलीय और अर्ध-मरुस्थलीय क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की झाड़ियाँ, कैक्टस और कांटेदार वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। मिट्टी और जलवायु में विभिन्नता के कारण भारत में वनस्पतियों में क्षेत्रीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं।
• आठ उत्तर-पूर्वी राज्यों में संयुक्त रूप से देश के कुल वनाच्छादित क्षेत्र का 26.11% भाग स्थित है, जो इन आठों राज्यों के भौगोलिक क्षेत्र का 65.05% है।
• भारत में वन वर्षा का अनुसरण करते हैं। जिन भागों में भारी वर्षा होती है वहाँ वन घने हैं, सामान्य वर्षा वाले भागों में खुले वन एवं कम वर्षा वाले भागों में कंटीले वन व झाड़ियाँ पायी जाती हैं। अतः सामान्य रूप से भारतीय वनों का वर्गीकरण अधोलिखित प्रकार से किया जा सकता है। यथा-
उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन (Tropical Evergreen Forests)
ये वन भारत के उन भागों में पाए जाते हैं जहाँ औसत वार्षिक तापमान 22° सेल्सियस से ऊंचे तथा वर्षा 200 सेमी. या अधिक होती है। अतः यहाँ ऐसे वृक्ष उगते हैं जो साल भर हरे-भरे रहते हैं, इसलिए इन्हें सदाबहार वन कहते हैं। ये वन बहुत घने होते हैं। इनमें 45 से 60 मीटर तक ऊँचे वृक्ष पाए जाते हैं। इन वनों में मुख्य रूप से ताड़, महोगनी, नारियल, एबोनी, आबनूस, बाँस, रोजवुड तथा बेंत उगते हैं। भारत में इस प्रकार के वन 45 लाख हेक्टयर क्षेत्र में उगे हैं। सदाबहार वन असम, मेघालय, त्रिपुरा, मणिपुर, अण्डमान निकोबार द्वीप समूह, पश्चिमी घाट की पश्चिमी ढाल, हिमालय की तराई तथा कर्नाटक के पश्चिमी भागों में मिलते हैं।
• अर्ध-सदाबहार वन, उक्त क्षेत्रों में, अपेक्षाकृत कम वर्षा वाले भागों में पाए जाते हैं। ये वन सदाबहार और आर्द्र पर्णपाती वनों के मिश्रित रूप हैं। इनमें मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ, साइडर, होलक और कैल हैं।
• सदाबहारी वनों की प्रमुख विशेषताएँ – (i) घने वन, (ii) वृक्षों की बहुरूपता, (iii) कठोर लकड़ी का औद्योगिक महत्व, (iv) हजारों प्रकार के वन्य प्राणी, (v) दलदली भूमि अतः विदोहन कठिन, (vi) सीमित महत्व । *
उष्ण कटिबन्धीय पतझड़ वाले (मानसूनी) वन (Tropical Deciduous (Monosoonic) Forests)
भारत में इस प्रकार के वन बहुतायत में पाये जाते हैं।* ये वन भारत के उन भागों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 70 से 200 सेमी. तक होती है। ये वन गर्मी के प्रारम्भ में ही अपनी पत्तियाँ गिरा देते हैं इसलिए इन्हें पतझड़ वाले या मानसूनी वन भी कहते हैं। ये वृक्ष अधिक लम्बे एवं सघन नहीं होते। इन वनों में साल, सागौन, शीशम, चन्दन, आम, साखू, हरड़-बहेड़ा, आँवला, महुआ एवं हल्दू के वृक्ष पाये जाते हैं। इस प्रकार के वनों का विस्तार हिमालय के गिरीपद, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ तथा कर्नाटक, महाराष्ट्र, तमिलनाडु के पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों पर, ओडिशा,पश्चिम बंगाल, झारखण्ड, उत्तर प्रदेश तथा उत्तराखण्ड राज्यों में है। इन वनों की लकड़ी मुलायम, मजबूत और टिकाऊ होती है। भारत में लगभग 220 लाख हेक्टेअर क्षेत्र पर इस प्रकार के वन फैले हैं। पतझड़ वाले वनों की विशेषताएँ – (i) वृक्ष कम लम्बे व खुले वन, (ii) समान प्रकार के क्षेत्रीय वृक्ष, (iii) अधिक व्यावसायिक लकड़ियाँ, (iv) देश के सर्वाधिक महत्व वाले वन*, (v) चारागाह व कच्चा माल मिलना, (vi) इनको बराबर पुनः स्थापित करना।
उष्णकटिबन्धीय घास के मैदान (Tropical Grasslands)
शुष्क मैदानी भागों में, घास के मैदान पाए जाते हैं। इन भागों में वर्षा 50 से 100 सेमी तक होती है। यहाँ वर्षा ऋतु में लम्बी-लम्बी घास उग आती है। नदी, झील एवं आर्द्र भागों के निकट पतझड़ वृक्षों के कुंज या कतारें भी पाई जाती हैं। मैदानी भागों में अब घास के मैदान समाप्त हो चुके हैं। यहाँ सभी ओर सिंचाई की सहायता से कृषि का विस्तार किया गया है। परन्तु पठारी भागों में कहीं-कहीं घास के क्षेत्र पाए जाते हैं। इस प्रकार की वनस्पति कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के पठारी भागों में पायी जाती हैं।
शुष्क मरूस्थलीय काँटेदार वनस्पति (Arid Thorny Vegetation)
इस प्रकार के वन भारत के शुष्क भागों में जहाँ वर्षा 50 सेमी. से कम होती है, पाए जाते हैं। वृक्षों को वाष्पीकरण तथा पशुओं से बचाने के लिए प्रकृति ने काँटे प्रदान किए हैं। इन भागों के वन छोटे-छोटे वृक्षों या कंटीली झाड़ियों के रूप में होते हैं। इन वृक्षों की छाल मोटी तथा पत्तियों के साथ काँटे होते हैं। मोटी छाल वृक्षों की गर्मी से रक्षा करती है। इन वनों में बबूल, खजूर, नागफनी, खेजड़ा, रीठा, केर, बेर, आँवला, रोहिड़ा एवं करील के वृक्ष अधिक पाये जाते हैं। भारत में इस प्रकार के वनों का विस्तार राजस्थान, गुजरात, दक्षिण-पश्चिमी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश तथा भीतरी कर्नाटक में है।
मरुस्थलीय वनों की विशेषताएँ – (1) इन वनों में छोटे- छोटे बिखरे हुए एवं काँटेदार व कम पत्ती वालें वृक्ष उगते हैं। (2) इनकी लकड़ी का उपयोग केवल ईंधन के लिए किया जाता है। (3) खजूर, रोहिड़ा, बबूल आदि वृक्ष मानवोपयोगी हैं।
डेल्टाई वन (Deltai Forests)
इस प्रकार के वन नदियों के डेल्टा में पाए जाते हैं। डेल्टाई भूमि समतल तथा नीची होने के कारण उनमें समुद्र का खारा जल प्रवेश कर जाता है अतः इन भागों में सदाबहार के ज्वारीय वन मिलते हैं। समुद्र के खारे जल के प्रवाह से इन वृक्षों की लकड़ी कठोर तथा छाल क्षारीय हो जाती है। इनकी लकड़ी का उपयोग नाव बनाने तथा छाल का उपयोग चमड़ा पकाने तथा रंगने में किया जाता है।* इन वनों में मैंग्रोव, गोरने, ताड़, कैसूरिना, नारियल, फोनिक्स, नीपा तथा सुन्दरी वृक्ष उगते हैं। ये वन गंगा-ब्रह्मपुत्र, महानदी, कृष्णा तथा कावेरी नदियों के डेल्टा में पाए जाते हैं। गंगा तथा ब्रह्मपुत्र के डेल्टा में सुन्दरी नामक वृक्ष पाया जाता है अतः इसे सुन्दर वन का डेल्टा भी कहते हैं।
डेल्टाई वनों की विशेषताएँ-
(i) डेल्टा या दलदली क्षेत्र के सदाबहार वन।
(ii) कठोर लकड़ी व क्षारीय छाल।
(iii) दुर्गम वन।
(iv) सीमित उपयोग।
(v) भारत में सुन्दर वन कहते हैं।
पर्वतीय वन (Mountaineous Forests)
ये वन हिमालय पर्वत पर उगते हैं। इनका विस्तार असोम से कश्मीर तक है। ये वन ऊँचाई के साथ-साथ बदलते रहते हैं क्योंकि ऊँचाई के साथ-साथ जलवायु के तत्वों की मात्रा में अन्तर आता जाता है। हिमालय पर 1,500 मीटर की ऊँचाई तक सदाबहार एवं पतझड़ वाले वन उगते हैं। 1,500 से 2,500 मीटर तक शीतोष्ण कटिबन्धीय चौड़ी पत्ती वाले वन पाये जाते हैं। इनमें ओक, देवदार का बर्च और मेपल के वृक्ष उगते हैं। 2,500 से 4,500 मीटर की ऊँचाई तक कोणधारी वन उगते हैं। इन वनों में फर, स्प्रूस, चीड़, सनोवर तथा ब्लूपाइन के वृक्षों की प्रधानता रहती है। 4,500 मीटर से 4,800 मीटर तक यहाँ टुण्ड्रा तुल्य वनस्पति उगती है। इन भागों में घास, काई तथा लिचेन उगती है। 4,800 मीटर से अधिक ऊँचाई पर सदैव बर्फ जमी रहती है। यातायात के साधनों के अभाव, दुर्गमता एवं पर्वतीय क्षेत्रों का अल्प विकास होने के कारण पर्वतीय वनों का उचित दोहन नहीं हो सका है।
दक्षिणी पर्वतीय वन मुख्यतः प्रायद्वीप के तीन भागों में मिलते हैं: पश्चिमी घाट, विंध्याचल और नीलगिरि पर्वत श्रृंखलाएँ। चूंकि, ये श्रृंखलाएँ उष्ण कटिबंध में पड़ती हैं और इनकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 1500 मी. ही है, इसलिए यहाँ ऊँचाई वाले क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबन्धीय और निचले क्षेत्रों में उपोष्ण कटिबन्धीय प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है। केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक प्रांतों में पश्चिमी घाट में इस तरह की वनस्पति विशेषकर पाई जाती है। नीलगिरी, अन्नामलाई, और पालनी पहाड़ियों पर पाए जाने वाले शीतोष्ण कटिबन्धीय वनों को ‘शोलास’ के नाम से जाना जाता है। इन वनों में पाए जाने वाले वृक्षों मगनोलिया, लैरेल, सिनकोना और वैटल का आर्थिक महत्व है। ये वन सतपुड़ा और मैकाल श्रेणियों में भी पाए जाते हैं।
पर्वतीय वनों की विशेषताएँ- (i) ऊँचाई के अनुसार वृक्ष व वनों की श्रेणी में भिन्नता। (ii) नीचे सदाबहार बीच में शीतोष्ण व ऊँचाई पर कोणधारी वन। (iii) विशेष उपयोगी व मूल्यवान लकड़ियाँ। (iv) दुर्गम स्थिति होने से विदोहन कठिन एवं (v) वनों से अनेक उप उत्पादों, दवा, जड़ीबूटी व कच्चे माल की प्राप्ति।
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FAQs
Q1. उष्ण कटिबन्धीय पर्णपाती वन को जल उपलब्धता के आधार पर किन दो भागों में विभक्त किया गया है?
Ans. आर्द्र पर्णपाती वन (100-200 सेमी. वर्षा) एवं शुष्क पर्णपाती वन (70-100 सेमी वर्षा)
Q2. साइडर, होलक तथा कैल किस प्रकार के वन वृक्ष हैं?
Ans. सदाबहारी तथा पर्णपाती के मिश्रित रुप अर्थात् अर्ध सदाबहारी वन
Q3. तेंदु, पलाश, अमलताश तथा अक्सलवुड नामक वृक्ष किस प्रकार के वन वृक्ष है?
Ans. शुष्क पर्णपाती
Q4. वन के विकास के लिए कौन-सी दशाएँ उपयुक्त होती हैं?
Ans. पर्वतीय स्थलाकृति एवं अधिक वर्षा
Q5. कुल कितने राज्यों में 33 प्रतिशत से अधिक भाग पर वन पाये जाते हैं?
Ans. 15 राज्यों/केन्द्रशासित क्षेत्रों में
Q6. राष्ट्रीय कृषि आयोग (1976-79) सामाजिक वानिकी को कितने भागों में विभक्त किया है?
Ans. शहरी, ग्रामीण एवं फार्म वानिकी