मृदा क्षरण एक भौतिक क्रिया है जिसके द्वारा मृदा पदार्थ एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता है। मृदा पदार्थ जल अथवा वायु के माध्यम से स्थानान्तरित होती है। जून, 2011 में देश में मरुस्थलीकरण के सन्दर्भ में चौथी राष्ट्रीय रिपोर्ट के अनुसार-देश के कुल भू-क्षेत्र का 32.0 प्रतिशत भाग अर्थात् 105.48 मिलियन हेक्टेयर भू- क्षरण से प्रभावित है।* राजस्थान, जम्मू-कश्मीर, गुजरात तथा महाराष्ट्र जैसे राज्य भू-क्षरण की समस्या से सर्वाधिक प्रभावित हैं।* मृदा अपरदन दो प्रकार का होता है।

(i) जलीय क्षरण (Water Erosion) – वर्षा का जल भूमि पर प्रहार करता है तो मृदा के कण ढीले होकर अपने स्थान से छिटक कर, जल के प्रवाह के साथ बह जाते हैं। यह प्रक्रिया मृदा की किस्म,भूमि के ढाल, वनस्पति, वर्षा की प्रचण्डता तथा अवधि पर निर्भर करती है। ज्ञातव्य है कि Desertification Atlas, 2016 के अनुसार देश में 29.51 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र जल कटाव के कारण बंजर हो रहा है।
जल द्वारा मृदा क्षरण के प्रकार- जल द्वारा 9 प्रकार का मृदा क्षरण होता है*-
1. अपस्फुरण (Splash erosion)
2. परत-क्षरण (Sheet erosion)*
3. क्षुद्र सरिता क्षरण (Rill erosion)
4. अवनालिका क्षरण (Gully erosion)*
5. भू-स्खलन क्षरण (slip erosion)
6. सरिता तट-क्षरण (Stream bank erosion)
7. पीटिका क्षरण (Pedestal erosion)
8. हिमानी क्षरण (Glacier erosion)
9. सागरीय क्षरण (Marine or beach erosion)
जल द्वारा अपरदन के उक्त प्रकारों में कृषि के दृष्टिकोण से परत एवं अवनालिका क्षरण बहुत ही विनाशकारी हैं।
परत अपरदन (Sheet Erosion) – यह जलीय अपरदन का एक प्रकार है। इस प्रकार के अपरदन में मृदा की ऊपरी सतह पतली परतों के रूप में बहकर नष्ट हो जाती है। यह मृदा क्षरण अधिकतर मृदा उर्वरता का ह्रास करता है, कारण स्वरूप इस अपरदन को ‘किसान की मौत’ की संज्ञा दी जाती है। अधिक गहन वर्षा में जब खेत का पानी अधिक गंदापन लिये होता है तो इस प्रकार का कटाव अधिक होता है। उर्वरता हानि की दृष्टि से यह ज्यादे हानिकारक अपरदन है।
अवनालिका अपरदन (Gully Erosion)- क्षुद्र सरिता का विकसित रुप ही अवनालिका है। ये जुताई में नष्ट नहीं होती तथा कृषि कार्य में बाधा पहुँचाती हैं। आगे चलकर ये नालियों, नालों एवं नदियों का रूप धारण कर लेती है।
ये अवनालिकायें विभिन्न प्रकार का आकार ग्रहण कर लेती हैं। जैसे ‘U’ व ‘V’ आकार अथवा सुरंग (Tunnel shaped) अवनालिका आदि। भारत में मालवा पठार का चम्बल नदी वाह्य क्षेत्र अवनालिका अपरदन से सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्र है।*
• वस्तुतः हिमालय, पश्चिमी घाट तथा प्रायद्वीपीय उच्च भूमियों जैसे तीव्र ढालों वाले क्षेत्रों में मृदा अपरदन ने विस्तृत क्षेत्रों को बंजर भूमि (waste land) या उत्खात भूमि (bad land) में बदल दिया है।
• भूमि विघटन (land degradation) का व्यापक विस्तार सभी बड़े राज्यों में दिखायी देता है, जिसमें राजस्थान सर्वोपरि है। विनष्ट भूमि कृषि योग्य बंजर भूमि का प्रमुख घटक है। उत्खात भूमि के चार वृहत् क्षेत्रों की पहचान की गयी है-
1. पंजाब में शिवालिक के दक्षिणी ढाल,
2. चम्बल तथा उसकी सहायकों के मध्यवर्ती एवं निचले मार्ग तथा चम्बल-यमुना दोआब,
3. छोटा नागपुर प्रदेश एवं राजमहल पहाड़ियों के कुछ भाग तथा
4. गुजरात में खम्भात की खाड़ी के पूर्व तथा उत्तर पूर्व में स्थित क्षेत्र।
(ii) वायु क्षरण (Wind erosion) – शुष्क एवं अर्द्ध-शुष्क क्षेत्रों में जहाँ पर तापक्रम ऊँचा रहता है; वायु का वेग अधिक होता है, मृदा-शुष्क एवं मोटे कणों वाली होती है, मृदा में कार्बनिक पदार्थ का अभाव होता है, वहां पर वानस्पतिक आवरण नहीं पाया जाता, ऐसे क्षेत्रों में वायु के द्वारा मृदा का क्षरण अधिक होता है।
Desertification Atlas, 2016 के अनुसार वर्ष 2011-13 में देश का 18.19 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र वायु अपरदन के कारण बंजर हो रहा है।* भारत के प्रमुख क्षेत्र जो वायु द्वारा मृदा क्षरण से प्रभावित हैं, अधोलिखित हैं यथा- 1. पश्चिमी एवं उत्तर पश्चिमी राजस्थान। 2. हरियाणा के गुडगांव, रोहतक, भिवानी व हिसार। 3. पंजाब के फिरोजपुर व कपूरथला। 4. उ.प्र. में आगरा, मथुरा, इटावा व जौनपुर। 5. पं. बंगाल में मिदनापुर। 6. ओडिशा में पुरी। 7. गुजरात का कच्छ 8. कर्नाटक में हंगारी तथा तालकांड। 9. तमिलनाडु में रामेश्वरम् भूखण्ड, तिनी वेली, मदुरई, रामनाड, सेलम एवं कोयम्बटूर का कुछ क्षेत्र। 10. आन्ध्र प्रदेश में नेल्लूर, गुन्टूर, कृष्णा तथा विशाखापट्टनम का क्षेत्र।
जलाक्रान्त मृदा (Water logged Soil)
जिस प्रकार जल की कमी के कारण फसलों की वृद्धि रुक जाती है। उसी प्रकार फसल की आवश्यकता से अधिक जल भूतल (Land surface) या भूमिगत (Under ground) के जमा हो जाने से भी फसलों की वृद्धि रुक जाती है तथा फसलें सूखने लगती हैं। इस स्थिति में या तो फालतू पानी भूमि पर एकत्रित हो जाता है और भूमि दलदली हो जाती है अथवा पृष्ठीय भाग पर जल धारण क्षमता के आस पास सदैव नमी बनी रहती है, इस प्रकार की मृदा को जलाक्रान्त मृदा कहते हैं।
• जलाक्रान्त मृदा में ऑक्सीजन के अभाव के कारण बीज का जमाव नहीं होता तथा जड़ों के समीप CO₂ की सान्द्रता बढ़ने से जड़ों की वृद्धि रुक जाती है।
मृदा अवक्षय (Soil Depletion)
मोटे तौर पर मृदा अवकर्षण अथवा अवक्षय को मृदा की उर्वरता के ह्रास के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। इसमें मृदा का पोषण स्तर गिर जाता है तथा अपरदन और दुरुपयोग के कारण मृदा की गहराई कम हो जाती है। भारत में मृदा संसाधनों के क्षय का मुख्य कारक मृदा अवकर्षण है। मृदा अवकर्षण की दर भूआकृति, पवनों की गति तथा वर्षा की मात्रा के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर भिन्न होती है। मिट्टी की उर्वरता तथा उत्पादकता सुधारने के लिये प्रमुख विधियाँ निम्नलिखित हैं (i) जैविक पदार्थों (फसलों के अवशिष्ट भाग, खली की खाद, हरी खाद आदि) में वृद्धि, (ii) रासायनिक उर्वरकों द्वारा मिट्टी के पोषक तत्वों में वृद्धि तथा (iii) शस्यावर्तन (Crop rotation), भूमि को परती छोड़ना तथा मिश्रित कृषि।
मृदा संरक्षण (Soil Conservation)
यदि मृदा अपरदन और मृदा क्षय मानव द्वारा किया जाता है, तो स्पष्टतः मानवों द्वारा इसे रोका भी जा सकता है। संतुलन बनाये रखने के प्रकृति के लिए अपने नियम हैं। बिना संतुलन बिगाड़े भी प्रकृति मानवों को अपनी अर्थव्यवस्था का विकास करने के पर्याप्त अवसर प्रदान करती है। मृदा संरक्षण एक विधि है, जिससे मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है, मिट्टी के अपरदन और क्षय को रोका जाता है और मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है।
मृदा अपरदन मूल रूप से दोषपूर्ण पद्धतियों द्वारा बढ़ता है। किसी भी तर्कसंगत समाधान के अंतर्गत पहला काम ढालों की कृषि योग्य खुली भूमि पर खेती को रोकना है। 15 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि का उपयोग कृषि के लिए नहीं होना चाहिए।* यदि ऐसी भूमि पर खेती करना जरूरी भी हो जाए तो इस पर सावधानी से सीढ़ीदार खेत बना लेने चाहिए। भारत के विभिन्न भागों में, अति चराई और स्थानांतरित कृषि ने भूमि के प्राकृतिक आवरण को दुष्प्रभावित किया है, जिससे विस्तृत क्षेत्र अपरदन की चपेट में आ गए हैं। ग्रामवासियों को इनके दुष्परिणामों से अवगत करवा कर इन्हें (अति चराई और स्थानान्तरी कृषि) नियमित और नियंत्रित करना चाहिए। समोच्च रेखा के अनुसार मेड़बंदी, समोच्च रेखीय सीढीदार खेत बनाना, नियमित वानिकी, नियंत्रित चराई, आवरण फसलें उगाना, मिश्रित खेती तथा शस्यावर्तन आदि उपचार के कुछ ऐसे तरीके हैं जिनका उपयोग मृदा अपरदन को कम करने के लिए प्रायः किया जाता है।
शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि पर बालू के टीलों के प्रसार को वृक्षों की रक्षक मेखला बनाकर तथा वन्य- कृषि करके रोकने के प्रयास करने चाहिए। कृषि के लिए अनुपयुक्त भूमि को चरागाहों में बदल देना चाहिए। केंद्रीय शुष्क भूमि अनुसंधान संस्थान, जोधपुर ने पश्चिमी राजस्थान में बालू के टीलों को स्थिर करने के प्रयोग किए हैं।
भारत सरकार द्वारा स्थापित केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड ने देश के विभिन्न भागों में मृदा संरक्षण के लिए अनेक योजनाएँ बनाई हैं। ये योजनाएँ जलवायु की दशाओं, भूमि संरूपण तथा लोगों के सामाजिक व्यवहार पर आधारित हैं। ये योजनाएँ भी एक-दूसरे से तालमेल बनाए बिना ही चलाई गई हैं। अतः मृदा संरक्षण का सर्वोत्तम उपाय भूमि उपयोग की समन्वित योजनाएँ ही हो सकती हैं। भूमि का उनकी क्षमता के अनुसार ही वर्गीकरण होना चाहिए। भूमि उपयोग के मानचित्र बनाए जाने चाहिए और भूमि का सर्वथा सही उपयोग किया जाना चाहिए। मृदा संरक्षण का निर्णायक दायित्व उन लोगों पर है, जो उसका उपयोग करते हैं और उससे लाभ उठाते हैं।
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FAQs
Q1. भारत में थल एवं जल की क्या प्रतिशतता है?
Ans. 90.44% थल एवं 9.56% जल
Q2. भारत में मृदा के ऊपरी पर्त ह्रास का प्रमुख कारण क्या है?
Ans. जल अपरदन
Q3. भारत में सूखा क्षेत्र कार्यक्रम (डी.पी.ए.पी) कब चलाया गया?
Ans. 1973
Q4. मरुस्थल विकास कार्यक्रम (डी.डी.पी.) भारत में किस वर्ष से संचालित हो रहा है?
Ans. 1977-78
Q5. राष्ट्रीय बंजर भूमि विकास मण्डल की स्थापना की गई थी
Ans. 1985
Q6. Desertification Atlas, 2016 के अनुसार भारत का कितना प्रतिशत क्षेत्रफल मरुस्थलीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है?
Ans. भौगोलिक क्षेत्रफल का 29.3 प्रतिशत अर्थात् 96.39 मिलियन हेक्टेयर ।
Q7. बंजर भूमि विकास को राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी अभियान के तहत कब लाया गया ?
Ans. 1989
Q8. एकीकृत बंजर भूमि विकास कार्यक्रम प्रारम्भ किया था?
Ans. 1989
Q9. Wastelands Atlas of India, 2019 के अनुसार वर्ष 2015-16 में देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का कितना प्रतिशत बंजर भूमि (Waste land) है?
Ans. 16.96
Q10. देश में बंजर भूमि का क्षेत्रफल कितना है?
Ans. 55.76मि.हे.
Q11. स्टेपी जलवायु की सबसे बड़ी विशेषता है?
Ans. उच्च वार्षिक तापान्तर
Q12. भारत में प्रति व्यक्ति वनों का क्षेत्रफल कितना पाया जाता है?
Ans. 0.2 से 0.11 हेक्टेयर
Q13. वैश्विक स्तर पर प्रति व्यक्ति वनों का क्षेत्रफल पाया जाता है?
Ans. 0.6 हेक्टेयर
Q14. भारत के सकल घरेलू उत्पादों में वनों का योगदान चालू कीमत पर कितना प्रतिशत था?
Ans. 1.2 प्रतिशत (2017-18)
Q15. रोजवुड किस प्रकार के वन का वृक्ष है?
Ans. उष्ण कटिबन्धीय सदाबहारी
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