स्वयं पृथ्वी की आयु 4.6 अरब वर्ष आँकी गई है। लगभग 0.6 अरब वर्ष में उक्त गैसीयपिण्ड के ऊपर भू-पटल (Earth’s Crust) का निर्माण हुआ। भूपटल के निर्माण काल को अजीवी महाकल्प (Azoic era) की संज्ञा प्रदान की गई। भू-पटल की स्थापना से लेकर आज तक के पृथ्वी के इतिहास को जीवी महाकल्प (Zoic era) के रूप में अभिहित किया जाता है। चट्टानों की आयु के अनुसार जीवी महाकल्प को पांच प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है। यथा-
आर्कियोजोइक तथा प्रोटीरोजोइक महाकल्प को सम्मिलित रूप से प्री-कैम्ब्रियन महाकल्प (Pre-eambrian era) भी कहा जाता है। जो 59 करोड़ से 4.0 अरब वर्ष पहले तक था। अर्थात् प्री-क्रैम्ब्रियन महाकल्प की अवधि लगभग 3.41 अरब वर्ष की थी। ध्यातव्य है कि आर्कियोजोइक तथा प्रोटीरोजोइक महाकल्प को सबसे लम्बी अवधि वाले काल भाग-इओन (Eons) की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है।
आर्कियन कल्प में जीवन की उत्पत्ति हुई और पूर्वकेन्द्रकीय कोशिकाएँ (prokaryotic cells), अर्थात् वर्तमान जीवाणुओं जैसे एककोशिकीय जीवों का विकास हुआ जिनके बहुत कम जीवाश्म मिले हैं। प्रोटीरोजोइक कल्प में सुकेन्द्रकीय (eukaryotic) कोशिकाओं का विकास हुआ और विविध प्रकार के एककोशिकीय तथा बहुकोशिकीय जीवों- ऐल्गी एवं अपृष्ठवंशी जन्तुओं का विकास हुआ। इनके भी कुछ जीवाश्म मिले हैं।
➤ पुराजीवी महाकल्प (Palaeozoic Era)
59 करोड़ वर्ष पूर्व (कुछ विद्वानों के अनुसार 57 करोड़) प्रारम्भ पेलियोजोइक महाकल्प 24.8 करोड़ वर्ष पूर्व तक विद्यमान रहा अर्थात् इस महाकल्प की अवधि 34.2 करोड़ वर्ष की थी। इसे प्राथमिक युग (Primary Epoch) की संज्ञी दी जाती है। इस काल खण्ड में समुद्र से जीवों का पदार्पण स्थल (Origin & Evolution of Chordates) पर हुआ।
पेलियोजोइक महाकल्प को 6 शकों (Periods) में विभक्त किया गया है। यथा-
पेलियोजोइक महाकल्प | |||
शक (Periods) | प्रारम्भ (करोड़ वर्ष पूर्व) | समाप्त (करोड़ वर्ष पूर्व) | अवधि (करोड़ वर्ष) |
1. कैम्ब्रियन शक (Cambrian Period) | 59 | 50.5 | 8.5 |
2. आर्डोविसियन शक (Ordovician P.) | 50.35 | 43.8 | 6.7 |
3. सिल्यूरियन शक (Silurian Period) | 43.8 | 40.8 | 3.0 |
4. डिबोनियन शक (Devonian Period) | 40.8 | 36.0 | 4.8 |
5. कार्बोनीफेरस शक (Carboniferous P.) | 36.0 | 25.6 | 7.4 |
6. पार्मियन शक (Permian P.) | 28.6 | 24.8 | 3.8 |
1. कैम्बियन शक- वनस्पति एवं जीवों की उत्पत्ति इसी शक में हुआ था। प्राचीनतम अवसादी शैलों का निर्माण एवं जीवाश्म इसी शक के काल खण्ड में मिलता है। पेरीपेटस (एनीलिड़ा एवं आर्थोपोड़ा संयोजक जन्तु) का जीवाश्म इसी काल के चट्टानों में पाया जाता है। समुद्रों में सर्वप्रथम घासों की उत्पत्ति (सारगैसम आदि) भी इसी काल में हुई थी।
2. आर्डोविसियन शक- इस काल में निम्न कोटि की मछलियों से chordata का विकास प्रारम्भ हुआ। किन्तु अभी भी स्थल खण्ड जीव विहीन था।
3. सिल्यूरियन शक- इस काल में जीवों का समुद्र से स्थल पर पदार्पण हुआ। रीढ़ वाले जीवों का विस्तार हुआ। इसी कारण इसे ‘रीढ़ वीले जीवों का काल’ (Age of Vertiebrates) कहते हैं।
4. डिवोनियम शक- इसकाल का जलवायु मछलियों के लिए सर्वाधिक अनुकूल था। कारणस्वरूप इसे ‘मत्स्य युग’ (Age of fish)* की संज्ञा प्रदान की जाती है। इस शक में उभयचर जीवों (Amphibians) की भी उत्पत्ति हुई। प्रथम उभयचर स्ट्रीगोसिफैलिया का विकास इसी काल में हुआ। इसके अलावा जमीन पर जंगलों का जन्म हुआ तथा फर्न जैसी वनस्पतियों का विस्तार हुआ।
5. कार्बोनीफेरस शक- इस काल में उभयचरों का काफी विस्तार हुआ। इसलिए इसे ‘उभयचरों का युग’ (Age of Amphibians)* कहते हैं। सरीसृप (Reptile) की उत्पत्ति तथा प्रवालरोधिकाओं का निर्माण इसी समय से प्रारम्भ हुआ। इस शक को ‘बड़े वृक्षों का काल’ उपमा प्रदान की गई है। इस समय बने अंशों में वृक्षों के दब जाने के कारण ‘गोडवाना क्रम के चट्टानों का निर्माण’ हुआ जिसमें कोयले के व्यापक निक्षेप मिलते हैं।*
6. पर्मियन शक- पर्मियन में सरीसृपों का विकास, परन्तु उभयचरों की कुछ जातियों की विलुप्ति हुई। फिर इस कल्प के अन्त में महाद्वीपों के एक विशाल महाद्वीप- पैंजिया (Pangaea) – में परस्पर जुड़ने, व्यापक हिमखण्डों के बनने (glaciation) तथा शुष्क जलवायु के कारण लगभग 96% जीव-जातियों की व्यापक विलुप्ति हुई।
➤ मध्यजीवी महाकल्प (Mesozoic Era)
इस महाकल्प का प्रारम्भ 24.8 करोड़ वर्ष पूर्व (कुछ विद्वानों के अनुसार 22.5 करोड़) हुआ था और इसकी समाप्ति 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व हुई थी। अर्थात् इसकी अवधि 18.3 करोड़ वर्ष की थी। इसे ‘सरीसृपों का युग’ (Age of Reptiles)* कहते हैं, क्योंकि इसमें सरीसृपों का उद्विकास अपनी चरम सीमा पर था। इस महाकल्प को द्वितीयक युग (Secondary Epoch) भी कहा जाता है, जिसे तीन शकों (Periods) में वर्गीकृत किया गया है। यथा-
मीसोजोइक महाकल्प | |||
शक (Periods) | प्रारम्भ (करोड़ वर्ष पूर्व) | समाप्त (करोड़ वर्ष पूर्व) | अवधि (करोड़ वर्ष) |
1. ट्रियाशिक शक (Triassic Period) | 24.8 | 21.3 | 3.5 |
2. जुरैसिक शक (Jurassic P.) | 21.3 | 14.4 | 6.9 |
3. क्रिटैशियस शक (Cretaceous P.) | 14.4 | 6.5 | 7.9 |
1. ट्रियाशिक शक – इसे ‘रंगने वाले जीवों का काल’ अर्थात् `Age of Reptiles’ कहा जाता है। इसके अन्तिम चरण में उड़ने वाले सरीसृपों- टीरोसॉरों एवं सरीसृपों से अण्डे देने वाले निम्नकोटि के स्तनियों- प्रोटीथीरिया की उत्पत्ति हुई।*
2, जुरैसिक शक- इस काल में पुष्प पादपों अर्थात् आवृतबीजी (Angiosperms) की उत्पत्ति हुई। स्थल पर डायनोसारों जैसे सरीसृपों का प्रभुत्व था*। निम्न स्तनियों (प्रोटोथीरिया) से मासूपियल (मेटाथीरिया- कंगारू) स्तनियों की उत्पत्ति हुई। उड़ने वाले सरीसृप से प्रथम पक्षी आर्कियोप्टेरिक्स की उत्पत्ति भी इसी काल में हुई थी।*
3. क्रिटेशियस शक- यह मध्यजीवी महाकल्प का अन्तिम शक था। इस काल में डाइनोसॉरो, पुष्पीय पादपों, स्तनियों का विकास होता रहा, परन्तु अन्तिम चरण में उत्तरी महाद्वीपों के जुड़ने, गोन्डवाना महाद्वीप के पृथक् होने तथा पृथ्वी पर उल्कापिण्डों (mete- orites) के गिरने से डायनासोरों सहित लगभग 76% जीव- जातियों की व्यापक विलुप्ति हुई ।*
➤ सीनोजोइक महाकल्प (Cenozoic Era)
इस महाकल्प का प्रारम्भ आज से लगभग 6.5 करोड़ वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ था और लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व समाप्त हुआ, अर्थात् इस महाकल्प की अवधि लगभग 6.3 करोड़ वर्ष की थी। इसे स्तनियों, कीटों एवं आवृत्तबीजी पादपों का युग (Age of Mammals, Insects and Angiosperms) कहा जाता है।*
इस महाकल्प को तृतीयक युग (Tertiary Epoch) की संज्ञा से अभिहित किया जाता है। इसके विभिन्न शकों का विवरण अधोलिखित है। यथा-
1. पैल्योसीन शक- इस काल में पुष्पी पादपों एवं पुरातन स्तनियों का विस्तार हो रहा था। डायनोसोर समाप्त हो चुके थे।
सीनोजोइक महाकल्प | |||
शक (Periods) | प्रारम्भ (करोड़ वर्ष पूर्व) | समाप्त (करोड़ वर्ष पूर्व) | अवधि (करोड़ वर्ष) |
1. पैल्योसीन शक (Paleocene P.) | 6.5 | 5.49 | 1.01 |
2. इओसीन शक (Eocene Periods) | 5.49 | 3.8 | 1.69 |
3. ओलिगोसीन शक (Oligocene P.) | 3.8 | 2.46 | 1.34 |
4. मायोसीन शक (Miocene P.) | 2.46 | 0.51 | 1.95 |
5. प्लायोसीन शक (Pliocene P.) | 0.51 | 0.20 | 0.31 |
2. इओसीन शक– पिछले युग में वर्तमान स्तनधारी जीवों के अनेक प्रकारों का स्थल पर प्रादुर्भाव हो गया था। हाथी, घोड़ा, रेनोसेरस (गैंडा), सुअर के पूर्वजों का उद्भव इस शक में हुआ था।
3. ओलिगोसीन शक- स्थल भाग पर वर्तमान बिल्ली, कुत्ते तथा भालुओं के पूर्वजों का जन्म हुआ। पुच्छहीन बन्दर (Ape) का आविर्भाव हुआ, जिसे मानव का पूर्वज कहा जा सकता है।
4. मायोसीन शक- इस युग में शार्क मछली का सर्वाधिक विकास हुआ। स्थल पर प्रोकानसल (एक प्रकार का पूच्छहीन बंदर) का स्थानान्तरण अफ्रीका से एशिया तथा यूरोप महाद्वीप में हुआ। पेंग्विन का आविर्भाव अण्टार्कटिका में हुआ।
5. प्लायोसीन शक- महान आकार वाली शार्क मछली का विनाश इसी समय हुआ। स्थल पर बड़े-बड़े स्तनधारी जीवों में ह्यस हुआ। किन्तु मानव की उत्पत्ति इसी शक में हुई थी।*
➤ नियोजोइक महाकल्प (Neozoic Era)
इस महाकल्प का प्रारम्भ आज से लगभग 20 लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ और आज भी जारी है। इसे चतुर्थ युग (Quaternary Epoch) की संज्ञा प्रदान किया गया है। इस काल को दो शकों में विभक्त किया गया है। यथा-
नियोजोइक महाकल्प | |||
शक (Periods) | प्रारम्भ (लाख वर्ष पूर्व) | समाप्ति (लाख वर्ष पूर्व) | अवधि (लाख वर्ष) |
1. प्लीस्टोसीन शक (Pleistocene P.) | 20 | 0.11 | 19.89 |
2. होलोसीन शक (Holocene P.) | 0.11 | जारी | जारी |
1. प्लीस्टोसीन शक- मानव का विकास क्रम जारी रहा। होमो सैपियन्स का विकास इसी शक में हुआ। शिकार हेतु पत्थर के औजार बनाये गये। अपनी जन्म स्थली ‘अफ्रीका महाद्वीप’ से ये यूरोप तथा एशिया तक पहुंच गये।* हिमयुग तथा आवान्तर हिमयुग के कारण जीवों में पर्याप्त स्थानान्तरण होने लगा।
2. होलोसीन शक- इस शक को ‘मानव युग’ (Age of Man) की संज्ञा प्रदान की गई है। मनुष्य ने पशु-पालन एवं कृषि करना प्रारम्भ किया।
विलुप्ति के कारण (Causes of Extinction)
पृथ्वी के इतिहास में जितनी जीव-जातियों की उत्पत्ति प्रारम्भ से अब तक हुई है उनमें से 99% से भी अधिक की विलुप्ति हो चुकी है। भौमिक समय-सारणी से पता चलता है कि पृथ्वी पर अधिक – और दूर-दूर के क्षेत्रों में फैली जीव-जातियों की तुलना में कम और निकटवर्ती क्षेत्रों में फैली जीव-जातियों में विलुप्ति की दर अधिक होती है। इसी प्रकार, बड़ी-बड़ी आबादियों वाली जीव-जातियों की तुलना में छोटी-छोटी आबादियों वाली जीव-जातियों की तथा स्थलीय जातियों की तुलना में समुद्री जातियों की विलुप्ति अधिक होती है।* विलुप्ति ही प्रत्येक जीव-जाति का अन्तिम – भविष्य होता है। वास्तव में किसी जीव-जाति की विलुप्ति में इतना समय नहीं लगता जितना कि इसके उद्विकास में लगता है। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि सामान्य दशाओं में एक जीव- जाति का पृथ्वी पर अस्तित्व दस लाख से एक करोड़ वर्ष तक का ही हो सकता है।
जीव-जातियों की विलुप्ति पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन, परभक्षण, प्रतिद्वन्दी जातियाँ, परागण वाले कीटों का विनाश, महाद्वीपीय अपवहन, ज्वालामुखी उभेदन, उल्कापात आदि कारणों से होती रही है। ध्यातव्य है कि आधुनिक युग में जीव-जातियों का सबसे बड़ा शत्रु स्वयं मानव ही बन गया है। मानव के अनेकानेक विध्वंशक क्रिया-कलापों के कारण, संसार भर में इधर दो-तीन सदियों में वन्य स्तनियों की लगभग 120, वन्य पक्षियों की लगभग 225 तथा अन्य वन्य प्राणियों की सैकड़ों जातियों की अप्राकृतिक विलुप्ति हुई है। उदाहरणार्थ, डुगोन्ग नामक समुद्री स्तनधारी*, पांडा (भालू- चीन) नामक स्थलीय स्तनी* और केवल मॉरिशियस (Mauritius) में
पाए जाने वाले एक पक्षी- डोडो (Dodo- Didus ineptus) – की पूरी आबादी को, वहाँ के लोगों ने, स्वादिष्ट मांस के लिए मार- मारकर सत्रहवीं सदी में समाप्त कर दिया। मानव क्रिया-कलापों के कारण, इस प्रकार वन्य प्राणियों की अनेक जातियाँ विलुप्त तो हुई ही हैं, अनेक वन्य जातियों पर विलुप्ति का संकट खड़ा हो गया है।
वन्य प्राणि-जातियों की विलुप्ति में भी हमारा देश विश्वभर में अग्रणी है। यहाँ पिछली कुछ सदियों में वन्य स्तनियों की लगभग 35, वन्य पक्षियों की लगभग 95 तथा अन्य वन्य प्राणियों की अनेक जातियाँ विलुप्त हुई हैं और अनेक विलुप्ति की कगार पर हैं। उदाहरणार्थ, सुन्दरबन का दोसिंघा गैंडा (2-horned rhinoceros), भारतीय चीता (Indian cheetah), साइबेरियन बाघ (Siberian tiger), सुनहरा लंगूर (Golden langur), हिमालयी बटेर (Himalayan quail), गुलाबी सिर वाली बत्तख (pink-headed duck), सुनहरा गरुड़ (Golden eagle) आदि हमारी वन्य प्राणी सम्पदा में से समाप्त हो चुके हैं।
मानव का उद्विकास (Evolution of Man)
मानव का वैज्ञानिक नाम होमोसैपियन्स सैपियन्स-सैपियन्स (Homo Sapiens – Sapiens) है। यह गण-प्राइमेट्स कुल-होमिनिडी (hominidae) का सदस्य है। यह द्विपदचारी, सीधी खड़ी मुद्रा तथा सर्वश्रेष्ठ विकसित मस्तिष्क वाला जन्तु है। मानव में सीखने की क्षमता, अनुभवों व भावनाओं की अभिव्यक्ति, अनुभवों के पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रसारण हेतु भाषा और वाणी आदि विशेषताएँ इसे सर्वश्रेष्ठ बनाती हैं। चार्ल्स डार्विन के अनुसार बन्दर, कपि तथा मानव का विकास एक-दूसरे से नहीं हुआ है, बल्कि इनका विकास समान प्रकार के जीवों (पूर्वज) से एक ही समय में हुआ है। इसकी उर्ध्व संस्थिति (erect posture) के लिए श्रोणि मेखला (Pelvic girdle) चौड़ी और छिछली होती है। कपाल गुहा का आयतन लगभग 1450 C.C. होता है। इसके मस्तिष्क और शरीर के भार का अनुपात 1:46 है, जो जन्तु जगत में सर्वाधिक है।
मानव का विकास प्राइमेट स्तनियों से हुआ, जो आधुनिक चूहों के पूर्वज गजश्रूज (Elephant Shrews) के समान कीटभक्षी प्राणी थे।* इनका विकास क्रीटेशियस काल में हुआ था। गजश्रूज से वृक्षवासी श्रूज, लीमूराएड्स, टार्सिओएडस जैसे जन्तुओं का विकास हुआ जिन्हें प्रारम्भिक प्राइमेट्स (Prosomian Primates) कहते है। प्रारम्भिक प्राइमेटस के अतिरिक्त अन्य सभी प्राइमेट्स को उपगण एन्थ्रोपोइडिया (sub order-Anthropoidea) में रखा गया है, जिसमें बन्दर (Monkey) कपि (Ape) और मानव (Humans) आते हैं। इन्हें मानवाकार प्राइमेट्स भी कहते है।
मानवाकार प्राइमेट्स के तीन समूह हैं। यथा-
1. वानर वंश (Monkey Stock)
2. कपिवंश (Ape Stock)
3. मानव वंश (Homonid Stock)
वानर वंश में नये एवं पुरातन विश्व के वानर आते हैं। कपिवंश में चार जातियाँ गिब्बन, गौरिल्ला, ओरेंगुटान, और चिम्पैन्जी प्रमुख हैं।
गिब्बन आधुनिक कपियों में आते हैं इनके शरीर हल्के एवं छोटे होते है। इनका शरीर वृक्षीय जीवन के लिये अनुकूलित है जबकि गौरिल्ला, ओरेगुंटान तथा चिम्पैन्जी का शरीर बड़ा होता है। इन्हें विशाल कपि (great apes) कहते हैं।
मानव वंश (Homonid stock) में प्रागैतिहासिक (विलुप्त) मानव तथा आधुनिक मानव दोनों आते हैं जिन्हें होमोनिडी कुल में रखा गया है।
➤ प्रागैतिहासिक मानव पूर्वज (Pre-historic Human Ancestors)
विश्व के विभिन्न भागों से प्राप्त जीवाश्मों के अध्ययन के आधार पर ऐसा माना जाता है कि “मानव जाति का विकास कपियों को उत्पन्न करने वाले जीवों से ही हुआ है।” इन जीवाश्मों में क्रमिक रूप में निम्नलिखित सम्मिलित हैं। यथा-
आधुनिक वैज्ञानिकों ने इन जीवाश्मों को सूत्रबद्ध करके मानव के विकास-क्रम की एक रूपरेखा तैयार की है। इस समय जो भी प्रमाण उपलब्ध हुए हैं, उनके अनुसार यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि मानव के पूर्वज कपि सदृश थे। मानव विकास, प्लीस्टोसीन युग (pleistocene epoch) में हुआ था। यह युग लगभग 10 लाख वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुआ तथा महाकल्प सीनोजोइक (coenozoic) के चतुर्थ महाकल्प (quaternary period) का प्रारम्भ माना जाता है। मानव के विकास में इसके पूर्वजों को खोजते हुए यदि हम प्राप्त जीवाश्मों आदि का अध्ययन करते हैं तो ज्ञात होता है कि आदि कपियों तथा आदि होमीनिड्स (hominids), जो सम्भवतः एक ही प्रकार के वंशों से अलग-अलग विकास रेखाओं में विकसित हुए हैं, लगभग 2.5 करोड़ वर्ष पूर्व पृथ्वी पर विचरने लगे थे।
➤ Evolution of Hominidae
कुछ मानव शास्त्रियों ने मानव विकास को चार चरणों में विभिक्त किया है। यथा-
1. ऑस्ट्रेलोपिथेसीन चरण
(a) ऑस्ट्रेलोपिथेकस रोबस्टस
(b) ऑ. बॉसाई
2. पिथेकैन्थ्रोपियन चरण
(a) होमो हैबिलिस (Homo habilis)
(b) जावा मानव (Homo erectus-erectus)
(c) पेकिंग मानव (Homo erectus – पेकिनेन्सिस)
(d) ऐटलांटिक मानव (Homo erectus – मॉरिटेनिकस)।
3. निएण्डरथल चरण
(a) होमो निएण्डरथैलोन्सिस
4. वर्तमान चरण (Mordern Stage)
(a) क्रो-मैगनॉन (होमोसैपियन्स-फॉसिलिस)
(b) होमो सैपियन्स-सैपियन्स
1. आस्ट्रेलोपिथेसीन चरण
पूर्व प्लीस्टोसीन (pleistocene) युग में सर्वप्रथम मानव का पहला जीवाश्म 1924 में अफ्रीका के द्वांग की चट्टानों से प्राप्त हुआ जो छोटे बच्चे की खोपड़ी के रूप में मिला था। अतः इसको ट्वांग शिशु (Tuang baby) कहा गया है। इसका नाम आस्ट्रेलोपिथेकस अफ्रीकैन्स (Australopithecus africans) रखा गया।
यह लगभग 4 फीट लम्बा तथा वजन 30-35 किग्रा. का था। इसकी कपाल गुहा का आयतन 450-700c.c. तथा औसत 550c.c. था। इसके कैनाइन दांत कपि से छोटे थे। ये पत्थरों का औजार बनाकर शिकार करते थे। इसके कुछ और जीवाश्म मिले हैं जिसमें दो प्रमुख हैं-.
(i) आस्ट्रेलोपिथेकस रोबस्टस (Australo-pithecus robustus) – इसका जीवाश्म अफ्रीका के जोहन्सबर्ग से प्राप्त हुआ।
(ii) आस्ट्रेलोपिथेकस बासाई (Australo-pithecus Boisei)
इसका जीवाश्म तांजानिया के जीन्ज क्षेत्र से प्राप्त हुआ।
2. पिथेकैन्थ्रोपियन चरण (Pithecanthropine Stage)
इस चरण के अन्तर्गत होमोहैबिलिस (Homo habilis) जावा मानव (Java man), पेकिंग मानव (Peking man) आदि प्रमुख जीवाश्म ज्ञात है।
(a) होमो हैबिलिस (Homo habilis): यह होमो वंश की सर्वप्रथम ज्ञात जाति है जो लगभग 8 लाख वर्ष पूर्व अफ्रीका में पायी जाती थी। यह दोनों पैरों पर सीधा चलता था। इनके पत्थर के बनाये गये औजार नुकीले थे। इस मानव ने सर्वप्रथम हथियार का निर्माण किया। यह सर्वाहारी था। दन्त विकास मानव जैसे थे।
(b) होमोइरेक्टस (Homo eroctus) : प्लीस्टोसीन युग में आज से 5-15 लाख वर्ष पुराने कई आदि मानवों के जीवाश्म मिले। इन सबको एक ही जाति होमोइरेक्टस में रखा गया है। इनके कुछ प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(i) जावा मानव (Java Man) : इस प्रागैतिहासिक मानव का जीवाश्म पूर्वी जावा के सोलो नदी के समीप मिला। इसका नाम पिथिकेन्द्रापस इरेक्टस रखा गया। यह दो पैरों पर सीधा चलने वाला कपि मानव था। इसका शरीर लगभग 5 फुट लम्बा तथा भार 70 किग्रा. का था। कपाल गुहा का आयतन 750-900c.c. था। कपि के समान भौंहें मोटी तथा दांत मनुष्य जैसे थे। जावा मानव ने औजार और अग्नि का प्रयोग किया। इनमें बातचीत करने की क्षमता थी। ये अधिक मांसाहारी थे। इनमें अग्नि द्वारा भोजन बनाने की कला विकसित हुई।*
(ii) पेकिंग मानव (Pecking man) : इस प्रागैतिहासिक मानव के जीवाश्म चीन के पेकिंग के पास प्राप्त हुए। ये कपि मानव, जावा मानव से अधिक बुद्धिमान थे। कपाल गुहा का आयतन 1075 c.c. था अर्थात् मस्तिष्क विकसित था। ये सीधे खड़े होकर चलते थे। ये समूह बनाकर गुफाओं में रहते थे। ये औजार बनाकर शिकार करते थे। अग्नि का भी प्रयोग करते थे।
3. निएण्डरथल चरण (Neanderthal Stage)
यह मानव यूरोप में लगभग 1.5 लाख वर्ष पहले रहता था। इसके जीवाश्म जर्मनी की निएण्डर घाटी में मिले। यह मानव यूरोप, एशिया, उत्तरी अफ्रीका तथा दक्षिणी रूस तक फैले थे। कद 1.6 मीटर लम्बा, शरीर सुडौल था। कपाल गुहा का आयतन 1400-1450 c.c. था। ये मानव गैंड़े और हाथी का शिकार भी करते थे। इन्होंने सामाजिक जीवन प्रारम्भ कर दिया था। मुर्दो को गाड़ते थे। पशुओं की खाल ओढ़ते थे। तीर, भाला तथा चाकू का प्रयोग इन्हीं के समय से हुआ। बोलने में वाक्यों का प्रयोग करते थे। इनका मस्तिष्क आधुनिक मानव की भांति परिपक्व न होने के कारण इन्हें आधुनिक मानव नहीं कहा जा सकता है। परन्तु ये वर्तमान मानव से बहुत मिलते थे। अतः इसे वर्तमान मानव के पूर्वज माना जाता है। इन्हें होमोसैपिएन्स की उपजाति होमो सैपियन्स निएण्डरथैलेंसिस (Homo sapiens neander-thaliensis) में रखा गया है।
4. वर्तमान चरण (Mordern Stage)
वर्तमान मानव की उपजाति को होमो सैपियन्स-सैपियन्स (Homo sapiens-sapiens) कहते हैं इसका उद्भव दस हजार वर्ष पूर्व कैस्पियन सागर के निकट हुआ। क्रोमैगनॉन मानव को वर्तमान मानव का पूर्वज माना जाता है। इस समय इनमें अनेक लक्षण विकसित हुए हैं। मानव पूरी तरह सीधा खड़ा हो गया तथा कशेरुक दण्ड में चार स्थानों पर वक्रताएँ आ गईं, प्रमस्तिष्क एवं अनुमस्तिष्क ज्यादा विकसित हो गए, बोलने और सोचने की क्षमता का अत्यधिक विकास हुआ, कपाल गुहा 1450c.c., हाथ पैरों से बहुत छोटे तथा सीधे, दोनों आँखें पास-पास तथा सामने, पूर्ण रूप से विकसित द्विनेत्रीय दृष्टि, माथा सीधा तथा चौड़ा, ठोड़ी उभरी हुई और चेहरा सुन्दर हो गया। ये सभ्यता तथा कृषि, समाज, धर्म आदि को महत्त्व देने लगे।
इसके आगे मानव का सांस्कृतिक विकास हुआ, जिसे निम्नलिखित तीन कालों में बाँटा गया-
1. पूर्व पाषाण काल (Paleolithic period or old stone age) – मानव जातियाँ पत्थरों और हड्डियों के हथियारों से शिकार करके जीवन निर्वाह करती रहीं।
2. मध्य पाषाण काल (Mesolithic period)- मानव ने अपनी बुद्धि का उपयोग करके पशुपालन, भाषा आदि की क्षमता का विकास किया।
3. नव पाषाण काल (Neolithic period or new stone age)- मानव ने कृषि और सभ्यता अपनाकर वर्तमान रूप धारण किया। सभ्यता का प्रारम्भ सम्भवतः भारत में सिन्धु घाटी और अफ्रीका में नाइल नदी के निकट हुआ।*
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