गोलमेज सम्मेलन

गोलमेज सम्मेलन

गोलमेज सम्मेलन, अंग्रेजों ने महसूस किया कि उन्हें भारतीयों को सत्ता का हिस्सा देना होगा और नमक यात्रा के परिणामस्वरूप उनका शासन लंबे समय तक नहीं चलेगा। ब्रिटिश सरकार ने इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए लंदन में गोलमेज सम्मेलनों की मेजबानी शुरू की। ब्रिटिश सरकार ने भारतीय संवैधानिक सुधारों के बारे में बात करने के लिए बैठकों की एक श्रृंखला के हिस्से के रूप में 1930-1932 में तीन गोलमेज सम्मेलन आयोजित किए। साइमन आयोग की मई 1930 की रिपोर्ट ने इन सम्मेलनों की नींव के रूप में कार्य किया। भारत में स्वशासन या स्वराज का आह्वान दिन-ब-दिन तेज होता जा रहा था। फिर भी, सम्मेलन भारतीय और ब्रिटिश राजनीतिक दलों के बीच मौजूद महत्वपूर्ण वैचारिक विभाजन को मिलाने में असमर्थ थे।

प्रथम गोलमेज सम्मेलन

• प्रथम गोलमेज सम्मेलन 12 नवम्बर, 1930 ई. से 13 जनवरी, 1931 ई. तक लंदन में आयोजित किया गया था। यह ऐसी पहली वार्ता थी, जिसमें ब्रिटिश शासकों द्वारा भारतीयों को बराबर का दर्जा प्रदान किया गया था।

• इस गोलमेज सम्मेलन में 89 सदस्यों में 13 ब्रिटिश राजनीतिक दलों के शेष 76 भारतीय (उदारवादी दल, मुस्लिम लीग, हिन्दू महासभा, दलित वर्ग, व्यापारी वर्ग एवं राजवाड़ों के प्रतिनिधि) थे।

• इस सम्मेलन का उद्घाटन ब्रिटेन के सम्राट जार्ज पंचम ने किया था तथा अध्यक्षता प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने की थी।

गाँधी-इर्विन समझौता :

• महात्मा गाँधी और वायसराय इर्विन के मध्य 5 मार्च, 1931 ई. को एक समझौता हुआ, जिसे ‘गाँधी-इर्विन समझौता’ के नाम से जाना जाता है। इस समझौते के फलस्वरूप कांग्रेस ने अपनी तरफ से सविनय अवज्ञा आंदोलन समाप्त करने की घोषणा की तथा गाँधीजी द्वितीय गोलमेज सम्मेलन में भाग लेने को तैयार हुए।

• गाँधी-इर्विन समझौते को ‘दिल्ली समझौता’ भी कहा जाता है।

द्वितीय गोलमेज सम्मेलन

• द्वितीय गोलमेज सम्मेलन लन्दन में 7 सितम्बर, 1931 ई. को आरंभ हुआ। इस सम्मेलन में कांग्रेस के एक मात्र प्रतिनिधि के रूप में गांधीजी ने भाग लिया था।

• यह सम्मेलन साम्प्रदायिक समस्या पर विवाद के कारण पूर्णतः असफल हो गया। फलस्वरूप यह सम्मेलन एक दिसम्बर, 1931 ई. को समाप्त घोषित कर दिया गया।

• 28 दिसम्बर, 1931 ई. को गाँधीजी निराश होकर बम्बई वापस आ गये, भारत आकर उन्होंने वायसराय बेलिंगटन से मिलना चाहा परंतु वायसराय ने मिलने से इन्कार कर दिया अतः विवश होकर गाँधीजी ने पुनः सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारंभ कर दिया।

• सविनय अवज्ञा आंदोलन प्रारम्भ होते ही सरकारी दमन चक्र तेज हो गया।

• इसी समय ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैक्डोनाल्ड ने ‘साम्प्रदायिक पंचाट’ की घोषणा कर आंदोलन को नया मोड़ दे दिया।

साम्प्रदायिक पंचाट : पूना समझौता :

• 16 अगस्त 1932 ई. को विभिन्न सम्प्रदायों के प्रतिनिधित्व के विषय पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडोनाल्ड ने एक पंचाट, जिसे ‘क्म्यूनल एवॉर्ड’ कहा गया, जारी किया। इस पंचाट में पृथक् निर्वाचक पद्धति को न केवल मुसलमानों के लिये जारी रखा गया अपितु इसे दलित वर्गों पर भी लागू कर दिया गया।

• दलित वर्ग को पृथक् निर्वाचक मण्डल की सुविधा दिए जाने के विरोध में महात्मा गाँधी ने जेल में ही 20 सितम्बर, 1932 ई. को आमरण अनशन प्रारंभ कर दिया।

• मदनमोहन मालवीय, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, पुरुषोत्तमदास एवं राजगोपालाचारी के प्रयलों से 5 दिन उपरान्त 26 सितम्बर, 1932 ई. को गांधीजी और दलित नेता अम्बेडकर में पूना समझौता सम्पन्न कराया।

• पूना समझौते के अनुसार दलितों के लिए पृथक् निर्वाचन व्यवस्था समाप्त हो गई।

तृतीय गोलमेज सम्मेलन

• 17 नवम्बर, 1932 ई. से 24 दिसंबर, 1932 ई. तक आयोजित यह सम्मेलन लन्दन में मात्र 46 प्रतिनिधियों की भागीदारी से सम्पन्न हुआ था।

• इस सम्मेलन का कांग्रेस ने बहिष्कार किया था। • इस सम्मेलन में भारत सरकार अधिनियम, 1935 ई. को अंतिम रूप दिया गया था।

• डॉ. भीमराव अम्बेडकर (बी.आर. अम्बेडकर) तीनों गोलमेज सम्मेलनों में भाग लेने वाले भारतीय प्रतिनिधि थे।

अगस्त प्रस्ताव

• द्वितीय विश्वयुद्ध प्रारंभ (1939 ई.) होने पर कांग्रेस ने युद्ध में समर्थन के बदले ‘भारत को स्वतंत्र राष्ट्र’ घोषित किए जाने का प्रस्ताव रखा।

• मार्च 1940 ई. को कांग्रेस ने अपने रायगढ़ (बिहार) में आयोजित वार्षिक अधिवेशन में एक प्रस्ताव पारित कर सरकार से स्पष्ट किया कि यदि वह केन्द्र में एक अंतरिम राष्ट्रीय सरकार गठित करे तो कांग्रेस द्वितीय विश्व युद्ध में सरकार का सहयोग कर सकती है। कांग्रेस के इस प्रस्ताव के उत्तर में वायसराय लॉर्ड लिनलिथगो ने 8 अगस्त, 1940 ई. को ‘अगस्त प्रस्ताव’ प्रस्तुत किया।

• इस प्रस्ताव में डोमिनियन स्टेट, युद्ध की समाप्ति के उपरान्त एक प्रतिनिधि मूलक संविधान निर्मात्री सभा का गठन, वायसराय की कार्यकारिणी में अतिशीघ्र भारतीय सदस्यों की संख्या में वृद्धि, एक युद्ध सलाहकार परिषद् का गठन आदि बातें निहित थीं।

पृथक् पाकिस्तान की मांग

• 1933 ई. से 1935 ई. के बीच कैम्ब्रिज (इंग्लैण्ड) में पढ़ने वाले चौधरी रहमत अली नामक एक मुस्लिम छात्र ने एक पर्चा जारी कर पृथक राज्य ‘पाकिस्तान’ की परिकल्पना को जन्म दिया।

• 22-23 मार्च, 1940 ई. को मुस्लिम लीग के लाहौर अधिवेशन में पहली बार पृथक् ‘पाकिस्तान’ राज्य के निर्माण का प्रस्ताव पारित किया गया, परन्तु प्रस्ताव में ‘पाकिस्तान’ शब्द का उल्लेख नहीं था। पृथक् पाकिस्तान की मांग को पहली बार मान्यता 1942 ई. के ‘क्रिप्स प्रस्तावों’ में सन्निहित थी।

क्रिप्स प्रस्ताव

• द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ईयार तथा चीनी राष्ट्रपति च्यांग काई शेक ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री चर्चिल पर दबाव डाला कि वह भारतीयों का युद्ध में सहयोग प्राप्त करने हेतु उनसे उनकी आकांक्षाओं के अनुकूल विचार विमर्श करे। परिणामतः ब्रिटिश सरकार ने भारत के राजनीतिक एवं वैधानिक गतिरोध को दूर करने के लिए स्टैफर्ड क्रिप्स के नेतृत्व में एक मिशन भारत भेजा, जिसे क्रिप्स मिशन के नाम से जाना जाता है।

• 22 मार्च, 1942 ई. को भारत पहुँचकर सभी दलों से भेंट के पश्चात् कुछ प्रस्ताव प्रस्तुत किए जैसे-औपनिवेशिक राज्य की स्थापना, संविधान का गठन, प्रान्तों का पृथक् संविधान बनाने का अधिकार आदि। कांग्रेस और मुस्लिम लीग दोनों ने क्रिप्स प्रस्तावों को अस्वीकृत कर दिया।

भारत छोड़ो आंदोलन

• ‘अगस्त प्रस्ताव’ एवं क्रिप्स मिशन की असफलता तथा कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए आन्दोलन के दौरान राष्ट्रीय सरकार की स्थापना की मांग को अस्वीकार किए जाने पर कांग्रेस ने बम्बई अधिवेशन में 8 अगस्त, 1942 को ‘भारत छोड़ो’ प्रस्ताव पारित किया।

• गाँधीजी ने बम्बई के ग्वालिया टैंक मैदान से लोगों को ‘करो या मरो’ का नारा दिया।

• भारत छोड़ो आन्दोलन के 9 अगस्त, 1942 ई. को प्रारंभ होते ही गांधी तथा अन्य शीर्ष नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया।

• गाँधीजी को गिरफ्तार करने के बाद ‘आगा खां पैलेस’ में नजरबन्द रखा गया।

• गाँधीजी एवं वरिष्ठ नेताओं की गिरफ्तारी के बाद भारत छोड़ो आन्दोलन का नेतृत्व युवाओं ने सम्भाला, परिणामतः आन्दोलन अहिंसक न रह सका।

• आन्दोलन के प्रति ब्रिटिश सरकार की दमनात्मक नीति के विरुद्ध गाँधीजी ने आगा खां पैलेस में 10 फरवरी, 1943 ई. को 21 दिन उपवास की घोषणा कर दी।

• गाँधीजी को ब्रिटिश सरकार ने उनके खराब स्वास्थ्य के कारण 6 मई, 1944 ई. को जेल से रिहा कर दिया।

• मुस्लिम लीग ने भारत छोड़ो आन्दोलन का समर्थन नहीं किया, लेकिन तटस्थता का रुख अपनाया।

• कम्युनिस्ट नेताओं ने भारत छोड़ो आन्दोलन का बहिष्कार किया।

• गाँधीजी ने जेल से छूटने के बाद रचनात्मक कार्यों का सहारा लेकर पुनः सक्रियता दिखाई, संघर्ष की संभावना से भयभीत होकर सरकार ने ‘वेवेल योजना’ प्रस्तुत की।

वेवेल योजना

• अक्टूबर 1943 ई. में लॉर्ड लिनलिथगो के स्थान पर लॉर्ड वेवेल भारत के वायसराय बने। उन्होंने ब्रिटिश सरकार से परामर्श के पश्चात् भारतीय समस्या को दूर करने के लिए 25 जून, 1945 ई. को ‘शिमला’ में एक सम्मेलन का आयोजन किया, जिसे ‘शिमला सम्मेलन’ के नाम से जाना जाता है।

• शिमला सम्मेलन में लॉर्ड वेवेल द्वारा भारतीय समस्या का नवीन हल प्रस्तुत किया गया, जिसे ‘वेवेल योजना’ के नाम से जाना जाता है।

• ‘वेवेल योजना’ में कहा गया था कि वायसराय एवं प्रधान सेनापति के अतिरिक्त वायसराय की परिषद् के सभी सदस्य भारतीय होंगे। तीन दिन तक चलने वाले इस सम्मेलन को कांग्रेस और मुस्लिम लीग में विवाद हो जाने के कारण समाप्त घोषित करना पड़ा।

• मुहम्मद अली जिन्ना का मत था कि वायसराय की कार्यकारिणी में सभी मुस्लिम सदस्य, मुस्लिम लीग से ही चुने जायें जिसे वेवेल ने अस्वीकार कर दिया।

कैबिनेट मिशन

• जनवरी, 1946 ई. में ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने भारतीय नेताओं से अनौपचारिक विचार-विमर्श हेतु एक संसदीय दल (कैबिनेट मिशन) भारत भेजने का निश्चय किया।

• 29 मार्च, 1946 ई. को ‘कैबिनेट मिशन’ भारत आया।

• कैबिनेट मिशन ने शिमला में एक सम्मेलन आयोजित किया, जिसमें कांग्रेस और मुस्लिम लीग के तीन-तीन सदस्य सम्मिलित हुए। यह सम्मेलन 5 मई, 1946 ई. से 11 मई, 1946 ई. तक चला।

• सम्मेलन में सर्वसम्मत निर्णय न हो पाने की स्थिति में कैबिनेट मिशन ने 16 मई, 1946 ई. को अपने प्रस्तावों की घोषणा की।

• कैबिनेट मिशन योजना के प्रस्तावों में प्रान्तों का विभाजन मुस्लिम लीग को संतुष्ट करने के लिए किया गया था, जिससे उन्हें मुस्लिम बहुल प्रान्तों में पूर्ण स्वायत्तता का उपभोग करने के लिए पाकिस्तान का सत्व प्राप्त हो सके।

एटली की घोषणा

• ब्रिटिश प्रधानमंत्री एटली ने हाउस ऑफ कॉमन्स में 20 फरवरी, 1947 ई. को एक ऐतिहासिक घोषणा करते हुए कहा कि “अंग्रेज जून 1948 ई. के पहले ही उत्तरदायी लोगों को सत्ता हस्तान्तरित करने के उपरांत भारत छोड़ देंगे।”

• पं. जवाहर लाल नेहरू ने एटली की इस घोषणा का स्वागत करते हुए इसे एक बुद्धिमत्तापूर्ण एवं साहसिक निर्णय बताया।

माउन्टबेटन योजना और स्वतंत्रता प्राप्ति

• 22 मार्च, 1947 ई. को भारत के अंतिम ब्रिटिश गवर्नर जनरल (वायसराय) लाई माउन्टबेटन भारत आए।

• 3 जून, 1947 ई. को लार्ड माउन्टबेटन द्वारा एक योजना की घोषणा की गई, जिसे ‘माउन्टबेटन योजना’ के नाम से जाना जाता है। ‘माउन्टबेटन योजना’ मूलतः भारत विभाजन की योजना थी, इसमें उस प्रक्रिया का उल्लेख था, जिसके अंतर्गत अंग्रेजों द्वारा भारतीयों को सत्ता हस्तान्तरित की जानी थी तथा मुस्लिम बहुल प्रान्तों को यह चुनना था कि वे भारत में रहेंगे या प्रस्तावित राज्य पाकिस्तान में सम्मिलित होंगे।

• कांग्रेस कार्यकारिणी समिति ने 12 जून, 1947 ई. को तथा कांग्रेस महासमिति ने 15 जून, 1997 ई. को दिल्ली में हुई बैठक में माउन्टबेटन योजना की पुष्टि कर दी।

• माउन्टबेटन योजना के आधार पर ब्रिटिश संसद ने 18 जुलाई, 1947 ई. को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 पारित किया, इस अधिनियम द्वारा 15 अगस्त, 1947 ई. को भारत विभाजन हुआ तथा 14-15 अगस्त, 1947 ई. की। मध्य रात्रि के समय भारत स्वतंत्र हो गया।

• 14 अगस्त, 1947 ई. को मोहम्मद अली जिन्ना पाकिस्तान के प्रथम गवर्नर जनरल बने। लॉर्ड माउन्टबेटन को स्वतंत्र भारत का प्रथम गवर्नर जनरल बनाया गया तथा पं. जवाहर लाल नेहरू को स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया।

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निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट गोलमेज सम्मेलन जरुर अच्छी लगी होगी। गोलमेज सम्मेलन के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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