गुप्त साम्राज्य
• गुप्त साम्राज्य का उदय तीसरी सदी के अन्त में, प्रयाग के निकट कौशाम्बी में हुआ। इस वंश का संस्थापक श्रीगुप्त (240 ई. में) था।
• गुप्त वंश का वास्तविक संस्थापक चन्द्रगुप्त प्रथम को (319-335 ई. तक) माना जाता है। चन्द्रगुप्त प्रथम ने उस समय के प्रसिद्ध लिच्छवि कुल की कुमारदेवी से विवाह किया था।
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गुप्त शासकों की उपाधियाँ
संख्या | नाम | पूरा नाम |
---|---|---|
1 | श्रीगुप्त | आदिराज, महाराज |
2 | घटोत्कच | महाराज |
3 | चन्द्रगुप्त-I | महाराजाधिराज |
4 | समुद्रगुप्त | पराक्रमांक |
5 | चन्द्रगुप्त-II | विक्रमादित्य, विक्रमांक |
6 | कुमारगुप्त | महेन्द्रादित्य, शक्रादित्य |
7 | स्कन्दगुप्त | क्रमादित्य |
• 319-320 ई. में चन्द्रगुप्त प्रथम ने गुप्त संवत् चलाया।
• सर्वप्रथम चन्द्रगुप्त प्रथम ने महाराजाधिराज की उपाधि धारण की।
• समुद्रगुप्त को अपना उत्तराधिकारी बनाने के बाद चन्द्रगुप्त ने संन्यास ग्रहण कर लिया।
• समुद्रगुप्त 335 ई. में राजगद्दी पर बैठा।
• समुद्रगुप्त आक्रमणकारी एवं साम्राज्यवादी शासक था।
• समुद्रगुप्त का दरबारी कवि हरिषेण था।
• इलाहाबाद में स्थित प्रयाग प्रशस्ति की रचना हरिषेण ने की थी।
• प्रयाग प्रशस्ति से समुद्रगुप्त के विषय में जानकारी मिलती है कि उसने अश्वमेध यज्ञ किया, धरणिबन्ध (पृथ्वी को बाँधना) अपना लक्ष्य बनाया।
समुद्रगुप्त के पदाधिकारी
शब्द | अर्थ |
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सन्धिविग्रहक | संधि एवं युद्ध का मंत्री |
कुमारामात्य | गुप्त साम्राज्य के सबसे बड़ा अधिकारी |
खाद्यत्याकिका | राजकीय भोजनालय का अध्यक्ष |
महादण्डनायक | न्यायाधीश |
• समुद्रगुप्त को वीणा बजाते हुए सिक्कों पर दिखाया गया है।
• समुद्रगुप्त ने गरुड़, व्याघ्रहन्ता, धनुर्धर, परशु, अश्वमेध, एवं वीणाधारी 6 प्रकार की स्वर्ण मुद्रायें जारी करवाई।
• भारत का नेपोलियन समुद्रगुप्त को कहा जाता है।
• समुद्रगुप्त ने उत्तर भारत (आर्यावर्त) के नौ शासकों को पराजित किया।
• विन्सेंट स्मिथ ने समुद्रगुप्त को भारत का नेपोलियन कहा था।
गुप्तशासक एवं अभिलेख
सम्राट | अभिलेख/लेख |
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समुद्रगुप्त | प्रयाग प्रशस्ति अभिलेख |
कुमारगुप्त | विलसड स्तम्भ लेख |
स्कन्दगुप्त | भितरी स्तम्भलेख |
• समुद्रगुप्त विजेता के साथ-साथ कवि, संगीतज्ञ तथा विद्या का संरक्षक था। उसके सिक्कों पर उसे वीणा बजाते हुए चित्रित किया गया है तथा कविराज की उपाधि प्रदान की गई है।
• श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने समुद्रगुप्त से गया में एक बौद्ध मन्दिर बनाने की अनुमति मांगी थी।
• समुद्रगुप्त के बाद राजगद्दी पर चन्द्रगुप्त द्वितीय (380-415 ई.) बैठा।
• चन्द्रगुप्त द्वितीय को देवराज एवं देवगुप्त के नाम से भी जाना जाता है।
• शकों को पराजित करने की स्मृति में चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विशेष चाँदी के सिक्के जारी किये।
• कालिदास चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में रहते थे।
• चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्री प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन से किया।
• रुद्रसेन की मृत्यु के बाद चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी दूसरी राजधानी उज्जैन में बनाई।
• चन्द्रगुप्त द्वितीय का अन्य नाम देवगुप्त, देवराज, देवश्री तथा उपाधियाँ विक्रमांक, विक्रमादित्य, परमभागवत थी।
• चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल में चीनी यात्री फाह्यान भारत आया था।
चन्द्रगुप्त-II के नौ रत्न
1. कालिदास | 2. अमर सिंह | 3. शंकु |
4. धन्वन्तरि | 5. क्षपणक | 6. वेताल भट्ट |
7. वररुचि | 8. घटकर्पर | 9. वराहमिहिर |
• चन्द्रगुप्त द्वितीय का सन्धिविग्रहिक वीरसेन शैव था।
• चन्द्रगुप्त द्वितीय के बाद कुमारगुप्त महेन्द्रादित्य (415-454 ई.) राजगद्दी पर बैठा।
• कुमारगुप्त की 623 मुद्रायें बयाना-मृद्भाण्ड से मिली हैं।
• कुमारगुप्त की मयूर मुद्रा विशेष शैली की थी।
• कुमार गुप्त के सिक्कों से पता चलता है कि उसने अश्वमेध यज्ञ किया था।
• कुमार गुप्त ने श्री महेन्द्र, महेन्द्रादित्य तथा अश्वमेध महेन्द्र की उपाधियाँ धारण की।
• ह्वेनसांग के अनुसार नालंदा बौद्ध विहार का निर्माण शक्रादित्य ने कराया।
चन्द्रगुप्त द्वितीय के पदाधिकारी
पद/अधिकारी | संबंधित कार्य/विभाग |
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उपरिक | प्रांत का राज्यपाल |
कुमारामात्य | प्रशासनिक अधिकारी |
दण्डपाशिक | पुलिस विभाग का प्रधान |
महादण्डनायक | बलाधिकृत |
मुख्य न्यायाधीश | सैन्य कोष का अधिकारी |
महाप्रतिहार | मुख्य दौवारिक |
• अपने शासन के अन्तिम समय में कुमारगुप्त को पुष्यमित्र जाति के विद्रोहों का सामना करना पड़ा।
• पुष्यमित्र जातियों के विद्रोह की जानकारी स्कन्दगुप्त के भितरी स्तम्भ लेख (गाजीपुर) से मिलती है।
• नालन्दा विश्वविद्यालय की स्थापना कुमारगुप्त ने की थी। इस विश्वविद्यालय को ऑक्सफोर्ड ऑफ महायान बौद्ध कहा जाता है।
• कुमारगुप्त के बाद स्कन्दगुप्त (455-467 ई.) राजगद्दी पर बैठा।
• स्कन्दगुप्त को गद्दी पर बैठते ही हूणों के आक्रमण का सामना करना पड़ा।
• जूनागढ़ अभिलेख में हूणों को म्लेच्छ कहा गया है।
• गिरनार पर्वत पर स्थित सुदर्शन झील का पुनर्निर्माण स्कन्दगुप्त ने करवाया।
• स्कन्दगुप्त को शक्रापम, देवराय एवं श्रीपरिक्षिप्तवृक्षा नाम के सम्बोधनों से सम्बोधित किया गया है।
• कहौम अभिलेख से विदित है कि स्कंदगुप्त की उपाधि शक्रादित्य था।
• स्कन्दगुप्त की स्वर्ण मुद्राओं पर क्रमादित्य उपाधि मिलती है।
• स्कन्दगुप्त ने सुदर्शन झील के पुनर्निर्माण का कार्य गवर्नर पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित को सौंपा था।
• सुदर्शन झील के किनारे विष्णु मन्दिर चक्रपालित ने बनवाया।
• हूणों का महत्त्वपूर्ण शासक तोरमाण था।
• तोरमाण का पुत्र मिहिरकुल था।
• मिहिरकुल को यशोधर्मन ने 532 ई. में पराजित किया था।
• गुप्तवंश का अन्तिम शासक विष्णुगुप्त था।
• प्रयाग प्रशस्ति में समुद्रगुप्त को पृथ्वी पर शासन करने वाला ईश्वर का प्रतिनिधि कहा गया है।
गुप्तकालीन आर्थिक शब्दावली
शब्द | अर्थ |
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भाग | राजा को भूमि उत्पादन से प्राप्त होने वाला हिस्सा |
भोग | राजा को उपहार स्वरूप मिलने वाला कर |
उदरंग | स्थाई काश्तकारों के लिए कर |
उपरिकर | अस्थाई कृषकों के लिए कर |
हिरण्य | द्रव्य (नकद) रूप से किया जाने वाला कर |
विष्टि | निःशुल्क या बेगार श्रम |
दीनार | स्वर्णमुद्राएं |
अग्रहार | मंदिरों एवं ब्राह्मणों को दान की जाने वाली भूमि |
• गुप्तकालीन रानियाँ परमभट्टारिका, परमभट्टारिकाराज्ञी एवं महादेवी उपाधियाँ धारण करती थीं।
• हरिषेण समुद्रगुप्त का सन्धिविग्रहिक एवं महादण्डनायक था।
• पदाधिकारियों के सर्वश्रेष्ठ वर्ग को कुमारामात्य कहा जाता था।
• वेतन की अदायगी भूमि अनुदान के रूप में होती थी।
• गुप्तकाल में भूराजस्व 1/4 से 1/6 भाग लिया जाता था।
• नगर का मुख्य अधिकारी पुरपाल होता था। मंदसौर अभिलेख से रेशम बुनकरों की श्रेणी
• द्वारा विशाल सूर्यमन्दिर के निर्माण का उल्लेख मिलता है।
• सभी व्यापारिक मार्ग उज्जैन में आकर मिलते थे।
• सर्वाधिक स्वर्ण सिक्के गुप्तों ने ही जारी किये। इन सिक्कों को दीनार कहा जाता था।
• गुप्तकाल में वस्त्र उद्योग सबसे महत्त्वपूर्ण था।
• घोड़ों का आयात बैक्ट्रिया से होता था।
• गुप्तकाल में आय-व्यय, लेखन कार्य करने वालों को कायस्थ कहा गया। जिसका सर्वप्रथम उल्लेख याज्ञवल्क्य ने किया है।
• प्रथम सती होने का प्रमाण 510 ई. के एरण अभिलेख से मिलता है।
• गुप्त शासकों का व्यक्तिगत धर्म वैष्णव धर्म था।
• गुप्त वंश का राजकीय चिह्न गरुड़ था।
वैष्णव एवं शैव धर्म के मध्य समन्वय गुप्तकाल में स्थापित हुआ।
• गुप्त राजाओं ने परमभागवत धार्मिक उपाधि धारण की।
• स्कन्दगुप्त का जूनागढ़ अभिलेख एवं बुद्धगुप्त का एरण अभिलेख विष्णु स्तुति से शुरू हुआ है।
• चन्द्रगुप्त द्वितीय ने विष्णुपद पर्वत पर विष्णुध्वज की स्थापना की।
• वैष्णव धर्म का प्रधान अंग अवतारवाद था।
• शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप की मूर्तियाँ गुप्तकाल में बनाई गई।
• गुप्तकाल में ही त्रिमूर्ति के अन्तर्गत ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा आरंभ हुई।
• गुप्तकालीन मन्दिर कला का सर्वोत्तम उदाहरण देवगढ़ का दशावतार मन्दिर (सर्वप्रथम शिखर का प्रयोग) है।
स्कन्दगुप्त का भितरी अभिलेख (गाजीपुर) हूणों द्वारा आक्रमण की जानकारी देता है। तोरमण, मिहिरकुल प्रसिद्ध हूण राजा थे।
कहौम स्तम्भलेख में स्कन्दगुप्त को शक्रोपम तथा जूनागढ़ अभिलेख में श्रीपरिक्षिप्तवृक्षा कहा गया है।
गुप्तकालीन रचनाएँ एवं रचनाकार
रचनाकार | प्रमुख रचनाएँ |
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विष्णुशर्मा | पंचतंत्र |
कालिदास | मालविकाग्निमित्रम्, विक्रमोर्वशीयम्, … (आदि) |
भौमिक | रावाणार्जुनीयम् |
विशाखदत्त | मुद्राराक्षस, देवीचन्द्रगुप्तम् |
भारवि | किरातार्जुनीयम् |
वत्स भट्टि | रावणवध |
भास | स्वप्नवासवदत्तम्, चारूदत्तम |
अमर सिंह | अमरकोश |
शूद्रक | मृच्छकटिकम् |
वराहमिहिर | वृहत्संहिता, पञ्चसिद्धान्तिका |
आर्यभट्ट | सूर्य सिद्धान्त, आर्यभट्टीयम |
ब्रह्मगुप्त | ब्रह्म सिद्धान्त |
राजशेखर | काव्यमीमांसा |
वाणभट्ट (1) | अष्टांग हृदय (चिकित्सा से सम्बन्धित) |
वाणभट्ट (2) | हर्षचरित |
धन्वन्तरि | शल्यशास्त्र (चिकित्सा से सम्बन्धित) |
गुप्तकालीन महत्त्वपूर्ण मंदिर
मंदिर | स्थान |
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विष्णु मंदिर | तिगवा (जबलपुर, मध्य प्रदेश) |
शिव मंदिर | भूमरा (नागौद, मध्य प्रदेश) |
पार्वती मंदिर | नचना-कुठार (मध्य प्रदेश) |
दशावतार मंदिर | देवगढ़ (झांसी, उत्तर प्रदेश) |
शिव मंदिर | खोह (नागौद, मध्य प्रदेश) |
भितरगाँव का मंदिर | भितरगांव (कानपुर, उत्तर प्रदेश) |
गुप्तकाल की प्रमुख भुक्तियां (प्रांत)
प्रांत | क्षेत्र |
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अवन्ति | पश्चिमी मालवा |
एरण | पूर्वी मालवा |
तीर भुक्ति | उत्तरी बिहार |
पुण्ड्रवर्धन | उत्तरी बंगाल |
वर्द्धमान | उत्तरी बंगाल |
मगध | पश्चिम बिहार |
पुष्यभूति वंश
• पुष्यभूति वंश की स्थापना पुष्यभूति ने हरियाणा के अम्बाला जिले के थानेश्वर नामक स्थान पर की थी।
• पुष्यभूति वंश हूणों से हुए संघर्ष के कारण प्रसिद्ध हुआ।
• प्रभाकरवर्धन इस वंश का चौथा शासक था। उसके दो पुत्र-राज्यवर्धन एवं हर्षवर्धन थे।
• प्रभाकरवर्धन की पुत्री का नाम राज्यश्री था।
• राज्यश्री का विवाह मौखरी वंश के गृहवर्मन से हुआ था।
• प्रभाकरवर्धन की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी यशोमती उसकी चिता में कूदकर आत्मदाह कर ली।
• प्रभाकरवर्धन के बाद राज्यवर्धन राजा हुआ।
• मालवा अभियान से लौटते समय मार्ग में गौड़ शासक शशांक ने राज्यवर्धन की हत्या कर दी।
• राज्यवर्धन का प्रधानमंत्री उसका ममेरा भाई भण्डि था।
• हर्षवर्धन 606 ई. में राजगद्दी पर बैठा।
• हर्ष के विषय में हमें व्यापक जानकारी बाणभट्ट द्वारा लिखित ‘हर्षचरित’ से मिलती है।
हर्ष का दरबारी कवि बाणभट्ट था।
• हर्ष ने कुल 41 वर्ष तक शासन किया।
• चीनी यात्री ह्वेनसांग 629 से 645 ई. के बीच भारत में रहा था।
• ह्वेनसांग को यात्रियों में राजकुमार, नीति का पण्डित तथा वर्तमान शाक्यमुनि नाम से जाना जाता है।
• हर्ष ने अपनी राजधानी कन्नौज में बनाई।
• हर्ष को शिलादित्य नाम से भी जाना जाता है।
• हर्ष ने परमभट्टारक तथा उत्तरापथस्वामी की उपाधि धारण की थी।
• हर्ष एक प्रतिष्ठित कवि एवं नाटककार था। उसने ‘नागानन्द’, ‘प्रियदर्शिका’ एवं ‘रत्नावली’ नामक नाटकों की रचना की।
• बाणभट्ट की रचनायें हैं- ‘हर्षचरित’, ‘कादम्बरी’ एवं ‘पार्वती परिणय’।
• हर्ष बौद्ध धर्म की महायान शाखा का समर्थक होने के अलावा विष्णु एवं शिव को भी मानता था।
• हर्ष ने विशाल धार्मिक सभाओं का आयोजन कन्नौज तथा प्रयाग में किया।
• हर्ष द्वारा आयोजित ‘कन्नौज सभा’ ह्वेनसांग के सम्मान में की गई थी। इस सभा में विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों के आचार्यों को बुलाया गया था। इस सभा की अध्यक्षता ह्वेनसांग ने की थी। हर्ष ने इस अवसर पर मोतियों तथा बहुमूल्य वस्तुओं का खूब वितरण किया था।
• हर्ष के दिन का प्रथम भाग सरकारी कार्य, दूसरा एवं तीसरा भाग धार्मिक कार्य हेतु था।
• हर्ष के दरबार में चीनी दूतमण्डल 643 ई. एवं 646 ई. में आया था। हर्ष ने 641 ई. में अपने दूत चीन भेजे।
• हर्ष द्वारा प्रयाग में प्रतिवर्ष आयोजित सभा को मोक्ष परिषद् कहा जाता था।
• हर्ष का युद्ध एवं शान्ति का मंत्री अवन्ति था।
• हर्ष का महासेनापति सिंहनाद था।
हर्ष के समय महत्त्वपूर्ण अधिकारी
पद | अधिकारी |
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सिंहनाद | मुख्य सेनापति |
अमात्य | मंत्रिपरिषद् के मंत्री |
उपरिक | भुक्ति का प्रशासक |
दण्डपाशिक | पुलिस अधिकारी |
बृहदेश्वर | अश्व सेना का अधिकारी |
बलाधिकृत | पैदल सेना का अधिकारी |
स्कंदगुप्त | गजसेना का मुख्य अधिकारी |
कुंतल | अश्वसेना का प्रधान अधिकारी |
अवंती | शांति एवं युद्ध का मंत्री |
• ह्वेनसांग के अनुसार अधिकारियों को वेतन भूमि अनुदान के रूप में दिया जाता था।
• हर्ष के समय भूमिकर, कृषि उत्पादन का छठा भाग वसूला जाता था।
• अश्व सेना के अधिकारियों को वृहदेश्वर कहा जाता था।
• मालवा के राजा देवगुप्त को राज्य वर्धन ने पराजित किया।
• हर्ष 16 वर्ष की उम्र में गद्दी पर बैठा।
• हर्ष की प्राचीन राजधानी थानेश्वर थी।
• 641 ई. में हर्षवर्द्धन ने मगधराज की उपाधि धारण की।
• हर्षवर्धन के शासन काल का आरंभिक इतिहास बाणभट्ट से ज्ञात होता है।
• ह्वेनसांग ने शूद्रों को कृषक कहा है।
• हर्षवर्धन सूर्य, शिव एवं बुद्ध का उपासक था।
• हर्षचरित में हर्षवर्द्धन को सभी देवताओं का सम्मिलित अवतार कहा गया है।
• हर्षकालीन ताम्रपात्रों में केवल तीन करों का उल्लेख मिलता है-भाग (भूमिकर), हिरण्य और बलि।
• हर्षचरित के अनुसार थानेश्वर के प्रत्येक घर में शिव की पूजा होती थी।
• ह्वेनसांग मगध के महायान सम्प्रदाय के 10 हजार भिक्षुओं का उल्लेख करता है।
• ह्वेनसांग 637 ई. में नालंदा विश्वविद्यालय गया। यहाँ के कुलपति आचार्य शीलभद्र थे।
• ह्वेनसांग ने अपनी यात्रा वृतांत लिखा जिसका नाम सि-यू-की है।
• हर्ष को दक्षिण के चालुक्य शासक पुलकेशिन द्वितीय ने आगे बढ़ने से रोक दिया।
• पुलकेशिन द्वितीय की राजधानी वातापी थी।
• सेना का सर्वोच्च अध्यक्ष महाबलाधिकृत था।
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निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट गुप्त साम्राज्य जरुर अच्छी लगी होगी। गुप्त साम्राज्य के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
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