पदार्थों का पृथक्करण : अध्याय 3

हमारे दैनिक जीवन में हम ऐसे बहुत से उदाहरण देखते हैं, जिनमें हम पदार्थों के किसी मिश्रण से पदार्थों को पृथक करते हुए देखते हैं। चाय बनाते समय चाय की पत्तियों को द्रव से चालनी (छलनी) द्वारा पृथक किया जाता है (चित्र 3.1)।

फसल कटाई के पश्चात् अनाज को भूसे से पृथक करते हैं। मक्खन को पृथक करने के लिए दूध या दही का मंथन किया जाता है (चित्र 3.2)। रेशों से बीजों को पृथक करने के लिए हम कपास को ओटते हैं। कदाचित् आपने नमकीन दलिया अथवा पोहा खाया होगा। यदि आपने यह पाया होगा कि इसमें मिर्च है, तो खाने से पहले उन्हें सावधानीपूर्वक बाहर निकाल दिया होगा।

कल्पना कीजिए कि एक टोकरी में आम और अमरूद भरे हैं और आपसे इन्हें पृथक करने के लिए कहा गया है, तो आप क्या करेंगे? इसके लिए आप एक प्रकार के फलों को उठाकर किसी पृथक बर्तन में रख देंगे, क्या यह सही है?

ऐसा करना सरल प्रतीत होता है, परंतु, यदि पृथक किए जाने वाले पदार्थ आम या अमरूदों की तुलना में बहुत छोटे हों तो उन्हें पृथक करने के लिए क्या करना होगा? कल्पना कीजिए, यदि आपको रेत और नमक के मिश्रण से भरा कोई गिलास दिया जाता है, तो मिश्रण से रेत के कणों को हाथ से बीनकर पृथक करने की सोचना भी असंभव है।

क्रियाकलाप 1

सारणी 3.1 के कॉलम 1 में पृथक्करण के कुछ प्रक्रम दिए हैं। पृथक करने का उद्देश्य तथा अवयवों को पृथक करने के ढंगों को कॉलम 2 तथा 3 में दिया गया है। तथापि कॉलम 2 तथा 3 में दी गई सूचना अव्यवस्थित हो गई है। क्या आप प्रत्येक प्रक्रम का उसके उद्देश्य तथा पृथक्कृत अवयवों के उपयोग के ढंग से मिलान कर सकते हैं?

सारणी 3.1: हम पदार्थों को पृथक क्यों करते हैं?

पृथक्करण प्रक्रमउद्देश्यपृथक्कृत अवयवों का काम
चावलों से पत्थरों को पृथक करनादो भिन्न परंतु उपयोगी पदार्थों को पृथक करनाहम ठोस अवयव को फेंक देते हैं।
मक्खन प्राप्त करने के लिए दूध का मंथनअनुपयोगी अवयवों को दूर करनाहम अशुद्धियों को फेंक देते हैं।
चाय की पत्तियाँ पृथक करनाहानिकारक अवयवों अथवा अशुद्धियों को दूर करनाहम दोनों अवयवों का उपयोग करते हैं।

हम देखते हैं कि किसी पदार्थ का उपयोग करने से पहले हमें उसमें मिश्रित हानिकारक तथा अनुपयोगी पदार्थों को पृथक करने की आवश्यकता होती है। कभी-कभी हम उपयोगी पदार्थों को भी पृथक करते हैं जिनकी हमें अलग से उपयोग करने की आवश्यकता होती है।

पृथक किए जाने वाले पदार्थों के कणों के आमाप अथवा द्रव्य भिन्न हो सकते हैं। ये पदार्थों की तीन अवस्थाओं जैसे ठोस, द्रव और गैस में से कोई भी हो सकती हैं। इसलिए हम किन्हीं पदार्थों के ऐसे मिश्रण का पृथक्करण कैसे करते हैं जिनके गुणधर्मों में अत्यधिक भिन्नता है।

3.1 पृथक्करण की विधियाँ

अब हम पदार्थों के पृथक्करण की कुछ साधारण विधियों का उल्लेख करेंगे। इनमें से कई विधियों का उपयोग आपने अपने दैनिक क्रियाकलापों में किया होगा।

हस्त चयन

क्रियाकलाप 2

दुकान से खरीदे गए अनाज का एक पैकेट कक्षा में लाइए। अब अनाज को कागज़ की शीट पर फैलाइए। क्या आप कागज़ पर एक ही प्रकार के अन्न कण पाते हैं? क्या इसमें पत्थर के टुकड़े, भूसी, टूटे हुए अन्न कण तथा अन्य खाद्य कण हैं? अब, अपने हाथ से पत्थर के टुकड़े, भूसे तथा अन्य अन्न कणों को इससे पृथक कीजिए।

हस्त चयन की इस विधि का उपयोग गेहूँ, चावल तथा दालों से कुछ बड़े मिट्टी के कणों, पत्थर तथा भूसे को पृथक करने में किया जा सकता है (चित्र 3.3)। ऐसी अशुद्धियों की मात्रा प्रायः बहुत अधिक नहीं होती है। ऐसी स्थितियों में हस्त-चयन द्वारा पदार्थों को पृथक करना एक सुविधाजनक विधि लगती है।

थ्रेशिंग

आपने खेत अथवा खलिहानों में गेहूँ या चावल की सूखी डंडियों (सूखे पौधों) के गट्ठर देखे होंगे। सूखे पौधों से अनाज को अलग करने से पहले धूप में सुखाया जाता है। प्रत्येक सूखे पौधे की डंडी पर अन्नकण लगे होते हैं। खेतों में रखे सैकड़ों गट्ठरों पर लगे अन्नकणों की संख्या की कल्पना कीजिए। किसान अन्नकणों को सूखे पौधों के इतने गट्ठरों से अनाज को कैसे पृथक करते हैं?

आमों तथा अमरूदों को वृक्षों से तोड़ा जा सकता है। परंतु अन्नकण आम और अमरूदों की तुलना में बहुत छोटे होते हैं। इसलिए इनको इनकी डंडियों से तोड़ना असंभव होगा। अन्नकणों को उनकी डंडियों से कैसे पृथक किया जाता है?

सूखे पौधों की डंडियों से अन्नकणों अथवा अनाज़ को पृथक करने के प्रक्रम को थ्रेशिंग कहते हैं। इस प्रक्रम में डंडियों को पीटकर अन्नकणों को पृथक किया जाता है (चित्र 3.4)। कभी-कभी थ्रेशिंग का कार्य बैलों की सहायता से किया जाता है। अत्यधिक मात्रा के अन्नकणों को डंडियों से पृथक करने के लिए थ्रेशिंग मशीनों का उपयोग भी किया जाता है।

निष्पावन

क्रियाकलाप 3

सूखे रेत तथा लकड़ी के बुरादे अथवा सूखी पत्तियों के पाउडर का एक मिश्रण बनाइए। इस मिश्रण को किसी प्लेट अथवा समाचारपत्र के ऊपर रखिए। मिश्रण को ध्यान से देखिए। क्या आप दोनों अवयवों को आसानी से पृथक कर सकते हैं? क्या दोनों अवयवों के कणों के आमाप समान हैं? क्या हस्त-चयन द्वारा इन अवयवों को पृथक करना संभव है?

अब, आप इस मिश्रण को खुले मैदान में ले जाइए तथा किसी ऊँचे समतल स्थान पर खड़े हो जाइए। मिश्रण को प्लेट में अथवा समाचारपत्र पर रखिए। जिस प्लेट अथवा समाचारपत्र पर मिश्रण रखा है, उसे पकड़कर हवा में कंधे की ऊँचाई तक ले जाकर थोड़ा-सा टेढ़ा कीजिए ताकि मिश्रण धीरे-धीरे नीचे फिसले।

क्या होता है? क्या दोनों अवयव रेत एवं बुरादा (या सूखी पत्तियों का पाउडर) एक ही स्थान पर गिरते हैं? क्या कोई अवयव ऐसा है जो वायु द्वारा दूर उड़कर गिरता है? क्या वायु, मिश्रण के दोनों अवयवों को पृथक करने में सफल हुई?

किसी मिश्रण के अवयवों को इस प्रकार पृथक करने की विधि निष्पावन कहलाती है। निष्पावन का उपयोग पवनों अथवा वायु के झोंकों द्वारा मिश्रण से भारी तथा हल्के अवयवों को पृथक करने में किया जाता है। साधारणतया किसान इस विधि का उपयोग हल्के भूसे को भारी अन्नकणों से पृथक करने के लिए करते हैं (चित्र 3.5)।

भूसे के हल्के कण पवन के साथ उड़कर दूर एकत्र हो जाते हैं, जबकि भारी अन्नकण पृथक होकर निष्पावन प्लेटफार्म के निकट एक ढेर बना लेते हैं। अलग हुए भूसे को पशुओं के चारे सहित अन्य कई प्रयोजनों में प्रयोग किया जाता है।

चालन

कभी-कभी हमें आटे से व्यंजन बनाने की इच्छा होती है। हमें इसमें उपस्थित चोकर तथा अन्य अशुद्धियों को पृथक करने की आवश्यकता होती है। तब हम क्या करते हैं? इसके लिए हम चालनी (छन्नी) का उपयोग करते हैं तथा उसमें आटा डालते हैं (चित्र 3.6)।

आटे के छोटे कण चालनी के छिद्रों द्वारा निकल जाते हैं जबकि बड़ी अशुद्धियाँ चालनी में रह जाती हैं। प्रायः आटे की मिल में गेहूँ को पीसने से पहले

पत्थरों तथा भूसे जैसी अशुद्धियों को हटाया जाता है। साधारणतया गेहूँ की बोरी को एक तिरछी चालनी पर डाला जाता है। चालन द्वारा पत्थर, डंडियाँ तथा भूसा जो निष्पावन तथा थ्रेशिंग के बाद गेहूँ में रह जाते हैं, को दूर किया जाता है।

आपने इसी प्रकार के बड़े-बड़े चालनों को भवन निर्माण वाले स्थानों पर रेत से कंकड़ तथा पत्थर पृथक करने के लिए उपयोग में लाते हुए देखा होगा (चित्र 3.7)।

क्रियाकलाप 4

कक्षा में एक चालनी (छन्नी) तथा थोड़ा-सा आटा घर से लाइए। चालन द्वारा आटे से अशुद्धियों को पृथक कीजिए। अब चाक का पाउडर बनाइए तथा उसको आटे के साथ मिलाइए। इस मिश्रण का चालन कीजिए। क्या हम चालन द्वारा चाक पाउडर तथा आटा पृथक कर सकते हैं?

चालन विधि का उपयोग मिश्रण के दो ऐसे अवयवों, जिनकी आमापों में अंतर हो, को पृथक करने में किया जाता है।

अवसादन, निस्तारण तथा निस्यंदन

कभी-कभी मिश्रण के अवयवों को निष्पावन अथवा हस्त चयन द्वारा पृथक करना संभव नहीं होता। उदाहरण के लिए चावल तथा दाल में धूल, मिट्टी जैसे हल्के कण हो सकते हैं। चावल तथा दालों को पकाने से पहले इस प्रकार की अशुद्धियाँ कैसे पृथक करते हैं?

प्रायः पकाने से पहले चावल या दालों को जल से धोया जाता है। जब आप चावल या दाल में जल डालते हैं तब उन पर चिपकी हुई अशुद्धियाँ जैसे धूल के कण पृथक हो जाते हैं। ये अशुद्धियाँ जल में चली जाती हैं। अब सोचिए, बर्तन की तली में कौन डूबेगा चावल या धूल? क्यों? क्या आपने देखा है कि बर्तन को थोड़ा-सा टेढ़ा करके जल को बाहर गिराया जाता है?

मिश्रण में जल मिलाने पर भारी अवयवों के नीचे तली में बैठ जाने के प्रक्रम को अवसादन कहते हैं। अवसादित मिश्रण को बिना हिलाए जल को मिट्टी सहित उड़ेलने की क्रिया को निस्तारण कहते हैं (चित्र 3.8)। आइए, अब हम ऐसे अन्य मिश्रणों का पता लगाते हैं जिसमें अवयवों को अवसादन तथा निस्तारण विधि द्वारा पृथक किया जा सकता है।

यही सिद्धांत ऐसे द्रवों के मिश्रण को पृथक करने में भी उपयोग में लाया जाता है जो आपस में मिश्रित नहीं होते। उदाहरण के लिए, तेल तथा जल को उनके मिश्रण से इसी विधि द्वारा पृथक किया जा सकता है। यदि द्रव के ऐसे मिश्रणों को कुछ समय के लिए रखा रहने दिया जाए तो वे दो पृथक-पृथक परतों में बँट जाते हैं। इसके बाद जो अवयव ऊपरी परत बनाता है उसे निस्तारण द्वारा पृथक कर सकते हैं।

आइए, फिर से ठोस तथा द्रव के किसी मिश्रण पर विचार करें। चाय तैयार करने के बाद आप चाय की पत्तियाँ पृथक करने के लिए क्या करते हैं? अक्सर आप चालनी (छन्नी) का उपयोग करते हैं। आइए निस्तारण विधि का उपयोग करके देखें। इसके द्वारा कुछ सहायता मिलती है। परंतु क्या आपको चाय में कुछ पत्तियाँ अब भी मिलती हैं? अब चाय को एक छन्नी में डाल दीजिए। क्या चाय की सारी पत्तियाँ छन्नी में रह जाती हैं? इस प्रक्रम को निस्यंदन (फिल्टर करना) कहते हैं (चित्र 3.1)। अब सोचिए, तैयार चाय से चाय की पत्तियाँ पृथक करने में निस्तारण और निस्यंदन में से कौन-सी विधि अच्छी है?

आइए, अब हम अपने उपयोग में आने वाले जल के उदाहरण पर विचार करते हैं। क्या हम सभी को, हर समय, पीने के लिए सुरक्षित जल मिलता है? कभी-कभी नलों से गंदला जल प्राप्त होता है। तालाबों तथा नदियों से एकत्रित किया गया जल भी पंकिल हो सकता है, विशेषकर बरसात के बाद।

आइए, अब हम यह देखें कि क्या हम पृथक्करण की कुछ विधियों द्वारा जल से मिट्टी जैसी अविलेय अशुद्धियाँ दूर कर सकते हैं?

क्रियाकलाप 5

तालाब या नदी का का पंकिल जल लीजिए। यदि यह न मिल सके तो एक गिलास जल में थोड़ी मिट्टी मिला दें। इसे आधे घंटे के लिए छोड़ दें। जल का सावधानीपूर्वक प्रेक्षण कीजिए तथा अपने प्रेक्षणों को लिखिए।

क्या गिलास की तली में कुछ मिट्टी बैठ गई है? ऐसा क्यों हुआ है? इस प्रक्रम को आप क्या कहेंगे?

अब जल को बिना हिलाए गिलास को थोड़ा तिरछा कीजिए। इस गिलास के ऊपर के जल को दूसरे गिलास में उड़ेलिए (चित्र 3.8)। आप इस प्रक्रम को क्या कहेंगे?

क्या दूसरे गिलास का जल अब भी पंकिल अथवा भूरे रंग का है? अब इसका निस्यंदन कीजिए। क्या चाय वाली छन्नी ने यह कार्य किया? आइए, कपड़े की सहायता से जल को निस्यंदन करने का प्रयास करते हैं। कपड़े के टुकड़े में बुने हुए तागों के बीच में छोटे-छोटे छिद्र अथवा रंध्र होते हैं। कपड़े के इन्हीं छिद्रों का उपयोग निस्यंदक के रूप में किया जा सकता है।

यदि जल अब भी गंदला है, तो अशुद्धियों को फ़िल्टर-पत्र द्वारा निस्यंदित कर सकते हैं जिसमें और भी छोटे रंध्र हो सकते हैं। फ़िल्टर-पत्र एक ऐसा निस्यंदक होता है जिसमें अत्यंत सूक्ष्म छिद्र होते हैं। चित्र 3.9 में फ़िल्टर-पत्र के उपयोग से संबंधित विभिन्न चरण दर्शाए गए हैं। फ़िल्टर-पत्र को शंकु के रूप में मोड़कर कीप में लगा दिया जाता है (चित्र 3.10)। इसके पश्चात मिश्रण को फिल्टर- पत्र के ऊपर उड़ेलते हैं। मिश्रण के ठोस कण इसके छिद्रों से नहीं गुजर पाते तथा फ़िल्टर-पत्र पर ही रह जाते हैं।

साधारणतयाः, फलों तथा सब्ज़ियों के रसों को पीने से पहले उनसे बीजों तथा ठोस कणों को पृथक किया जाता है। निस्यंदन विधि का उपयोग घरों पर पनीर बनाने में भी होता है। आपने देखा होगा कि पनीर बनाने के लिए दूध को उबालने से पहले उसमें नींबू का रस मिलाया जाता है। इससे पनीर के ठोस कणों तथा द्रव का मिश्रण प्राप्त होता है। पनीर को इस मिश्रण से कपड़े या छन्नी से फ़िल्टर करके पृथक किया जाता है।

वाष्पन

क्रियाकलाप 6

एक बीकर में थोड़ा सा जल लेकर उसमें दो चम्मच नमक डालिए तथा अच्छी तरह हिलाइए। क्या आप
जल के रंग में कोई परिवर्तन देखते हैं? हिलाने के बाद क्या आप बीकर में कोई नमक देखते हो? नमक के जल से भरे बीकर को गर्म कीजिए (चित्र 3.11)। जल को उबलकर उड़ने दीजिए। बीकर में क्या बचता है?

इस क्रियाकलाप में हमने मिश्रण से जल तथा नमक को पृथक करने के लिए वाष्पन की प्रक्रिया का प्रयोग किया है।

जल को उसके वाष्प में परिवर्तन करने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं। जहाँ पर जल होता है वाष्पन की प्रक्रिया निरंतर होती रहती है।

आपके विचार से नमक कहाँ से आता है? समुद्र के जल में अत्यधिक मात्रा में लवण मिश्रित होते हैं। इन्हीं लवणों में से एक लवण साधारण नमक है। जब समुद्र के जल को बड़े-बड़े उथले गड्डों में भरकर छोड़ दिया जाता है तो सूर्य के प्रकाश से जल गर्म होकर वाष्पन द्वारा धीरे-धीरे वाष्प में बदलने लगता है। कुछ समय बाद सारा जल वाष्पित हो जाता है तथा ठोस लवण नीचे बच जाते हैं (चित्र 3.12)। तत्पश्चात इन लवणों के मिश्रण का शोधन करके साधारण नमक प्राप्त किया जाता है।

पृथक्करण की एक से अधिक विधियों का उपयोग

हमने पदार्थों को पृथक करने की कुछ विधियों के बारे में अध्ययन किया है। प्रायः किसी मिश्रण में उपस्थित विभिन्न अवयवों को पृथक करने में केवल एक विधि का उपयोग पर्याप्त नहीं होता। ऐसी स्थिति में हमें एक से अधिक विधियों का उपयोग करने की आवश्यकता होती है।

क्रियाकलाप 7

रेत और नमक का मिश्रण लीजिए। इसे आप कैसे पृथक करेंगे? हमने पहले भी देखा है कि हस्त चयन विधि, इसके पृथक्करण के लिए व्यावहारिक नहीं होगी।

इस मिश्रण को बीकर में रखिए तथा इसमें कुछ जल मिलाइए। इसके बाद बीकर को कुछ समय के लिए एक ओर रख दीजिए। क्या आप यह देखते हैं कि रेत बीकर की तली में बैठ रहा है। इसे निस्तारण या निस्यंदन द्वारा पृथक कर सकते हैं। निस्तारित द्रव में क्या है? क्या आप सोचते है कि इस जल में वही नमक है जो कि आरंभ में मिश्रण में था?

अब इस निस्तारित द्रव से नमक व जल को पृथक करना है। इस द्रव को किसी केतली में भरकर इसका ढक्कन बंद करिए। अब कुछ समय तक केतली को गर्म कीजिए। क्या आप केतली की टोंटी से भाप निकलती देखते हैं?

एक धातु की प्लेट लीजिए जिस पर कुछ बर्फ रखी हो। प्लेट को केतली की टोंटी के ठीक ऊपर पकड़िए जैसा कि चित्र 3.13 में दर्शाया गया है। आप क्या देखते हैं? केतली के सारे जल को भाप में बदलने दीजिए।

जब भाप बर्फ़ से ठंडी की गई प्लेट के संपर्क में आती है तो वह संघनित होकर द्रव जल बन जाती है। प्लेट के नीचे से बूंद-बूंद होकर नीचे गिरने वाला यह जल संघनन द्वारा भाप बना है। जल वाष्प से उसकी द्रव अवस्था में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को संघनन कहते हैं।

क्या आपने कभी जिस पात्र में दूध को थोड़ी देर पहले उबाला गया था उस पर ढकी प्लेट पर संघनित जल की बूँदों को देखा है।

जब सारा जल वाष्पित हो जाता है तो फिर, केतली में पीछे क्या छूट जाता है?

इस प्रकार हमने मिश्रण से नमक, रेत तथा जल को निस्तारण, निस्यंदन, वाष्पन तथा संघनन विधियों का प्रयोग कर सफलतापूर्वक पृथक किया है।

पहेली को रेत से नमक की पुनः प्राप्ति की समस्या है। उसने नमक के संपूर्ण पैकेट को रेत की थोड़ी मात्रा में मिलाया था। फिर उसने क्रियाकलाप 7 में सुझाई गई विधि द्वारा नमक को पुनः प्राप्त करने का प्रयास किया। परंतु उसने यह पाया कि वह तो लिए गए नमक के केवल थोड़े भाग की ही पुनः प्राप्ति कर पाई है। उससे कहाँ त्रुटि हुई होगी?

क्या जल किसी पदार्थ की कितनी भी मात्रा को घोल सकता है?

अध्याय 2 में हमने पाया कि कई पदार्थ जल में घुलकर विलयन बनाते हैं। तब हम उन पदार्थों को जल में विलेयी कहते हैं। यदि हम जल की मात्रा निश्चित रखकर उस पदार्थ की मात्रा निरंतर बढ़ाते जाएँ, तो क्या होगा?

क्रियाकलाप 8

इस कार्य के लिए आपको एक बीकर अथवा गिलास, एक चम्मच, नमक तथा जल की आवश्यकता होगी। आधा कप जल बीकर में उड़ेलिए। एक चम्मच नमक इसमें डालकर तब तक विलोड़ित कीजिए जब तक कि यह पूरी तरह से न घुल जाए (चित्र 3.14)। अब फिर एक चम्मच नमक डालिए और भली-भाँति विलोड़ित कीजिए। इसी प्रकार एक-एक चम्मच करके नमक मिलाते तथा विलोड़ित करते जाइए।

कुछ चम्मच भर नमक मिलाने के बाद क्या आप यह पाते हैं कि कुछ अविलेयी नमक बच जाता है और बीकर की तली में बैठ जाता है? यदि हाँ, तो इसका अर्थ यह हुआ कि अब इस जल में अधिक नमक नहीं घुल सकता। अब यह विलयन संतृप्त विलयन कहलाता है।

यहाँ एक संकेत है जो यह बताता है कि उस समय संभवतः क्या गलत हुआ जब पहेली ने रेत में

अधिक मात्रा में मिले नमक की पुनः प्राप्ति का प्रयास किया था। कदाचित् नमक की मात्रा संतृप्त विलयन बनाने के लिए आवश्यक मात्रा से बहुत अधिक थी। अविलेय नमक रेत के साथ मिला रह गया है जिसे पुनः प्राप्त नहीं किया जा सका। वह अधिक मात्रा में जल का उपयोग करके अपनी समस्या हल कर सकती थी।

कल्पना कीजिए कि उसके पास मिश्रण में सारे नमक को घोलने के लिए पर्याप्त मात्रा में जल नहीं है। क्या किसी अन्य उपाय द्वारा जल की उसी मात्रा में, संतृप्त विलयन बनने से पूर्व, पहले से अधिक नमक घोला जा सकता है।

आइए हम पहेली की सहायता करने का प्रयास करें।

क्रियाकलाप 9

बीकर में कुछ जल लीजिए तथा उसमें तब तक नमक मिलाइए जब तक कि इसमें और नमक न घुल सके। इस प्रकार हमें नमक का जल में संतृप्त विलयन प्राप्त होता है।

अब इस संतृप्त विलयन में कम मात्रा में नमक मिलाइए और इसे गर्म कीजिए। आप क्या पाते हैं? बीकर की तली वाले नमक का क्या हुआ? क्या अब यह घुल गया है? यदि हाँ, तो क्या इस विलयन को गर्म करने पर इसमें और अधिक नमक घोला जा सकता है?

इस गर्म विलयन को ठंडा होने दीजिए। क्या बीकर की तली में नमक पुनः बैठता दिखाई देता है? यह क्रियाकलाप सुझाता है कि गर्म करने पर नमक की अधिक मात्रा घोली जा सकती है।

क्या जल में विभिन्न विलेय पदार्थों की समान मात्रा घुलती है? आइए पता लगाते हैं।

क्रियाकलाप 10

दो गिलास लीजिए और प्रत्येक में आधा कप पानी भरिए। एक गिलास में एक चम्मच नमक मिलाइए और तब तक विलोड़ित कीजिए, जब तक कि वह घुल न जाए।

सारणी : 3.2

पदार्थजल में घुलने वाले पदार्थ की मात्रा (चम्मचों की संख्या)
नमककिसी भी मात्रा में (जल की प्रत्येक चम्मच में)
चीनीकिसी भी मात्रा में (जल की प्रत्येक चम्मच में)

एक-एक चम्मच नमक की मात्रा विलयन संतृप्त होने तक डालते जाइए। नमक के चम्मचों की संख्या, जो कि घोली गई है, को सारणी 3.2 में लिखिए। अब इस क्रियाकलाप को चीनी से दोहराइए। आप इसको जल में विलेय अन्य पदार्थों से भी दोहरा सकते हैं।

सारणी 3.2 से आप क्या जानकारी प्राप्त करते हैं? क्या आपने पाया कि जल विभिन्न पदार्थों की भिन्न-भिन्न मात्रा को घोलता है?

हमने पदार्थों के पृथक्करण की कुछ विधियों के विषय में चर्चा की है। इस अध्याय में प्रस्तुत पृथक्करण की विधियों का उपयोग विज्ञान प्रयोगशालाओं में भी किया जाता है।

हमने यह भी सीखा कि पदार्थ को द्रव में घोलने से विलयन बनता है यदि विलयन में और पदार्थ न घुल सकें तो यह संतृप्त विलयन कहलाता है।

सारांश

• चालन, अवसादन, निस्तारण तथा निस्यंदन मिश्रणों से उसके अवयवों हस्तचयन, निष्पावन, चाल के पृथक्करण की कुछ विधियाँ हैं।

• अनाज से भूसा और पत्थरों को हस्त चयन द्वारा पृथक किया जा सकता है।

• भूसा, अनाज के भारी बीजों से निस्पावन विधि द्वारा पृथक किया जाता है।

• किसी मिश्रण के कणों की आमाप में अंतर का उपयोग चालन तथा निस्यंदन प्रक्रियाओं द्वारा पृथक्करण में किया जाता है।

• रेत और जल के मिश्रण में, रेत के भारी कण तली में बैठ जाते हैं और निस्तारण की विधि द्वारा जल को पृथक किया जा सकता है।

• द्रव तथा उसमें अविलेय पदार्थ के अवयवों को निस्यंदन के उपयोग से पृथक किया जा सकता है।

• किसी द्रव को उसी वाष्प में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को वाष्पन कहते हैं। वाष्पन की विधि का उपयोग द्रव में घुले ठोस को पृथक करने में किया जा सकता है।

• जिस विलयन में कोई पदार्थ और अधिक न घुल सके वह उस पदार्थ का संतृप्त विलयन होता है।

• किसी पदार्थ के विलयन को गर्म करने पर उसमें और अधिक पदार्थ घोला जा सकता है।

• जल विलेय पदार्थों की विभिन्न मात्राएँ घोलता है।

अभ्यास

1. हमें किसी मिश्रण के विभिन्न अवयवों को पृथक करने की आवश्यकता क्यों होती है? दो उदाहरण लिखिए।
Ans.
हमें किसी मिश्रण के विभिन्न अवयवों को पृथक करने की आवश्यकता निम्नलिखित कारणों से होती है।

(i) कई बार मिश्रण के घटकों में हानिकारक अथवा अवांछित पदार्थ होते है जिन्हें पृथक करने की आवश्यकता होती है। जैसे – जैसे चावल से कंकड़-पत्थरों को अलग करना।

(ii) कभी-कभी हम उपयोगी पदार्थों को भी पृथक करते हैं जिनकी हमें अलग से उपयोग करने की आवश्यकता होती है। जैसे दूध से मक्खन को अपनी आवश्यकता के लिए पृथक करते हैं।

2. निष्पावन से क्या अभिप्राय है? यह कहाँ उपयोग किया जाता है?
Ans.
किसी मिश्रण के अवयवों को इस प्रकार पृथक करने की विधि निष्पावन कहलाती है। निष्पावन का उपयोग पवनों अथवा वायु के झोंकों द्वारा मिश्रण से भारी तथा हल्के अवयवों को पृथक करने में किया जाता है। साधरणतया किसान इस विधि का उपयोग हल्के भूसे को भारी अन्नकणों से पृथक करने के लिए करते हैं।

3. पकाने से पहले दालों के किसी नमूने से आप भूसे एवं धूल के कण कैसे पृथक करेंगे?
Ans
. दालों के नमूने से भूसे एवं धूल कण हस्तचयन विधि से अलग करेंगे।

4. छालन से क्या अभिप्राय है? यह कहाँ उपयोग होता है?
Ans.
छालन भिन्न-भिन्न आकार के मिश्रण के घटकों के अलग करने की एक विधि है। जिसमें एक विशेष आकार के कणों को छननी के छोटे-छोटे छेदों से अलग किया जाता है, जबकि बड़े कण छननी में ही रह जाता है।

इसका उपयोग निम्न मिश्रण के घटकों को अलग करने के लिए किया जाता है।

(i) इसका उपयोग आटे से चोकर को अलग करने के लिए किया जाता है।

(ii) चाय से चायपत्ती को अलग करने के लिए ।

5. रेत और जल के मिश्रण से आप रेत तथा जल को कैसे पृथक करेंगे?
Ans.
रेत और जल के मिश्रण से रेत और जल को निस्तारण विधि से अलग किया जाता है, रेत के भारी कण बर्तन के तली में बैठ जाता है इसे अवसादन विधि कहते है। इससे पानी जो हल्का होता है ऊपर रह जाता है जिसे निस्तारण विधि से अलग कर लिया जाता है। पानी को और साफ प्राप्त करने के लिए फ़िल्टर पेपर से छानने से अलग किया जा सकता है।

6. आटे और चीनी के मिश्रण से क्या चीनी को पृथक करना संभव है? अगर हाँ, तो आप इसे कैसे करेंगे?
Ans
. हाँ, यह संभव है। इसे छानने की विधि से अलग कर सकते हैं।

7. पंकिल जल के किसी नमूने से आप स्वच्छ जल कैसे प्राप्त करेंगे?
Ans.
पंकिल जल से स्वच्छ जल प्राप्त करने की विधि निम्नलिखित है-

(i) सर्वप्रथम पंकिल जल को एक साफ बर्तन में कुछ देर के लिए छोड़ देंगे जिसे मिटटी के भारी कण नीचे तली में बैठ जायेगा, इस विधि को अवसादन कहते हैं।

(ii) फिर निस्तारण विधि के प्रयोग से जल को बर्तन से अलग कर लेंगे, इस विधि में पानी वाला भाग जो ऊपर है उसे किसी अन्य बर्तन में उड़ेल लेंगे ।

(iii) स्वच्छ जल प्राप्त करने के लिए हम फ़िल्टर पेपर से पानी को छान लेंगे | इस विधि को छानन कहते हैं।

8. रिक्त स्थानों को भरिए:

(क) धान के दानों को डंडियों से पृथक करने की विधि को थ्रेशिंग कहते हैं।

(ख) किसी एक कपड़े पर दूध को उड़ेलते हैं तो मलाई उस पर रह जाती है। पृथक्करण की यह प्रक्रिया छानन कहलाती है।

(ग) समुद्र के जल से नमक वाष्पन प्रक्रिया द्वारा प्राप्त किया जाता है।

(घ) जब पंकिल जल को पूरी रात एक बाल्टी में रखा जाता है तो अशुद्धियाँ तली में बैठ जाती है। इसके पश्चात स्वच्छ जल को ऊपर से पृथक कर लेते हैं। इसमें उपयोग होने वाली पृथक्करण की प्रक्रिया को अवसादन और निस्तारण कहते हैं।

9. सत्य अथवा असत्य ?

(क) दूध और जल के मिश्रण को निस्यंदन द्वारा पृथक किया जा सकता है। (असत्य)

(ख) नमक तथा चीनी के मिश्रण को निष्पावन द्वारा पृथक कर सकते हैं। (असत्य)

(ग) चाय की पत्तियों को चाय से पृथक्करण निस्यंदन द्वारा किया जा सकता है। (असत्य)

(घ) अनाज और भूसे का पृथक्करण निस्तारण प्रक्रम द्वारा किया जा सकता है। (असत्य)

10. जल में चीनी तथा नींबू का रस मिलाकर शिकंजी बनाई जाती है। आप बर्फ़ डालकर इसे ठंडा करना चाहते हैं, इसके लिए शिकंजी में बर्फ़ चीनी घोलने से पहले डालेंगे या बाद में? किस प्रकरण में अधिक चीनी घोलना संभव होगा?
Ans.
बर्फ डालने से पहले हमें चीनी डालनी चाहिए। क्योंकि चीनी गर्म पानी में अधिक तेज़ी से घुल जाती है और ठंडे पानी में बर्फ मिलाकर हम अधिक चीनी घुला नहीं सकते हैं।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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