हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी (2350ई.पू. – 1750ई.पू.)

हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी (2350 ई.पू. – 1750 ई.पू.)

हड़प्पा सभ्यता को कांस्ययुगीन सभ्यता भी कहते हैं।

• ताम्र पाषाणिक पृष्ठभूमि पर सिंधु घाटी नामक विकसित सभ्यता का आविर्भाव हुआ, जिसका केंद्र भारतीय उपमहाद्वीप के पश्चिमोत्तर भाग में था।

• हड़प्पा टीले का सर्वप्रथम उल्लेख 1826 ई. में चार्ल्स मैस्सन द्वारा किया गया। लेकिन एक प्राचीन उन्नत सभ्यता का रहस्योद्घाटन 1856 में करांची और लाहौर के बीच रेल पटरी बिछाने के दौरान हुआ, जब जॉन ब्रटन और विलियम ब्रटन नामक अंग्रेजों ने दो प्राचीन नगरों हड़प्पा और मोहनजोदड़ो का पता लगाया।

• इस सभ्यता का नाम ‘हड़प्पा संस्कृति’ इसलिए पड़ा क्योंकि 1921 ई. में पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित हड़प्पा (मोंटगुमरी जिला) नामक स्थल पर ही सर्वप्रथम दयाराम साहनी और माधव स्वरूप वत्स के नेतृत्व में उत्खनन कार्य किया गया।

• इस प्राचीन सभ्यता के दूसरे महत्त्वपूर्ण स्थल मोहनजोदड़ों (मृतकों का टीला) में उत्खनन कार्य 1922 ई. में राखालदास बनर्जी के नेतृत्व में आरम्भ हुआ, जो वर्तमान पाकिस्तान के सिंध प्रांत के लरकाना जिले में स्थित है।

• उक्त दोनों स्थलों पर संयुक्त उत्खनन कार्य के पश्चात् भारतय पुरातत्व विभाग के तत्कालीन महानिदेशक सर जॉन मार्शल ने सन् 1924 ई. में सिंधु सभ्यता (कांस्य युगीन) नामक एक उन्नत नगरीय व्यवस्था के खोज की विधिवत घोषणा की।

• बाद में जे.एफ. मैके ने 1927 ई. से 1931 ई. तक तथा जी. एफ. डेल्स ने 1963 ई. में मोहनजोदड़ो में उत्खनन कार्य किया।

पिगट ने हड़प्पा एवं मोहनजोदड़ो को एक विस्तृत साम्राज्य की जुड़वां राजधानियाँ बताया है।

• नवीनतम अनुसंधानों और रेडियो कार्बन-14 विश्लेषण के आधार पर इस सभ्यता की तिथि 2350 ई.पू. – 1750 ई.पू. निर्धारित की जा सकती है।

वैसे तो हड़प्पा सभ्यता का केन्द्र पंजाब और सिंध (मुख्यतः सिंधु घाटी) में है, लेकिन सैन्धव सभ्यता दक्षिण और पूर्व में ब्लूचिस्तान, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जम्मू और उत्तरी अफगानिस्तान तक विस्तृत है।

• यद्यपि हड़प्पा सभ्यता के लगभग 1000 स्थलों के बारे में जानकारी प्राप्त हो चुकी है, लेकिन इनमें से केवल 6 को ही नगर माना जाता है-हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, सिंध का चन्हूदड़ो, गुजरात का लोथल, उत्तरी राजस्थान का कालीबंगा तथा हरियाणा के हिसार जिले में स्थित बनवाली।

त्रिभुजाकार हड़प्पा संस्कृति का समूचा क्षेत्रफल 1,299,600 वर्ग किलोमीटर था, जो तत्कालीन मिस्र एवं मेसापोटामियाई क्षेत्रफल से काफी अधिक था।

• कालीबंगा और बनवाली में हड़प्पा पूर्व और हड़प्पा कालीन संस्कृतियों का प्रमाण मिलता है। यहाँ बिना पकी ईंटों के चबूतरों, सड़कों तथा नालियों के अवशेष हड़प्पा युगीन हैं।

• सुतकांगेडोर और सुरकोतडा जैसे समुद्रतटीय नगरों में भी इस सभ्यता के उन्नत रूप के दर्शन मिलते हैं। जहाँ नगर दुर्ग प्राप्त होते हैं।

• गुजरात के काठियावाड़ प्रायद्वीप में स्थित रंगपुर और रोजड़ी नामक स्थलों में इस सभ्यता की उत्तरावस्था का संकेत मिलता है।

• सिंधु सभ्यता के प्रमुख स्थल लोथल में बन्दरगाह का अस्तित्व मिला है, जहाँ विदेशी जलयानों का आवागमन होता था।

• लोथल गुजरात के अहमदाबाद से 80 किमी. दूर अरब सागर तट पर खंभात की खाड़ी में स्थित है।

• 1955-56 ई. में हुई खुदाई में यहाँ 216 मी. लम्बी, 36 मी. चौड़ी तथा 3 मीटर गहरी ईटों से निर्मित गोदी का पता चला।

• प्रथम नगर नियोजन : हड़प्पा संस्कृति की सर्वोत्कृष्ट विशेषता इसका ‘नगर नियोजन’ है।

हड़प्पा और मोहनजोदड़ों दोनों ही नगरों के अपने दुर्ग थे, जहाँ संभवत: शासक वर्ग के सदस्य रहते थे। प्रत्येक नगर में दुर्ग के बाहर निचले स्तर पर ईंटों के मकानों वाला नगर बसा था।

अलेक्जेंडर कनिघंम को भारतीय पुरातत्व का जनक कहा जाता है।

हड़प्पा सभ्यता का काल निर्धारण,

• रेडियो कार्बन-2350 ई. पू. से 1750 ई. पू.

डी० पी० अग्रवाल के अनुसार सिंधु सभ्यता का काल 2350 ई० पू० से 1750 ई० पू० माना जाता है।

• मृण्मुद्राओं के आधार पर – मृण्मुद्राओं के आधार पर सिंधु सभ्यता का काल 2500 ई० पू० से 1800 ई० पू० माना जाता है।

• मार्शल के अनुसार – मार्शल ने सिंधु सभ्यता का काल 3250 ई० पू० से 2750 ई० पू० माना है।

• ह्वीलर के अनुसार – सिंधु सभ्यता का काल 2500 ई. पू. से 1500 ई. पू.।

• हड़प्पा संस्कृति के अध्ययन के साथ चार्ल्स मैसन, कनिंघम, एम. व्हीलर, माधो स्वरूप वत्स आदि जुड़े थे।

• सिंधु सभ्यता के उत्थान का चरमोत्कर्ष काल 2100 ई० पू० माना जाता है।

प्रमुख वस्तुएं

वस्तुप्राप्ति स्थल
तांबाब्लूचिस्तान, राजस्थान, दक्षिण भारत, अफगानिस्तान
टिनबंगाल, अफगानिस्तान, ईरान
चाँदीअजमेर, दक्षिण भारत, अफगानिस्तान, ईरान
लाजवर्दबदख्शां, उत्तर-पूर्व
अफगानिस्तान, मेसोपोटामिया
सोनामैसूर, कंधार (अफगानिस्तान)
स्फटिकपामीर, कश्मीर, फारस
जमोनियामहाराष्ट्र
शंख, कौड़ीदक्षिण भारत, सौराष्ट्र
गोमेदसौराष्ट्र
सेलखड़ीब्लूचिस्तान, राजस्थान
सीसाईरान, अफगानिस्तान एवं राजस्थान
हरित नील मणिईरान
नील मणिमहाराष्ट्र

हड़प्पा संस्कृति के पतन के कारण

पतन के कारणमत के संस्थापक
1. नदी की शुष्कतासूद और अग्रवाल
2. अस्थिर नदी तंत्रलैम्ब्रिक
3. जलवायु परिवर्तनआरेल स्टीन और ए० एन० घोष
4. प्राकृतिक आपदाके. यू. आर. केनेडी
5. भूकम्परेइक्स, डेल्स
6. पारिस्थितिक असंतुलनफेयर सर्विस
7. आर्यों का आक्रमणआर. मार्टी मर ह्वीलर
8. बाह्य आक्रमणगार्डन चाइल्ड, स्टुवर्ट पिगट
9. बाढ़मैके, राव, मार्शल

• हड़प्पा सभ्यता की खोज का श्रेय दयाराम साहनी को जाता है।

इखाथम महादेवन एक भारतीय पुरा लेखशास्त्री और भूतपूर्व लोक सेवक हैं, जो सिंधु घाटी सभ्यता के पुरालेखशास्त्री पर अपनी सुविज्ञता और तमिल-ब्राह्मी अभिलेखों का सफलतापूर्वक अर्थ निकालने के लिए जाने जाते हैं।

• हड़प्पा सभ्यता के छ: स्थलों को नगर की संज्ञा दी जाती है।

• हड़प्पा संस्कृति को कांस्य युगीन सभ्यता भी कहते हैं। हड़प्पा के लोगों को ताँबे में टिन मिलाकर काँसा बनाने की विधि आती थी।

सैंधववासी दशमलव प्रणाली पर आधारित बाँटों का प्रयोग करते थे।

• खुदाई में 16 के गुणकों में बाट प्राप्त हुए हैं, जैसे 16, 64, 160, 320, 640 आदि।

टेराकोटा का उपयोग हड़प्पा-काल की मुद्राओं के निर्माण में मुख्य रूप से किया गया था।

• सैंधववासियों के जीवन का मुख्य व्यवसाय कृषि कार्य था।

• सिन्धु घाटी सभ्यता के विषय में जानकारी कम प्राप्त हुई हैं क्योंकि उस काल की लिपि आज तक पढ़ी नहीं जा सकी। इसकी लिपि भावचित्रात्मक है।

• सिन्धु घाटी के लोगों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले बर्तन चाक पर बने होते थे।

पतली गर्दन वाले बड़े आकार के घड़े तथा लाल रंग के बर्तनों पर काले रंग की चित्रकारी हड़प्पा के बर्तनों की मुख्य विशेषता है।

• सिन्धु सभ्यता का विस्तार भारत एवं पाकिस्तान में लगभग 1500 स्थलों पर पाया गया है।

• सिन्धु सभ्यता से प्राप्त अनाज चावल, जौ, खजूर, गेहूँ, कपास, तरबूज, मटर, ब्रासिका, जुंसी, तिल एवं सरसों।

• हड़प्पा सभ्यता के सर्वाधिक स्थल गुजरात राज्य में मिले हैं। पहली बार कपास उपजाने का श्रेय हड़प्पावासियों को प्राप्त है।

यहाँ के लोग लकड़ी के हलों का प्रयोग जुताई के लिए तथा पत्थर के हंसियों का प्रयोग फसल काटने के लिए करते थे।

• हल का साक्ष्य कालीबंगा से मिला है।

• सिन्धु सभ्यता में ईटों का अनुपात 4:2:1 था।

• सिन्धु सभ्यता में पाये जाने वाले पशु घोड़ा, एक श्रृंगी सांड, बैल, भैंस, भेड़ बकरी, सुअर, कुत्ता, बिल्ली, गधा, ऊँट, कूबड़ वाला सांड, हाथी एवं गैंडा।

कृषि (Agriculture)

कृषि- चावल, जौ, गेहूँ, कपास, खजूर, तरबूज, मटर, ब्रासिका, जुंसी, तिल, सरसों।

• सर्वप्रथम स्वास्तिक चिह्न के अवशेष हड़प्पा सभ्यता से मिले हैं।

• घोड़े की अस्थियों का अवशेष सुरकोटदा से मिला है।

• लोथल में मिट्टी से निर्मित घोड़े की प्रतिमा प्राप्त हुई है।

• सैन्धववासी मातृदेवी की पूजा करते थे।

• चावल के प्रथम साक्ष्य लोथल एवं रंगपुर से मिले हैं।

• सिन्धु क्षेत्र का प्राचीन नाम मेलुहा था। सिन्धु मुहरों पर एक श्रृंगी सांड के चित्र सर्वाधिक मिले हैं।

• सिन्धु सभ्यता के लोथल एवं कालीबंगा से हवनकुण्ड का साक्ष्य मिला है।

पालतु पशु (Pet Animal)

पालतु पशु- बैल, भैंस, भेड़, बकरी, सुअर, कुत्ता, बिल्ली, गधा, ऊँट, कूबड़वाला सांड़, हाथी, गैंडा। यहाँ गाय के साक्ष्य नहीं मिले हैं।

• सिन्धु सभ्यता का पूर्वी स्थल मेरठ के पास आलमगीरपुर है।

ऋग्वेद में हड़प्पा सभ्यता को हरयूपिया कहा गया है।

विश्व में चाँदी सर्वप्रथम भारत (हड़प्पा सभ्यता) में पाई गई।

ऊँट की हड्डियाँ कालीबंगा से प्राप्त हुई हैं।

• सिन्धु सभ्यता का मुख्य केन्द्र हड़प्पा था। सिन्धुवासी लोहे से परिचित नहीं थे।

सैन्धववासियों का मुख्य भोजन जौ और गेहूँ था।

• मोहनजोदड़ों में सबसे बड़ा भवन विशाल अन्नागार था।

लोथल में महिला-पुरुष को एक साथ दफनाया गया है।

• मोहनजोदड़ो से सूती कपड़े का साक्ष्य तथा नर्तकी की एक कांस्य मूर्ति मिली है।

• चन्हूदड़ो से दवात तथा मनके बनाने के कारखाने प्राप्त हुई है।

• काँसे की नर्तकी उनकी मूर्तिकला का सर्वश्रेष्ठ नमूना है।

• मोहनजोदड़ो से पाँच बेलनाकार मुद्राएं प्राप्त हुई हैं।

• मोहनजोदड़ो की मुख्य सड़क 10 मीटर चौड़ी थी।

• हड़प्पाई लोगों को हाथी का ज्ञान था। वे गैंडे से भी परिचित थे।

• हड़प्पाई लोग कताई के लिए तकलियों का इस्तेमाल करते थे।

• हड़प्पाई लोग नाव बनाने का काम भी करते थे।

हड़प्पा संस्कृति के सभी नगरों में सभी मकान आयताकार हैं जिनमें पक्का स्नानागार और सीढ़ीदार कुँआ संलग्न है।

सैंधव कालीन मुहरें बनाने में सर्वाधिक उपयोग सेलखड़ी (Steatite) का किया गया है।

• स्त्री मृण्मूर्तियाँ (मिट्टी की मूर्तियाँ) अधिक मिलने से ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि सैंधव समाज मातृसत्तात्मक था।

सैंधव मुहरें बेलनाकार, वर्गाकार, आयताकार और वृत्ताकार है।

• सिंधु घाटी की खुदाई में मिले अवशेषों में तत्कालीन व्यापारिक और आर्थिक विकास के द्योतक मुद्राएँ हैं।

• वर्गाकार मुहरें सर्वाधिक प्रचलित थीं।

• सैंधवकालीन सर्वाधिक मुहरें मोहनजोदड़ो से मिली है।

• लोथल एवं कालीबंगा से युग्म समाधियां मिली हैं।

• हड़प्पाकालीन पुरास्थल कुणाल से चाँदी के दो मुकुट मिले हैं।

• हड़प्पा में शवों को दफनाने जबकि मोहनजोदड़ो में जलाने की प्रथा विद्यमान थी।

• सिन्धु सभ्यता प्रथम नगरीय सभ्यता थी जिसे कांस्य युग में रखा जा सकता है।

• लोथल से गोदी बाड़े का साक्ष्य मिला है। लोथल एवं सुरकोतदा सिन्धु सभ्यता का बन्दरगाह था।

लोथल से एक तराजू पाया गया है।

सैंधववासी मिठास के लिए शहद का प्रयोग करते थे।

पर्दा-प्रथा एवं वेश्यावृत्ति सैंधव सभ्यता में प्रचलित थी।

• हाड़प्पा से तांबे की बनी हुई एक ‘एक्का गाड़ी’ प्राप्त हुई है।

• हड़प्पा से एक दर्पण प्राप्त हुआ है जो ताँबे का बना हुआ है।

• हड़प्पा से प्राप्त मुद्रा में गरुड़ का अंकन मिला है।

• सिन्धुवासी ‘बतख’ को अत्यधिक पवित्र मानते थे।

हड़प्पा संस्कृति के विनाश का ठीक कारण ज्ञात नहीं है। सिन्धु नदी की बाढ़, सिन्धु नदी का मार्ग बदलना, वर्षा की कमी, भूकम्प एवं विदेशी आक्रमण जैसे कारण समय-समय पर बताए गए हैं।

सैंधव सभ्यता के विनाश का संभवतः सबसे प्रभावी कारण बाढ़ था।

धार्मिक प्रतीक के चिह्न

(1) ताबीज : इनके द्वारा वे भौतिक व्याधियों अथवा प्रेतात्माओं से छुटकारा पाने का प्रयास करते थे।

(2) स्वास्तिक : सूर्योपासना का प्रतीक। यह चिह्न संभवतः हड़प्पा सभ्यता की देन है।

(3) योगी के रूप में बैठे पुरुष (शिव)- शिव को आज भी योगीश्वर के नाम से संबोधित किया जाता है।

(4) श्रृंग : महाभारत में शिव को ‘त्रि-श्रृंग’ कहा गया है। (श्रृंग शिव से संबंधित)

(5) बैल : संहारकारी देवता शिव का वाहन था। यह सर्वाधिक धार्मिक महत्त्व का पशु था।

(6) बकरा : बलि हेतु प्रयुक्त होता था।

(7) भैंसा : एक मुद्रा पर भैंसा व्यक्ति को उछाले हुए एवं एक अन्य मुद्रा पर व्यक्तियों के समूह पर आक्रमण करते हुए दिखाया गया है, जो किसी देवता की शत्रुओं पर विजय का प्रतीक है।

(8) नाग : इनकी भी पूजा होती थी।

(9) बैल, भेड़ एवं बकरी की हड्डियों के ढेर : पशुबलि का द्योतक।

(10) कांस्य नर्तकी : मंदिर की कल्पना करने पर नृत्य भी धार्मिक महत्त्व का हो सकता है।

( 11) शवों के साथ बर्तन एवं अन्य सामग्री : मृत्यु के बाद जीवन में विश्वास।

(12) शवों को उत्तर-दक्षिण दिशा में लिटाना : धार्मिक विश्वास का द्योतक।

(13) दो शवों का एक साथ गाड़ा जाना : पुरुष की मृत्यु के बाद संभवतः स्त्री का सती होना।

(14) सिंधु घाटी की प्राचीन संस्कृति और आज के हिंदू धर्म के बीच जैव संबंध का प्रमाण पत्थर, पेड़ और पशु की पूजा से मिलता है।

हड़प्पा सभ्यता के महत्वपूर्ण उत्खनन स्थल एवं उनकी तटीय स्थिति

नदी/सागर तट खुदाई वर्षजगह का नामउत्खननकर्ता
रावी नदी 1921 ई. हड़प्पा (मांटगुमरी, पंजाब-पाकिस्तान)दयाराम साहनी
सिन्धु नदी1922 ई.
1929 ई.
मोहनजोदड़ो (सिंध, पाकिस्तान)
आमरी
राखालदास बनर्जी
एन०जी० मजूमदार
सिन्धु नदी1931 ई.चन्हूदड़ो (सिंध, पाकिस्तान)एन०जी० मजूमदार
दाश्क नदी1927 ई.सुतकागेंडोर (बलूचिस्तान-पाकिस्तान)सर ओरेल स्टोन
हिन्डन नदी1952-55 ई.आलमगीरपुर (मेरठ-उत्तर प्रदेश)यज्ञदत्त शर्मा
सतलज नदी1950-55 ई.रोपड़ (पंजाब-सतलज तट)बी. बी. लाल, यज्ञदत्त शर्मा
मादर नदी1953 ई.रंगपुर (गुजरात-मादर नदी तट)माधोस्वरूप वत्स एवं रंगनाथ राव
घग्घर नदी1953 ई.कालीबंगा (हनुमानगढ़-राजस्थान)डॉ० ए० घोष
सिन्धु नदी1955-57 ई.कोटदीजी (सिंघ-पाकिस्तान)एफ० ए० खान
भोगवा नदी




1955-63 ई.

1956-57 ई.
1963-64 ई.
1972-75 ई.
1973ई.
लोथल (अहमदाबाद-गुजरात)

प्रभाषपाटन
देसलपुर
सुरकोटदा (ब्लूचिस्तान)
बनवाली (हिसार-हरियाणा)

एस आर राव, माधो स्वरूप वत्स


के. वी. सौन्दरराजन
जे पी जोशी
डॉ. आर एस विष्ट
अरब सागर

1979 ई.
1967-68 ई.

1990-91 ई.
बालाकोट
धौलावीरा (भारत में सबसे बड़ा
हड़प्पाकालीन स्थल) (गुजरात)
धौलावीरा (गुजरात) 
जॉर्ज एफ डेल्स
जे पी जोशी

डॉ आरू एस० विष्ट

अन्य महत्वपूर्ण स्थल

स्थलक्षेत्र
1. मेहरगढ़ब्लूचिस्तान (पाकिस्तान)
2. डेरा इस्माइल खानपंजाब (पाकिस्तान)
3. राखीगढ़ीहरियाणा
4. माण्डाजम्मू-कश्मीर राज्य
5. रोजड़ी एवं प्रभासपाटनगुजरात

यह भी पढ़ें: प्रगौतिहासिक भारत

निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी जरुर अच्छी लगी होगी। हड़प्पा सभ्यता या सिंधु घाटी के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में उदाहरण देकर समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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