मिट्टी तथा विश्व की मिट्टियाँ

मिट्टी

मिट्टी से हमारा अभिप्राय पृथ्वी की उस ऊपरी परत से है जिससे मानव अपनी अधिकांश आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। मिट्टी निर्माण में जलवायु जैविक कारक, स्थलाकृतिक कारक, आधारशैल और भू-पदार्थ तथा समय प्रमुख कारक है।

विश्व मिट्टी का पुरातन वर्गीकरण-

1. टुन्ड्रा मिट्टी- इस प्रकार की मिट्टी उत्तरी अमेरिका, उत्तरी यूरेशिया और ग्रीनलैंड के दक्षिणी किनारों में पायी जाती है।

2. पॉडजोल- इस प्रकार की मिट्टी उत्तरी अमेरिका, उत्तरी यूरोप और साइबेरिया के टुन्ड्रा प्रदेशों के दक्षिण में पायी जाती है।

3. भूरी वन मिट्टी- ये मिट्टियाँ पूर्वी अमेरिका, उत्तरी यूरोप और इंग्लैण्ड के पॉडजोल क्षेत्र के दक्षिणी हिस्सों में पायी जाती है।

4. लेटराइटी/लैटोसोल/फैरलसोल – ये मिट्टियाँ एशिया, दक्षिण एवं मध्य अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया के वृहद हिस्सों में फैली हुई है।

5. चर्नोजेम/प्रेयरी/स्टेपी- ये मिट्टियाँ उत्तरी अमेरिका, अर्जेंटीना, मंचूरिया, ऑस्ट्रेलिया और स्वतंत्र राष्ट्रों के राष्ट्रकूल में पायी जाती है।

6. ग्रूमूसॉल/भूरी-लालामी मिट्टी- ये मिट्टियाँ, लेटराइट मिट्टियों के शुष्क सीमांत पर, सवाना घास मैदान क्षेत्रों में पायी जाती है।

7. रेगिस्तानी मिट्टी- ये मिट्टियाँ तुर्कमेनिस्तान, मंगोलिया, सिक्यांग और अमेरिका के यूटा राज्य में पायी जाती है।

विश्व मिट्टी का नवीन वर्गीकरण-

1. एंटीसॉल- ये मिट्टियाँ सहारा, कनाडा के पर्वतों में, अलास्का, साइबेरिया और तिब्बत में पायी जाती है।

2. इनवर्टीसॉल- ये मिट्टियाँ पूर्वी अमेरिका, दक्षिण-अमेरिका, सूडान, भारत और ऑस्ट्रेलिया में फैली है।

3. एरिडोसॉल- ये मिट्टियाँ दक्षिण-पश्चिम अमेरिका, मध्य मेक्सिको, दक्षिण-अमेरिका के पश्चिमी भाग, सहारा पश्चिमी एशिया, ऑस्ट्रेलिया और गोबी में पायी जाती है।

4. मोलीसॉल- ये मिट्टियाँ अमेरिका, चीन, स्वतंत्र राष्ट्रों के राष्ट्रकूल, मंगोलिया, पेरुग्वे, उरुग्वे, ऑस्ट्रेलिया, और उत्तरी अर्जेंटीना के मैदानों में फैली है।

5. इनसेप्टीसॉल- ये मिट्टियाँ अमेरिका, चिली, कोलंबिया, स्पेन, फ्रांस, साइबेरिया, पूर्वी चीन, दक्षिण-पश्चिम गंगा घाटियों और इक्वाडोर के हिस्सों में फैली हुई है।

6. स्पॉडोसॉल- ये मिट्टियाँ उत्तरी अमेरिका, उत्तरी यूरोप, दक्षिण-अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया में फैली है।

7. अल्फीसॉल- ये मिट्टियाँ अमेरिका, पूर्वी ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका के निचले भागों, भारत तथा दक्षिण-पूर्वी एशिया के पर्णपाती वन प्रांतों में फैली है।

8. अल्टीसॉल- ये मिट्टियाँ दक्षिण-पूर्वी अमेरिका, उत्तर-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण-पूर्वी एशिया, दक्षिण ब्राजील और पैराग्वे के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फैली है।

9. ऑक्सीसॉल- ये मिट्टियाँ उत्तरी ब्राजील, अफ्रीका के दक्षिणी हिस्से और दक्षिण-पूर्वी एशिया के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में फैली हुई है।

10. हिस्टोसॉल- ये मिट्टियाँ निम्न अक्षांशों में पायी जाती है।

अपक्षय

• अपक्षय एक प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत पृथ्वी की सतह या सतह के समीप की चट्टान, विभिन्न कारणों से विघटित एवं अपघटित होती है। इस प्रक्रिया में कठोर एवं बड़ी चट्टानें सूक्ष्म कणों में बदल जाती हैं जो मिट्टी निर्माण के प्राथमिक पदार्थों का कार्य करती हैं। इसके अंतर्गत कठोर चट्टानों को प्रवाहमान जल, पवन, ग्लेशियल आइस, तरंगों जैसे भूमि अपरदन एजेंटों द्वारा परिवहन-योग्य कणों में परिवर्तित होना होता है।

• भौतिक अपक्षय के अंतर्गत उष्मण, शीतलन, हिमीकरण तथा जीव-जंतुओं एवं वनस्पतियों द्वारा यांत्रिक अपक्षीयकरण इत्यादि आते हैं जबकि रासायनिक अपक्षय के अंतर्गत कार्बनीकरण हाइड्रेशन, हाइड्रोलिसिस एवं विलियन इत्यादि आते हैं।

• इसके अतिरिक्त चट्टानों का जैविक अपक्षय भी होता है जिसमें भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय दोनों शामिल हैं। जैविक अपक्षय तब होता है जब जीव-जंतु बिल बनाते हैं या अम्लीय पदार्थ चट्टानों पर छोड़ते हैं। जैसे-लाइकेनों द्वारा चट्टानों से सीधे पोषक तत्व प्राप्त करने के कारण चट्टानें टूटती हैं।

अपरदन

• गुरुत्वाकर्षण, प्रवाहमान जल, पवन तरंगे, ज्वार-भाटा एवं धाराओं जैसे अपरदन एजेंटों द्वारा उघड़ी चट्टान के विघटन को अपरदन कहते हैं।

• भौतिक अपरदन के अंतर्गत अपघर्षण, संनिघर्षण, अपवाहन, जलगति क्रियाएँ आती हैं। अपघर्षण के अंतर्गत अपरदन एजेंटों द्वारा स्थानांतरित पदार्थों के माध्यम से चट्टानों की कटाई, छटाई एवं घिसाई की जाती है। संनिघर्षण के अंतर्गत स्थानांतरण के दौरान पदार्थ आपस में टकराकर विघटित होते हैं। अपवाहन की क्रिया मरुस्थलों में होती है। जलगति क्रिया में नदी का जल चट्टानों पर प्रहार कर उसके संगठन को कमजोर करता है एवं विघटित पदार्थ का परिवहन होता है।

• रासायनिक अपरदन संक्षारण के द्वारा होता है जो घुलन क्रिया, कार्बनीकरण, जलयोजन, ऑक्सीकरण एवं जल अपघटन के माध्यम से संपन्न होता है।

परिवहन के अंतर्गत विविध कारणों से अपक्षयित एवं अपरदित पदार्थों का स्थानांतरण किया जाता है। बड़े कणों या खण्डों का परिवहन धरातल पर घसीटने के द्वारा होता है।

नदी द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतियां

• नदियाँ अपरदन, परिवहन एवं निक्षेपण क्रिया करती हैं। नदियों द्वारा उत्पन्न स्थलरूप इस प्रकार है-

• गॉर्ज एवं कैनियन : नदी के लंबवत् कटाव क्रिया से V आकार की घाटी गार्ज एवं कैनियन के रूप में विकसित होती है।

• जल प्रपात : जब नदियों का जल ऊँचाई से खड़े ढाल से अत्यधिक वेग से नीचे गिरता है तो उसे जलप्रपात कहते हैं।

विश्व के प्रमुख जलप्रपात

जल प्रपातऊँचाई (मी. में)अवस्थित
एंजेल979कैरोनी नदी (वेनेजुएला)
टुगेला948दक्षिण अफ्रीका
श्री सिस्टर914पेरु
ब्राऊनी836न्यूजीलैंड
योसेमाइट739कैलिफोर्निया
सदरलैण्ड580न्यूजीलैंड
टकाकू400ब्रिटिश कोलम्बिया (कनाडा)
जोग प्रपात253भारत
मुल्टनोमाह250ओरेगन (यूएस.ए)
ग्रैण्ड प्रपात160लेब्राडोर (कनाडा)
विक्टोरिया108जाम्बेजी नदी (जिम्बाब्वे)
नियाग्रा51यू.एस.ए. एवं कनाडा

• डेल्टा : नदियों द्वारा मुहाने के पास लाए गए अवसादों के जमा किए जाने से ग्रीक अक्षर △ जैसा विकसित स्थलरूप डेल्टा कहलाता है। भारत में गंगा-ब्रह्मपुत्र डेल्टा संसार का सबसे बड़ा डेल्टा है।

• जलगर्तिका : नदी के प्रवाह मार्ग में जल दाब एवं घर्षण क्रिया से गर्तों का विकास होता है, जिसे जलगर्तिका कहते हैं।

• नदी वेदिका : नदी घाटी के दोनों ओर नवोन्मेष के कारण विकसित सोपानी संरचना को नदी वेदिका कहते हैं।

• नदी विसर्प : नदियों के अंतिम प्रौढ़ावस्था मार्ग में अवरोध के कारण विकसित नदियों के घुमावदार मार्ग को नदी विसर्प कहते हैं।

• जलोढ़ पंख : नदियों द्वारा पर्वतों के आधार तल के पास अर्द्धवृत्ताकार रूप में पदार्थों का निक्षेपण, जो आकृति में पंख के समान होता है, जलोढ़ पंख कहलाता है।

• तटबन्ध : नदी के दोनों किनारों पर मिट्टियों के जमाव द्वारा बने लंबे-लंबे बन्ध जो कि कम ऊँचाई वाले कटक के समान होते हैं।

• छाड़न झील : जब नदियाँ अपने विसर्प को त्यागकर सीधे प्रवाहित होने लगती है, तब नदियों का विसर्प या अवशिष्ट भाग छाड़न या गोखुर झील कहलाता है।

हिमनदी द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतियां

• ड्रमलिन : ये भूमि हिमोढ़ द्वारा निर्मित गोल टीले वाली पहाड़ियाँ होती है, जिनकी आकृति उल्टी नाव के समान होती है।

केम : हिम अग्र के समक्ष जमा अति प्रवण जलोढ़ शंकु को केम कहा जाता है।

• फियोर्ड : ये सागर में डूबी हुई हिमनदीय आकृति है, जो लंबे, ढालू पार्शीय तटीय प्रवेश मार्ग होते हैं, जो सागर के निकट के पर्वतीय क्षेत्र में पूर्व में विद्यमान नदी प्रणाली में तीव्र हिमनद के कारण विकसित होते हैं।

• U आकार की घाटी : हिमनदी अपने प्रवाह मार्ग में किसी नदी निर्मित घाटी में अपघर्षण द्वारा उसे U आकार की घाटी में परिवर्तित कर देती है।

• लटकती घाटी : हिमनदी की सहायक घाटी को लटकती घाटी कहा जाता है।

• सर्क : यह ढालू शीर्ष और ढालू पार्श्व दीवारों वाले एक आरामकुर्सी के आकार के अवनमन के चारों ओर घिरे हिमनदीय अपरदित शैल के समान होता है।

• श्रृंग : हिमानी क्षेत्र में हिमनद के अपरदन से विकसित होने वाली पिरामिडनुमा चोटी को श्रृंग कहते हैं।

अरेट : किसी पहाड़ी के दोनों ओर सर्क के विकास क्रम में बनने वाले दांतेदार आरी के समान स्थलरूप को अरेट कहते हैं।

• कोल : यह एक पर्वतीय दर्रा है जो एक घाटी को दूसरे से मिलाता है।

• नूनाटक : हिम क्षेत्र में हिम के ऊपर निकली हुई चोटियों को नूनाटक कहा जाता है।

• एस्कर : हिमानी क्षेत्र में बर्फी के जमने से भेड़नुमा स्थलरूप को एस्कर कहा जाता है।

वायु द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतियां

इन्सेलबर्ग : उच्च मरुस्थलीय प्रदेशों में ग्रेनाइट शैल के अपरदन के कारण गुम्बद या पिरामिड के आकार के टीले इन्सेलबर्ग कहलाते हैं।

• ज्यूजेन : कोमल पदार्थों के स्तम्भ के ऊपर अधिक अवरोधी शैलों का टिका हुआ ढेर, ज्यूजेन कहलाता है।

• वातगर्त : गतिशील वायु के अपघर्षण एवं अपवाहन क्रिया से विकसित होने वाले गर्त वातागर्त कहलाते हैं।

• छत्रकशिला : मरुस्थलीय भागों में वायु के मार्ग में आने वाली चट्टानी खण्ड अपरदन क्रिया से छतरीनुमा आकृति धारण कर लेते हैं, जिन्हें छत्रकशिला गारा कहते हैं।

• लोयस : मरुस्थलीय क्षेत्रों के बाहर पवन द्वारा उड़ाकर लाये गये महीन कणों के वृहद जमाव को लोयस कहते हैं।

• बारखान : शुष्क प्रदेशों में विकसित होने वाले अनुप्रस्थ बालुकास्तूपों को बारखान कहा जाता है।

• यारडंग : यारडंग अतिप्रवण गहराई में अपरदन प्रलंबी शैल कटक होती है जो एक दूसरे से कोमल शैलों में काटे गये लंबे गलियारे द्वारा अलग हुई होती है।

भूस्तम्भ : वायु अपरदन द्वारा चट्टानों से विकसित शैल स्तम्भ जिसका ऊपरी भाग कठोर एवं निचला भाग मुलायम होता है भू-स्तम्भ कहलाता है।

भौम जल द्वारा उत्पन्न स्थलाकृतियां

• युवाला : चूना प्रस्तर क्षेत्र में एक वृहद् धरातल धंसाव को युवाला कहते हैं।

• पोल्जे : जब कई युवाला मिल जाते हैं तो अत्यंत विशाल खाईयां बनती हैं, जिन्हें पोल्जे कहा जाता है।

• कार्स्ट गुफा : चूना पत्थर चट्टानी क्षेत्र में चूना के विलयन क्रिया द्वारा विकसित गुफा को कार्स्ट गुफा कहते हैं।

• स्टैलेक्टाइट्स एवं स्टैलेग्माइट : चूना के विलयन क्रिया से कार्स्ट गुफा में विकसित आकाशी स्तम्भ को स्टैलेक्टाइट्स तथा धरातलीय स्तम्भ को स्टैलेग्माइट कहा जाता है।

• लैपीज : चूना प्रस्तर क्षेत्र में जल के विलयन क्रिया से विकसित शिखरिकाओं को लैपीज कहा जाता है।

तटीय स्थलाकृतियां

• पुलिन : तटवर्ती क्षेत्रों में सागरीय तरंगों के अपरदन से प्राप्त रेतों के जमाव से विकसित बालुकामय मैदान को पुलिन कहते हैं।

• टम्बोलो : तट के किसी द्वीप या शीर्ष स्थल से किसी द्वीप को मिलाने वाली रोधिका को टम्बोलो कहते हैं।

• तटीय क्लिफ : सागरीय तरंगों द्वारा अपरदन से जब कोई सागर तट एकदम सीधा खड़ा होता है तो उसे तटीय भृग या क्लिफ कहा जाता है।

• तटीय कन्दरा : सागरीय तरंगों के अपरदन क्रिया से विकसित चट्टानी खोह को कन्दरा कहते हैं।

• स्टैक : प्राकृतिक मेहराब के ध्वस्त होने से चट्टान का अगला भाग समुद्री जल के बीच एक स्तम्भ की भांति खड़ा रहता है, जिसे स्टैक कहा जाता है।

यह भी पढ़ें: मैदान एवं मैदानों का वर्गीकरण

निष्कर्ष

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट मिट्टी तथा विश्व की मिट्टियाँ जरुर अच्छी लगी होगी। मिट्टी तथा विश्व की मिट्टियाँ के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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