टिकट – अलबम : अध्याय 7

अब राजप्पा को कोई नहीं पूछता। आजकल सब के सब नागराजन को घेरे रहते। ‘नागराजन घमंडी हो गया है’, राजप्पा सारे लड़कों में कहता फिरता। पर लड़के भला कहाँ उसकी बातों पर ध्यान देते! नागराजन के मामा जी ने सिंगापुर से एक अलबम भिजवाया था। वह लड़कों को दिखाया करता। सुबह पहली घंटी के बजने तक सभी लड़के नागराजन को घेरकर अलबम देखा करते। आधी छुट्टी के वक्त भी उसके आसपास लड़कों का जमघट लगा रहता। कई लोग टोलियों में उसके घर तक हो आए। नागराजन शांतिपूर्वक सभी को अपना अलबम दिखाता, पर किसी को हाथ नहीं लगाने देता। अलबम को गोद में रख लेता और एक-एक पन्ना पलटता, लड़के बस देखकर खुश होते।

और तो और कक्षा की लड़कियाँ भी उस अलबम को देखने के लिए उत्सुक थीं। पार्वती लड़कियों की अगुवा बनी और अलबम माँगने आई। लड़‌कियों में वही तेज-तर्रार मानी जाती थी। नागराजन ने कवर चढ़ाकर अलबम उसे दिया। शाम तक लड़‌कियाँ अलबम देखती रहीं फिर उसे वापस कर दिया।

अब राजप्पा के अलबम को कोई पूछने वाला नहीं था। वाकई उसकी शान अब घट गई थी। राजप्पा के अलबम की, लड़कों में काफ़ी तारीफ़ रही थी। मधुमक्खी की तरह उसने एक-एक करके टिकट जमा किए थे। उसे तो बस एक यही धुन सवार थी। सुबह आठ बजे वह घर से निकल पड़ता। टिकट जमा करने वाले सारे लड़कों के चक्कर लगाता। दो ऑस्ट्रेलिया के टिकटों के बदले एक फिनलैंड का टिकट लेता। दो पाकिस्तान के बदले एक रूस का। बस शाम, जैसे ही घर लौटता, बस्ता कोने में पटककर अम्मा से चबेना लेकर निकर की जेब में भर लेता और खड़े खड़े कॉफ़ी पीकर निकल जाता। चार मील दूर अपने दोस्त के घर से कनाडा का टिकट लेने पगडंडियों में होकर भागता। स्कूल भर में उसका अलबम सबसे बड़ा था। सरपंच के लड़के ने उसके अलबम को पच्चीस रुपए में खरीदना चाहा था, पर राजप्पा नहीं माना। ‘घमंडी कहीं का’, राजप्पा बड़बड़ाया था। फिर उसने तीखा जवाब दिया था, “तुम्हारे घर में जो प्यारी बच्ची है न, उसे दे दो न तीस रुपए में।” सारे लड़के ठहाका मारकर हँस पड़े थे।

पर अब? कोई उसके अलबम की बात तक नहीं करता। और तो और अब सब उसके अलबम की तुलना नागराजन के अलबम से करने लगे हैं। सब कहते हैं राजप्पा का अलबम फिसड्डी है।

पर राजप्पा ने नागराजन के अलबम को देखने की इच्छा कभी नहीं प्रकट की। लेकिन जब दूसरे लड़के उसे देख रहे होते तो वह नीची आँखों से देख लेता। सचमुच नागराजन का अलबम बेहद प्यारा था। पर राजप्पा के पास जितने टिकट थे उतने नागराजन के अलबम में नहीं थे। पर खुद उसका अलबम ही कितना प्यारा था। उसे छू लेना ही कोई बड़ी बात थी। इस तरह का अलबम यहाँ थोड़ी मिलेगा। अलबम के पहले पृष्ठ पर मोती जैसे अक्षरों में उसके मामा ने लिख भेजा था- ए. एम. नागराजन

‘इस अलबम को चुराने वाला बेशर्म है। ऊपर लिखे नाम को कभी देखा है? यह अलबम मेरा है। जब तक घास हरी है उगे और पश्चिम में छिपे, उस अनंत और कमल लाल, सूरज जब तक पूर्व से काल तक के लिए यह अलबम मेरा है, रहेगा।’

लड़कों ने इसे अपने अलबम में उतार लिया। लड़कियों ने झट कापियों और किताबों में टीप लिया। 

“तुम लोग यह नकल क्यों करते हो? नकलची कहीं के”, राजप्पा ने लड़कों को घुड़की दी। सब चुप रहे पर कृष्णन से नहीं रहा गया।

“जा, जा। जलता है, ईर्ष्यालु कहीं का।”

“मैं काहे को जलूँ? जले तेरा खानदान। मेरा अलबम उसके अलबम से कहीं बड़ा है।” राजप्पा ने शान बघारी।

“अरे, उसके पास जो टिकटें हैं, वह हैं कहीं तेरे पास? सब क्यों? बस एक इंडोनेशिया का टिकट दिखा दो। अरे, पानी भरोगे, हाँ।” कृष्णन ने छेड़ा।

“पर मेरे पास जो टिकट है, वह कहाँ है उसके पास?” राजप्पा ने फिर ललकारा।

“उसके पास जो टिकट है वही दिखा दो।” कृष्णन भी कम नहीं था।

“ठीक है, दस रुपए की शर्त। मेरे वाले टिकट दिखा दो।”

“तुम्हारा अलबम कूड़ा है।” कृष्णन चीखा, “हाँ, हाँ कूड़ा।”

लड़के जैसे कोरस गाने लगे।

राजप्पा को लगा, अपने अलबम के बारे में बातें करना फ़ालतू है। उसने कितनी मेहनत और लगन से टिकट बटोरे हैं। सिंगापुर से आए इस एक पार्सल ने नागराजन को एक ही दिन में मशहूर कर दिया। पर दोनों में कितना अंतर है। ये लड़के क्या समझेंगे ! राजप्पा मन-ही-मन कुढ़ रहा था। स्कूल जाना अब खलने लगा था और लड़कों के सामने जाने में शर्म आने लगी। आमतौर पर शनिवार और रविवार को टिकट की खोज में लगा रहता, परंतु अब घर-घुसा हो गया था। दिन में कई बार अलबम को पलटता रहता। रात को लेट जाता। सहसा जाने क्या सोचकर उठता, ट्रंक खोलकर अलबम निकालता और एक बार पूरा देख जाता। उसे अलबम से चिढ़ होने लगी थी। उसे लगा, अलबम वाकई कूड़ा हो गया है।

उस दिन शाम उसने जैसे तय कर लिया था, वह नागराजन के घर गया। अब कोई कितना अपमान सहे! नागराजन के हाथ अचानक एक अलबम लगा है, बस यही ना। वह क्या जाने टिकट कैसे जमा किए जाते हैं! एक-एक टिकट की क्या कीमत होती है, वह भला क्या समझे ! सोचता होगा टिकट जितना बड़ा होगा, वह उतना ही कीमती होगा। या फिर सोचता होगा, बड़े देश का टिकट कीमती होगा। वह भला क्या समझे !

उसके पास जितने भी फ़ालतू टिकट हैं उन्हें टरका कर, उससे अच्छे टिकट झाड़ लेगा। कितनों को तो उसने यूँ ही उल्लू बनाया है। कितनी चालबाजी करनी पड़ती है। नागराजन भला किस खेत की मूली है?

राजप्पा नागराजन के घर पहुँचकर ऊपर गया। चूँकि वह अकसर आया-जाया करता था, सो किसी ने नहीं टोका। ऊपर पहुँचकर वह नागराजन की मेज के पास पड़ी कुरसी पर बैठ गया। कुछ देर बाद नागराजन की बहन कामाक्षी ऊपर आई।

“भैया शहर गया है। अरे हाँ, तुमने भैया का अलबम देखा?” उसने पूछा।

“हूँ”, राजप्पा को हाँ कहने में हेकड़ी हो रही थी।

“बहुत सुंदर अलबम है ना? सुना है स्कूल भर में किसी के भी पास इतना बड़ा अलबम नहीं है।”

“तुमसे किसने कहा?”

“भैया ने।”

वह कुढ़ गया।

“बड़े से क्या मतलब हुआ? आकार में बड़ा हुआ तो अलबम बड़ा हो गया?” उसकी चिड़चिड़ाहट साफ़ थी।

कामाक्षी कुछ देर तक वहीं रही। फिर नीचे चली गई। राजप्पा मेज पर बिखरी किताबों को टटोलने लगा। अचानक उसका हाथ दराज के ताले से टकरा गया। उसने ताले को खींचकर देखा। बंद था, क्यों न उसे खोलकर देख लिया जाए। मेज पर से उसने चाबी ढूँढ़ निकाली।

सीढ़ियों के पास जाकर उसने एक बार झाँककर देखा। फिर जल्दी में दराज खोली। अलबम ऊपर ही रखा हुआ था। पहला पृष्ठ खोला। उन वाक्यों को उसने दोबारा पढ़ा। उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा। अलबम को झट कमीज़ के नीचे खोंस लिया और दराज बंद कर दिया। सीढ़ियाँ उतरकर घर की ओर भागा।

घर जाकर सीधा पुस्तक की अलमारी के पास गया और पीछे की ओर अलबम छिपा दिया। उसने बाहर आकर झाँका। पूरा शरीर जैसे जलने लगा था। गला सूख रहा था और चेहरा तमतमाने लगा था।

रात आठ बजे अपू आया। हाथ-पाँव हिलाकर उसने पूरी बात कह सुनाई।

“सुना तुमने, नागराजन का अलबम खो गया। हम दोनों शहर गए हुए थे। लौटकर देखा तो अलबम गायब!”

राजप्पा चुप रहा। उसने अपू को किसी तरह टाला। उसके जाते ही उसने झट कमरे का दरवाजा भिड़ा लिया और अलमारी के पीछे से अलबम निकालकर देखा। उसे फिर छिपा दिया। डर था कहीं कोई देख न ले।

रात में खाना नहीं खाया। पेट जैसे भरा हुआ था। सारा घर चिंतित हो गया। उसका चेहरा भयानक हो गया था।

रात, उसने सोने की कोशिश की पर नींद नहीं आई। अलबम सिरहाने तकिए के नीचे रखकर सो गया।

सुबह अपू दोबारा आया। राजप्पा तब भी बिस्तर पर बैठा था। अपू सुबह नागराजन के घर होकर आया था। “कल तुम उसके घर गए थे?” अपू ने पूछा।

राजप्पा की साँस जैसे ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे रह गई। फिर सिर हिला दिया। वह जिस तरह चाहे सोच ले।

“कामाक्षी ने कहा था कि हमारे जाने के बाद खाली तुम वहाँ आए थे।” अपू बोला। राजप्पा को समझते देर नहीं लगी कि अब सब उस पर शक करने लगे हैं।

“कल रात से नागराजन लगातार रोए जा रहा है। उसके पापा शायद पुलिस को खबर दें।” अपू ने फिर कहा।

राजप्पा फिर भी चुप रहा।

“उसके पापा डी.एस.पी. के दफ़्तर में ही तो काम करते हैं। बस वह पलक झपक दें और पुलिस की फ़ौज हाजिर।” अपू जैसे आग में घी डाल रहा था।

यह तो भला हुआ कि अपू का भाई उसे ढूँढ़ता हुआ आ गया और अपू चलता बना। राजप्पा के पापा दफ़्तर चले गए थे। बाहर का किवाड़ बंद था। राजप्पा अभी तक बिस्तर पर बैठा हुआ था। आधा घंटा गुजर गया और वह उसी तरह बैठा रहा।

तभी बाहर की साँकल खटकी।

‘पुलिस’, राजप्पा बुदबुदाया।

भीतर साँकल लगी थी। दरवाजा खटकने की आवाज तेज हो गई। राजप्पा ने तकिए के नीचे से अलबम उठाया और ऊपर भागा। अलमारी के पीछे छिपा दे? नहीं। पुलिस ने अगर तलाशी ली तो पकड़ा जाएगा। अलबम को कमीज के नीचे छिपाकर वह नीचे आ गया। बाहर का दरवाजा अब भी बज रहा था।

“कौन है? अरे दरवाजा क्यों नहीं खोलता?” अम्मा भीतर से चिल्लाई। थोड़ी देर और हुई तो अम्मा खुद ही उठकर चली आएँगी।

राजप्पा पिछवाड़े की ओर भागा। जल्दी से बाथरूम में घुसकर दरवाजा बंद कर लिया। अम्मा ने अँगीठी पर गरम पानी की देगची चढ़ा रखी थी। उसने अलबम को अँगीठी में डाल दिया। अलबम जलने लगा। कितने प्यारे टिकट थे। राजप्पा की आँखों में आँसू आ गए। तभी अम्मा की आवाज आई, “जल्दी से आ तो नहाकर। नागराजन तुझे ढूँढ़ता हुआ आया है।” राजप्पा ने निकर उतार दी और गीला तौलिया लपेटकर बाहर आ गया। कपड़े बदलकर वह ऊपर गया। नागराजन कुरसी पर बैठा हुआ था। उसे देखते ही बोला, “मेरा अलबम खो गया है यार।” उसका चेहरा उतरा हुआ था। काफ़ी रोकर आया था शायद।

“कहाँ रखा था तुमने?” राजप्पा ने पूछा।

“शायद दराज में। शहर से लौटा तो गायब।”

नागराजन की आँखों में आँसू आ गए। राजप्पा से चेहरा बचाकर उसने आँखें पोंछ लीं।

“रो मत यार।” राजप्पा ने उसे पुचकारा। वह फफक-फफक कर रो दिया।

राजप्पा झट नीचे उतरकर गया। एक मिनट में वह ऊपर नागराजन के सामने था। उसके हाथ में उसका अपना अलबम था। “लो यह रहा मेरा अलबम। अब इसे तुम रख लो। ऐसे क्यों देख रहे हो। मजाक नहीं कर रहा। सच कहता हूँ, इसे अब तुम रख लो।”

“बहला रहे हो यार।” नागराजन को जैसे यकीन आया। नहीं

“नहीं यार। सचमुच तुमको दे रहा हूँ। रख लो।”

राजप्पा भला अपना अलबम उसे दे दे! कैसा चमत्कार है! नागराजन को अब भी यकीन नहीं आ रहा था। पर राजप्पा अपनी बात बार-बार दोहरा रहा था। उसका गला भर आया था।

“ठीक है, मैं इसे रख लेता हूँ। पर तुम क्या करोगे?”

“मुझे नहीं चाहिए।”

“क्यों, तुम्हें एक भी टिकट नहीं चाहिए?”

“नहीं।”

“पर तुम कैसे रहोगे बगैर किसी टिकट के?”

“रोता क्यों है यार!”

“ले, इस अलबम को तू ही रख ले। इतनी मेहनत की है तूने।” नागराजन बोला।

“नहीं, तुम रख लो। लेकर चले जाओ। जाओ, चले जाओ यहाँ से।” वह चीखा और फूट-फूटकर रो दिया। नागराजन की समझ में कुछ नहीं आया। वह अलबम लेकर नीचे उतर गया। कमीज से आँखें पोंछता हुआ राजप्पा भी नीचे उतर आया। दोनों साथ-साथ दरवाजे

तक आए।

“बहुत-बहुत धन्यवाद। मैं घर चलूँ?” नागराजन सीढ़ियाँ उतरने लगा।

“सुनो राजू”, राजप्पा ने पुकारा। नागराजन ने उसे पलटकर देखा। “अलबम दे दो। मैं

आज रात जी भरकर इसे देखना चाहता हूँ। कल सुबह तुम्हें दे जाऊँगा।” “ठीक है।” नागराजन ने उसे अलबम लौटा दी और चला गया।

राजप्पा ऊपर आया। उसने दरवाजा बंद कर लिया और अलबम को छाती से लगाकर फूट-फूटकर रो दिया।

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प्रश्न-अभ्यास

कहानी

1. नागराजन ने अलबम के मुख्य पृष्ठ पर क्या लिखा और क्यों? इसका असर कक्षा के दूसरे लड़के-लड़कियों पर क्या हुआ?
Ans.
नागराजन के अलबम के मुख्य पृष्ठ पर लिखा था- ए. एम. नागराजन और नीचे की पंक्तियों में लिखा था-इस अलबम को चुराने वाला बेशर्म है। ऊपर लिखे नाम को कभी देखा है? यह अलबम मेरा है। जब तक घास हरी है और कमल लाल, सूरज जब तक पूर्व से उगे और पश्चिम में छिपे, उस अनंत काल तक के लिए यह अलबम मेरा है, रहेगा।’ ऐसा इसलिए लिखा था ताकि उसे कोई चुराने की कोशिश न करे। यह अलबम हमेशा-हमेशा के लिए नागराजन के पास रहे। कक्षा के दूसरे लड़के-लड़कियों पर इसका यह असर हुआ कि उन्होंने इसे अपने अलबम और कॉपी में उतार लिया।

2. नागराजन के अलबम के हिट हो जाने के बाद राजप्पा के मन की क्या दशा हुई?
Ans.
नागराजन का अलबम हिट हो जाने के बाद राजप्पा मन ही मन कुढ़ने लगा और अपने फालतू टिकटों के बदले नागराजन से कुछ अच्छे टिकट लेने की सोचने लगा ताकि उसका अलबम और अच्छा हो जाए, लेकिन उसने मौका देखकर नागराजन का अलबम चोरी कर लिया।

3. अलबम चुराते समय राजप्पा किस मानसिक स्थिति से गुजर रहा था?
Ans.
अलबम चुराते समय राजप्पा का दिल बहुत तेज़ी से धड़क रहा था। वह बहुत घबरा रहा था कहीं कोई देख न ले। घर जाकर भी उसको ऐसा लग रहा था जैसे उसका सारा शरीर जल रहा हो। उसने रात में खाना भी नहीं खाया। उसका चेहरा भयानक हो गया था। घर के लोग उसे देखकर चिंतित हो गए थे। रात में उसे ठीक से नींद भी नहीं आई। अलबम को तकिए के नीचे रखकर ही वह सो गया।

4. राजप्पा ने नागराजन का टिकट अलबम अँगीठी में क्यों डाल दिया?
Ans.
राजप्पा ने सोचा कि नागराजन के पिता पुलिस में शिकायत करेंगे और पुलिस आकर उसे पकड़ लेगी। ‘अप्पू ने राजप्पा को बहुत डरा दिया था। जब राजप्पा की माँ ने किवाड़ खटखटाया तो राजप्पा ने समझा कि पुलिस आ गई है। उसने हड़बड़ाहट में वह अलबम अंगीठी में डाल दिया जिससे पुलिस को अलबम का पता न चले।

5. लेखक ने राजप्पा के टिकट इकट्ठा करने की तुलना मधुमक्खी से क्यों की?
Ans.
जिस प्रकार मधुमक्खी सारा दिन दूर-दूर घूम-घूमकर फूलों से मकरंद चूसती है और शहद की एक-एक बूंद इकट्ठा करती है, उसी प्रकार राजप्पा भी सारा दिन मेहनत करके दूर-दूर से, एक-एक टिकट इकट्ठा करके लाता था। इस प्रकार राजप्पा का टिकटों का संग्रह मधुमक्खी द्वारा विभिन्न फूलों से रस लेने के समान था। इसी समानता के कारण लेखक ने उसकी तुलना मधुमक्खी से की है।

कहानी से आगे

1. टिकटों की तरह ही बच्चे और बड़े दूसरी चीजें भी जमा करते हैं। सिक्के उनमें से एक हैं। तुम कुछ अन्य चीजों के बारे में सोचो जिन्हें जमा किया जा सकता है। उनके नाम लिखो।
Ans.
टिकटों और सिक्कों के अतिरिक्त पेंटिग्स, बैग, जूते, या कुछ अनमोल कलाकृतियाँ जमा की जा सकती हैं।

2. टिकट-अलबम का शौक रखने के राजप्पा और नागराजन के तरीके में क्या फ़र्क है? तुम अपने शौक के लिए कौन सा तरीका अपनाओगे?
Ans.
 राजप्पा ने टिकट एकत्र करने में जी-जान लगा दिया था। उसे टिकट इकट्ठा करने की धुन थी। बड़ी मेहनत से उसने अपना अलबम तैयार किया था। परंतु नागराजन को बैठे बिठाए सुंदर-सा अलबम मिल गया। उसके मामाजी ने सिंगापुर से उसके लिए टिकट अलबम भेज दिया था। उसे टिकट जुटाने में कोई परेशानी नहीं हुई। यदि मुझे टिकट अलबम बनाना हो, तो मैं राजप्पा का तरीका अपनाऊँगा क्योंकि अपनी मेहनत से कुछ बनाने और बिना मेहनत के पा लेने में फर्क होता है।

3. इकट्ठा किए हुए टिकटों का अलग-अलग तरह से वर्गीकरण किया जा सकता है, जैसे-देश के आधार पर। ऐसे और आधार सोचकर लिखो।
Ans.
टिकटों का वर्गीकरण निम्न आधार पर किया जा सकता है-पशु-पक्षियों के आधार पर, महापुरुषों के आधार पर, सामाजिक समस्याओं के आधार पर, ऐतिहासिक घटनाक्रम के आधार पर, स्वतंत्रता संग्राम के आधार पर, इत्यादि।

4. कई लोग चीजें इकट्ठी करते हैं और ‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में अपना नाम दर्ज करवाते हैं। इसके पीछे उनकी क्या प्रेरणा होती होगी? सोचो और अपने दोस्तों से इस पर बातचीत करो।
Ans.
चीजें इकट्ठा करने का शौक जब चरम सीमा तक पहुँच जाता है और वह दुनिया के बाकी लोगों को पीछे छोड़ देता है, तब नाम गिनीज बुक में दर्ज होता है। अकसर प्रसिद्ध पाने की लालसा में लोग इस तरह के काम करते हैं।

अनुमान और कल्पना

Q1. राजप्पा अलबम के जलाए जाने की बात नागराजन को क्यों नहीं कह पाता है? अगर वह कह देता तो क्या कहानी के अंत पर कुछ फ़र्क पड़ता? कैसे?
Ans.
अगर राजप्पा अलबम जलाए जाने की बात नागराजन को कहती, तो नागराजन उसे ईष्यालु और चोर समझती और दोनों में शत्रुता हो जाती। नागराजने उससे लड़ सकता था। उसे माता-पिता से डाँट भी सुननी पड़ती। हो सकता है, नागराजन स्कूल में भी सबको बता देता और राजप्पी को शरमिंदगी झेलनी पड़ती।

Q2. कक्षा के बाकी विद्यार्थी स्वयं अलबम क्यों नहीं बनाते थे? वे राजप्पा और नागराजन के अलबम के दर्शक मात्र क्यों रह जाते हैं? अपने शिक्षक को बताओ।

Ans. कक्षा में बस एक राजप्पा ही था, जिसे टिकट इकट्ठा करने की धुन थी। वह एक-एक टिकट इकट्ठा करने के लिए मित्रों के घर के कई चक्कर लगाती थी लेकिन बाकी छात्र इतना परिश्रम नहीं करना चाहते थे। इसको बनाने में काफ़ी परिश्रम, समय और रुपए खर्च भी करना पड़ता था। बाकी छात्र दूसरों के अलबम को देखकर खुश हो जाते थे। कक्षा में राजप्पा ही ऐसा छात्र था जो बड़े मेहनत के साथ टिकटें जमा करता था। सभी विद्यार्थियों को नया काम करने का शौक नहीं होता। वे अधिक परिश्रम नहीं करना चाहते। वे दूसरों की वस्तुओं को देखकर ही खुश हो जाते हैं।

FAQs

प्रश्न 1. आजकल लड़के किसे घेरे रहते थे और क्यों?
उत्तर-
आजकल नागराजन को घेरे रहते थे क्योंकि उसके पास बढिया अलबम था।

प्रश्न 2. अब किसके अलबम की पूछ नहीं रह गई थी?
उत्तर-
अब राजप्पा के अलबम की पूछ लड़कों में नहीं रह गई थी।

प्रश्न 3. लड़‌कियों ने नागराजन से अलबम किसे माँगने भेजा और क्यों?
उत्तर-
लड़कियों ने नागराजन से अलबम माँगने के लिए पार्वती को अपना अगुआ बनाकर भेजा क्योंकि वही सबसे तेज़-तर्रार थी।

प्रश्न 4. राजप्पा ने सरपंच के लड़के से क्या कहा?
उत्तर-
राजप्पा ने सरपंच के लड़के से कहा-तुम्हारे घर में जो प्यारी बच्ची है उसे तीस रुपए में दोगे।

प्रश्न 5. राजप्पा ने अलबम क्यों छिपा दिया?
उत्तर-
राजप्पा ने नागराजन की अलबम चुराई थी, इसलिए वह नहीं चाहता था कि किसी को इसके बारे में कुछ पता चले।

प्रश्न 6. राजप्पा को अब कोई क्यों नहीं पूछता था?

उत्तर- राजप्पा के पास अलबम था। उस अलबम के कारण उसे लड़के घेरे रहते थे, पर अब नागराजन के मामा ने उसे सिंगापुर से एक अलबम भेजा था। उस अलबम के कारण नागराजन को सभी घेरे रहते और राजप्पा को कोई नहीं पूछता था।

प्रश्न 7. नागराजन अपना अलबम सबको कब-कब और कैसे दिखाता था।
उत्तर –
नागराजन सुबह की पहली घंटी बजने तक, दोपहर की आधी छुट्टी के समय और शाम को अपने घर पर सबको अलबम दिखाता था। वह अपना अलबम किसी को हाथ नहीं लगाने देता था। उसे अपने गोद में लेकर बैठ जाता, लड़के उसे शांतिपूर्वक घेरकर खड़े रहते और उसका अलबम देखकर खुश होते थे।

प्रश्न 8. राजप्पा के अलबम को किसने, कितने में खरीदना चाहा था? राजप्पा ने क्या उत्तर दिया ?
उत्तर –
स्कूल भर में राजप्पा का अलबम सबसे बड़ा और सुंदर था। सरपंच के लड़के ने उसके अलबम को खरीदना चाहा था। पर राजप्पा नहीं माना। राजप्पा ने उसे घमंडी कहा और फिर उसने उससे कहा, क्या तुम अपने घर की प्यारी बच्ची को तीस रुपए में बेच सकते हो? इस बात को सुनकर सारे बच्चे ठहाका मारकर हँस पड़े।

प्रश्न 9. अलबम चुराते समय राजप्पा किस मानसिक स्थिति से गुज़र रहा था?
उत्तर-
अलबम चुराते समय राजप्पा का दिल तेज़ी से धड़क रहा था। उस समय उसके दिमाग में बस अलबम चुराने की बात थी। इसलिए अलबम चुराकर तुरंत चला गया।

प्रश्न 10 . राजप्पा को अपने अलबम से चिढ़ क्यों हो गई थी?
उत्तर-
राजप्पा को अपना अलबम कूड़ा प्रतीत होने लगा था। अब उसके अलबम को कोई नहीं पूछता सब नागराजन के अलबम की तारीफ़ करते थे। राजप्पा के अलबम की शान घट गई। लड़के उसके अलबम को फिसड्डी और कूड़ा कहने लगे थे। उसके अलबम को कोई पसंद नहीं करता था। यही कारण है कि राजप्पा को अपने अलबम से चिढ़ होने लगी। वह उसे सचमुच कूड़ा लगने लगा।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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