ज्वार-भाटा एवं प्रवाल भित्तियां

ज्वार-भाटा किसे कहते हैं?

• सूर्य तथा चन्द्रमा की आकर्षण शक्तियों के कारण सागरीय जल के ऊपर उठने तथा गिरने को ज्वार-भाटा कहते हैं। अर्थात् सागरीय जल के ऊपर उठकर स्थल की ओर आगे बढ़ने को ज्वार (Tide) तथा सागरीय जल को नीचे गिरकर सागर की ओर पीछे लौटने को भाटा (Ebb) कहते हैं। इससे उत्पन्न तरंगों को ज्वारीय तरंग कहते हैं।

• उच्च या दीर्घ ज्वार तभी आते हैं जब सूर्य, चन्द्रमा तथा पृथ्वी एक सीधी रेखा में होते हैं। ऐसी स्थिति अमावस्या (New Moon) अथवा पूर्णिमा (Full Moon) के समय ही आती है।

• जब सूर्य तथा चन्द्रमा पृथ्वी से समकोणीय स्थिति (Quadrature) में होते हैं तब निम्न या लघु ज्वार आते हैं। यह स्थिति शुक्ल तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी को होती है।

• पृथ्वी से चन्द्रमा की अधिकतम दूरी पर होने से उत्पन्न ज्वार को अपभू ज्वार (Apogean Tide) कहते हैं।

• पृथ्वी से चन्द्रमा की निकटतम दूरी के कारण उत्पन्न ज्वार को उपभू ज्वार (Perigean Tide) कहते हैं।

• पृथ्वी पर प्रत्येक स्थान पर प्रतिदिन 12 घंटे 26 मिनट बाद ज्वार तथा ज्वार के 6 घंटा 13 मिनट बाद भाटा आता है।

• एक ज्वार केन्द्र को चन्द्रमा के सामने आने में 24 घंटे 52 मिनट का समय लगता है।

• 24 घंटे में प्रत्येक स्थान पर दो बार ज्वार तथा दो बार भाटा आता है।

• पृथ्वी पर एक ही समय में दो बार ज्वार उत्पन्न होते हैं, एक तो चन्द्रमा के सामने तथा दूसरा ठीक उसके पीछे के भाग में।

• चन्द्रमा का ज्वार उत्पादक बल सूर्य के बल से दोगुना है।

• चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण और पृथ्वी तथा चन्द्रमा के केन्द्रप्रसारी बल द्वारा ज्वार उत्पन्न होता है।

• जब सूर्य तथा चन्द्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं, तो दोनों की आकर्षण शक्ति एक साथ मिलकर कार्य करती है परिणामत: उच्च दीर्घ ज्वार आता है। यह स्थिति पूर्णिमा तथा अमावस्या को होती है।

• जब सूर्य, पृथ्वी तथा चन्द्रमा मिलकर समकोण बनाते हैं तो सूर्य तथा चन्द्रमा के आकर्षण बल एक दूसरे के विपरीत कार्य करते हैं, परिणामतः निम्न लघु ज्वार आता है। यह स्थिति प्रत्येक महीने में कृष्ण पक्ष एवं शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होती है।

प्रवाल भित्तियां

• प्रवाल भित्तियों का निर्माण मूँगा (संघ सिलेण्ट्रेटा) जीवों के अस्थि पंजरों के समेकन एवं संयोजन द्वारा होता है। कुछ उष्ण कटिबन्धीय सागरों के उथले सागर तटों के सहारे प्रवाल पोलिप (Polyp) द्वारा निर्मित भित्ति को प्रवाल भित्ति कहा जाता है। इसके निर्माण में अनेक जीवों का योगदान होता है। जैसे कैल्शियमी शैवाल, हरा शैवाल, स्ट्रोमाटापोराटूडस, गैस्ट्रोपोड्स आदि।

• प्रवाल के विकास के लिए 20°-25°C तापक्रम 200 मी. की गहराई, स्वच्छ जल, औसत सागरीय लवणता (35%) होना चाहिए।

रचना के आधार पर प्रवाल भित्तियाँ तीन प्रकार की होती हैं-

1. तटीय प्रवाल भित्ति (Fringing Reef) : महाद्वीपीय किनारे या द्वीप के किनारे निर्मित होने वाली प्रवाल भित्ति को तटीय प्रवाल भित्ति कहते हैं। ये भित्तियां मकाऊ द्वीप, दक्षिणी फ्लोरिडा, मलेशिया तथा भारत के मन्नार की खाड़ी एवं अण्डमान में पायी जाती है।

2. अवरोधक प्रवाल भित्ति (Barrier Reef) : सागरीय तट से कुछ दूर, किन्तु उसके समानान्तर स्थित वृहदाकार प्रवाल भित्ति को अवरोधक प्रवाल भित्ति कहा जाता है। इसकी लम्बाई 1900 किमी. एवं चौड़ाई 160 किमी. है। विश्व की सबसे बड़ी प्रवाल भित्ति ऑस्ट्रेलिया के उत्तर पूर्वी तट पर स्थित ग्रेट बैरियर रीफ है, जो अवरोधक प्रवाल भित्ति का उदाहरण है। इसकी लम्बाई 1900 किमी. एवं चौड़ाई
160 किमी. है।

3. वलयाकार प्रवाल भित्ति (Atoll) : यह द्वीपीय जलमग्न पठार के चारों ओर अण्डाकार रूप में पायी जाती है। घोड़े की नाल या मुद्रिका के आकार वाली प्रवाल भित्ति को एटॉल कहा जाता है। जैसे-फुराफुटी एटॉल।

• प्रवाल विरंजन (Coral Bleaching) : जब सागरीय तापमान में वृद्धि हो जाती है तो प्रवाल शैवालों को अपने शरीर से निकाल देते हैं, जिसके कारण प्रवालों को आहार नहीं मिल पाता है और वे मर जाते हैं। शैवाल के निकल जाने से प्रवाल श्वेत रंग के हो जाते हैं। इसे प्रवाल विरंजन कहते हैं। प्रवाल विरंजन हिन्द महासागर में अधिक पाये जाते हैं।

महासागरीय निक्षेप

• वे समस्त अवसाद जो महासागरीय नितल पर अनन्त समय से जमा होते चले जा रहे हैं, महासागरीय निक्षेप कहलाते हैं।

• सागरों में ये निक्षेप कई साधनों से प्राप्त होते हैं, कुछ निक्षेप स्थल से नदियों, लहरों तथा हवा द्वारा अवसाद रूप में प्राप्त होते हैं, कुछ निक्षेप समुद्री पौधों और जीवों के अवशेषों के रूप में होते हैं।

• महासागरीय निक्षेप अगाध रूप से नितलों पर विभिन्न पर्तों के रूप में जमे होते हैं जिन्हें निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया जा सकता है-

(i) भूमिज या स्थलीय निक्षेप (Terrigenous Deposits)
(ii) गम्भीर सागरीय निक्षेप (Pelagic Deposits)

भूमिज या स्थलीय निक्षेप

• स्थल से विभिन्न साधनों द्वारा बहुत से पदार्थ असंगठित रूप से महाद्वीपीय मग्नतट तथा मग्नढालों पर जमा होते हैं, अवसाद के साथ-साथ ज्वालामुखी पदार्थ तथा समुद्रीय जीव-जन्तु तथा पौधों के अवशेष भी विद्यमान रहते हैं।

• इन पदार्थों के आकार में पर्याप्त भिन्नता होती है, अतः सागरों में इनके निक्षेपण में श्रेणीकरण पाया जाता है।

• कणों का आकार उनकी बनावट तथा रासायनिक संगठन के आधार पर भूमिज पदार्थों को तीन भागों में विभक्त किया जाता है।

(i) बजरी, (ii) रेत, (iii) सिल्ट, मृत्तिका या कीचड़।

• इन निक्षेपों में अधिकांश कण कठोर स्फटिक होते हैं, जो रासायनिक परिवर्तन से कम प्रभावित होते हैं, परन्तु मुलायम कण पंक के निर्माण में सहायक होते हैं। समुद्रों में पाया जाने वाला पंक निक्षेप रंग के आधार पर तीन भागों में बाँटा गया है।

गम्भीर सागरीय निक्षेप

• ये निक्षेप सामान्यतः अगाध सागरीय तल और महासागरीय गर्त में मिलते हैं। इस प्रकार के निक्षेपों में सागरीय जीव-जन्तु तथा सागरीय वनस्पतियों की अधिकता होती है।

• अन्य पदार्थों में ज्वालामुखी राख तथा एल्युमिनियम के सिलीकेट तथा मैंगनीज कण पाए जाते हैं। ये निक्षेप पंक (Ooze) कहलाते हैं। यह हल्के भूरे रंग का होता है।

• जीवों में कुछ घुलनशील तत्वों से तथा कुछ अघुलनशील तत्वों से बने होते हैं। इनको चूना प्रधान और सिलिका प्रधान दो भागों में विभक्त किया जाता है।

• फिलिप लेक ने गम्भीर सागरीय निक्षेपों को दिए गए चार्ट के अनुसार विभाजित किया है।

महासागरीय एवं महाद्वीपीय खनिज संसाधन

पृथ्वी के गर्भ (आन्तरिक भाग) से निकाले जाने वाले पदार्थ खनिज पदार्थ (Minerals) कहलाते हैं। खनिज पदार्थ प्राकृतिक रूप से निकलने वाला वह पदार्थ है जिसकी अपनी भौतिक विशेषताएँ होती हैं और जिसकी बनावट को रासायनिक गुणों द्वारा व्यक्त किया जा सकता है। पृथ्वी के गर्भ से इन खनिज पदार्थों को निकाले जाने की प्रक्रिया को खनन या उत्खनन (Minning or Quarrying) कहते हैं, कम गहराई पर जो खानें होती हैं, उन्हें खुली खदान (Open pit mine) कहते हैं और अधिक गहराई पर खोदी जाने वाली खानों को कूप खदान (Shaft Mine) कहते हैं।

• खनिज पदार्थों को तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है-

1. धात्विक खनिज (Metallic Minerals)- जैसे-लौह, ताँबा, टिन, जस्ता, सीसा, चाँदी, सोना आदि।

धात्विक खनिजों को दो भागों में बाँट सकते हैं-

(i) लौह धात्विक खनिज (Ferrous Me- tallic Mineral)- जैसे-लौह, मैंगनीज, कोबाल्ट आदि।

(ii) अलौह धात्विक खनिज (Non Fer- rous Metallic Mineral)- जैसे-ताँबा, सीसा, जस्ता, सोना, चाँदी आदि।

2. अधात्विक खनिज (Non-Metallic Min- erals)- जैसे-गन्धक, जिप्सम, एस्बेस्टस आदि।

3. खनिज ईंधन (Mineral Fuel)- जैसे-कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस एवं अणु आदि। इसके अलावा नमक, प्लैंकटन (खाद्य पौधे), मछलियाँ, सीप (मोलस्क) एवं कई प्रकार के जीव-जंतु तथा पौधे प्राप्त होते हैं।

जीवमंडल

• यह वह भाग है जहाँ सूक्ष्म जीवों तथा बैक्टीरिया से लेकर बड़े स्तनधारियों के आकर तक के जीव पाये जाते है। मनुष्य से लेकर सभी प्राणी जीवित रहने के लिए एक-दूसरे से तथा जीवमंडल से जुड़े हैं।

• जीवमंडल के प्राणियों को मुख्यतः दो भागों जंतु जगत तथा पादप जगत में विभाजित किया गया है।

• पृथ्वी के तीनों परिमण्डल स्थल, जल और वायु आपस में पारस्परिक क्रिया करते हैं तथा एक दूसरे को किसी न किसी रूप में प्रभावित भी करते हैं। उदाहरण के तौर पर लकड़ी तथा खेती के लिए वनों को काटा जाये तो इससे ढलुआ भाग पर मिट्टी का कटाव तेजी से होगा। इसी प्रकार प्राकृतिक आपदाएँ जैसे भूकंप, भूखस्लन, हिमस्खलन आदि से पृथ्वी की सतह मे परिवर्तन आ जाता है। झीलों और नदियों में दूषित पदार्थो के प्रवाहित होने से उनका जल मानव के इस्तेमाल के लायक नहीं रह जाता है। यह दूषित दूसरे जीवों को भी नुकसान पहुँचाता है। कार्बन डाइऑक्साइड वायु का एक महत्वपूर्ण घटक है। लेकिन कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा में वृद्धि के कारण पृथ्वी के तापमान में वृद्धि हो रही है। इसे भूमंडलीय तापन कहा जाता है।

विश्व के वन

विश्व में वन निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

• उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन- यह वन विषुवत्रेखीय प्रदेश और उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में पाये जाते हैं। यहाँ पर 200 सेमी से अधिक वर्षा होती है। यहाँ पेड़ों की पत्तियाँ चौड़ी होती हैं। प्रमुख स्थलों में अमेजन एवं जायरे बेसिन, पश्चिम अफ्रीका के तटीय प्रदेश, मलेशिया, तटीय म्यांमार, कंबोडिया, वियतनाम, इण्डोनेशिया एवं न्यू गुयाना शामिल हैं। इस वन में महोगनी, आबनूस, शीशम एवं तटीय क्षेत्रों में मैंग्रोव अनूप वृक्ष पाये जाते हैं। मैंग्रोव वन चक्रवातों और अन्य प्राकृतिक आपदाओं जैसे-ज्वारीय तरंगों और उष्ण कटिबंधीय झंझावातों के विरुद्ध अवरोधों के रूप में कार्य करते हैं। भारत का सुन्दरवन मैंग्रोव वनों का उदाहरण है जो चक्रवात को रोकता है।

• उष्ण कटिबंधीय मानसून वन-ऐसे वन म्यांमार, थाईलैण्ड, कंबोडिया, लाओस, वियतनाम, भारत के कुछ भागों, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया एवं पूर्वी जावा में पाये जाते हैं। इस वन में टीक, बांस, साल, चंदन, कठलता, बबूल एवं यूकेलिप्टस आदि पाये जाते हैं। अधिकांश वृक्ष पर्णपाती होते हैं।

• शीतोष्ण सदाबहार वन-ऐसे वन क्षेत्रों में साल भर वर्षा होती है एवं शीतकाल में तापमान प्रायः 10°C से अधिक होता है। वृक्षों की पत्तियां चौड़ी होती हैं एवं कुछ वृक्ष पर्णपाती होते हैं। ये वन दक्षिणी चीन, दक्षिणी जापान, दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया, अफ्रीका में नटाल तट, दक्षिण ब्राजील एवं दक्षिणी-पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका में पाये जाते हैं। इस वन में बांज, कपूर, बांस, यूकेलिप्टस, चीड़, क्यूब्रेको, अखरोट, हिकोरी, ब्लैकवुड, आयरन वुड, वॉटल आदि पाये जाते हैं।

• भूमध्य सागरीय वन-भूमध्य सागर के निम्नभूमि क्षेत्रों, दक्षिण-पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण- पश्चिम अफ्रीका, मध्य चिली एवं कैलिफोर्निया में ऐसे वन पाये जाते हैं। इस वन में बांज, यूकेलिप्टस, देवदार, साइप्रस, मैक्विस (फ्रांस), चैपरेल (कैलिफोर्निया) आदि पाये जाते हैं।

• शीत शीतोष्ण वन-ये वन क्षेत्र पश्चिमी यूरोप, पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, उत्तरी चीन, उत्तरी जापान, कोरिया, दक्षिणी चिली आदि में पाये जाते हैं। इस वन में बांज, अखरोट, पॉपलर, हिकोरी, बीच, बादाम, चिराबेल, मैपिल तथा देवदार, स्प्रूस आदि पाये जाते हैं।

• टैगा (पर्णपाती) वन-ये वन क्षेत्र यूरेशियाई क्षेत्र, उत्तरी अमेरिका में पश्चिम तट से पूर्वी तट का क्षेत्र तथा मध्य अक्षांशीय घास स्थलों एवं ध्रुवीय टुंड्रा प्रदेशों के मध्य स्थित हैं। इस वन में स्प्रूस, चीड़, विषगर्जर, साइप्रस, देवदार आदि पाये जाते हैं।

विश्व की प्रमुख वनस्पति

हाइग्रोफाइटदलदली एवं भूमध्य रेखीय (विषुवतीय) उष्ण आर्द्रता वाली वनस्पति
हाइड्रोफाइटजल प्लावित क्षेत्रों की वनस्पति
हैलोफाइटनमकीन क्षेत्र में पायी जाने वाली वनस्पति
ट्रोपोफाइटउष्ण कटिबन्धीय जलवायु वाली घास एवं वनस्पति
लिथोफाइटकड़ी चट्टानों में उगने वाली वनस्पति
मेसोफाइटशीतोष्ण कटिबन्ध क्षेत्र की वनस्पति
क्रायोफाइटटुण्ड्रा एवं शीत प्रधान क्षेत्रों की वनस्पति
जेरोफाइटउष्ण कटिबन्धीय मरुस्थलीय क्षेत्रों की वनस्पति

घास के मैदान

मैदानक्षेत्र
प्रेयरीउत्तरी अमेरिका
स्टेपीयूरेशिया
पार्कलैंडदक्षिण अफ्रीका
वेल्ड्सदक्षिण अफ्रीका
पम्पासअर्जेंटीना
कैम्पॉसब्राजील
सवानाअफ्रीका
लानोसगुयाना
डाउन्सऑस्ट्रेलिया

यह भी पढ़ें: महासागर एवं महासागरीय तापमान

निष्कर्ष

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट ज्वार-भाटा एवं प्रवाल भित्तियां जरुर अच्छी लगी होगी। ज्वार-भाटा एवं प्रवाल भित्तियां के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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