समास किसे कहते हैं ?
समास शब्द दो शब्दों ‘सम्’ (संक्षिप्त) एवं ‘आस’ (कथन/ शब्द) के मेल से बना है जिसका अर्थ है-संक्षिप्त कथन या शब्द । समास प्रक्रिया में शब्दों का संक्षिप्तीकरण किया जाता है।
◉ दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिल कर बने हुए नए सार्थक शब्द को समास कहते हैं।
◉समस्त-पद / सामासिक पद : समास के नियमों से बना शब्द समस्त पद या सामासिक शब्द कहलाता है।
◉ समास-विग्रह: समस्त पद के सभी पदों को अलग-अलग किए जाने की प्रक्रिया समास-विग्रह या व्यास कहलाती है; जैसे- ‘नील कमल’ का विग्रह ‘नीला है जो कमल’ तथा ‘चौराहा’ का विग्रह है- चार राहों का समूह ।
◉ समास रचना में प्रायः दो पद होते हैं। पहले को पूर्वपद और दूसरे को उत्तरपद कहते हैं; जैसे- ‘राजपुत्र’ में पूर्वपद ‘राज’ है और उत्तरपद ‘पुत्र’ है। समास प्रक्रिया में पदों के बीच की विभक्तियाँ लुप्त हो जाती हैं, जैसे-राजा का पुत्र = राजपुत्र । यहाँ ‘का’ विभक्ति लुप्त हो गई है। इसके अलावा कई शब्दों में कुछ विकार भी आ जाता है; जैसे- काठ की पुतली = कठपुतली (काठ के ‘का’ का ‘क’ बन जाना); घोड़े का सवार = घुड़सवार (घोड़े के ‘घो’ का ‘घु’ बन जाना) ।
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समास के भेद (Types of Compound)
समास के छह मुख्य भेद हैं–
1. अव्ययीभाव समास (Adverbial Compound)
2. तत्पुरुष समास (Determinative Compound)
3. कर्मधारय समास (Appositional Compound)
4. द्विगु समास (Numeral Compound)
5. द्वंद्व समास (Copulative Compound)
6. बहुव्रीहि समास (Attributive Compound)
पदों की प्रधानता के आधार पर वर्गीकरण-
पूर्वपद प्रधान – अव्ययीभाव
उत्तरपद प्रधान – तत्पुरुष, कर्मधारय व द्विगु
दोनों पद प्रधान – द्वंद्व
दोनों पद अप्रधान – बहुव्रीहि (इसमें कोई तीसरा अर्थ प्रधान होता है)
1. अव्ययीभाव समास: जिस समास का पहला पद (पूर्वपद) अव्यय तथा प्रधान हो, उसे अव्ययीभाव समास कहते हैं; जैसे- पहचान : पहला पद अनु, आ, प्रति, भर, यथा, यावत, हर आदि होता है ।
पूर्वपद-अव्यय | + | उत्तरपद | = | समस्त-पद | विग्रह |
प्रति | + | दिन | = | प्रतिदिन | प्रत्येक दिन |
आ | + | जन्म | = | आजन्म | जन्म से लेकर |
यथा | + | संभव | = | यथासंभव | जैसा संभव हो |
अनु | + | रूप | = | अनुरूप | रूप के योग्य |
भर | + | पेट | = | भरपेट | पेट भर के |
प्रति | + | कूल | = | प्रतिकूल | इच्छा के विरुद्ध |
हाथ | + | हाथ | = | हाथों-हाथ | हाथ ही हाथ में |
2. तत्पुरुष समास : जिस समास में बाद का अथवा उत्तरपद प्रधान होता है तथा दोनों पदों के बीच का कारक चिह्न लुप्त हो जाता है, उसे तत्पुरुष समास कहते हैं; जैसे-
राजा का कुमार = राजकुमार,
धर्म का ग्रंथ = धर्मग्रंथ
रचना को करने वाला = रचनाकार
तत्पुरुष समास के भेद : विभक्तियों के नामों के अनुसार छह भेद हैं-
(i) कर्म तत्पुरुष (द्वितीया तत्पुरुष): इसमें कर्म कारक की विभक्ति ‘को’ का लोप हो जाता है; जैसे-
विग्रह | समस्त-पद |
गगन को चूमने वाला | गगनचुंबी |
यश को प्राप्त | यशप्राप्त |
चिड़ियों को मारने वाला | चिड़ीमार |
ग्राम को गया हुआ | ग्रामगत |
रथ को चलाने वाला | रथचालक |
(ii) करण तत्पुरुष (तृतीया तत्पुरुष) : इसमें करण कारक की विभक्ति ‘से’, ‘के द्वारा’ का लोप हो जाता है; जैसे-
विग्रह | समस्त-पद |
करुणा से पूर्ण | करुणापूर्ण |
भय से आकुल | भयाकुल |
रेखा से अंकित | रेखांकित |
शोक से ग्रस्त | शोकग्रस्त |
मद से अंधा | मदांध |
मन से चाहा | मनचाहा |
पददलित | पद से दलित |
सूर द्वारा रचित | सूररचित |
(iii) संप्रदान तत्पुरुष (चतुर्थी तत्पुरुष) : इसमें संप्रदान कारक की विभक्ति ‘के लिए’ लुप्त हो जाती है; जैसे-
विग्रह | समस्त-पद |
प्रयोग के लिए शाला | प्रयोगशाला |
स्नान के लिए घर | स्नानघर |
यज्ञ के लिए शाला | यज्ञशाला |
गौ के लिए शाला | गौशाला |
देश के लिए भक्ति | देशभक्ति |
डाक के लिए गाड़ी | डाकगाड़ी |
परीक्षा के लिए भवन | परीक्षा भवन |
हाथ के लिए कड़ी | हथकड़ी |
(iv) अपादान तत्पुरुष (पंचमी तत्पुरुष) : इसमें अपादान कारक की विभक्ति ‘से’ (अलग होने का भाव) लुप्त हो जाती है; जैसे-
विग्रह | समस्त-पद |
ऋण से मुक्त | ऋणमुक्त |
गुण से हीन | गुणहीन |
पाप से मुक्त | पापमुक्त |
जल से हीन | जलहीन |
धन से हीन | धनहीन |
पथ से भ्रष्ट | पथभ्रष्ट |
पद से च्युत | पदच्युत |
देश से निकाला | देशनिकाला |
(v) संबंध तत्पुरुष (षष्ठी तत्पुरुष): इसमें संबंधकारक की विभक्ति ‘का’, ‘के’, ‘की’ लुप्त हो जाती है; जैसे-
विग्रह | समस्त-पद |
राजा का पुत्र | राजपुत्र |
देश की रक्षा | देशरक्षा |
राजा की आज्ञा | राजाज्ञा |
शिव का आलय | शिवालय |
पर के अधीन | पराधीन |
गृह का स्वामी | गृहस्वामी |
राजा का कुमार | राजकुमार |
विद्या का सागर | विद्यासागर |
(vi) अधिकरण तत्पुरुष (सप्तमी तत्पुरुष): इसमें अधिकरण कारक की विभक्ति ‘में’, ‘पर’ लुप्त हो जाती है; जैसे-
विग्रह | समस्त-पद |
शोक में मग्न | शोकमग्न |
लोक में प्रिय | लोकप्रिय |
पुरुषों में उत्तम | पुरुषोत्तम |
धर्म में वीर | धर्मवीर |
आप पर बीती | आपबीती |
कला में श्रेष्ठ | कलाश्रेष्ठ |
गृह में प्रवेश | गृहप्रवेश |
आनंद में मग्न | आनंदमग्न |
नोट : तत्पुरुष समास के उपर्युक्त भेदों के अलावे कुछ अन्य भेद भी हैं, जिनमें प्रमुख है नञ् समास ।
नञ् समास : जिस समास के पूर्व पद में निषेधसूचक/ नकारात्मक शब्द (अ, अन्, न, ना, गैर आदि) लगे हों; जैसे- अधर्म (न धर्म), अनिष्ट (न इष्ट), अनावश्यक (न आवश्यक), नापसंद (न पसंद), गैरवाजिब (न वाजिब) आदि ।
3. कर्मधारय समास: जिस समस्त पद का उत्तरपद प्रधान हो तथा पूर्वपद व उत्तरपद में उपमान उपमेय अथवा विशेषण-विशेष्य संबंध हो, कर्मधारय समास कहलाता है; जैसे-
पहचान : विग्रह करने पर दोनों पद के मध्य में ‘है जो’, ‘के समान’ आदि आते हैं।
विग्रह | समस्त-पद |
कमल के समान चरण | चरणकमल |
कनक की-सी लता | कनकलता |
कमल के समान नयन | कमलनयन |
प्राणों के समान प्रिय | प्राणप्रिय |
चंद्र के समान मुख | चंद्रमुख |
मृग के समान नयन | मृगनयन |
देह रूपी लता | देहलता |
क्रोध रूपी अग्नि | क्रोधाग्नि |
लाल है जो मणि | लालमणि |
नीला है जो कंठ | नीलकंठ |
महान है जो पुरुष | महापुरुष |
महान है जो देव | महादेव |
आधा है जो मरा | अधमरा |
परम है जो आनंद | परमानंद |
4. द्विगु समास : जिस समस्त-पद का पूर्वपद संख्यावाचक विशेषण हो, वह द्विगु समास कहलाता है। इसमें समूह या समाहार का ज्ञान होता है; जैसे-
विग्रह | समस्त-पद |
सात सिंधुओं का समूह | सप्तसिंधु |
दो पहरों का समूह | दोपहर |
तीनों लोकों का समाहार | त्रिलोक |
चार राहों का समूह | चौराहा |
नौ रात्रियों का समूह | नवरात्र |
सात ऋषियों का समूह | सप्तऋषि/सप्तर्षि |
पाँच मढ़ियों का समूह | पंचमढ़ी |
सात दिनों का समूह | सप्ताह |
तीनों कोणों का समाहार | त्रिकोण |
तीन रंगों का समूह | तिरंगा |
5. द्वंद्व समास: जिस समस्त-पद के दोनों पद प्रधान हों तथा विग्रह करने पर ‘और’, ‘अथवा’, ‘या’, ‘एवं’ लगता हो वह द्वंद्व समास कहलाता है; जैसे-
पहचान : दोनों पदों के बीच प्रायः योजक चिह्न (Hyphen) (-) का प्रयोग
विग्रह | समस्त-पद |
अपना और पराया | अपना-पराया |
छल और कपट | छल-कपट |
आगे और पीछे | आगे-पीछे |
ऊँच या नीच | ऊँच-नीच |
ठंडा या गरम | ठंडा-गरम |
राधा और कृष्ण | राधा-कृष्ण |
खरा या खोटा | खरा-खोटा |
नर और नारी | नर-नारी |
देश और विदेश | देश-विदेश |
गुण और दोष | गुण-दोष |
सुख और दुःख | सुख-दुःख |
पाप और पुण्य | पाप-पुण्य |
राजा और प्रजा | राजा-प्रजा |
नदी और नाले | नदी- नाले |
6. बहुव्रीहि समास : जिस समस्त-पद में कोई पद प्रधान नहीं होता, दोनों पद मिल कर किसी तीसरे पद की ओर संकेत करते हैं, उसमें बहुव्रीहि समास होता है, जैसे- ‘नीलकंठ’, नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव । यहाँ पर दोनों पदों ने मिल कर एक तीसरे पद ‘शिव’ का संकेत किया, इसलिए यह बहुव्रीहि समास है :
समस्त-पद | विग्रह |
मृत्युंजय | मृत्यु को जीतने वाला (शंकर) |
घनश्याम | घन के समान श्याम है जो (कृष्ण) |
मृगेंद्र | मृगों का इंद्र (सिंह) |
विषधर | विष को धारण करने वाला (सप) |
चंद्रमौलि | चंद्र है मौलि पर जिसके (शिव) |
त्रिलोचन | तीन हैं लोचन जिसके (शिव) |
चौलड़ी | चार हैं लड़ियाँ जिसमें (माला) |
निशाचर | निशा में विचरण करने वाला (राक्षस) |
पीतांबर | पीत है अंबर जिसका (कृष्ण) |
गिरिधर | गिरि को धारण करने वाला है जो (कृष्ण) |
अनहोनी | न होने वाली घटना (कोई विशेष घटना) |
पंकज | पंक में पैदा हो जो (कमल) |
प्रधानमंत्री | मंत्रियों में प्रधान है जो (प्रधानमंत्री) |
चतुर्भुज – | चार हैं भुजाएँ जिसकी (विष्णु) |
महावीर | महान वीर है जो (हनुमान) |
चक्रपाणि | चक्र है पाणि में जिसके (विष्णु) |
दशानन | दस हैं आनन जिसके (रावण) |
लंबोदर | लंबा है उदर जिसका (गणेश) |
कर्मधारय और बहुव्रीहि समास मे अंतर
इन दोनों समासों में अंतर समझने के लिए इनके विग्रह पर ध्यान देना चाहिए। कर्मधारय समास में एक पद विशेषण या उपमान होता है और दूसरा पद विशेष्य या उपमेय होता है; जैसे- ‘नीलगगन’ में ‘नील’ विशेषण है तथा ‘गगन’ विशेष्य है। इसी तरह ‘चरणकमल’ में ‘चरण’ उपमेय है और ‘कमल’ उपमान है। अतः ये दोनों उदाहरण कर्मधारय समास के हैं।
बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही किसी संज्ञा के विशेषण का कार्य करता है; जैसे- ‘चक्रधर’ चक्र को धारण करता है जो अर्थात् ‘श्रीकृष्ण’ ।
नीलकंठ – नीला है जो कंठ-कर्मधारय समास ।
नीलकंठ – नीला है कंठ जिसका अर्थात् शिव-बहुव्रीहि समास ।
लंबोदर – मोटे पेट वाला-कर्मधारय समास ।
लंबोदर – लंबा है उदर जिसका अर्थात् गणेश-बहुव्रीहि समास ।
द्विगु और बहुव्रीहि समास में अंतर
द्विगु समास का पहला पद संख्यावाचक विशेषण होता है और दूसरा पद विशेष्य होता है जबकि बहुव्रीहि समास में समस्त पद ही विशेषण का कार्य करता है; जैसे-
चतुर्भुज- चार भुजाओं का समूह-द्विगु समास ।
चतुर्भुज- चार हैं भुजाएँ जिसकी अर्थात् विष्णु-बहुव्रीहि समास ।
पंचवटी – पाँच वटों का समाहार-द्विगु समास ।
पंचवटी – पाँच वटों से घिरा एक निश्चित स्थल अर्थात् दंडकारण्य में स्थित वह स्थान जहाँ वनवासी राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ निवास किया-बहुव्रीहि समास ।
दशानन- दस आननों का समूह-द्विगु समास ।
दशानन – दस आनन हैं जिसके अर्थात् रावण-बहुव्रीहि समास ।
द्विगु और कर्मधारय में अंतर
(i) द्विगु का पहला पद हमेशा संख्यावाचक विशेषण होता है जो दूसरे पद की गिनती बताता है जबकि कर्मधारय का एक पद विशेषण होने पर भी संख्यावाचक कभी नहीं होता है।
(ii) द्विगु का पहला पद ही विशेषण बन कर प्रयोग में आता है जबकि कर्मधारय में कोई भी पद दूसरे पद का विशेषण हो सकता है; जैसे-
नवरत्न – नौ रत्नों का समूह – द्विगु समास
चतुर्वर्ण – चार वर्णों का समूह – द्विगु समास
पुरुषोत्तम – पुरुषों में जो है उत्तम – कर्मधारय समास
रक्तोत्पल – रक्त है जो उत्पल – कर्मधारय समास
संधि और समास में अंतर
अर्थ की दृष्टि से यद्यपि दोनों शब्द समान हैं अर्थात् दोनों का अर्थ ‘मेल’ ही है तथापि दोनों में कुछ भिन्नताएँ हैं जो निम्नलिखित हैं-
(i) संधि वर्णों का मेल है और समास शब्दों का मेल है।
(ii) संधि में वर्णों के योग से वर्ण परिवर्तन भी होता है जबकि समास में ऐसा नहीं होता ।
(iii) समास में बहुत से पदों के बीच के कारक चिह्नों का अथवा समुच्चयबोधकों का लोप हो जाता है; जैसे-
विद्या + आलय –विद्यालय– संधि
राजा का पुत्र — राजपुत्र — समास
(iv) संधि के तोड़ने को ‘संधि-विच्छेद’ कहते हैं, जबकि समास के पदों को अलग करने को ‘समास-विग्रह’ ।
समास-निर्णय की समस्या
◉ जब परीक्षक ‘शब्द’ देते हैं और उसमें समास को चिह्नित करने के लिए परीक्षार्थी से कहते हैं, तब परीक्षार्थी के लिए समास-निर्णय की समस्या उठ खड़ी होती है। कारण यह कि समास-विशेष का निर्णय विग्रह से होता है। परिणामतः परीक्षार्थी शब्द का कोई भी विग्रह करने के लिए स्वतंत्र होता है। इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है-विद्याधन । विद्याधन का छः तरह से विग्रह किया जा सकता है-विद्या से (के द्वार) अर्जित धन (तृतीया तत्पुरुष), विद्या के लिए धन (चतुर्थी तत्पुरुष), विद्या का धन (षष्ठी तत्पुरुष), विद्यारूपी धन (कर्मधारय), विद्या और धन (द्वन्द्व), विद्या है धन जिसका वह, सरस्वती (बहुव्रीहि) ।
◉ यदि परीक्षक प्रश्न में स्वतंत्र ‘शब्द’ की जगह वाक्य में प्रयुक्त शब्द यानी ‘पद’ में समास बताने को कहे तो यह समस्या नहीं उठेगी, क्योंकि वाक्य में प्रयुक्त होने पर ‘शब्द’ सीमित होकर ‘पद’ बन जायेगा और पद का एक ही विग्रह होगा यानी द्विविधा की स्थिति नहीं रहेगी; जैसे- वसंत पंचमी के दिन विद्याधन की पूजा की जाती है (विद्या है धन जिसका, अर्थात् सरस्वती-बहुव्रीहि समास) ।
(i) विद्याधर शर्मा की समृद्धि का राज विद्याधन ही है (विद्या से अर्जित धन-तत्पुरुष) । विद्याधन (विद्यारूपी धन-कर्मधारय समास) की चाह रखने वाले को विद्याधन (विद्या है धन जिसका, अर्थात सरस्वती-बहुव्रीहि समास) की पूजा करनी चाहिए।
(ii) मैंने एक पीताम्बर खरीदा (पीला वस्त्र-कर्मधारय समास) । मैंने पीताम्बर की पूजा की (पीत है अम्बर जिसका, अर्थात् विष्णु-बहुव्रीहि समास) ।
निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट समास तथा समास के भेद जरुर अच्छी लगी होगी। इसके बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समास की परिभाषा तथा उसके भेद के बारे में उदाहरण देकर समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
FAQs
Q1. अव्ययीभाव समास का एक उदाहरण ‘यद्याशक्ति’ का सही विग्रह क्या होगा ?
Ans. जितनी शक्ति
Q2 . ‘पाप-पुण्य’ में कौन-सा समास है ?
Ans. द्वंद्व
Q3. ‘लम्बोदर’ में कौन-सा समास है ?
Ans. बहुव्रीहि
Q4. ‘देशप्रेम’ में कौन-सा समास है ?
Ans. तत्पुरुष
Q5. ‘परमेश्वर’ में कौन-सा समास है ?
Ans. कर्मधारय,
Q6. ‘अनायास’ में कौन-सा समास है?
Ans. नञ्
Q7. ‘गोशाला’ में कौन-सा समास है ?
Ans. तत्पुरुष
Q8. ‘नवग्रह’ में कौन-सा समास है ?
Ans. द्विगु
Q9. ‘विद्यार्थी’ में कौन-सा समास है ?
Ans. तत्पुरुष
Q10. ‘कन्यादान’ में कौन-सा समास है ?
Ans. तत्पुरुष
Q11. ‘साग-पात’ में कौन-सा समास है?
Ans. द्वंद्व
Q12. ‘नीलकमल’ में कौन-सा समास है ?
Ans. कर्मधारय
Q13 . ‘चतुर्भुज’ में कौन-सा समास है ?
Ans. बहुव्रीहि
Q14. ‘वनवास’ में कौन-सा समास है ?
Ans. तत्पुरुष
Q15. ‘पंचवटी’ में कौन-सा समास है ?
Ans. बहुव्रीहि
Q16. ‘पीताम्बर’ में कौन-सा समास है ?
Ans. बहुव्रीहि
Q17. ‘नरोत्तम’ में कौन-सा समास है ?
Ans. तत्पुरुष
Q18. समास का शाब्दिक अर्थ होता है?
Ans. संक्षेप
Q19. ‘सुपुरुष’ में कौन-सा समास है ?
Ans. कर्मधारय
Q20. ‘देशांतर’ में कौन-सा समास है ?
Ans. तत्पुरुष
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