विविधता की समझ : अध्याय -1

आपकी उम्र के तीन बच्चों ने ऊपर दिए गए। चित्र बनाए हैं। खाली बक्से में आप अपना चित्र बनाइए। क्या आपका चित्र अन्य तीन चित्रं जैसा ही है? हो सकता है कि आपका चित्र इन तीनों से बहुत भिन्न हो जैसे कि ये तीनों चित्र भी आपस में एक-दूसरे से नहीं मिलते हैं। ऐसा इसीलिए कि हम सबका चित्रकारी करने का अपना-अपना एक तरीका होता है। जिस तरह हमारी चित्रकारी में भिन्नता है, उसी तरह हमारे रूप-रंग, खान-पान आदि में भी भिन्नता है।

अपनी अध्यापिका की सहायता से यह पता कीजिए कि आपमें से कितनी साथियों के जवाब एक जैसे हैं। क्या कक्षा में कोई ऐसी साथी भी है जिसकी सूची आपकी सूची से हू-ब-हू मिलती है? शायद नहीं हो। हालाँकि ऐसा होगा कि कई साथियों के कुछ जवाब आपके जवाबों से मिलते-जुलते होंगे। कितने साथियों को आपके जैसी किताब पढ़ना पसंद है? आपकी कक्षा के विद्यार्थी कुल मिलाकर कितनी भाषाएँ बोलते हैं? इनसे अब तक आपको यह अंदाज़ा हो गया होगा कि कई मामलों में आप अपनी साथियों की तरह हैं और कई मामलों में आप उनसे बिल्कुल अलग हैं।

दोस्ती करना

क्या ऐसे इंसान से दोस्ती करना आपके लिए आसान होगा जो आपसे बहुत भिन्न है? नीचे दी गई कहानी पढ़ें और इस बारे में साचं।

मैंने इसे एक मज़ाक की तरह लिया। मजाक जो कि फटे-पुराने कपड़े पहने उस छोटे-से लड़के के लिए था जो जनपथ के भीड़-भाड़ वाले चौराहे की लालबत्ती पर अखबार बेचता था। मैं जब भी वहाँ से साइकिल से गुज़रता, वह अंग्रेज़ी का अखबार हाथ में लहराते हुए मेरे पीछे भागता और उस दिन की सुर्खियों को हिंदी-अंग्रेज़ी के मिले-जुले शब्दों में चिल्लाकर सुनाता रहता। इस बार मैं पटरी के सहारे रुका और मैंने उससे हिंदी का अखबार माँगा। उसका मुँह खुला का खुला रह गया। उसने पूछा, “मतलब, आपको हिंदी आती है?”

“बिल्कुल”, मैंने अखबार के पैसे देते हुए कहा। “क्यों? तुमने क्या सोचा?” वह रुका। “पर आप लगते तो… बड़े अंग्रेज़ हैं,” वह बोला। “मतलब कि आप हिंदी पढ़ भी सकते हैं?”

“हाँ, बिल्कुल पढ़ सकता हूँ।” इस बार मैं थोड़ा अधीर होते हुए बोला। “मैं हिंदी बोल सकता हूँ, पढ़ सकता हूँ और लिख भी सकता हूँ। मैंने स्कूल में दूसरे ‘सब्जेक्ट’ (विषय) के साथ हिंदी पढ़ी है।”

“सब्जेक्ट” उसने पूछा। अब जो कभी स्कूल नहीं गया उसको मैं क्या समझाता कि सब्जेक्ट क्या होता है। “वह कुछ होता है…” मैंने शुरू किया ही था कि बत्ती हरी हो गई और मेरे पीछे गाड़ियों के हॉर्न का शोर सौ गुना बढ़ गया। मैंने भी अपने आप को ट्रैफिक के साथ आगे बढ़ने दिया।

अगले दिन वह फिर से वहाँ पर था। वह मुस्करा रहा था और मेरी तरफ हिंदी का अखबार बढ़ाते हुए उसने कहा, “भैया, आपका अखबार। अब बताइए ये सब्जेक्ट क्या चीज़ है?” अंग्रेज़ी का यह शब्द उसकी ज़बान पर अजीब लग रहा था। ऐसा लगा मानो अंग्रेज़ी में ‘सब्जेक्ट’ शब्द का जो दूसरा अर्थ है ‘प्रजा’, उस अर्थ में वह उसका प्रयोग कर रहा है।

“ओह, यह कुछ पढ़ाई-लिखाई से संबंधित है, मैंने कहा। उसके बाद चूँकि बत्ती लाल हो गई थी सो मैंने पूछा, “तुम कभी स्कूल गए हो?” “कभी नहीं, उसने जवाब दिया। फिर बात बढ़ाते हुए उसने गर्व से कहा, “मैं जब इतना ऊँचा था तभी से मैंने काम करना शुरू कर दिया था।” उसने मेरी साइकिल की गद्दी के बराबर अपने आप को नापा। “पहले मेरी माँ मेरे साथ आती थी, लेकिन अब मैं अकेले ही कर लेता हूँ।”

“अभी तुम्हारी माँ कहाँ है?” मैंने पूछा। पर तब तक बत्ती हरी हो गई और मैं चल पड़ा। मैंने उसे अपने पीछे कहीं से चिल्लाते हुए सुना, “वह मेरठ में है और उसके साथ…”। बाकी ट्रैफिक के शोरगुल में डूब गया।

“मेरा नाम समीर है.” उसने अगले दिन कहा और बड़े शर्माते हुए मेरा नाम पूछा, “आपका नाम?” यह तो बड़े आश्चर्य की बात थी। मेरी साइकिल डगमगाई। “मेरा नाम भी समीर है”, मैंने बताया। “क्या”, उसकी आँखें एकदम से चमक उठीं। “हाँ”, मैंने मुस्कराते हुए कहा। “तुम्हें पता है समीर का अर्थ है – हवा, पवन। और पवनपुत्र कौन हैं जानते हो न? … हनुमान!”

“तो अब से आप समीर एक और मैं समीर दो”, उसने खूब खुश होते हुए कहा। “हाँ, ठीक है” मैंने जवाब दिया और अपना हाथ आगे बढ़ाया। “हाथ मिलाओ समीर दो।”

उसका छोटा-सा हाथ मेरे हाथ में एक नन्हीं चिड़िया की तरह समा गया। मैं साइकिल चलाकर आगे बढ़ चुका था, पर उसके हाथ की गर्माहट अब तक महसूस कर रहा था।

अगले दिन उसके चेहरे पर उसकी चिरपरिचित मुस्कान नहीं थी। “मेरठ में बड़ी गड़बड़ हो गई है,” उसने कहा। “वहाँ दंगों में बहुत लोग मारे गए हैं।” मैंने मुख्य अखबार की सुर्खियों की तरफ देखा। बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा था सांप्रदायिक दंगे। “लेकिन समीर…” मैंने शुरू किया ही था। “मैं मुस्लिम समीर हूँ,” वह बोल पड़ा। “और मेरे सभी लोग मेरठ में हैं।” उसकी आँखें भर आईं। जब मैंने उसके कंधे पर हाथ रखा, उसने नज़र ऊपर नहीं उठाई।

अगले दिन वह चौराहे पर नहीं था। न उसके अगले दिन वह दिखा और न आगे फिर कभी। अंग्रेज़ी या हिंदी का कोई अखबार मुझे नहीं बता सकता कि मेरा समीर दो आखिर कहाँ गया।

जहाँ समीर एक को अंग्रेज़ी ज्यादा अच्छी आती है, वहीं समीर दो हिंदी बोलता है। हालाँकि दोनों की भाषाएँ अलग हैं, फिर भी दोनों एक-दूसरे से बात कर पाए। उन्होंने इसके लिए प्रयास किया क्योंकि उनके लिए बात करना महत्त्वपूर्ण था। समीर एक और समीर दो की धार्मिक व सांस्कृतिक पृष्ठभूमियाँ भी अलग हैं। जहाँ समीर एक हिंदू है, वहीं समीर दो मुसलमान है। दोनों में दोस्ती हुई क्योंकि दोनों दोस्ती करना चाहते थे। खान-पान, पहनावा, धर्म, भाषा आदि की ये भिन्नताएँ विविधता के पहलू हैं।

अपनी विविध धार्मिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमियों के अलावा समीर एक और समीर दो कई अन्य मामलों में भी एक-दूसरे से अलग थे। उदाहरण के लिए समीर एक ने स्कूल में पढ़ाई की थी जबकि समीर दो अखबार बेचता था।

समीर दो को स्कूल जाने का मौका मिला ही नहीं। आपने संभवतः अपने इलाके में ऐसे कई लोगों को देखा होगा जो गरीब हैं और जिनकी भोजन, घर और कपड़े की जरूरतें भी पूरी नहीं हो पातीं। यह फ़र्क उस फ़र्क से अलग है जिसके बारे में हमने पहले पढ़ा। यह विविधता का रूप नहीं है, बल्कि गैर-बराबरी का रूप है। गैर-बराबरी का मतलब है कि कुछ लोगों के पास न अवसर हैं और न ही ज़मीन या पैसे जैसे संसाधन, जो दूसरों के पास हैं। इसीलिए गरीबी और अमीरी विविधता का रूप नहीं हैं। यह लोगों के बीच मौजूद असमानता यानी गैर-बराबरी है।

जाति व्यवस्था असमानता का एक और उदाहरण है। इस व्यवस्था में समाज को अलग-अलग समूहों में बाँटा गया। इस बँटवारे का आधार था कि लोग किस-किस तरह का काम करते हैं। लोग जिस जाति में पैदा होते थे, उसे बदल नहीं सकते थे। उदाहरण के लिए अगर आप कुम्हार के घर में पैदा हो गईं तो आपकी जाति कुम्हार ही होती और आप बस वही बन सकती थीं। कोई व्यक्ति जाति से जुड़ा अपना पेशा भी नहीं बदल सकता था, इसलिए उस ज्ञान के अलावा किसी अन्य ज्ञान को हासिल करना ज़रूरी नहीं समझा जाता था। इससे गैर-बराबरी पैदा हुई। आप इस बारे में अगले पाठों में पढ़ेंगी।

विविधता हमारे जीवन को कैसे समृद्ध करती है?

जैसे समीर एक और समीर दो दोस्त बने, ठीक वैसे ही आपकी भी सहेलियाँ होंगी जो आपसे बहुत अलग होंगी। आपने शायद उनके घर में अलग तरह का खाना खाया होगा, उनके साथ अलग त्योहार मनाए होंगे, उनके कपड़े पहन कर देखे होंगे और थोड़ी बहुत उनकी भाषा भी सीखी होगी।

आपको शायद तरह-तरह के जानवरों, रानियों, साहसिक घटनाओं या भूतों की कहानियाँ पसंद होंगी। संभव है कि आपको खुद कहानी बनाना भी पसंद होगा। एक अच्छी कहानी पढ़ने से हमेशा खुशी मिलती है। उसको पढ़कर और ज्यादा कहानियाँ बनाने के लिए नए-नए विचार मिलते हैं। जो लोग कहानियाँ लिखते हैं वे विभिन्न स्रोतों-किताबों, वास्तविक जीवन और कल्पना से प्रेरणा लेते हैं।

कुछ लोग जंगल में जानवरों के नज़दीक रहे और उन्होंने जानवरों की दोस्ती व लड़ाइयों के बारे में कहानियाँ लिखीं। कुछ अन्य लोगों ने राजा-रानियों के वृत्तांत पढ़ कर प्यार और सम्मान के किस्से लिखे।

कुछ ने अपने बचपन की यादों में गोते लगाए, स्कूल और दोस्तों की मधुर यादों से निकालकर कुछ साहस की कहानियाँ लिखीं।

कल्पना कीजिए कि जिनकी कहानियाँ आपने सुनी या पढ़ी हैं, उन सभी कहानीकारों या कहानी सुनाने वालों को ऐसी जगह पर रहना पड़े जहाँ लोग केवल दो ही रंग के कपड़े पहनते हों- लाल एवं सफेद; एक तरह का खाना खाते हों (शायद आलू!); समान रूप से केवल दो पशु-पक्षी को पालते हों, उदाहरण के लिए हिरन और कौआ; और केवल साँप-सीढ़ी खेल से अपना मनोरंजन करते हों। ऐसी जगह रहकर वे कैसी कहानियाँ लिख पाएँगे?

भारत में विविधता

भारत विविधताओं का देश है। हम विभिन्न भाषाएँ बोलते हैं। विभिन्न प्रकार का खाना खाते हैं, अलग-अलग त्योहार मनाते हैं और भिन्न-भिन्न धर्मों का पालन करते हैं। लेकिन गहराई से सोचें तो वास्तव में हम एक ही तरह की चीजें करते हैं केवल हमारे करने के तरीके अलग हैं।

हम विविधता को कैसे समझें?

करीब दो-सवा दो सौ वर्ष पहले जब रेल, हवाईजहाज़, बस और कार हमारे जीवन का हिस्सा नहीं थे, तब भी लोग संसार के एक भाग से दूसरे भाग की यात्रा करते थे। वे पानी के जहाज़ में, घोड़ों या ऊँट पर बैठकर जाते या फिर पैदल चलकर ।

अक्सर ये यात्राएँ खेती और बसने के लिए नई ज़मीन की तलाश में या फिर व्यापार के लिए की जाती थीं। चूँकि यात्रा में बहुत समय लगता था, इसलिए लोग नई जगह पर अक्सर काफी लंबे समय तक ठहर जाते थे। इसके अलावा सूखे और अकाल के कारण भी कई बार लोग अपना घर-बार छोड़ देते थे। उन्हें जब पेट भर खाना तक नहीं मिलता था तो वे नई जगह जा कर बस जाते थे। कुछ लोग काम की तलाश में और कुछ युद्ध के कारण घर छोड़ देते थे।

लोग जब नई जगह में बसना शुरू करते थे तो उनके रहन-सहन में थोड़ा बदलाव आ जाता था। कुछ चीजें वे नई जगह की अपना लेते थे और कुछ चीज़ों में वे पुराने ढर्रे पर ही चलते रहते थे। इस तरह उनकी भाषा, भोजन, संगीत, धर्म आदि में नए और पुराने का मिश्रण होता रहता था। उनकी संस्कृति और नई जगह की संस्कृति में आदान-प्रदान होता और धीरे-धीरे एक मिश्रित यानी मिली-जुली संस्कृति उभरती।

अगर अलग-अलग क्षेत्रों का इतिहास देखें तो हमें पता चलेगा कि किस तरह विभिन्न सांस्कृतिक प्रभावों ने वहाँ के जीवन और संस्कृति को आकार देने में योगदान किया है। इस तरह से कई क्षेत्र अपने विशिष्ट इतिहास के कारण विविधतासंपन्न हो जाते थे।

ठीक इसी प्रकार लोग अलग-अलग तरह की भौगोलिक स्थितियों से किस प्रकार सामंजस्य बैठाते हैं, उससे भी विविधता उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए समुद्र के पास रहने में और पहाड़ी इलाकों में रहने में बड़ा फ़र्क है। न केवल वहाँ के लोगों के कपड़ों और खान-पान की आदतों में फ़र्क होगा, बल्कि जिस तरह का काम वे करेंगे, वे भी अलग होंगे। शहरों में अक्सर लोग यह भूल जाते हैं कि उनका जीवन उनके भौतिक वातावरण से किस तरह गहराई से जुड़ा हुआ है। ऐसा इसलिए कि शहरों में लोग विरले ही अपनी सब्ज़ी या अनाज उगाते हैं। वे इन चीज़ों के लिए बाज़ार पर ही निर्भर रहते हैं।

आइए, भारत के दो भागों – लद्दाख और केरल के उदाहरण के ज़रिए यह समझने की कोशिश करें कि किसी क्षेत्र की विविधता पर उसके ऐतिहासिक और भौगोलिक कारकों का क्या असर पड़ता है।

लद्दाख जम्मू और कश्मीर के पूर्व में पहाड़ियों में बसा एक रेगिस्तानी इलाका है। यहाँ पर बहुत ही कम खेती संभव है, क्योंकि इस क्षेत्र में बारिश बिल्कुल नहीं होती और यह इलाका हर वर्ष काफी लंबे समय तक बर्फ से ढँका रहता है। इस क्षेत्र में बहुत ही कम पेड़ उग पाते हैं। पीने के पानी के लिए लोग गर्मी के महीनों में पिघलने वाली बर्फ़ पर निर्भर रहते हैं।

यहाँ के लोग एक खास किस्म की बकरी पालते हैं जिससे पश्मीना ऊन मिलता है। यह ऊन कीमती है, इसीलिए पश्मीना शाल बड़ी महँगी होती है। लद्दाख के लोग बड़ी सावधानी से इस ऊन को इकट्ठा करके कश्मीर के व्यापारियों को बेच देते हैं। मुख्यतः कश्मीर में ही पश्मीना शालें बुनी जाती हैं।

यहाँ के लोग दूध से बने पदार्थ, जैसे मक्खन, चीज़ (खास तरह का छेना) एवं मांस खाते हैं। हर एक परिवार के पास कुछ गाय, बकरी और याक होती हैं।

रेगिस्तान होने का यह मतलब नहीं कि व्यापारी यहाँ आने के लिए आकर्षित नहीं हुए। लद्दाख तो व्यापार के लिए एक अच्छा रास्ता माना गया क्योंकि यहाँ कई घाटियाँ हैं जिनसे गुज़र कर मध्य एशिया के काफ़िले उस इलाके में पहुँचते थे जिसे आज तिब्बत कहते हैं। ये काफ़िले अपने साथ मसाले, कच्चा रेशम, दरियाँ आदि लेकर चलते थे।

लद्दाख के रास्ते ही बौद्ध धर्म तिब्बत पहुँचा। लद्दाख को छोटा तिब्बत भी कहते हैं। करीब चार सौ साल पहले यहाँ पर लोगों का इस्लाम धर्म से परिचय हुआ और अब यहाँ अच्छी-खासी संख्या में मुसलमान रहते हैं। लद्दाख में गानों और कविताओं का बहुत ही समृद्ध मौखिक संग्रह है। तिब्बत का ग्रंथ केसर सागा लद्दाख में काफी प्रचलित है। उसके स्थानीय रूप को मुसलमान और बौद्ध दोनों ही लोग गाते हैं और उस पर नाटक खेलते हैं।

केरल भारत के दक्षिणी-पश्चिमी कोने में बसा हुआ राज्य है। यह एक तरफ समुद्र से घिरा हुआ है और दूसरी तरफ पहाड़ियों से। इन पहाड़ियों पर विविध प्रकार के मसाले, जैसे- काली मिर्च, लौंग, इलायची आदि उगाए जाते हैं। इन मसालों के कारण यह क्षेत्र व्यापारियों के लिए बहुत ही आकर्षक बना।

सबसे पहले अरबी एवं यहूदी व्यापारी केरल आए। ऐसा माना जाता है कि ईसा मसीह के धर्मदूत संत थॉमस लगभग दो हज़ार साल पहले यहाँ आए। भारत में ईसाई धर्म लाने का श्रेय उन्हीं को जाता है। अरब से कई व्यापारी यहाँ आकर बस गए। इब्न बतूता ने, जो करीब सात सौ साल पहले यहाँ आए, अपने यात्र वृत्तांत में मुसलमानों के जीवन का विवरण देते हुए लिखा है कि मुसलमान समुदाय की यहाँ बड़ी इज्ज़त थी।

वास्को डि गामा पानी के जहाज़ से यहाँ पहुँचे तो पुर्तगालियों ने यूरोप से भारत तक का समुद्री रास्ता जाना।

इन सभी ऐतिहासिक प्रभावों के कारण केरल के लोग विभिन्न धर्मों का पालन करते हैं जिनमें यहूदी, इस्लाम, ईसाई, हिंदू एवं बौद्ध धर्म शामिल हैं।

चीन के व्यापारी भी केरल आए। यहाँ पर मछली पकड़ने के लिए जो जाल इस्तेमाल किए जाते हैं वे चीनी जालों से हू-ब-हू मिलते हैं और उन्हें ‘चीना-वला’ कहते हैं। तलने के लिए लोग जो बर्तन इस्तेमाल करते हैं उसे ‘चीनाचट्टी’ कहते हैं। इसमें ‘चीन’ शब्द इस बात की ओर इशारा करता है कि उसकी उत्पत्ति कहाँ हुई होगी। केरल की उपजाऊ ज़मीन और जलवायु चावल की खेती के लिए बहुत उपयुक्त है और वहाँ के अधिकतर लोग मछली, सब्ज़ी और चावल खाते हैं।

जहाँ केरल और लद्दाख की भौगोलिक स्थितियाँ एक-दूसरे से बिल्कुल अलग हैं, वहीं हम यह भी देखते हैं कि दोनों क्षेत्रों के इतिहास में एक ही प्रकार के सांस्कृतिक प्रभाव हैं। दोनों ही क्षेत्रों को चीन और अरब से आनेवाले व्यापारियों ने प्रभावित किया। जहाँ केरल की भौगोलिक स्थिति ने मसालों की खेती संभव बनाई, वहीं लद्दाख की विशेष भौगोलिक स्थिति और ऊन ने व्यापारियों को अपनी ओर खींचा। इस तरह पता चलता है कि किसी भी क्षेत्र के सांस्कृतिक जीवन का उसके इतिहास और भूगोल से प्रायः गहरा रिश्ता होता है।

विविध संस्कृतियों का प्रभाव केवल बीते हुए कल की बात नहीं है। हमारे वर्तमान जीवन का आधार ही काम के लिए एक जगह से दूसरी जगह जाना है। हरएक कदम के साथ हमारे सांस्कृतिक रीति-रिवाज़ और जीने का तरीका धीरे-धीरे उस नए क्षेत्र का हिस्सा बन जाते हैं जहाँ हम पहुँचते हैं। ठीक इसी तरह अपने पड़ोस में हम अलग-अलग समुदायों के लोगों के साथ रहते हैं। अपने रोज़मर्रा के जीवन में हम मिल-जुलकर काम करते हैं और एक-दूसरे के रीति-रिवाज़ और परंपराओं में घुलमिल जाते हैं।

विविधता में एकता

भारत की विविधता या अनेकता को उसकी ताकत का स्रोत माना गया है। जब अंग्रेज़ों का भारत पर राज था तो विभिन्न धर्म, भाषा और क्षेत्र की महिलाओं और पुरुषों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ मिलकर लड़ाई लड़ी थी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में अलग-अलग परिवेशों के लोग शामिल थे। उन्होंने एकजुट होकर आंदोलन किया, इकट्ठे जेल गए और अंग्रेज़ों का अलग-अलग तरीकों से विरोध किया। अंग्रेज़ों ने सोचा था कि वे भारत के लोगों में फूट डाल सकते हैं क्योंकि उनमें काफी विविधताएँ हैं और इस तरह उनका राज चलता रहेगा। मगर लोगों ने दिखला दिया कि वे एक-दूसरे से चाहे कितने ही भिन्न हों, अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ी जाने वाली लड़ाई में वे सब एक थे।

दिन खून के हमारे प्यारे न भूल जाना खुशियों में अपनी हम पर, आँसू बहा के जाना

सैयाद ने हमारे, चुन-चुन के फूल तोड़े वीरान इस चमन में, कोई दिन खून गुल खिला के के हमारे… जाना

गोली खा के सोये, जलियाँ बाग़ में हम सूनी पड़ी कब्र पर, दिया जला के जाना दिन खून के हमारे…

हिंदू औ’ मुस्लिमों की, होती है आज होली बहते हैं एक रंग में, दामन भीगो के जाना दिन खून के हमारे…

कुछ जेल में पड़े हैं, कुछ क़ब्र में गड़े हैं। दो बूँद आँसू उनपर, प्यारे बहा के जाना दिन खून के हमारे…

भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा)

यह गीत अमृतसर में हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड के बाद गाया जाता था। इस हत्याकांड में एक ब्रिटिश जनरल ने उन शांतिप्रिय, निहत्थे लोगों पर खुले आम गोलियाँ चलवा दी थीं जो बाग में इकट्ठे होकर सभा कर रहे थे। महिला-पुरुष, हिंदू-मुसलमान एवं सिख – कितने सारे लोग थे जो अंग्रेज़ों की पक्षपातपूर्ण नीति का विरोध करने के लिए जमा हुए थे। उसमें से बहुत लोगों की जानें गईं और उससे भी ज़्यादा घायल हुए। यह गीत उन्हीं शहीदों की याद में गाया गया था।

स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उभरे गीत और चिह्न विविधता के प्रति हमारा विश्वास बनाए रखते हैं। क्या आप भारतीय झंडे की कहानी जानती हैं? स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ही भारत के झंडे की परिकल्पना की गई थी। इस झंडे को सारे भारत में लोगों ने अंग्रेज़ों के खिलाफ इस्तेमाल किया था।

जवाहरलाल नेहरू ने अपनी किताब भारत की खोज में लिखा कि भारतीय एकता कोई बाहर से थोपी हुई चीज़ नहीं है, बल्कि “यह बहुत ही गहरी है जिसके अंदर अलग-अलग तरह के विश्वास और प्रथाओं को स्वीकार करने की भावना है। इसमें विविधता को पहचाना और प्रोत्साहित किया जाता है।” यह नेहरू ही थे जिन्होंने भारत की विविधता का वर्णन करते हुए ‘अनेकता में एकता’ का विचार हमें दिया।

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अभ्यास

1. अपने इलाके में मनाए जाने वाले विभिन्न त्योहारों की सूची बनाइए। इनमें से कौन-से त्योहार सभी समुदार्यों द्वारा मनाए जाते हैं?
Ans.
हमारे इलाके में देश भर में मनाए जाने वाले लगभग सभी त्योहार मनाए जाते हैं। इनकी सूची निम्नलिखित है:

1. दीवाली
2. दशहरा
3. होली
4. जन्माष्टमी
5. रक्षा बंधन
6. राम नवमी
7. मकर संक्रांति
8. बेसाखी
9. गुरुपर्व
10. ईद
11. मुहर्रम
12. पोंगल
13. क्रिसमस
14. ओणम आदि

इनमें से दीवाली, दशहरा, ईद, क्रिसमस आदि त्योहार सभी समुदायों द्वारा मनाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त राष्ट्रीय त्योहार (स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस आदि भी) सभी समुदाय मिल कर मनाते हैं।

2. आपके विचार में भारत की समृद्ध एवं विविध विरासत आपके जीवन को कैसे बेहतर बनाती है?
Ans.
भारत की समृद्ध एवं विविध विरासत हमारे जीवन को निम्नलिखित ढंग से बेहतर बनाती है-

(1) हमें विभिन्न लोगों तथा उनकी भाषा, संस्कृति एवं रीति-रिवाजों की जानकारी मिलती है।

(2) भौगोलिक विभिन्नताएं हमारे रहन-सहन, भोजन तथा वेशभूषा में नये रंग जोड़ती हैं।

(3) हम विभिन्न संस्कृतियों के अच्छे तत्त्व अपनाकर अपनी संस्कृति को समृद्ध बनाते हैं।

3. आपके अनुसार ‘अनेकता में एकता’ का विचार भारत के लिए कैसे उपयुक्त है? भारत की खोज किताब से लिए गए इस वाक्यांश में नेहरू भारत की एकता के बारे में क्या कहना चाह रहे हैं?
Ans.
भारत के लिए ‘अनेकता में एकता’ का विचार बहुत ही उपयुक्त है। इसका कारण यह है कि भारत में हर क्षेत्र में अनेकता पाई जाती है। फिर भी पूरा भारत भावात्मक तथा सांस्कृतिक रूप से एकता के सूत्र में बंधा है।

भारत में अनेकताएं-

(1) भारत में कहीं पर्वत हैं तो कहीं मैदान। देश में कहीं बंजर मरुस्थल हैं तो कहीं उपजाऊ मैदान,?
(2) भारत में लगभग हर प्रकार की जलवायु पाई जाती है।
(3) भारत में भिन्न-भिन्न जातियों तथा धर्मों के लोग रहते हैं।
(4) भारत के लोग भिन्न-भिन्न भाषाएं बोलते हैं।
(5) लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्त्र पहनते हैं और तरह-तरह का भोजन खाते हैं।
(6) देश के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में लोगों की संस्कृति तथा रीति-रिवाज भिन्न-भिन्न हैं।

अनेकता में एकता –

पंडित नेहरू यह कहना चाह रहे हैं कि इन्हीं अनेकताओं में भारत की एकता छिपी है, जो निम्नलिखित बातों से स्पष्ट है-

(1) भौगोलिक दृष्टि से पूरा देश एक इकाई है।
(2) राजनीतिक दृष्टि से भी भारत एक देश है।
(3) देश की जलवायु कुल मिला कर मानसूनी है।
(4) भारतीय संस्कृति देश की साझी संस्कृति है। इसमें सभी संस्कृतियों के अच्छे तत्त्व शामिल हैं।
(5) सभी लोग भारत से भावात्मक रूप से जुड़े हैं। संकट के समय उनकी एकता के बंधन और भी मज़बूत हो जाते हैं।

4. जलियाँवाला बाग हत्याकांड के ऊपर लिखे गए गाने की उस पंक्ति को चुनिए जो आपके अनुसार भारत की एकता को निश्चित रूप से झलकाती है।
Ans.
मेरे विचार में निम्न पंक्ति में भारत की एकता निश्चित रूप से झलकती है- “हिंदू औ’ मुस्लिमों की होती है आज होली बहते हैं एक रंग में,

5. लद्दाख एवं केरल की तरह भारत का कोई एक क्षेत्र चुनिए और अध्ययन कीजिए कि कैसे उस क्षेत्र की विविधता को ऐतिहासिक और भौगोलिक कारकों ने प्रभावित किया है। क्या ये ऐतिहासिक एवं भौगोलिक कारक आपस में जुड़े हुए हैं? कैसे?
Ans.
हम महाराष्ट्र को लेते हैं। इसकी विविधता को अग्रलिखित ऐतिहासिक तथा भौगोलिक कारकों ने प्रभावित किया है-

ऐतिहासिक कारक –

(1) विदेशी व्यापारियों का आगमन तथा विदेशों के साथ व्यापार
(2) मुंबई के समुद्री पत्तन से भारत के आंतरिक भागों के माल का विदेशों में जाना और विदेशी माल का आयात

भौगोलिक कारक –

(1) पठारी उच्चावच; जैसे- कोंकण
(2) सम जलवायु – तापमान लगभग सारा साल ऊंचा पर्याप्त वर्षा
(3) कम वन क्षेत्र
(4) कृषि का विस्तार – चावल, कपास, गन्ना तथा गेहूं मुख्य फ़सलें। ये भौगोलिक तथा ऐतिहासिक कारक आपस में पूरी तरह जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए यहां की कपास की खेती तथा आर्द्र जलवायु ने महाराष्ट्र विशेषकर मुंबई को सूती वस्त्र उद्योग का बहुत बड़ा केंद्र बना दिया है। सूती वस्त्र लंबे समय तक महाराष्ट्र के व्यापार का आधार रहा है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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