विश्व की प्रमुख सभ्यताएं

विश्व की प्रमुख सभ्यताएं

विश्व की प्रमुख सभ्यताएं इतिहास के विभिन्न कालों और क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाली सांस्कृतिक समृद्धि की प्रतीक हैं। हर एक सभ्यता अपनी अद्वितीय विकासशीलता, कला, विज्ञान, धरोहर, और आर्थिक विकास के साथ पहचानी जाती है। मिस्रीय सभ्यता नील नदी के किनारे सहारा मरुस्थल में अपनी उच्च स्तरीय शिल्पकला और गणित के क्षेत्र में प्रसिद्ध थी।

मेसोपोटामियाई सभ्यता तीग्रिस-यूफ़्रेटीस क्षेत्र में स्थित थी और कृषि, सांस्कृतिक उत्पत्ति, और व्यापार में अग्रणी थी। इंडस सभ्यता, सिंधु और सरस्वती नदियों के क्षेत्र में, उनकी सूचना प्रणालियों और नगरनिगमों के लिए प्रसिद्ध थी। चीनी सभ्यता, हुंगहो नदी के तट पर, अपनी शैली, कला, और विज्ञान में महान कार्यों के लिए जानी जाती है। यूरोपीय सभ्यता, जिसने ग्रीस, रोम, और मध्ययुगीन यूरोप में अपनी उच्चतम सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति प्राप्त की, उसने कला, साहित्य, और विज्ञान में अत्यन्त महत्वपूर्ण योगदान दिया। इन सभी सभ्यताओं ने मानव समृद्धि के लिए नई दिशाएं प्रशस्त कीं और एक समृद्ध विश्व के निर्माण में योगदान दिया।

मिस्र की सभ्यता

• मिस्र साम्राज्य की स्थापना-लगभग 3000 ईसा पूर्व

• मिस्र के प्रथम राजवंश का प्रथम शासक- मेनिस

• विश्व की प्रथम महिला शासक-प्राचीन मिस्र की रानी हटशेटपुट

• मिस्र को ‘नील नदी की देन’ कहनेवाला प्रमुख इतिहासकार हेरोडोट्स

• मिस्र का नेपोलियन कहलाता है-थुटमोज तृतीय (मध्यकालीन राज्य का एक प्रतापी सम्राट)

• गीजा स्थित विश्व प्रसिद्ध पिरामिड का निर्माता- मिस्र का एक महान फराओ चियोप्स (खूफू) (2589 ई० पू०-2566 ई० पू०) ने विश्व प्रसिद्ध पिरामिड का निर्माण कराया था।

• अधिकांश पिरामिडों का निर्माण नील नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित नेनफिस नगर में किया गया था।

• प्रसिद्ध ‘गीज ऑफ मेडियम’ की दीवारें सफेद और काले रंग में हैं।

• प्राचीन मिस्र का प्रधान देवता-रों सूर्य देवता (Sun God) था।

• मिस्र सभ्यता के समय हुई विभिन्न राजनैतिक घटनाओं को देखते हुए मिस्र के राजनैतिक इतिहास को तीन भागों में विभक्त किया गया है। पहला, पिरामिड युग 3400 ई० पू० से 2500 ई० पू० तक, दूसरा सामन्तशाही युग 2500 ई० पू० से लगभग 1800 ई० पू० तक एवं तीसरा नवीन साम्राज्य 1580 ईसा पूर्व से 1150 ईसा पूर्व तक।

• पिरामिड काल का प्रथम शासक मेनिस था। इसी के समय में मिस्र के वास्तविक राजनैतिक जीवन का श्रीगणेश हुआ। 2500 ई० पूर्व तक फराओ की शक्ति का पूर्ण हास हो गया । इसके परिणामस्वरूप मिस्र के राजनैतिक इतिहास में एक नये युग का श्रीगणेश हुआ, जिसे सामन्त शाही काल कहा जाता है। पिरामिड युग की महत्वपूर्ण उपलब्धि पिरामिड का निर्माण था जिसको फराओ ने अपने को मृत्यु के उपरान्त दफनाये जाने के लिए किया था।

• मिस्र के इतिहास में सामन्तशाही युग 2500 ई०पू० से 1800 ई०पू० तक रहा। इसके पश्चात् नवीन साम्राज्य की स्थापना हुई जो हर दृष्टि से पिरामिड काल की उत्तराधिकारी कही जा सकती है। इस काल को नवीन साम्राज्य कहा जाता है।

• सामन्तशाही युग में मिस्र के उत्तर से हिकसास जाति ने आक्रमण करके मिस्र को पराधीन बना लिया था।

• यूटमस प्रथम इस काल का (1545 ई० पू० से 1524 ई०पू०) महान विजेता था तथा महारानी हतशीपुर (1501 ई०पू० से 1479 ई०पू०) प्रथम महिला शासिका थी। महारानी को मंदिरों के निर्माण तथा व्यापार में अधिक रुचि थी। उसने “करनक” में एक सुन्दर मंदिर का निर्माण कराया ।

दजला-फरात घाटी के पूर्वी भाग की सभ्यता (मेसोपोटामिया की सभ्यता)

• प्राचीन मेसोपोटामिया नगर दो नदियों-दजला व फरात, जिनका स्रोत एशिया माइनर में स्थित पर्वत है तथा जो दक्षिण-पूर्व दिशा में बहती हुई फरात की खाड़ी में गिरती है, की घाटी के बीच स्थित है। इस घाटी के उत्तर में कालासागर एवं कैस्पियन सागर है। दक्षिण में फारस की खाड़ी के पार हिन्द महासागर है। इसके दक्षिण-पूर्व में अरब भूखंड है जो पश्चिम में लाल सागर तथा दक्षिण में हिन्द महासागर तक फैला हुआ था। आधुनिक समय में इस घाटी के एक ओर सीरिया और अरब सागर के मरुद्यान हैं तथा दूसरी ओर आर्मीनिया की उच्च भूमि। इस प्रदेश को ‘बाइबिल पूर्वाद्ध’ (ओल्ड टेस्टामेंट) में ‘गार्डन ऑफ ईडेन’ भी कहा गया है।

सुमेरियन सभ्यता (3500ई.पू. से 2340ई.पू.)

• सुमेरियन जाति के मानव इस घाटी में नवीन पाषाण युग में जिस समय प्रविष्ट हुए थे, उनको कृषि का ज्ञान हो चुका था।

• इन लोगों का जीवन धर्म से निर्देशित होता था। प्रत्येक शहर में एक मंदिर और इस मंदिर का एक पुरोहित होता था। पुरोहित ही शासन व्यवस्था का मुखिया होता था। यहाँ के लोग पुरोहित की आज्ञा का पालन करते थे तथा उसे भगवान का प्रतिनिधि समझते थे।

बेबीलोनियन सभ्यता

• इस जाति के शासकों ने बेबीलोन नगर का निर्माण किया जो आधुनिक समय में काशगर के मैदान के नाम से जाना जाता है। इन्हें ‘बाबल लोग’ भी कहा जाता है। इनको एवं इनकी सभ्यता को सभ्यता के इतिहास में इसी नाम से जाना जाता है।

• बेबीलोनियन सभ्यता के शासकों में हम्मूराबी (1810 ई०पू०-1750 ई०पू०) शक्तिशाली एवं योग्य शासक था। वह संपूर्ण मेसोपोटामिया को जीत कर एक विशाल साम्राज्य की स्थापना की। वह पूर्णतः निरंकुश शासक था। सम्पूर्ण प्रजा उसकी दया पर आश्रित थी। वह अपने को पृथ्वी पर दैवी अवतार मानता था।

असीरियन सभ्यता

• बेबीलोन नगर के उत्तर में 200 मील दूर आसुर नगर में असीरियन जाति के मानव उस समय शासन कर रहे थे, जबकि बेबीलोनियन सभ्यता उन्नति की पराकाष्ठा पर थी। असीरियन जाति के व्यक्ति युद्धप्रिय थे। युद्ध इनकी अर्थ व्यवस्था का प्रमुख स्रोत था। धर्म का इनके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान था। असीरियन बहुदेव पूजक थे और सूर्य इनके प्रमुख देवता थे। ‘ईस्टर देवी’ की भी असीरियन समाज में पूजा की जाती थी। वह प्रजनन शक्ति की देवी थी। इसी जाति के शासकों ने सर्वप्रथम 11वीं सदी ई० पू० में बेबीलोन नगर पर आक्रमण कर विजित करने का प्रयत्न किया परन्तु बेबीलोनिया वासियों ने उनके आक्रमण को न केवल असफल किया, बल्कि भविष्य में दो शताब्दियों तक अपने राज्य की स्वतंत्रता की रक्षा की।

हिट्टी सभ्यता (1300 ई. पू.)

ईसा से लगभग 1300 वर्ष पूर्व हिट्टी सभ्यता अपनी पराकाष्ठा पर थी। इस सभ्यता के मानव ने यथार्थवादी कला का विकास किया तथा वास्तुकला में असीरिया वासियों के गुरु थे । असीरियन वासियों ने भवनों को सजाने तथा मेहराबदार द्वार बनाने की कला सीखी। हिट्टी जाति के लोग प्रजनन शक्ति के उपासक थे । प्राचीन सभ्यता में प्रमुख योगदान लोहे का प्रयोग था, जिनको कालान्तर में सभी सभ्यताओं ने अपनाया ।

आर्मीनियन सभ्यता

• आर्मीनियन वासी भी सेमेटिक जाति के मानव थे। ईसा से एक हजार पूर्व सभ्यता के तीन प्रमुख राज्य थे-हामथ, जोवा, दमश्क। आर्मीनियन वासी कुशल व्यापारी थे। ये लोग मेसोपोटामिया, फीनेशिया तथा मिस्र से व्यापार करते थे। लेखन के क्षेत्र में आर्मीनिया वासियों ने टंकाकार लिपि एवं बीजाक्षर कला के स्थान पर अक्षरों का प्रयोग किया। अर्मिक (आरमाईक) लिपि को कई शताब्दियों तक अन्तर्राष्ट्रीय लिपि का गौरव प्राप्त रहा।

फारस की सभ्यता ( 550ई.पू. से 330ई.पू. तक)

• फारस सभ्यता की जाति के जो व्यक्ति यूरोपियन देशों में जा कर बस गये उनको यूरोपियन कहा गया तथा फारस एवं भारत में बसने वालों को इण्डो कहा गया है। एशिया में प्रवेश करने के उपरान्त इस जाति के मानव दो भागों में विभक्त हो गये। इतिहास में इनको ‘मिडीज’ एवं ‘परशियन’ के नाम से जाना गया है। ये लोग अग्नि, सूर्य, चन्द्रमा तथा वायु की पूजा करते थे।

फिनीशियन सभ्यता

• फिनीशियन तटवर्ती क्षेत्र के निवासी मुख्यतः व्यापारी थे तथा व्यापार से ये लोग जीविकोपार्जन करते थे। इस क्षेत्र की भूमि कृषि के लिए उतनी उपजाऊ एवं उपयुक्त न थी जितनी घाटी के अन्य भाग की भूमि थी, अतः इस प्रदेश के निवासी जहाजों के माध्यम से दूरस्थ प्रदेशों से व्यापार करते थे।

चीन की सभ्यता

• चीन में कृषि का ज्ञान ही सभ्यता का आधार बना तथा यह सभ्यता हर दृष्टि से एक पूर्ण विकसित सभ्यता थी।

• सर्वप्रथम चीनी शासक स्वयं को देश की जनता का कल्याण कारक मानते थे । जनता के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मानते थे।

• द्वितीय चीनी सभ्यता में शिक्षित व्यक्ति को जितना महत्व, मान, सम्मान दिया जाता था, उतना अन्य किसी सभ्यता में नहीं दिया गया । माता, पिता अपने बालकों की शिक्षा की ओर विशेष ध्यान देते थे ।

• तृतीय चीनी समाज में मनोरंजन को विशेष स्थान प्राप्त था।

• चतुर्थ चीनी सभ्यता में सर्वप्रथम रेशम के वस्त्रों का निर्माण किया गया और विश्व में इसका प्रसार किया गया ।

• पंचम चीनी सभ्यता कला के क्षेत्र में चीनी कलाकार सुन्दरता, स्वच्छता का तो ध्यान रखते ही थे, साथ ही साथ कला को आनन्द का स्रोत एवं मानव भावनाओं का दर्पण मानते थे ।

• प्राचीन चीनी सभ्यता के वासी मंगोल जाति के मानव थे तथा इनमें अन्य किसी विदेशी जाति का समावेश इस कारण नहीं हो पाया, क्योंकि तत्कालीन चीन में पहुँचना बहुत कठिन था।

• मंगोल जाति के लोग शारीरिक रूप से गोल सिर एवं मुख, छोटे हाथ पैर वाले होते थे। वैज्ञानिकों का यह मानना है कि लगभग पाँच लाख वर्ष पूर्व मनुष्य यहाँ रहता था जिसे ‘पेकिंग मैन’ कहा गया है।

• चीन की विशाल दीवार वास्तुकला की उन्नति का प्रतीक है। इसका निर्माण महान राजा शी-हुआंग-टी द्वारा कराया गया था। शी-हुआंग-टी 247 ई० पू० से 210 ई० पू० तक शासन में रहा। इसने कला के विकास पर काफी बल दिया था।

• ईसापूर्व द्वितीय शती में कागज बनाने की कला को चीनियों ने खोजा था। चीन के बाद कागज का प्रयोग अरब जगत में आरम्भ हुआ।

जापानी सभ्यता

• 19वीं शताब्दी के मध्य तक जापान एक मध्यकालीन और पिछड़ा हुआ राष्ट्र था। इस समय तक जापान बाहरी विश्व के सम्पर्क से बिल्कुल अलग-थलग था।

• सर्वप्रथम 17वीं शताब्दी में-यूरोपीय व्यापारियों एवं धर्म प्रचारकों ने जापान में प्रवेश करने का निष्फल प्रयत्न किया था।

• ‘समुराई’ जापान के सैनिक जागीरदार थे ।

• ‘इकाबेना’- फूलों को सजाने की एक जापानी कला है।

• ‘काबुकी’ जापान की नाट्यशैली है।

• 1894-95 ई० में०-चीन और जापान के बीच युद्ध हुआ, जिसमें जापान ने चीन को पराजित किया ।

• जापान में चीन, कोरिया, मंचूरिया इत्यादि देशों से आये प्रवासियों के बसने से पूर्व एनू जाति के लोग रहा करते थे, जिनकी बड़ी गोल आँखे तथा प्रकृति पूजा इस बात को प्रकट करती है कि उनका सम्बन्ध काकेशियाई जाति से था ।

यूनान की सभ्यता

• विश्व सभ्यता के इतिहास में यूनान का एक विशेष स्थान है। यूनान बाल्कन प्रायद्वीप (यूरोप) का दक्षिणी भाग है, जो भूमध्यसागर से मिला हुआ है। यहाँ की सभ्यता समकालीन विश्व के लिए भी अनुकरणीय है।

• कई कबीलों का स्वामी राजा होता था।

• प्रारंभिक यूनानियों के मुख्य व्यवसाय, कृषि, पशुपालन, मिट्टी के बर्तन, तलवार और आभूषण बनाने थे ।

• प्रारंभिक यूनानियों के धार्मिक विश्वास बहुत सरल थे। यूनानी लोगों ने देवताओं की कल्पना मनुष्यों के रूप में की थी, यद्यपि ये देवता मनुष्य की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली और अमर समझे जाते थे। उनके निम्नलिखित देवता थे –

देवता/देवीधरोहर/स्थान
आकाश का देवताजियस (Zeus)
समुद्र का देवतापोसीडन (Poseidon)
सूर्य का देवताअपोलो (Apollo)
विजय की देवीएथेना (Athena)
शराब का देवताडायोनीसस (Dionysus)
पाताल का देवताहेडीज (Hades)
पृथ्वी की देवीडेमीटर (Demeter)
वन देवतासटीर (Satyr)
व्यापार का संरक्षक देवताहर्मीज (Hermes)
धातु शिल्पों का देवताहेफेस्टोस (Hephaestus)

क्रीट सभ्यता

• इस सभ्यता को पाषाण युग 6000 ई०पू० से 3000 ई०पू०, आरम्भिक म्योनन युग 3000 ई०पू०, मध्य म्योनन युग 2100 ई०पू०, अन्तिम म्योनन युग 1500 ई०पू० से 1200 ई०पू०- चार चरणों में विभक्त किया जाता है । इस प्रकार क्रीट सभ्यता की आधारशिला नवीन पाषाण युग में ही रखी जा चुकी थी; परन्तु 1600 ई०पू० से 1400 ई०पू० के बीच क्रीट सभ्यता विकास की पराकाष्ठा पर थी । इस समय क्रीटवासी दूरस्थ प्रदेशों जैसे मिस्र, बेबीलोनिया तथा अफ्रीका महाद्वीप के विभिन्न देशों से व्यापार करते थे । व्यापार के लिए विशालकाय जहाजों का प्रयोग किया जाता था । व्यापार की सुरक्षा के लिए विभिन्न तटों पर चौकियाँ बनाते थे, ये चौकियाँ एक समय में दो कार्य करती थीं ।

अफ्रीका की सभ्यता

• अफ्रीका की आधुनिक खोज से पूर्व इतिहासकार इसे ‘अंधकारमय द्वीप’ मानते थे। उन्नीसवीं सदी में यूरोपीय यात्रियों में पुर्तगालियों ने आकर इसको समझा । हालांकि भारत इसके साथ 200 ईसा पूर्व से 300 ईसा पूर्व के बीच व्यापार करता था।

अरब सभ्यता

• सातवीं शताब्दी में एक नए धर्म इस्लाम ने अरब में जन्म लिया। इस्लाम ने थोड़े ही समय में न केवल प्रतिद्वंद्वी कबीलों के बीच एकता कायम की, बल्कि उसके परिणामस्वरूप एक बड़े साम्राज्य की स्थापना हुई और एक नई सभ्यता का उदय हुआ जो अपने समय की सबसे उत्कृष्ट सभ्यता थी ।

अरबों की देन

• शिक्षा : पैगंबर के एक निर्देश के अनुसार “प्रत्येक मुसलमान का यह कर्तव्य है कि वह ज्ञान की खोज करे।” अरबों ने समस्त ज्ञान को अपना लिया और उसे विकसित किया।

• चिकित्सा : अरबों ने अनेक महान चिकित्सक पैदा किए । अल-राजी नामक अरब वैज्ञानिक ने चेचक का ठीक-ठीक निदान किया । अल-राजी को यूरोप में रहेजेस (Rhazes) के नाम से जाना जाता था । इब्न-सिना जो मध्यकालीन यूरोप में एविसेन्ना (Avicenna) के नाम से मशहूर था, ने पता लगाया कि तपेदिक छूत का रोग है। इब्न-सिना ने तंत्रिका तंत्र (Nervous System) संबंधी अनेक रोगों का वर्णन किया । अरबों ने प्लेग, आँख के रोगों, छूत की बीमारियों के फैलने आदि के विषय में जानकारी प्राप्त करने और अस्पतालों के संगठन में बड़ी प्रगति की।

• अंक एवं गणित : गणित के क्षेत्र में अरबों ने भारतीय अंक-प्रणाली सीखी और उसे दूर-दूर तक फैलाया। इसी कारण ये अंक अब भी पश्चिमी देशों में ‘अरबी अंक’ कहलाते हैं। अरबों ने बीजगणित, त्रिकोणमिति और रसायन शास्त्र का भी विकास किया। उमर खय्याम ने एक पंचांग बनाया, जो ईसाइयों के उस पंचांग से अधिक शुद्ध है जो आजकल संसार के अनेक देशों में प्रयुक्त किया जाता है । अरब ज्योतिषियों का अनुमान था कि पृथ्वी सम्भवतः अपनी धुरी पर घूमती है और सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है । अरब निवासियों ने रसायन शास्त्र में अनेक प्रयोग किए। इनसे अनेक नए मिश्रणों का, जैसे सोडियम कार्बोनेट, सिल्वर नाइट्रेट और शोरे तथा गंधक के तेजाबों का पता किया ।

• दर्शन और जीवन : दर्शनशास्त्र में भी अरबों की उपलब्धियाँ महत्वपूर्ण थीं। यूनान का ज्ञान और बौद्धिक परंपराएँ सीरिया और फारस के जरिए अरबों को मिलीं। इब्न-सिना को यूरोप में एक दार्शनिक के रूप में जाना जाता था। अबू अल-वलीद मुहम्मद इब्न-रुश्त, जिन्हें यूरोपवासी ऐवरोंज के नाम से जानते थे।

• मध्यकालीन इस्लामी साहित्य को मुख्य प्रेरणा ईरान (फारस) से मिली। इस काल की कुछ प्रसिद्ध रचनाएँ हैं-उमर खय्याम की ‘रूबाइयां’, फिरदौसी का ‘शाहनामा’ और एक हजार एक कहानियों का संग्रह ‘अलिफलैला’ जिसकी कहानियों से तत्कालीन संस्कृति और समाज के विषय में काफी जानकारी मिलती है।

अरबी कला : अरबी कला पर बाइजेंटाइन और ईरान की कला का प्रभाव पड़ा, किन्तु अरब निवासियों ने अलंकरण के मौलिक नमूने निकाल लिए । उनके भवनों पर बल्बों- जैसे गुंबद, छोटी मीनारें, घोड़ों के खुरों के आकार के मेहराब और मरोड़दार स्तंभ होते थे । अरब वास्तुकला की विशेषताएँ तत्कालीन मस्जिदों, पुस्तकालयों, महलों, चिकित्सालयों और विद्यालयों में देखी जा सकती हैं। अरबों ने लिखने की एक अलंकृत शैली का भी आविष्कार किया जिसे खुशखती कहते हैं। इससे उन्होंने पुस्तक सजाने के कार्य को भी कला के रूप में विकसित किया ।

अमेरिकी सभ्यता

• अमेरिका में मानव निश्चित रूप से 10,000 ई०पू० तक संभवतः साइबेरिया से आ चुका था। वहाँ की सुप्रसिद्ध सभ्यताओं का एक लंबा इतिहास है। उनमें से कुछ मध्य और दक्षिण अमेरिका में 16वीं शताब्दी ईसा पूर्व में भी फल-फूल रही थीं।

• इनमें अधिक प्रसिद्ध मध्य अमेरिका की माया और एजटेक सभ्यताएँ तथा दक्षिण अमेरिका के एंडीज में इंका सभ्यता थी।

यह भी पढ़ें: संवैधानिक विकास

निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट विश्व की प्रमुख सभ्यताएं जरुर अच्छी लगी होगी। विश्व की प्रमुख सभ्यताएं के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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