जो देखकर भी नहीं देखते : अध्याय 9

कभी-कभी मैं अपने मित्रों की परीक्षा लेती हूँ, यह परखने के लिए कि वह क्या देखते हैं। हाल ही में मेरी एक प्रिय मित्र जंगल की सैर करने के बाद वापस लौटीं। मैंने उनसे पूछा, “आपने क्या-क्या देखा?”

“कुछ खास तो नहीं,” उनका जवाब था। मुझे बहुत अचरज नहीं हुआ क्योंकि मैं अब इस तरह के उत्तरों की आदी हो चुकी हूँ। मेरा विश्वास है कि जिन लोगों की आँखें होती हैं, वे बहुत कम देखते हैं।

क्या यह संभव है कि भला कोई जंगल में घंटाभर घूमे और फिर भी कोई विशेष चीज्ज न देखे ? मुझे जिसे कुछ भी दिखाई नहीं देता- सैकड़ों रोचक चीजें मिलती हैं, जिन्हें मैं छूकर पहचान लेती हूँ। मैं भोज-पत्र के पेड़ की चिकनी छाल और चीड़ की खुरदरी छाल को स्पर्श से पहचान लेती हूँ। वसंत के दौरान मैं टहनियों में नयी कलियाँ खोजती हूँ। मुझे फूलों की पंखुड़ियों की मखमली सतह छूने और उनकी घुमावदार बनावट महसूस करने में अपार आनंद मिलता है। इस दौरान मुझे प्रकृति के जादू का कुछ अहसास होता है। कभी, जब मैं खुशनसीब होती हूँ, तो टहनी पर हाथ रखते ही किसी चिड़िया के मधुर स्वर कानों में गूंजने लगते हैं। अपनी अँगुलियों के बीच झरने के पानी को बहते हुए महसूस कर मैं आनंदित हो उठती हूँ। मुझे चीड़ की फैली पत्तियाँ या घास का मैदान किसी भी महँगे कालीन से अधिक प्रिय है। बदलते हुए मौसम का समाँ मेरे जीवन में एक नया रंग और खुशियाँ भर जाता है।

कभी-कभी मेरा दिल इन सब चीजों को देखने के लिए मचल उठता है। अगर मुझे इन चीज़ों को सिर्फ छूने भर से इतनी खुशी मिलती है, तो उनकी सुंदरता देखकर तो मेरा मन मुग्ध ही हो जाएगा। परंतु, जिन लोगों की आँखें हैं, वे सचमुच बहुत कम देखते हैं। इस दुनिया के अलग-अलग सुंदर रंग उनकी संवेदना को नहीं छूते। मनुष्य अपनी क्षमताओं की कभी कदर नहीं करता। वह हमेशा उस चीज की आस लगाए रहता है जो उसके पास नहीं है। यह कितने दुख की बात है कि दृष्टि के आशीर्वाद को लोग एक साधारण-सी चीज समझते हैं, जबकि इस नियामत से जिंदगी को खुशियों के इंद्रधनुषी रंगों से हरा-भरा किया जा सकता है।

लेखिका के बारे में

हेलेन केलर (1880-1968, अमेरिका) एक ऐसा नाम है जो घोर अंधकार के बीच भी रोशनी देता रहा। कल्पना करो कि जो न सुन सकता हो, न देख सकता हो फिर भी वह लिखना-पढ़ना और बोलना सीख ले, भरपूर आशा-आकांक्षा के साथ जीवन जीने लगे और उसके योगदान दुनिया के लिए यादगार बन जाएँ। ऐसी थीं हेलेन केलर। जब वे डेढ़ वर्ष की थीं, बचपन की एक गंभीर बीमारी की वजह से उनकी देखने और सुनने की शक्ति जाती रही, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। कॉलेज के दिनों में ही प्रकाशित अपनी आत्मकथा ‘स्टोरी ऑफ़ लाइफ़’ में वे लिखती है- “मुझे ये तो याद नहीं कि ऐसा कैसे हुआ, लेकिन ऐसा लगता था कि रात कभी खत्म क्यों नहीं होती और सुबह क्यों नहीं आती।” दुनिया की सभी भाषाओं में इस किताब के अनुवाद हुए हैं। इसके अलावा भी उनकी दस पुस्तकें और सैकड़ों लेख प्रकाशित हुए हैं। उन्होंने दुनियाभर में घूम-घूमकर अपने जैसे लोगों के अधिकारों और विश्वशांति के लिए काम किया। हेलेन केलर भारत भी आई थी।

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प्रश्न-अभ्यास

निबंध से

1. ‘जिन लोगों के पास आँखें हैं, वे सचमुच बहुत कम देखते हैं’ हेलेन केलर को ऐसा क्यों लगता था?
Ans.
हेलेन केलर ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि जो लोग किसी चीज को निरंतर देखने के आदी हो जाते हैं वे उनकी तरफ़ अधिक ध्यान नहीं देते। उनके मन में उस वस्तु के प्रति कोई जिज्ञासा नहीं रहती। ईश्वर की दी हुई देन का वह लाभ नहीं उठा। सकते।

2. ‘प्रकृति का जादू’ किसे कहा गया है?
Ans.
प्रकृति का जादू वह है जो प्रकृति के रूप में नित्य कुछ-न-कुछ परिवर्तन करता है। प्रकृति अपने रूप के आकर्षण से हमें अपनी ओर जादू की तरह आकर्षित करती है। प्रकृति में विविधता है, अलग-अलग वृक्षों की अलग-अलग घुमावदार बनावट और उनकी छाल और पत्तियाँ होना, फूलों का खिलना, कलियों की पंखुड़ियों की मखमली सतह, बागों में पेड़ों पर गाते पक्षी, कलकल करते बहते हुए झरने, कालीन की तरह फैले हुए घास के मैदान आदि प्रकृति के जादू हैं।

3. ‘कुछ खास तो नहीं’ हेलेन की मित्र ने यह जवाब किस मौके पर दिया और यह सुनकर हेलेन को आश्चर्य क्यों नहीं हुआ?
Ans.
प्रकृति में चारों ओर देखने और समझने की बहुत सी चीजें हैं, फिर भी उनकी मित्र कह रही है कि मैंने कुछ खास नहीं देखा। लेखिका का मानना है कि वे कुछ भी देखना ही नहीं चाहती। वे उन चीजों की चाह ज़रूर करती हैं जो उनके आस-पास नहीं है।

4. हेलेन केलर प्रकृति की किन चीज़ों को छूकर और सुनकर पहचान लेती थीं? पाठ के आधार पर इसका उत्तर लिखो।
Ans.
हेलेन केलर प्रकृति की अनेक चीजों जैसे भोज-पत्र पेड़ की चिकनी छालं, चीड़ की खुरदरी छाल, टहनियों में नई, कलियों फूलों की पंखुड़ियों की बनावट को छूकर और सँघकर पहचान लेती है।

5. ‘जबकि इस नियामत से जिंदगी को खुशियों के इन्द्रधनुषी रंगों से हरा-भरा किया जा सकता है। तुम्हारी नजर में इसका क्या अर्थ हो सकता है?
Ans.
हमारी आँखें अनमोल होती हैं। संसार की सारी खूबसूरती आँखों से ही है। जीवन के सभी रंग आँखों से ही हैं। अतः यह जिंदगी की बहुत बड़ी देन है। इसमें जिंदगी को रंगीन और खुशहाल बनाया जा सकता है और अपने सारे दुखों को भुलाया जा सकता है।

निबंध से आगे

1. आज तुमने अपने घर से आते हुए बारीकी से क्या-क्या देखा-सुना? मित्रों के साथ सामूहिक चर्चा करो।
Ans.
आज जब मैं अपने घर से विद्यालय के लिए निकला तो चौराहे पर कुछ लोगों की भीड़ देखी। वे लोग हाथों में समाचार पत्र लिए हुए और किसी गंभीर मसले पर चर्चा कर रहे थे। इतने में मेरी स्कूल बस आ गई। थोड़ी आगे चलकर स्कूल बस भीड़ पर जाम में फंस गई। आगे जाने पर पता चला दुर्घटना हो गई है। एक वाहन उलटा पड़ा था। वहाँ का दृश्य देखकर मन दुखी हो गया। लगभग 15 मिनट बाद में विद्यालय पहुँचा। इसके बाद प्रार्थना में शामिल हुआ, फिर कक्षा में गया। उसके बाद धीरे-धीरे शांति का वातावरण छाया।

2. कान से न सुन पाने पर आस-पास की दुनिया कैसी लगती होगी? इस पर टिप्पणी लिखो और कक्षा में पढ़कर सुनाओ।
Ans.
कान से न सुन पाने पर दुनिया बड़ी विचित्र लगती है। आँखें तो सब कुछ देखती हैं, पर जब उन क्रिया कलापों की आवाज़ नहीं सुन पाते तब ऐसा प्रतीत होता है मानो बंद कानों से हम मूक फ़िल्मों की तरह देखते हैं। न सुनने के कारण व्यक्ति दूसरों से अपने विचारों का आदान-प्रदान सही रूप में नहीं कर पाता होगा।

3. तुम्हें किसी ऐसे व्यक्ति से मिलने का मौका मिले जिसे दिखाई न देता हो तो तुम उससे सुनकर, सूँघकर, चखकर, छूकर अनुभव की जानेवाली चीज़ों के संसार के विषय में क्या-क्या प्रश्न कर सकते हो? लिखो।
Ans.
उनके अनुभव जानने के लिए निम्नलिखित प्रश्न कर सकते हैं-

• किसी भी ध्वनि को सुनकर वे कैसे अनुमान लगाते हैं कि ध्वनि किसकी है?
• किसी भी चीज़ को चखकर वे क्या हैं? और कैसा अनुभव करते हैं?
• क्या आप पक्षी की आवाज़ को सुनकर उसका नाम बता सकते हैं? यह कैसे संभव हो पाता है?
• क्या आप सँघकर बता सकते हैं कि यह कौन-सा फूल है?
• सँधकर अच्छी-बुरी चीज़ का अंदाजा किस हद तक लगा पाते हैं?

4. हम अपनी पाँचों इंद्रियों में से आँखों का इस्तेमाल सबसे ज्यादा करते हैं। ऐसी चीजों के अहसासों की तालिका बनाओ जो तुम बाकी चार इंद्रियों से महसूस करते हो-

सुनकर   चखकर   सूंघकर   छ्कर

Ans.

सुनकर- कोयल का मधुर स्वर, कौए की कर्कश आवाज़, माँ की नाराज़गी भरी पुकार, गीत सुनकर गायक की पहचान

सूंघकर – सेब या आम की मिठास, अचार की खटास, मिर्च का तीखापन, इमली का चटपटा स्वाद स्वादिष्ट भोजन, कड़वी दवा

सूंघकर- फूलों का गंध, पक रहे भोजन की गंध, गैस का रिसाव

छूकर- बरफ की ठंडक, आग की गरमी, कपड़े के प्रकार की जानकारी, शरीर का तापमान

FAQs

प्रश्न 1. लेखिका के कानों में किसके मधुर स्वर गूंजने लगते थे?
उत्तर-
लेखिका के कानों में चिड़ियों के मधुर स्वर गूंजने लगते थे।

प्रश्न 2. लेखिका को प्रकृति के जादू का अहसास कब होता है?
उत्तर-
फूलों की पंखुड़ियों की मखमली सतह छूने और उनकी घुमावदार बनावट महसूस करने से लेखिका को प्रकृति के जादू का अहसास होता है।

प्रश्न 3. इस दुनिया के लोग कैसे हैं?
उत्तर-
इस दुनिया के अधिकांश लोग संवेदनहीन हैं। वे अपनी क्षमताओं की कद्र करना नहीं जानते।

प्रश्न 4. हेलेन केलर अपने मित्रों की परीक्षा क्यों लेती है?
उत्तर-
हेलेन केलर अपने मित्रों की परीक्षा यह परखने के लिए लेती है कि वे क्या देखते हैं।

प्रश्न 5. लेखिका को झरने का पानी कब आनंदित करता है?
उत्तर-
लेखिका जब झरने के पानी में अँगुलियाँ डालकर उसके बहाव को महसूस करती है, तब वह आनंदित हो उठती है।

प्रश्न 6. लेखिका को किस काम से खुशी मिलती है?

उत्तर- लेखिका को प्राकृतिक वस्तुओं को स्पर्श करने में खुशी मिलती है। वह चीज़ों को छूकर उनके बारे में जान लेती है। यह स्पर्श उसे आनंदित कर देता है।

प्रश्न 7. मनुष्य का स्वभाव क्या है?
उत्तर-
मनुष्य अपनी क्षमताओं की कदर नहीं करता। वह अपनी ताकत और अपने गुणों को नहीं पहचानता। वह नहीं जानता कि ईश्वर ने उसे आशीर्वाद स्वरूप क्या-क्या दिया है और उसका उपयोग नहीं कर सकता है। मनुष्य केवल उस चीज़ के पीछे भागता रहता है, जो उसके पास नहीं है। यही मनुष्य का स्वभाव है।

प्रश्न 8. जिन लोगों के पास आँखें हैं, वे सचमुच बहुत कम देखते हैं- हेलेन केलर को ऐसा क्यों लगता है?
उत्तर-
लेखिका ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि जो लोग किसी चीज़ को निरंतर देखने के आदती हो जाते हैं, वे उनकी तरफ़ अधिक धान नहीं देते। उनके मन में उस वस्तु के प्रति कोई जिज्ञासा नहीं रहती। ईश्वर की दी हुई देन का लाभ नहीं उठा पाते।

प्रश्न 9. लेखिका ने किसे नियामत माना है? उससे क्या किया जा सकता है?
उत्तर-
लेखिका दृष्टि को ईश्वरीय देन मानती है। दृष्टि ईश्वर द्वारा दी गई नियामत है। यह साधारण चीज़ नहीं। दृष्टि से हम जीवन में कई तरह की खुशियाँ प्राप्त कर सकते हैं। दृष्टि के द्वारा ही मानव सही उपयोग करके जितना चाहे उन्नति कर सकता है। दृष्टि जीवन में हर प्रकार के सुख पाने का माध्यम है। इसी से मनुष्य स्वावलंबी बन सकता है। समाज को भी उन्नत कर सकता है।

प्रश्न 10. इस पाठ से हमें क्या प्रेरणा मिलती है?
उत्तर-
इस पाठ से हमें यह प्रेरणा मिलती है कि जीवन में जीने के लिए मनुष्य के पास जो साधन उपलब्ध हो उनसे संतुष्ट रहना चाहिए।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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