पवन तथा पवनों के प्रकार

पवन किसे कहते हैं?

पृथ्वी के धरातल पर वायुदाब की भिन्नता के कारण वायु में गति उत्पन्न होती है, जिसे पवन कहते हैं।

• पवन की दिशा एवं गति को दाब प्रवणता, कोरिऑलिस बल, अभिकेन्द्रीय त्वरण तथा भूतल से घर्षण प्रभावित करते हैं।

• क्षैतिज रूप से गतिशील हवा को पवन कहते हैं।

• उर्ध्वाधर दिशा में गतिशील हवा को वायु धारा कहते हैं।

• पवन का प्रभाव सदैव उच्च दाब से निम्न दाब की तरफ होता है तथा पवन की गति दाब की प्रवणता पर निर्भर करती है।

• यदि समदाब रेखाएँ पास-पास होंगी तो ढाल तीव्र होगा और पवनें तीव्र गति से चलेंगी, लेकिन यदि समदाब रेखाएँ दूर होंगी तो वायुदाब का ढाल मन्द होगा और पवन की गति धीमी होगी।

कोरिऑलिस बल : पृथ्वी के घूर्णन के कारण हवाओं की दिशा में कुछ अंतर आ जाता है। इस घूर्णन से जनित बल को कोरिऑलिस बल कहते हैं।

फेरल का नियम : उत्तरी गोलार्द्ध में पवन अपनी दाहिनी ओर तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में पवन अपनी बायीं ओर विक्षेपित हो जाती है।

बॉयज बैलट का नियम : यदि कोई व्यक्ति उत्तरी गोलार्द्ध में पवन की ओर पीठ करके खड़ा हो, तो उच्च दाब उसके दायीं ओर तथा निम्न दाब उसके बायीं ओर होगा।

पवनों के प्रकार

व्यापारिक पवन : उपोष्ण उच्च दाब कटिबन्धों से भूमध्य रेखीय निम्न दाब कटिबंध की ओर चलने वाली पवनों को व्यापारिक पवन कहते हैं। ये 50 से 30° अक्षांशों के मध्य उत्तर एवं दक्षिण गोलार्डों में चलती हैं। कारिऑलिस बल के प्रभाव में ये पवनें उत्तर गोलार्द्ध में उत्तर-पूर्वी तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिण-पूर्वी दिशा में चलती है। इसलिए इन्हें पूर्वा पवन (Easterlies) भी कहते हैं।

• पछुवा पवन : पछुआ पवन (Westerlies) उस प्रदेश में चलती है जो उपोष्ण उच्च भार क्षेत्रों अथवा अश्व अक्षांशों के उत्तर में ध्रुवों की ओर स्थित हैं, इन पवनों को प्रति व्यापारिक पवन या पछुआ पवन (Westerlies) कहा जाता है। उत्तरी गोलार्द्ध में ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व की ओर तथा दक्षिण गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व दिशा में चलती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में 40°- 60° अक्षांशों के बीच इन्हें गरजता चालीसा, प्रचण्ड पचासा तथा चीखता साठा कहा जाता है।

• ध्रुवीय पवन : ध्रुवीय उच्च वायुदाब कटिबंध से न्यून वायुदाब कटिबंध की ओर बहने वाली पवनों को ध्रुवीय पवनें कहते हैं। इनका क्षेत्र दोनों गोलाद्धों में ध्रुवों से 65° अक्षांश तक होता है।

• मानसून पवनें : ये पवनें मौसम के अनुसार चलती हैं। ग्रीष्म में ये पवनें समुद्र से स्थल की ओर चलती हैं, जिन्हें ग्रीष्मकालीन मानूसन कहते हैं। शीत ऋतु में ये पवनें स्थल से समुद्र की ओर चलती हैं, जिन्हें शीतकालीन मानसून कहते हैं। मानूसनी पवनें भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, अरब सागर, बंगाल की खाड़ी सहित दक्षिण-पूर्वी एशिया, उत्तरी ऑस्ट्रेलिया के ऊपर बहती है।

• समुद्री समीर (पवन) : स्थल एवं जलीय भाग के तापमान में विषमता के कारण दिन के समय वायुमंडल की निचली परतों में समुद्री समीर बहती है। ये हवाएँ समुद्र के निकटवर्ती स्थानों के तापमान और आर्द्रता को प्रभावित करती हैं।

• स्थलीय समीर (पवन) : रात्रि के समय स्थल भाग शीघ्र ठण्डा होता है, जिससे रात्रि में स्थल भाग पर वायुदाब अधिक होता जाता है और जलीय भाग पर कम रहता है। इसलिए रात्रि में हवाएं स्थल से जल की ओर चलती हैं, जिन्हें स्थलीय समीर कहते हैं।

घाटी समीर : पर्वतीय क्षेत्रों में दिन के समय पर्वत के ढाल घाटी तल की अपेक्षा अधिक गर्म होते हैं। इस कारण पवन घाटी तल से पर्वतीय ढाल की ओर बहने लगती है, जिसे घाटी समीर कहते हैं।

• पर्वत समीर : सूर्यास्त के बाद पर्वत ढाल पर से पार्थिव विकिरण द्वारा ऊष्मा की हानि घाटी तल की अपेक्षा तेजी से होता है। इस कारण पर्वतीय ढाल से ठण्डी एवं घनी पवन नीचे घाटी में उतरने लगती है, जिन्हें पर्वत समीर कहा जाता है।

फॉन : यह एक गर्म और शुष्क पवन है जो पर्वतों के ढालों पर नीचे की ओर चलती है। यह पवनें उत्तरी आल्पस पर्वत घाटियों में चलती हैं। इसका सर्वाधिक प्रभाव स्विटजरलैंड में होता है।

• ब्रिक फील्डर : यह एक गर्म एवं शुष्क पवन है जो ऑस्ट्रेलिया के आन्तरिक भाग में दक्षिण-पूर्व के तटवर्ती भूमि की ओर ग्रीष्म ऋतु में चलती है।

चिनूक : चिनूक का अर्थ होता है, हिम खाने वाला। यह शुष्क (गर्म) पवन है जो संयुक्त राज्य अमेरिका में रॉकी पर्वत के ढालों पर कनाडा में चलती है। यह शीतकाल में हिम को पिघला और सुखा देती है। इस प्रकार पूरी शीतऋतु में पशुओं को चराने में सुविधा प्रदान करती है।

• हिम झंझावत (ब्लिजार्ड) : ये अत्यंत शीतल पवन है जिसमें मेघों से हिम वर्षा होती है। ये कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं अंटार्कटिका महाद्वीप में चलती है।

• सिराको : यह अत्यंत उष्ण, धूल एवं रेत भरी पवन है जो सहारा मरुस्थल से भूमध्य सागर की ओर चला करती है। यह भूमध्य सागर को पार करने के क्रम में आर्द्रता ग्रहण करती है और माल्टा, सिसली और इटली तक पहुँचती है। मिस्र में ये पवनें खमसिन, ट्यूनीशिया में चिली, लीबिया में गिबली के नाम से जानी जाती है।

• हरमट्टन : ये शक्तिशाली उत्तर पूर्वी पवनें सहारा मरुस्थल से चलती है। जब ये पवनें गुआना तट पर प्रवेश करती है तब ये यहाँ के निवासियों को राहत प्रदान करती है और स्वास्थ्य वर्धक होती है। इसलिए इन पवनों को डॉक्टर विंड भी कहा जाता है।

• पुरगा : यह साइबेरिया की ठण्डी उत्तरी-पूर्वी पवनें हैं। इसकी हिम विशिष्टता के कारण इसे टुण्ड्रा में इस नाम से पुकारा जाता है।

• विली-विली : ये ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी-पश्चिमी तट पर बहने वाली उष्ण कटिबंधीय तीव्र तूफानी पवनें हैं।

• सिमूम : सिमूम उष्ण धूल भरी पवनें होती हैं, जिनका तापमान उत्तरी सहारा में 40°C से 59°C तक रहता है।

मिस्ट्रल : मिस्ट्रल एक शीतल पवन है जिसका अनुभव रोन की घाटी (फ्रांस) तथा उसके डेल्टा में होता है।

स्थानीय हवाएँ

गर्म हवाएँप्रभावित क्षेत्र
लूउत्तरी भारत
ब्लैक रोलरउत्तरी अमेरिका के मैदान
नार्वेस्टरन्यूजीलैंड
जोन्डाअर्जेन्टीना
हबूबउत्तर पूर्वी सूडान
सांताआनाकैलिफोर्निया (सं.रा.अ.)
शामलइराक
सिमूमईरान
बर्गउत्तरी आल्पस (प.-अफ्रीका)
कराबर्नसिक्यांग (चीन)
सोलानोस्पेन के तट के सहारे
ठण्डी हवाएँप्रभावित क्षेत्र
पापागायोमेक्सिको का पठार
दक्षिण बस्र्टरदक्षिण-पूर्व ऑस्ट्रेलिया
पोनन्तफ्रांस एवं कोर्सिक तट
नाटेंमध्य अमेरिका
फाइजेमब्राजील
मिस्ट्रलफ्रांस एवं रोन घाटी
ग्रीगेलभूमध्य सागर
बोराएड्रियाटिक सागर इटली
बुरानसाइबेरिया तथा मध्य एशिया
नेवाडोसइक्वाडोर
नॉर्डरसंयुक्त राज्य अमेरिका
पैम्पेरोअर्जेंटीना, उरुग्वे

आर्द्रता

वायुमंडल में उपस्थित जलवाष्प को आर्द्रता कहते हैं। आर्द्रता को ग्राम प्रति घनमीटर में मापा जाता है। गर्म वायु में जलवाष्प रोके रखने का सामर्थ्य अधिक होता है, जबकि शीतल वायु की सामर्थ्य कम होती है। आर्द्रता तीन प्रकार की होती है-

1. निरपेक्ष आर्द्रता (Absolute Humidity) : वायु की प्रति इकाई आयतन में विद्यमान जलवाष्प की मात्रा को निरपेक्ष आर्द्रता कहते हैं। इसे ग्राम प्रतिघन मीटर में व्यक्त किया जाता है।

2. सापेक्ष आर्द्रता (Relative Humidity): सापेक्ष आर्द्रता जलवाष्प का अनुपात होता है, जो वास्तव में वायु में पाई जाती है, उसकी तुलना में जो वह वायु उस तापक्रम पर जलवाष्प को रोके रख सकती है। इसे प्रतिशत में व्यक्त किया जाता है।

सापेक्ष आर्द्रता = वायु में वास्तविक जलवाष्प की मात्रा/ वायु का अधिकतम जल वाष्प सामर्थ्य ×100

3. विशिष्ट आर्द्रता (Specific Humidity): वायु के प्रति इकाई भार में जलवाष्प के भार को विशिष्ट आर्द्रता कहते हैं। इसे ग्राम प्रति किलोग्राम में व्यक्त किया जाता है।

संघनन (Condensation)

जल के गैसीय अवस्था से तरल या ठोस अवस्था में परिवर्तित होने की प्रक्रिया को संघनन कहा जाता है। संघनन प्रक्रिया में जलवाष्प तरल अवस्था में बदल जाता है वायु के जिस तापमान पर जल अपनी गैसीय अवस्था (जलवाष्प) से तरल या ठोस अवस्था से में बदलता है तो उसे ओसांक कहते हैं।

संघनन दो कारकों पर निर्भर करता है-

(i) वायु की सापेक्ष आर्द्रता पर

(ii) ठण्डा होने की अवस्था पर

1. ओस (Dew): जब धरातल पर रात्रि के समय विकिरण द्वारा वायुमंडल की निचली परतें ओसांक बिन्दु से नीचे ठण्डी हो जाती है और उसमें उपस्थित जलवाष्प की बूंदें संघनित हो जाती है, तो ओस कहलाती है। घास, फूल एवं पत्तियों पर जल बूंदों को ओस कहा जाता है।

2. पाला या तुषार (Frost) : धरातल पर जब वायु तापमान 0°C से नीचे चला जाता है, जमी हुई नमी के कण से पाला बनता है।

3. कोहरा (Fog) : वायु की निचली परत में जलवाष्प का संघनन कोहरे का कारण होता है, वायु का उसके हिमांक बिन्दु से नीचे शीतल होना होता है। इसमें दृश्यता एक किमी से कम होता है।

4. धुंध (Mist) : वातावरण में संघनन केन्द्र की बड़ी संख्या में उपस्थिति के कारण वायुमंडल की निचली परतों में धुंधलेपन की अवस्था को धुंध कहते हैं। इसमें कोहरा घना न होकर हल्का पतला होता है। इसमें दृश्यता एक किमी. से अधिक तथा दो किमी से कम होती है।

5. हिम (Snow) : वातावरण में हिम तब बनता है जब हिमांक बिन्दु से नीचे तापमान पर जल वाष्प का संघनन होता है। हिम वर्षण का ठोस रूप है।

6. ओला (Hail) : वातावरण में ओला तब बनता है जब जल बूंदें जम जाती हैं। जब ये कण अधिक बड़े हो जाते हैं और आरोही वायु प्रवाह अवरोध को पार नहीं कर पाते हैं, तो ये गिरना प्रारंभ कर देते हैं। ये कपासी मेघों से गिरते हैं और गरजने वाले तूफानों से संबंधित होते हैं।

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निष्कर्ष

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट पवन तथा पवनों के प्रकार जरुर अच्छी लगी होगी। पवन तथा पवनों के प्रकार के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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