कार्य, सामर्थ्य और ऊर्जा (Work, Power and Energy)

इस लेख में हम कार्य, सामर्थ्य और ऊर्जा (Work, Power and Energy) के बारे में विस्तार से जानकारी प्राप्त करेंगे। तो आइए निम्नलिखित परिभाषाओं को पढ़ते हैं –

कार्य (Work)

सामान्य भाषा में कार्य का अर्थ किसी क्रिया के सम्पादन (Completing any activity) से होता है जैसे हल चलाना (Plough), लकड़ी काटना (Wood cutting), पढ़ना (reading) इत्यादि। परन्तु भौतिकी में कार्य का विशेष अर्थ है जो निम्नवत् है –

“बल लगाकर किसी वस्तु को बल की दिशा में विस्थापित करने की क्रिया को ही कार्य कहते हैं।”

इस प्रकार, कार्य = बल × बल की दिशा में विस्थापन or W = F.d

यह एक अदिश (scalar) राशि है। इसका मात्रक न्यूटन मीटर या जूल होता है।

यह आवश्यक नहीं है कि विस्थापन बल की दिशा में ही हो। ऐसी दशा में बल का वह घटक लेना होता है जो विस्थापन की दिशा में होता है। उदाहरणार्थ, निम्न चित्र में –

वस्तु का विस्थापन A से B तक (d) हुआ जिसकी दिशा बल F की दिशा से θ कोण बनाती है। ऐसी दशा में बल F का विस्थापन की दिशा में घटक (Component) F. cosθ  होगा।

अतः कार्य W = F. d.cosθ

सामर्थ्य अथवा शक्ति (Power)

किसी कर्त्ता या मशीन या निकाय द्वारा एकांक समय (प्रायः 1 सेकेंड) में किये गये कार्य को उसकी शक्ति या सामर्थ्य कहते हैं या, कार्य करने की दर को शक्ति कहते हैं। “Rate of work is power”. या, प्रति सेकेंड किये गये कार्य को सामर्थ्य कहते हैं।

सामर्थ्य (P) = कार्य (w)/समय (t)

मात्रक – जूल/सेकेण्ड (JS-1)*
या, वाट (Watt – W)*
यह एक अदिश राशि (Scalar Quantity) है।*

ऊर्जा (Energy)

ऊर्जा एक ऐसा कारक (factor) है जो कार्य करने के लिए आवश्यक होता है। अतः “जिस कारण से किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता होती है, उसे ऊर्जा कहते हैं।”

इसीलिए जब किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता होती है तो कहा जाता है कि वस्तु में ऊर्जा है। जैसे- गिरता हुआ हथौड़ा, चलती हुई बंदूक की गोली, उच्च दाब पर अथवा तेज बहती हुई वायु, ऊँचाई पर रखा अथवा तेज गति से बहते झरने का जल, ऊष्मा इंजन में जल वाष्प, विद्युत सेल आदि कुछ ऐसी वस्तुएँ हैं जो कार्य कर सकती हैं अर्थात् वस्तुओं पर बल लगाकर उनका विस्थापन कर सकती हैं। अतः इनमें ऊर्जा है। स्पष्ट है कि ऊर्जा का मात्रक (unit) वही होगा जो कार्य का मात्रक है (क्योंकि किये गये कार्य से ही ऊर्जा की माप की जाती है)। इस प्रकार यह भी एक अदिश (Scalar) राशि है।*

ऊर्जा स्थानान्तरण से कार्य की माप

हम जानते हैं कि बल लगाने में सदा दो वस्तुएँ भाग लेती हैं। एक जो बल लगा रही है व दूसरी वह जिस पर बल लग रहा है। हॉकी का खिलाड़ी जब स्थिर बॉल को स्टिक से हिट लगाकर आगे फेंकता है तो स्टिक द्वारा गेंद पर कार्य किया जाता है जिससे गेंद की ऊर्जा में वृद्धि हो जाती है तथा हिट करने वाले की ऊर्जा का व्यय होता है। इस प्रकार ऊर्जा स्टिक से गेंद में स्थानान्तरित हो गई। अतः स्पष्टतः हम कह सकते हैं कि कार्य होने की क्रिया में ऊर्जा स्थानान्तरण होता है।

जब एक वस्तु दूसरी पर कार्य करती है तो कार्य करने वाली वस्तु की ऊर्जा का व्यय होता है तथा जिस पर कार्य किया जाता है उसकी ऊर्जा बढ़ जाती है, परन्तु निकाय (system) की ऊर्जा में कोई परिवर्तन नहीं होता है। एक वस्तु की जितनी ऊर्जा व्यय होती है उतनी ही ऊर्जा की वृद्धि दूसरे की हो जाती है। अतः ऊर्जा स्थानान्तरण की माप किये गये कार्य से की जा सकती है।

स्थानान्तरित ऊर्जा = किया गया कार्य

ऊर्जा के मात्रक (Units of Energy)

• C.G.S. पद्धति में ऊर्जा का मात्रक अर्ग होता है।

• M.K.S. व S.I. पद्धति में ऊर्जा का मात्रक जूल (Joule) होता है। 1 जूल, 1 न्यूटन मीटर या 1 किग्रा. मी.2/से.2 के बराबर होता है।

• वाट-घंटा (Watt hour)- प्रति सेकेंड एक जूल कार्य होने पर इसे 1 वाट कहते हैं। इसी दर से यदि एक घंटे तक कार्य हो तो इसे 1 वाट – घंटा कहते हैं।

1 वाट घंटा = 1 जूल का कार्य × 1 घंटा
               = 1 वाट × (60 × 60) से.
               = 3600 जूल = 3.6 × 103 जूल

• किलोवाट घंटा (Kilowatt hour) – 1 किलोवाट घंटा = 1 किलोवाट × 1 घंटा = 1000 वाट × 3600 से. = 3.6 × 106 जूल

अश्वशक्ति घंटा (Horse Power Hour-HPA)

यदि एक घंटे तक कोई कर्मक एक अश्वशक्ति (746 watt) प्रति सेकेंड की दर से कार्य करे इसे 1 अश्व शक्ति घंटा कहते हैं।*

ऊर्जा के विभिन्न रूप (Different forms of Energy)

द्रव्यमान-ऊर्जा (Mass – Energy)

प्रत्येक द्रव्य (matter) में उसके द्रव्यमान (mass) के कारण उसमें ऊर्जा संचित रहती है, जिसकी गणना आइंस्टीन के सूत्र E = mc² [जहाँ E = पदार्थ में निहित ऊर्जा, m = पदार्थ का द्रव्यमान व C = प्रकाश का वेग है] के आधार पर की जा सकती है। नाभिकीय ऊर्जा या परमाणु ऊर्जा इस द्रव्यमान ऊर्जा से ही प्राप्त होती है।

सूर्य ऊर्जा (Solar Energy)

हमारे सौरमण्डल (Solar System) में ऊर्जा का सर्वाधिक प्रत्यक्ष एवं विशाल स्रोत सूर्य ही है। सभी जीवधारी इसी पर सर्वाधिक निर्भर करते हैं। सूर्य के प्रकाश से हरे पौधे अपना भोजन तैयार करते हैं फिर इन वनस्पतियों व उनके फलों को खाकर अन्य जीव ऊर्जा व जीवन प्राप्त करते हैं।

• नाभिकीय ऊर्जा (Neuclear Engery)

परमाणु का नाभिक भी उर्जा का भंडार है। इसका विखंडन (fission) अथवा संलयन (fussion) कर इस ऊर्जा को प्राप्त किया जा सकता है। इसी आधार पर परमाणु बम, हाइड्रोजन बम, नाइट्रोजन बम आदि बनाये जाते हैं। नाभिकीय ऊर्जा से ही नाभिकीय रिएक्टर द्वारा विद्युत ऊर्जा प्राप्त की जाती है।

• ध्वनि ऊर्जा (Sound Energy)

यदि कोई वस्तु कंपन करती है तो उसके कंपनों के कारण ध्वनि व्युत्पादित (Produce) होती है जिसमें ऊर्जा निहित होती है। यही कारण है कि तेज ध्वनि से कभी-कभी कान के पर्दे फट जाते हैं अथवा तेज आवाज करती हुई वायुयान के गुजरने से कभी-कभी घरों की खिड़कियों के शीशे चटक (crack) जाते हैं। किसी के बोलने से व्युत्पादित ध्वनि से हमारे कान के पर्दे भी कम्पन करते हैं जिससे हम ध्वनि को सुन सकते हैं।

• रासायनिक ऊर्जा (Chemical Energy)

विभिन्न तत्वों व पदार्थों (matters) के रासायनिक संयोग या अभिक्रिया (Reaction) से ऊर्जा व्युत्पादित (produce) होती है, जिसे रासायनिक ऊर्जा कहते हैं। जैसे चूने को पानी में डालने पर पानी का खौलना, विभिन्न अम्लों व क्षारों के संयोग से सेल का निर्माण कर बल्ब जलाना आदि।

• प्रकाश ऊर्जा (Light Energy)

विभिन्न प्रकाश स्रोतों यथा सूर्य, दीपक, विद्युत बल्ब आदि से उत्सर्जित प्रकाश (emitted light) में ऊर्जा निहित होती है जिसे प्रकाश ऊर्जा कहते हैं। जैसे फोटो इलेक्ट्रिक सेल में प्रकाश ऊर्जा का ही उपयोग होता है। सौर कुकर (Solar cooker) से भी प्रकाश ऊर्जा ही भोजन को पकाती है। इसी प्रकार हरे पौधे, प्रकाश ऊर्जा द्वारा ही भोजन निर्माण (food production) करते हैं।

• विद्युत ऊर्जा (Electrical Energy)

आवेश के प्रवाह (flow of charge) से विद्युत (electric) उत्पन्न (Produce) होती है जिसमें ऊर्जा निहित होती है। जैसे विद्युत के प्रयोग से पंखा चलाना, बल्ब जलाना इत्यादि।

• ऊष्मीय ऊर्जा (Heat Energy)

विभिन्न वस्तुओं के जलने (burning), सौर ऊर्जा के विकिरण, दो सतहों (surfaces) के घर्षण (Friction) आदि से गर्मी या ऊष्मा (Heat) उत्पन्न होती है जिसे ऊष्मीय ऊर्जा कहते हैं। यह किसी वस्तु के ताप को बढ़ाने का गुण रखता है। जैसे- हथेलियों के रगड़ने (rubbing) से हथेली का गर्म होना।

• यांत्रिक ऊर्जा (Mechanical Energy)

यांत्रिक क्रिया (Mechanical work) से प्राप्त ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा होती है जैसे ऊंचाई पर रखा हुआ पत्थर, गिरता हुआ पत्थर, दबी हुई स्प्रिंग आदि में यांत्रिक ऊर्जा होती है। यांत्रिक ऊर्जा भी दो प्रकार की होती है (ⅰ) गतिज ऊर्जा व (ii) स्थितिज ऊर्जा

(i) गतिज ऊर्जा (Kinetic Energy)

यदि किसी वस्तु में कार्य करने की क्षमता उसकी गति के कारण है तो उसे हम गतिज ऊर्जा कहते हैं।

“Capacity to do a work, due to the motion is called kinetic Energy.”

उदाहरणस्वरूप, ऊँचाई से गिरती वस्तु (falling goods), बहता पानी (flowing water), बहती हवा (blowing air), घूमता हुआ पहिया (Fly-wheel) आदि में गतिज ऊर्जा होती है और यह तभी तक होती है जब तक गतिशील वस्तु, गतिशील रहती है।

• गतिज ऊर्जा की माप (Measurement of kinetic Energy)

यदि m द्रव्यमान (mass) की वस्तु V वेग (velocity) से गतिमान है तो

गतिज ऊर्जा, KE = 1/2 m.v²
KE = (1/2)×5×2×2= 10 जूल

(ii) स्थितिज ऊर्जा (Potential Energy)

जब किसी वस्तु में किसी विशेष दशा (state) या स्थिति (position) के कारण कार्य करने की क्षमता होती है तो उसे हम स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।

“Capacity to do a work in a body, due to its position or state, is called its potential energy.”

जैसे – बाँध (Dam) में एकत्र पानी में संचित ऊर्जा, तनी (Expended) या दबी (forced) स्प्रिंग में संचित ऊर्जा, घड़ी की चाभी में संचित ऊर्जा, ऊँचाई पर रखे पत्थर की संचित ऊर्जा इत्यादि स्थितिज ऊर्जा के उदाहरण हैं।

(क) स्थितिज ऊर्जा की माप (Measurement of Potential Energy)

इस ऊर्जा की माप उस कार्य से की जाती है जो वह वस्तु अपनी अवस्था विशेष से प्रारम्भिक अवस्था (सामान्य अवस्था) में आने में कर सकती है। स्थितिज ऊर्जा सापेक्ष रूप से ही मापी जाती है। वस्तु की प्रारम्भिक अवस्था कुछ भी मानी जा सकती है और स्थितिज ऊर्जा की माप उस अवस्था के सापेक्ष मापी जाती है। जैसे स्प्रिंग के मामले में आवश्यक नहीं कि तनावरहित स्थिति को ही प्रारम्भिक स्थिति माना जाय। संपीडित (compressed) अथवा तनी (expanded) स्थिति को भी प्रारम्भिक अवस्था मानकर अन्य अवस्था के सापेक्ष स्थितिज ऊर्जा की माप की जा सकती है।

स्थितिज ऊर्जा कई रूपों (Forms) में निहित हो सकती है व हर रूप में ऊर्जा की माप अलग-अलग तरीके से की जाती है।

(ख) स्थितिज ऊर्जा के विभिन्न स्वरूप (Different forms of Potential Energy)

(a) गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा (Gravitational Potential Energy)- यदि कोई वस्तु पृथ्वी से ऊँचाई पर होती है तो ऊपर उठाने में पृथ्वी का गुरुत्व बल (Gravitational force) आरोपित होता है, अर्थात् किसी वस्तु को पृथ्वी से ऊपर उठाने में पृथ्वी के गुरुत्व बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है। ऊँचाई पर स्थित होने पर इस सम्पादित कार्य के तुल्य वस्तु में स्थितिज ऊर्जा संचित हो जाती है। इसे गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं। पृथ्वी पर पड़ी वस्तु में गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा का मान शून्य होता है। (सतह के सापेक्ष)। इसकी माप कार्य के उस परिमाण से करते हैं जो वस्तु की वर्तमान स्थिति से किसी दूसरी मानक स्थिति तक आने में वस्तु द्वारा किया जाता है। यदि m द्रव्यमान की वस्तु पृथ्वी तल से h ऊँचाई पर स्थित है तो वस्तु की स्थितिज ऊर्जा

Ep = गुरुत्व बल (i.e. पिण्ड का भार) के विरुद्ध किया गया कार्य (W = F.d. से) = पिण्ड का भार x ऊँचाई (mg) × h = mgh

(b) प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा (Elastic Potential Energy)- संपीडित (Compressed) अथवा तनी हुई कमानी (stretched spring), तनी हुई कमान (bow), खिंची हुई रबर की पट्टी, मुड़ी हुई धातु की छड़, संपीडित गैस आदि में उनकी प्रत्यास्थता (elasticity) के गुण के कारण ऐसे बल उत्पन्न हो जाते हैं जो उन्हें सामान्य प्रारम्भिक अवस्था में लाने का प्रयास करते हैं। इन बलों को अन्य वस्तुओं पर आरोपित करके कार्य किया जा सकता है। अतः प्रत्यास्थ बलों के कारण वस्तुओं में निहित ऊर्जा को प्रत्यास्थ स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।

(c) वैद्युत स्थितिज ऊर्जा (Electrical Potential Energy)- विद्युत क्षेत्र (electric field) में यदि कोई आवेशित वस्तु रखी हो तो उस पर लगने वाले वैद्युत बलों के कारण वस्तु विस्थापित हो सकती है। अतः उसमें कार्य करने की क्षमता अर्थात् ऊर्जा संचित हो जाती है। वैद्युत क्षेत्र के कारण उत्पन्न इस क्षमता को वस्तु की वैद्युत स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।

इसकी माप दो आवेशों के आकर्षण या प्रतिकर्षण के कारण होने वाले कार्य से करते हैं। जिसका सूत्र (formula) निम्नवत् है

EEP = 9×10x q1q2/d

जहाँ, q1 q2 दो आवेशित वस्तुओं के क्रमशः आवेश हैं व d उनके बीच की दूरी है। 9 * 109 नियतांक है जिसे कूलाम बल नियतांक कहते हैं।

(नोट-विस्तार के लिए देखें अध्याय 7 स्थिर वैद्युतिकी।)

(d) चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा (Magnetic Potential Energy)- चुम्बकीय क्षेत्र में स्थित किसी गतिशील आवेश या धारावाही चालक पर चुम्बकीय बलों के कारण जो कार्य करने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है उसे चुम्बकीय स्थितिज ऊर्जा कहते हैं।

ऊर्जा के विभिन्न स्वरूपों में रूपान्तरण

किसी वस्तु की प्रत्यास्थ व गुरुत्वीय स्थितिज ऊर्जा और गतिज ऊर्जा के योग को उस वस्तु की यांत्रिक ऊर्जा कहते हैं। इसी यांत्रिक ऊर्जा के विभिन्न रूपों का दूसरे रूपों में रूपान्तरण हो सकता है, जैसे- जब दो गतिमान वस्तुएँ एक दूसरे से टकराती हैं तो उससे ध्वनि ऊर्जा तथा ऊष्मा (तापीय ऊर्जा) दोनों उत्पन्न होते हैं। इसी प्रकार, जब कोई वस्तु बहुत गर्म हो जाती है तो उसमें से प्रकाश ऊर्जा का उत्सर्जन होने लगता है। भौतिक जगत में सभी प्रक्रियाओं में किसी न किसी प्रकार ऊर्जा का एक या अधिक स्वरूपों में रूपान्तरण होता है। ऊर्जा रूपान्तरण के कुछ उदाहरण निम्नवत् हैं। यथा

उपकरणऊर्जा का स्वरूप परिवर्तन
• विद्युत बल्बवैद्युत ऊर्जा से ऊष्मा एवं प्रकाश
• विद्युत सेल*रासायनिक ऊर्जा से वैद्युत ऊर्जा
• मोमबत्ती*रासायनिक ऊर्जा से प्रकाश तथा ऊष्मा
• फोटो इलेक्ट्रिक सेलप्रकाश ऊर्जा से वैद्युत ऊर्जा
• माइक्रोफोन *ध्वनि ऊर्जा से वैद्युत ऊर्जा
• लाउडस्पीकर*वैद्युत ऊर्जा से ध्वनि ऊर्जा
• सितार एवं अन्य * वाद्य यंत्रयांत्रिक ऊर्जा से ध्वनि ऊर्जा
• भाप, पेट्रोल एवं* डीजल का इंजनऊष्मा से यांत्रिक ऊर्जा

ऊर्जा संरक्षण का नियम (Principle of Conservation of Energy)

ऊर्जा का विनाश नहीं होता बल्कि एक प्रकार की ऊर्जा का दूसरे प्रकार की ऊर्जा में रूपान्तरण होता है। ऊर्जा का संपूर्ण परिमाण सदैव स्थिर बना रहता है। जैसे हथौड़े से कील ठोंकने पर हथौड़े की ऊर्जा का कुछ अंश ऊष्मा में बदल जाता है तो कुछ कील की गतिज ऊर्जा में, कुछ ध्वनि ऊर्जा में व कुछ अन्य ऊर्जा में।

ऊर्जा के प्रमुख स्रोत (Main Sources of Energy)

हमें ऊर्जा कहाँ से प्राप्त होती है? ऊर्जा का उद्गम (Production) जहाँ से होता है, उसे ऊर्जा का स्रोत कहते हैं। कुछ महत्वपूर्ण ऊर्जा के स्रोतों का विवरण निम्नवत् है –

(i) माँसपेशियाँ (Muscles)- हमारी मांसपेशियों में ऊर्जा संग्रहीत होती है। इस ऊर्जा का उपयोग कर विभिन्न प्रकार के भौतिक कार्य किये जाते हैं। यह ऊर्जा भोजन से प्राप्त होती है। पाचन व स्वांगीकरण की क्रिया से भोजन की रासायनिक ऊर्जा, मांसपेशियों में एकत्र होती है। अतः मानव की मांसपेशियों की ऊर्जा का स्रोत उसका भोजन ही है।

(ii) बहती हवा (Wind)- हम यह देख सकते हैं कि बहती हवा व आँधी वस्तुओं को उड़ाकर दूर ले जाती है अर्थात् इसमें ऊर्जा निहित होती है। इस हवा से पवनचक्कियाँ चलाकर बिजली बनायी जाती है जिससे विभिन्न कार्य सम्पादित किये जाते हैं। ध्यातव्य है कि पवन चक्कियों द्वारा वायु की गतिज ऊर्जा यांत्रिक ऊर्जा में परिवर्तित होती है। इस यांत्रिक ऊर्जा को जनित्र की मदद से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है। हवा में निहित गतिज ऊर्जा से ही पाल वाली नाव भी चलाई जाती है।

(iii) बहता जल (Flowing Water)- नावों (boats) को नदी की धारा में छोड़ देने पर वह बिना किसी अन्य प्रयास के धारा की दिशा में गतिमान हो जाती है। अर्थात् बहते जल में भी ऊर्जा होती है। पहले बहते पानी या गिरते पानी द्वारा पनचक्कियाँ (Water-mills) चलाई जाती थीं व आटा पीसने का कार्य किया जाता था। आजकल गिरते जल की सहायता से जल-विद्युत भी उत्पन्न की जा रही है।

(iv) अग्नि तथा ईंधन (Fire and Fuel)- किसी वस्तु को जलाने से ऊष्मीय ऊर्जा (Thermal Energy) प्राप्त होती है। सूखी लकड़ी कोयला, चारकोल, पेट्रोलियम, नेचुरल गैस (CNG), पेट्रोलियम गैस (LPG) व जैव गैस (Bio-gas) आदि का प्रयोग विभिन्न घरेलू व व्यावसायिक कार्यों के लिए किया जाता है जिन्हें ईंधन कहते हैं। 17वीं शताब्दी के बाद से ऊष्मीय ऊर्जा को यांत्रिक ऊर्जा में रूपान्तरित कर उससे कार्य लेना आरम्भ किया गया। पत्थर के कोयले को जलाकर पानी से भाप तैयार करते हैं और इस भाप से भाप इंजनों (Steam engine) का गतिपालक चक्र (Fly wheel) चलाते हैं जिससे ट्रेन गतिमान होती है। तापीय शक्ति संयंत्रों (Thermal Power Plants) में भी इसी युक्ति (Technique) से विद्युत उत्पादित की जाती है।

(v) सूर्य (Sun)- अधिकांश ऊर्जाओं का मूल स्त्रोत सूर्य ही है। जन्तुओं (animals) की मांसपेशियों में निहित ऊर्जा का स्त्रोत भोजन व भोजन का मूल स्त्रोत सूर्य है क्योंकि सौर्थिक ऊर्जा (Solar Energy) जो कि धरती को विकिरण (Radiation) माध्यम से प्रकाश (light) व ऊष्मा (Heat) के रूप में प्राप्त होती है, से ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया द्वारा पौधे अपना भोजन बनाते हैं और सभी जंतु व मानव इसी भोजन को ग्रहण करके ऊर्जा प्राप्त करते हैं व जीवित रहते हैं व अपना कार्य सम्पादित करते हैं। इसके अलावा सौर्थिक ऊर्जा का प्रयोग कर आज तमाम अन्य कार्य भी किये जा रहे हैं यथा सोलर सेल से सौर ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा से विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा रहा है, सोलर कुकर से धूप में खाना पकाया जा रहा है। सोलर ऊर्जा से गीजर में पानी गर्म किया जा रहा है इत्यादि।

(vi) परमाणु का नाभिक (Nucleus of Atom)- सभी तत्वों के परमाणुओं के नाभिक में ऊर्जा भंडार होता है जो नाभिक की बंधन ऊर्जा (Binding Energy) के रूप में होता है। अतः नाभिक को तोड़ने (Fission) में भारी मात्रा में ऊष्मीय ऊर्जा का निर्गमन (Relision) होता है जिसको नाभिकीय भट्ठियों में नियंत्रित कर विद्युत बनाया जाता है और विभिन्न कार्य संपादित किये जाते हैं। परमाणु बम में भारी मात्रा में विनाशक शक्ति (Destructing power) इसी ऊर्जा स्रोत का परिणाम है। सूर्य की ऊर्जा का स्रोत भी नाभिकीय ऊर्जा ही है। क्योंकि वहाँ सदैव हाइड्रोजन के दो परमाणुओं के संलयन (जुड़ने) से हीलियम परमाणु के नाभिक का निर्माण होता रहता है जिसमें कुछ मात्रा में द्रव्यमान (mass) का ह्रास होता है जो कि आइन्स्टीन की द्रव्य ऊर्जा परिवर्तन समी. (E = mc²) के अनुसार ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है।

(vi) समुद्र (Ocean)- आज समुद्र भी ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत बन चुका है। ज्वार-भाटा आने वाले स्थानों पर बाँध बनाकर बाँध के द्वार पर टरबाइन स्थापित कर ज्वार-भाटा से विद्युत निर्माण किया जा रहा है। इसी प्रकार महासागरों में बहने वाली प्रबल पवनों से उत्पन्न प्रबल तरंगों की गतिज ऊर्जा का उपयोग भी विद्युत उत्पादन में किया जा रहा है।

महासागरों के विशाल पृष्ठ का जल सूर्य द्वारा तप्त हो जाता है परन्तु गहराई में स्थित जल का ताप कम ही रहता है। ताप में इस अंतर का उपयोग सागर तापीय ऊर्जा रूपान्तरण विद्युत संयंत्र (Ocean Thermal Energy Conversion Plant) में ऊर्जा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। परन्तु शर्त यह है कि सतह के ताप व गहराई पर जल के ताप का अंतर कम से कम 20° से. हो।

(vii) पृथ्वी (Earth)- भौमिकीय (Geographical) परिवर्तनों के कारण भूपर्पटी में गहराइयों पर तप्त क्षेत्रों में पिघली चट्टानें ऊपर धकेल दी जाती हैं, जो कुछ क्षेत्रों में एकत्र हो जाती हैं। इन क्षेत्रों को तप्त स्थल कहते हैं। जब भूमिगत जल इन तप्त स्थलों के संपर्क में आता है तो भाप उत्पन्न होती है। कभी-कभी इस तप्त जल को पृथ्वी के पृष्ठ से बाहर निकलने के लिए निकास मार्ग मिल जाता है। इन निकास मार्गों को गेसर (Gayser) अथवा ऊष्ण स्रोत (Hot Spring) कहते हैं। कभी-कभी यह भाप चट्टानों के बीच फँस जाती है जहाँ इसका दाब अत्यधिक हो जाता है। इनमें पाइप डालकर इस भाप को बाहर निकाल लिया जाता है। जिससे टरबाइन को घुमाकर विद्युत बनाई जाती है। न्यूजीलैण्ड तथा अमेरिका में भूतापीय ऊर्जा पर आधारित कई विद्युत शक्ति संयंत्र कार्य कर रहे हैं।

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मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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