प्रतिहार राजवंश
प्रतिहार राजवंश ,पाल वंश तथा सेन वंश के बारे में इस पोस्ट में बताया गया है ,तो आईये हम आपको इन सारे वंशों का विस्तृत जानकारी प्रदान करते हैं।
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• चंदबरदाई के पृथ्वीराज रासो के अनुसार परमार, प्रतिहार, चालुक्य तथा चौहान अग्निकुण्ड से उत्पन्न हुए थे, जिन्हें आबू पर्वत पर वशिष्ठ मुनि ने यज्ञ से उत्पन्न किया था।
• अग्निकुल के राजपूतों में सर्वाधिक प्रसिद्ध राजवंश प्रतिहार था।
• गुर्जर-प्रतिहार वंश की स्थापना हरिचन्द्र ने की।
• गुर्जर प्रतिहार वंश का वास्तविक संस्थापक नागभट्ट प्रथम (ग्वालियर अभिलेख) था।
• वत्सराज गद्दी पर 780 ई. में बैठा।
• पाल नरेश धर्मपाल को वत्सराज ने पराजित किया।
• नागभट्ट द्वितीय वत्सराज का पुत्र था।
• नागभट्ट द्वितीय ने चक्रायुद्ध को हराकर कन्नौज को अपनी राजधानी बनाया।
• मुंगेर के समीप धर्मपाल को नागभट्ट द्वितीय ने पराजित किया।
• नागभट्ट द्वितीय ने गोविन्द तृतीय (राष्ट्रकूट) नरेश को पराजित किया।
• प्रतिहार वंश का सर्वाधिक प्रतापी एवं महान शासक मिहिरभोज हुआ।
• मिहिरभोज को पाल नरेश धर्मपाल एवं राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव से पराजित होना पड़ा।
• अरबी यात्री सुलेमान मिहिर भोज के शासन काल में भारत आया।
• मिहिरभोज ने आदिवराह की उपाधि धारण की थी।
• प्रतिहार साम्राज्य का विस्तार मगध एवं उत्तरी बंगाल तक महेन्द्र पाल ने किया।
• महेन्द्र पाल के गुरु संस्कृत के प्रसिद्ध विद्वान राजशेखर थे।
• राजशेखर की प्रसिद्ध कृति ‘काव्यमीमांसा’ एवं ‘कर्पूरमंजरी’ है।
• महेन्द्रपाल के बाद महिपाल (914-43 ई.) शासक हुआ।
• बगदाद निवासी अल-मसूदी महिपाल के समय (915-16 ई. में) भारत आया था।
• महिपाल के समय राष्ट्रकूट नरेश इन्द्र तृतीय ने कन्नौज पर आक्रमण कर नगर को उजाड़ दिया।
• राष्ट्रकूट वंश की स्थापना दंतिदुर्ग ने 752 ई. में की।
• दंतिदुर्ग ने अपनी राजधानी मान्यखेत (मालखण्ड) को बनाई।
• दतिदुर्ग ने उज्जयिनी में हिरण्यगर्भ दान किया था।
• दंतिदुर्ग ने महाराजाधिराज, परमेश्वर, परमभट्टारक उपाधियाँ धारण की थी।
• दतिदुर्ग का उत्तराधिकारी कृष्ण प्रथम हुआ।
• कृष्ण प्रथम ने बादामी के चालुक्यों का अस्तित्व समाप्त कर गंगों की राजधानी मान्यपुर पर कब्जा कर लिया।
• एलोरा का विख्यात कैलाश मंदिर कृष्ण प्रथम ने बनवाया।
• ध्रुव ने (राष्ट्रकूट शासक) कन्नौज पर अधिकार करने हेतु वत्सराज एवं धर्मपाल को पराजित किया।
• ध्रुव को धारावर्ष नाम से भी जाना जाता था।
• ध्रुव का पुत्र एवं उत्तराधिकारी गोविन्द तृतीय था।
• गोविन्द तृतीय ने चक्रायुद्ध एवं उसके संरक्षक धर्मपाल तथा प्रतिहार नरेश नागभट्ट द्वितीय को पराजित कर कन्नौज पर अधिकार कर लिया।
• गोविन्द तृतीय ने अपने विरुद्ध खड़े पल्लव, पाण्ड्य, केरल एवं गंगों के सम्मिलित संघ को पराजित किया।
• गोविन्द तृतीय के बाद राजगद्दी पर अमोघवर्ष (814 ई. में) बैठा।
• अमोघवर्ष जैन धर्म का अनुयायी था। इसने कन्नड़ में कविराज मार्ग की रचना की
• आदिपुराण के रचनाकार जिनसेन, गणितसार संग्रह के लेखक महावीराचार्य तथा अमोघवृत्ति के लेखक सक्तायना अमोघवर्ष के दरबार में रहते थे।
• अमोघवर्ष तुंगभद्रा नदी में जल समाधि लेकर अपने जीवन का अंत किया।
• अमोघवर्ष ने कविराज मार्ग की रचना की थी।
• अलमसूदी इन्द्र तृतीय के समय भारत आया था।
• अलमसूदी ने तत्कालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ शासक इन्द्र तृतीय को कहा।
• कृष्ण तृतीय ने चोलों को परास्त कर कांची एवं तंजावुर पर अधिकार कर लिया।
• कृष्ण प्रथम ने तंजावुर में विजय स्तम्भ बनवाया था।
• एलोरा एवं एलिफेंटा गुहा मंदिरों का निर्माण राष्ट्रकूटों के समय हुआ।
• राष्ट्रकूट शैव, वैष्णव, शाक्त सम्प्रदायों के साथ-साथ जैन धर्म के भी उपासक थे।
• राष्ट्रकूटों ने अपने राज्यों में मुसलमान व्यापारियों को बसने तथा इस्लाम के प्रचार की स्वीकृति दी थी।
• सियक परमार ने राष्ट्रकूटों की राजधानी मान्यखेत पर आक्रमण कर इसे पूर्णतः ध्वस्त कर दिया।
पाल वंश
• पाल वंश का संस्थापक गोपाल (750 से 770 ई.) था।
• गोपाल को कुछ प्रमुख व्यक्तियों ने राजा चुना था।
• गोपाल बौद्ध धर्म का अनुयायी था।
• ओदन्तपुरी में मठ का निर्माण गोपाल ने करवाया था।
• गोपाल का पुत्र एवं उत्तराधिकारी धर्मपाल था।
• धर्मपाल ने कन्नौज के शासक इन्द्रायुद्ध को परास्त कर चक्रायुद्ध को कन्नौज की गद्दी पर बैठाया।
• सोडढ़ल कवि ने धर्मपाल को उत्तरापथस्वामिन कहा।
• धर्मपाल को नागभट्ट द्वितीय एवं राष्ट्रकूट नरेश ध्रुव ने पराजित किया था।
• धर्मपाल बौद्ध धर्म का अनुयायी था।
• विक्रमशिला विश्वविद्यालय की स्थापना धर्मपाल ने किया।
• धर्मपाल ने नालन्दा विश्वविद्यालय के खर्च हेतु 200 गाँव दान में दिया था।
• धर्मपाल का पुत्र एवं उत्तराधिकारी देवपाल (810-850 ई.) था।
• असम, उड़ीसा, एवं नेपाल के कुछ भागों पर देवपाल ने अधिकार किया।
• अरब यात्री सूलेमान ने देवपाल को भारत का सबसे शक्तिशाली शासक बताया।
• देवपाल ने अपनी राजधानी मुंगेर में बनाई। देवपाल अपने वंश का महानतम शासक था।
• शैलेन्द्र शासक ने नालन्दा में बौद्ध मठ की स्थापना हेतु देवपाल से अनुमति ली। देवपाल ने खर्च हेतु पाँच गाँव दान में दिये।
• महिपाल प्रथम ने पाल वंश की खोई हुई शक्ति को पुनर्जीवित किया।
• पाल वंश का द्वितीय संस्थापक महिपाल प्रथम को माना जाता है।
• पाल वंश के पतन के बाद सेन वंश वहाँ सत्ता में आया।
• बंगाल का प्राचीन नाम गौड़ था।
• सन्ध्याकर नन्दी द्वारा ‘रामचरित’ रामपाल की प्रशंसा में लिखा गया है।
• बंगाल में कैवर्त विद्रोह रामपाल के शासन काल में हुआ था।
• अरब यात्री सुलेमान ने पालशासन को रूहमा अर्थात् धर्मभ्रष्ट कहा है।
सेन वंश
• सेन वंश की स्थापना सामन्त सेन ने राढ़ में की।
• सामन्त सेन का पुत्र एवं उत्तराधिकारी विजय सेन हुआ।
• सेन वंश की राजधानी नदिया (लखनौती) थी।
• विजय सेन का उत्तराधिकारी बल्लाल सेन हुआ।
• बल्लाल सेन ने ‘दानसागर’ एवं ‘अद्भुत सागर’ नामक ग्रन्थ लिखे।
• बल्लाल सेन ने जाति प्रथा एवं कुलीन प्रथा को बढ़ावा दिया।
• लक्ष्मण सेन 1178 ई. में गद्दी पर बैठा।
• बल्लाल सेन ने ‘गौड़ेश्वर’ तथा ‘नि:शंकर’ की उपाधि धारण की।
• लक्ष्मण सेन के शासकाल में सामन्तों ने विद्रोह कर अनेक स्वतन्त्र राज्य गठित कर लिये।
• लक्ष्मण सेन सेन वंश का सर्वाधिक शक्तिशाली राजा था।
• विजय सेन शैवधर्म का अनुयायी था।
• देवपाड़ा में झील एवं शिव का मन्दिर विजय सेन ने बनवाया।
• 1202 ई. में बख्तियार खिलजी ने लखनौती पर आक्रमण कर उसे नष्ट कर दिया।
• हलायुद्ध लक्ष्मण सेन का न्यायाधीश तथा मन्त्री था।
• लक्ष्मण सेन का दरबारी कवि जयदेव था।
• जयदेव की रचना का नाम ‘गीतगोविन्द’ है।
• सेन वंश के संस्थापक सामन्त सेन को ब्रह्मक्षत्रिय नाम से जाना जाता है।
• विजय सेन की दो उपराजधानियाँ विजयपुरी एवं विक्रमपुरी थी।
• ‘पवनदूत’ धोयी ने लिखी।
• विजय सेन के गुणगान में ‘विजय प्रशस्ति’ श्रीहर्ष ने लिखी।
• ‘आर्या सप्तशती’ की रचना गोवर्धन ने की।
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निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट प्रतिहार राजवंश जरुर अच्छी लगी होगी। प्रतिहार राजवंश के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
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