बजट | Budget |

बजट

स्वतंत्र भारत का पहला बजट 26 नवम्बर, 1947 को वित्तमंत्री आर के षणमुखम् चेट्टी द्वारा प्रस्तुत किया गया। जॉन मथाई को गणतंत्र भारत का पहला केन्द्रीय बजट पेश करने का गौरव 1950 में प्राप्त हुआ। संसद में प्रस्तुत किए जाने वाले बजट में 3 वर्ष के आँकड़ें होते हैं:

(1) विगत वर्ष का वास्तविक आँकड़ा, (2) चालू वर्ष का बजट अनुमान एवं संशोधित अनुमान (3) आगामी वर्ष का बजट अनुमान।

• भारत में बजट निर्माण का उत्तरदायित्व वित्त मंत्रालय का होता है इसके अलावा प्रशासकीय मंत्रालय, योजना आयोग (अब नीति आयोग), CAG, प्रत्यक्ष करों के लिए केन्द्रीय बोर्ड (Central Board for direct Taxes) तथा आबकारी एवं शुल्क के लिए केन्द्रीय बोर्ड (Central Board of Excise and Cus- tomer) भी सहयोग करता है। बजट पेश करने के 75 दिन की अवधि के अंदर बजट को पारित करना आवश्यक होता है।

• भारतीय संविधान में अनुच्छेद 112(1) के अनुसार वार्षिक वित्तीय विवरण जो कि आगामी वित्तीय वर्ष के लिए भारत सरकार के अनुमानित आय एवं व्यय का विवरण होता है, संसद के दोनों सदन में प्रस्तुत किया जाता है। भारत में संघीय स्तर पर दो बजट होते हैं सामान्य बजट तथा रेलवे बजट। आकवर्थ कमेटी (1921) की संस्तुति के आधार पर 1924 से रेलवे बजट को आम बजट से अलग प्रस्तुत करने की परंपरा है।

क्या है बजट ?

● बजट है क्या : मोटे तौर पर बजट सरकार की आमदनी और खर्च का वार्षिक लेखाजोखा है। याद रहे सरकारी बजट हमेशा अगले वर्ष से जुड़ा होता है। अगला वर्ष यानी अगला वित्त वर्ष अर्थात् 1 अप्रैल से लेकर 31 मार्च तक।

बजट क्यों : सरकार बजट पेश क्यों करती है? इसलिए कि हमारी संसदीय व्यवस्था का एक बेसिक सिद्धांत यह है कि बिना संसद की स्वीकृति के सरकार न तो एक पैसा खर्च कर सकती है और न ही कोई नया टैक्स लगा सकती है। संविधान के सेक्शन 112 के अंतर्गत सरकार को हर वर्ष फरवरी के अगले वित्त वर्ष की प्राप्तियों और खर्चों का अनुमानित ब्यौरा सदन में रखना ही होता है।

बजट में क्या : बजट में मोटे तौर पर 3 चीजें होती हैं। पहली, पिछले वित्त वर्ष के अंतिम आँकड़ें यानी फाइनल एस्टिमेट्स, दूसरी, चालू वित्त वर्ष के संशोधित आँकड़ें यानी रिवाइज्ड एस्टिमेट्स और तीसरी, अगले वित्त वर्ष के प्रस्ताविक अनुमानित आँकड़ें (बजट एस्टिमेट्स)। अलबत्ता, चर्चा के केंद्र में अगले वर्ष के लिए प्रस्तावित स्कीमें और प्रस्तावित ही होते हैं।

वोट ऑन अकाउंट : लेखानुदान या वोट ऑन अकाउंट के मोटे तौर पर अर्थ है अंतरिम बजट। अगर चुनाव, युद्ध या किसी राष्ट्रीय आपदा के कारण सरकार फरवरी के अंत में बजट न पेश कर पाए तो वह कुछ माह या हफ्तों की तयशुदा अवधि के लिए सदन से एक न्यूनतम खर्च करने की अनुमति माँगती है। विभिन्न मंत्रालयों के जरूरी खर्च का इंतजाम करने के लिए लेखानुदान लाने की मजबूरी होती हैं।

फाइनेंस बिल : जिस बिल के जरिए सरकार नए टैक्सों के लिए या वर्तमान टैक्स कानूनों में बदलाव के प्रस्ताव रखती है, उसे फाइनेंस बिल कहा जाता है।

वार्षिक वित्तीय विवरण : यह शब्द मुख्य बजट दस्तावेज के लिए उपयोग होता है और इसके तीन भाग होते हैं जिनमें समेकित निधि, आकस्मिकता निधि और लोक लेखा शामिल है।

समेकित निधि : सरकार को राजस्व एवं गैर-राजस्व स्रोतों से प्राप्त सारी राशि समेकित निधि के रूप में जानी जाती है।

आकस्मिकता निधि : किसी प्राकृतिक आपदा सहित ऐसे मौकों पर जब सरकार को संसद की स्वीकृति के बिना अचानक पैसा खर्च करना पड़ता है उसके लिए आकस्मिकता निधि का उपयोग किया जाता है। यह राष्ट्रपति के अधिकार में रहती है।

लोक लेखा : भारत की संचित निधि में जमा होने वाली धनराशियों के अतिरिक्त अन्य सभी धनराशियाँ/प्राप्तियाँ लोक लेखा में जमा की जाती है। लोक लेखा खाते की प्राप्तियाँ सरकार की सामान्य प्राप्तियाँ नहीं होती, इसलिए इसके लेने-देन हेतु संसदीय प्राधिकार की आवश्यकता नहीं होती।

राजस्व बजट : इसके अंतर्गत सरकार द्वारा लगाये गये करों और शुल्क से प्राप्त राशि को शामिल किया जाता है। इसके साथ ही इसमें सरकार द्वारा निवेशित पूंजी पर लाभांश, शुल्क और सरकार द्वारा प्रदान सेवाओं के लिए मिली प्राप्तियाँ भी शामिल होती हैं। राजस्व बजट के तहत ही राजस्व व्यय भी शामिल होता है। राजस्व व्यय में सरकारी विभागों के संचालन पर होने बाला खर्च, सरकार द्वारा लिये गये ऋणों पर ब्याज की अदायगी और राज्य सरकारों को दिया जाने वाला अनुदान एवं दूसरे अनुदान शामिल होते हैं। सामान्य रूप से इसे ऐसा खर्च माना जाता है जिससे परिसंपत्तियों का निर्माण नहीं होता है।

पूंजी बजट : इसके अंतर्गत पूंजीगत प्राप्तियाँ शामिल होती हैं। जिनमें सरकार द्वारा जनता से लिया गया ऋण, सरकारी प्रतिभूतियों की बिक्री के जरिये रिजर्व बैंक और दूसरे स्रोतों से हासिल ऋण एवं दूसरे देशों से लिए ऋण की वसूलियाँ शामिल हैं। पूंजी खर्च के अंतर्गत परिसंपत्तियों के निर्माण पर किये गये खर्च को मुख्य रूप से शामिल किया जाता है। खासतौर से सार्वजनिक उपक्रमों और निगमों पर होने वाला खर्च ही इसमें मुख्य है।

अनुदान की माँगें : लोकसभा की स्वीकृति के जरिये समेकित निधि से खर्च के लिए ली जाने वाली राशि को विभिन्न मंत्रालयों एवं विभागों के लिए एक माँग के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इसमें राजस्व व्यय, पूँजी व्यय और राज्यों एवं संघ शासित क्षेत्रों को दिये जाने वाले अनुदान शामिल होते हैं।

वित्त विधेयक : सरकार द्वारा नए कर लगाने, मौजूदा, कर ढाँचे में संशोधन करने सहित वैधानिक प्रस्ताव वित्त विधेयक के रूप में बजट में संसद के सामने प्रस्तुत किये जाते हैं बजट के जरिये किये जाने वाले वैधानिक बदलाव इसका हिस्सा होते हैं।

व्यय बजट : इसके अंतर्गत विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के राजस्व एवं पूंजी खर्च के अलावा आयोजना एवं गैर-आयोजना व्यय को भी शामिल किया जाता है।

प्राप्ति बजट : इसमें राजस्व एवं पूँजी प्राप्तियों के अलावा विदेशी सहायता भी शामिल होती है।

आयोजना व्यय : केन्द्र सरकार के कुल खर्च में आयोजना और गैर-आयोजना व्यय होता है आयोजना व्यय के अंतर्गत सरकार द्वारा विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों पर किये जाने वाले खर्च को शामिल किया जाता है। आयोजना व्यय का आवंटन मंत्रालयों और विभागों के स्तर पर किया जाता है और यह बजट का एक बड़ा एवं अहम हिस्सा होता है।

विनियोग विधेयक : संसद में समेकित निधि के पैसे के उपयोग के लिए सरकार को कानूनी स्वीकृति लेनी होती है। इसके लिए पारित होने वाले विधेयक को विनियोग विधेयक कहा जाता है।

राजकोषीय घाटा : सरकार की राजस्व एवं ऐसी पूंजी प्राप्तियाँ जो उधार की बजाए अंतिम रूप से सरकार की होती हैं की तुलना में सरकार के कुल राजस्व खर्च का अंतर राजकोषीय घाटा होता है।

हिन्दू विकास दर (Hindu Growth Rate)

हिन्दू विकास दर (Hindu Growth Rate) : हिन्दू विकास दर की अवधारणा ‘प्रो. राजकृष्ण’ ने दिया। प्रो० राजकृष्ण का मानना था कि जिस प्रकार हिन्दू अपनी परम्परागत विचारधारा को तोड़कर बाहर नहीं निकलना चाहता है ठीक उसी प्रकार भारतीय अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय (GDP) 3.5% वार्षिक वृद्धि दर के निम्न स्तरीय संतुलन जाल में फंस गई है जिससे वह बाहर नहीं निकल पा रही है। इस 3.5% वार्षिक वृद्धि दर को ‘हिन्दू विकास दर’ कहा गया। प्रो. राजकृष्ण ने 3.5% की इस वृद्धि का निर्धारण भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वतन्त्रता के पश्चात् प्रथम तीन दशकों के उपलब्धि के आधार पर किया।

1951-1961 तक 3.9%
1951-1981 तक 3.5%
1961-1971 तक 3.7%
1971-1981 तक 3.1%

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निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट बजट जरुर अच्छी लगी होगी। बजट के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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