भारतीय कृषि | Indian Agriculture |

भारतीय कृषि (Indian Agriculture)

आज मै आपको इस लेख में भारतीय कृषि के उत्पादन का समय और उसके क्षेत्र के बारे में बताने वाला हूँ तो आइये विस्तार से इसके बारे में जानते हैं।

• किसी देश के विकास में कृषि क्षेत्र निम्नांकित प्रकार से योगदान कर सकता है: (क) खाद्यान्न तथा कच्चा माल पैदा करके (ख) निर्यात योग्य आधिक्य सृजन द्वारा विदेशी मुद्रा अर्जित करके। (ग) बढ़ते हुए बेरोजगारों के लिए शरणार्थी गृह के रूप में। (घ) बढ़ती जनसंख्या के लिए खाद्य सुरक्षा प्रदान करके (ड.) औद्योगिक क्षेत्र के उत्पाद के बिक्री हेतु बाजार के रूप में।

• भारतीय कृषि क्षेत्र का निष्पादन आज भी वर्षा और दक्षिण-पश्चिमी भॉनसून (जून से सितंबर) पर निर्भर है और कृषि क्षेत्र के उत्पादन और उत्पादकता को यथेष्ट रूप से प्रभावित करता है। भारत में प्रमुख रूप से तीन फसल मौसम हैं:

(1) खरीफ की फसल – इसकी अवधि जुलाई से अक्टूबर तक की होती है। इसमें मुख्य रूप से धान, ज्वार, बाजरा, मक्का, कपास, गन्ना, तिल, मूँगफली, मूँग, सोयाबीन आदि की फसलें आती हैं।

(2)  रबी की फसल – इसकी अवधि नवम्बर से मार्च अप्रैल तक की होती है। रबी की फसल में मुख्य रूप से गेहूँ, जौ, चना, मटर, तोरिया, सरसों आदि की फसलें आती है।

( 3) जायद की फसल – इसकी अवधि मार्च से जून तक होती है। इसके अन्तर्गत खरबूज, तरबूज, ककड़ी एवं सब्जियाँ आती हैं।

फसलों के उद्देश्य से फसलों को दो भागों में बाँटा जा सकता है :

(1 ) खाद्य फसलें – इसका मुख्य उद्देश्य स्थानीय उपयोग की आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है। खाद्य फसलों में गेहूं, चावल, मोटे अनाज एवं दालें आती हैं।

(2) व्यापारिक फसलें या नकदी फसलें – इसका मुख्य उद्देश्य बेच करके लाभ अर्जित करना है। नकदी फसलों में तिलहन फसलें, रेशे वाली फसलें, बागानी फसलें, मसाले वाली फसलें, उद्दीपक फसलें (तम्बाकू, पेय फसलें) आदि हैं।

• कृषि क्षेत्र में उत्पादन एवं उत्पादकता दो कारकों पर निर्भर करता है:

(1) संस्थागत कारक- इसके अन्तर्गत भू धारण की प्रणाली, जोतों का आकार, लगान का नियमन, मध्यस्थों का उन्मूलन आदि प्रमुख हैं।

(2) तकनीकी कारक – इसमें बीज, उर्वरक, सिंचाई, कीटनाशक दवायें, आधुनिक कृषि यंत्र आदि प्रमुख हैं। भारत में हरित क्रांति तकनीकी कारकों की ही देन है।

• कृषि उत्पादन एवं उत्पादकता को बढ़ाने के लिए एक प्रमुख संस्थागत कारक भूमि सुधार है। भारत में भूमि सुधार के प्रमुख रूप से दो उद्देश्य है-

(क) चकबंदी और जोतों की अधिकतम एवं न्यूनतम सीमा लागू करके लाभकर जोतों की स्थापना करना ताकि श्रम एवं पूंजी का अपव्यय न होकर भूमि का अधिक युक्तियुक्त प्रयोग किया जा सके।

(ख) काश्तकारों में भूमि का पुनर्वितरण करना और पट्टे पर दी गई भूमि की शर्तों में सुधार करना है ताकि किसानों का शोषण समाप्त किया जा सके।

भारतीय कृषि तथा सिंचाई

• भारतीय कृषि तथा सिंचाई : सिंचाई कृषि में प्रयुक्त होने वाली सबसे प्रभावी आगत है जो कृषि में उत्पादन तथा उत्पादकता को प्रभावित करता है। सिंचाई परियोजनाओं को एक नये आधार पर तीन भागों में बाँटा जा सकता है।

(क) बड़ी सिंचाई परियोजना-10000 हेक्टेयर से अधिक खेती योग्य कमाण्ड एरिया वाली परियोजनाएँ

(ख) मध्य सिंचाई परियोजना- 2000 से 10000 हेक्टेयर के बीच खेती योग्य कमाण्ड एरिया वाली परियोजनाएँ

(ग) लघु सिंचाई परियोजना- 2000 हेक्टेयर तक खेती योग्य कमाण्ड एरिया वाली परियोजनाएँ।

बारानी या वर्षा पर आधारित खेती

बारानी (Dry Land farming) या वर्षा पर आधारित खेती (Rainfed farming): खेती की ऐसी प्रणाली जो सिंचाई के लिए वर्षा के पानी पर ही पूर्णतया निर्भर रहे, जिसमें किसी भी कृत्रिम सिंचाई के साधन का प्रयोग नहीं किया जाए उसे हम बारानी खेती कहते हैं। देश के भीतर 142 मिलियन हेक्टेयर बोई गई भूमि के क्षेत्रफल में से 92.6 मिलियन हेक्टेयर भूमि खेती की इसी प्रणाली के अन्तर्गत आती है। चावल, ज्वार, बाजरा एवं अन्य मोटे अनाज दालें, तिलहन, पटसन और कपास जैसी फसलें बारानी खेती के क्षेत्र में उगाई जाती हैं।

• ड्रिप सिंचाई प्रणाली : ड्रिप सिंचाई के अन्तर्गत सिंचाई की जाने वाली भूमि के ऊपर पाइपों का एक नेटवर्क बिछा दिया जाता है और परम्परागत तरीकों की तरह सिंचाई खेत की निचली सतह से न होकर ऊपर से छिड़काव द्वारा होती है। ड्रिप सिंचाई से पानी की बचत होती है। साथ ही प्रति हेक्टेयर उपज भी अधिक प्राप्त होती है।

• फर्टीगेशन : फर्टीगेशन एक ऐसी पद्धति है जिसमें पोषक तत्वों को सिंचाई के माध्यम से फसलों को प्राप्त होती है। इस विधि से उर्वरक की 25% की बचत होती है तथा पौधों को दिए जाने वाले पोषक तत्व का पौधों द्वारा पूर्ण उपयोग होता है।

राष्ट्रीय कृषक आयोग

• राष्ट्रीय कृषक आयोग- इसका गठन 2004 ई. में डॉ. एम. एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में किया गया था। इसका प्रमुख कार्य था-कृषि क्षेत्र के विकास, कृषि क्षेत्र की समस्याओं आदि के उपायों का पता लगाना।

• कृषि तकनीक प्रबन्धन एजेन्सी (ATMA)- इसका गठन 2005 ई. में किसानों तक नई तकनीक एवं आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने के लिए किया गया।

• कृषि क्रान्ति-इसके द्वारा कार्बनिक खेती में शोध को बढ़ावा एवं कृषि में विज्ञान की सर्वश्रेष्ठ तकनीकों के प्रयोग पर बल दिया जाता है। इसके प्रतिपादक राष्ट्रीय किसान आयोग के अध्यक्ष डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन हैं।

• कमांड एरिया विकास कार्यक्रम (CADP): केन्द्र द्वारा समर्थित यह कार्यक्रम 1974-75 में चालू किया गया इसका प्रमुख उद्देश्य चुने हुए वृहत् तथा मध्यम सिंचाई परियोजनाओं की सिंचाई क्षमता का तीव्र तथा उत्तम प्रयोग प्राप्त करना है। इसके अन्तर्गत फार्म पर किये जाने वाले अनेक विकास कार्यक्रम आते हैं जैसे नहर, नालियों का निर्माण, जमीन की सतह बराबर करना, जोतों की चकबन्दी आदि।

त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम

त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम (Acceler- ated Irrigation Benefits Programme AIBP) : इसे 1996-97 में केन्द्रीय ऋण सहायता के द्वारा अपूर्ण सिंचाई परियोजनाओं वाले कार्यक्रमों को पूरा करने के लिए राज्यों को प्रोत्साहित करने के लिए शुरू किया गया था।

• कृषि वित्त : किसान प्रायः तीन प्रकार के ऋण लेते हैं :

(क) अल्पकालीन ऋण : जो 15 महीने से कम की अवधि के लिए होते हैं और जो कृषक कृषि संबंधी अल्पकालीन आवश्यकता जैसे बीज, खाद, जानवरों के लिए चारा आदि तथा गृह कार्य के लिए लेता है।

(ख) मध्यमकालीन ऋण : जो 15 महीने से अधिक तथा 5 वर्ष से कम के लिए होते हैं जो सामान्यता पशु खरीदने, खेत पर कुछ सुधार लाने, छोटे-मोटे औजार खरीदने हेतु लिए जाते हैं।

(ग) दीर्घकालीन ऋण : जो अतिरिक्त खेत खरीदने, खेत पर स्थायी निर्माण तथा मँहगी मशीन खरीदने के लिए होते हैं। इसकी अवधि 5 वर्ष से ऊपर की होती है।

• जिन विभिन्न स्रोतों से भारतीय कृषक को ऋण प्राप्त होते हैं उनको दो वर्गों में रखा जा सकता है :

(क) गैर संस्थागत स्रोत (Non Institutional Sources) : इसमें हम स्थानीय ग्रामीण साहूकार, जमींदार, देशी बैंकर, कमीशन एजेन्ट आदि को रखते हैं।

(ख ) संस्थागत स्रोत : इसमें सहकारी समितियाँ, व्यापारिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक, भूमि विकास बैंक, नाबार्ड आदि आते हैं।

नाबार्ड : राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक

नाबार्ड : राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (NABARD: National Bank for Agriculture and Rural Development) : शिवरमन समिति की संस्तुति पर नाबार्ड की स्थापना 12 जुलाई, 1982 को 100 करोड़ की प्रारम्भिक चुकता पूंजी (50% भारत सरकार एवं 50% रिजर्व बैंक) से की गई थी। नाबार्ड अपनी ऋण संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भारत सरकार, रिजर्व बैंक, विश्व बैंक एवं अन्य एजेन्सियों से ऋण प्राप्त करता है। नाबार्ड सहकारी समितियों, सहकारी बैंकों, भूमि विकास बैंकों एवं क्षेत्रीय ग्रामीण विकास बैंकों को अल्पकालीन मध्यकालीन एवं दीर्घकालीन ऋण उपलब्ध कराता है।

• यह बैंक कृषि एवं ग्रामीण क्षेत्र से संबंधित सभी क्रियाओं का समन्वय एकीकरण एवं नियंत्रण के लिए उत्तरदायी हैं। नाबार्ड ने जो ग्रामीण साख व्यवस्था में सबसे शीर्ष संस्था है, ग्रामीण साख के संबंध में अनेक महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसमें किसान क्रेडिट कार्ड का आरम्भ करना तथा स्वयं सहायता समूहों को बैंकों के साथ जोड़ना प्रमुख रहा है।

क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (RRB: Regional Rural Bank) : छोटे एवं सीमान्त किसानों, कृषि मजदूरों एवं ग्रामीण पेशेवर व्यक्तियों को संस्थागत ऋण उपलब्ध कराने के लिए हमारे देश में 2 अक्टूबर, 1975 को एक साथ 5 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक- उत्तर प्रदेश में मुरादाबाद एवं गोरखपुर में, हरियाणा में भिवानी, राजस्थान में जयपुर तथा पं. बंगाल में माल्दा में, स्थापित किया गया। देश के सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को यह अधिकार दिया गया है कि वे क्षेत्रीय बैंकों को उनकी पूंजी में भागीदारी तथा प्रारम्भिक अवस्था में संगठनात्मक सहयोग के द्वारा प्रवर्तित करे।

• केन्द्र सरकार नाबार्ड के माध्यम से इनकी पूंजी में 50 प्रतिशत लगाती है इनकी पूंजी में 15% हिस्सा राज्य सरकार का होता है। जिस क्षेत्र में बैंकिंग सुविधा का अभाव हो वैसे क्षेत्र में स्थापना इसका प्रमुख आधार होता है समाज के कमजोर वर्गों को ऋण प्रदान करना, ग्रामीण क्षेत्रों में शीघ्र बैंकिंग सुविधाएँ स्थापित करना, ग्रामीण क्षेत्रों में ऋण की उपलब्धता आदि इसका प्रमुख उद्देश्य होता है।

● भूमि विकास बैंक (Land Development Bank) : इन्हें भूमि बंधक बैंक भी कहा जाता है। ये किसानों को दीर्घकालीन ऋण की व्यवस्था करते हैं। इन बैंकों का ढाँचा दो स्तर वाला होता है। (a) राज्य स्तर पर केन्द्रीय
भूमि विकास बैंक (b) जिला स्तर पर प्राथमिक भूमि विकास बैंक। भारत में भूमि विकास बैंक प्रथम बार 1929 में स्थापित किया गया था। 1950-51 में हमारे देश में 6 राज्य भूमि विकास बैंक थे। कुछ राज्यों में सिर्फ केन्द्रीय भूमि विकास बैंक की ही शाखाएँ हैं। नाबार्ड द्वारा पुनर्वित की सुविधा से भूमि विकास बैकों के ऋण देने की क्षमता में वृद्धि हुई है।

किसान क्रेडिट कार्ड योजना

किसान क्रेडिट कार्ड योजना (Kisan Credit Card Scheme) : किसान क्रेडिट कार्ड योजना की शुरुआत अगस्त 1998 में की गई। यह स्कीम संस्थानिक ऋण तक किसानों की पहुँच की एक महत्वपूर्ण तथा प्रभावी पहल है। यह किसानों की व्यापारिक बैंकों, सहकारी बैंकों तथा क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों से ऋण लेने की सुविधा देता है। इस स्कीम की व्यवस्था नाबार्ड द्वारा होती है पर स्कीम का क्रियान्वयन तथा इसके अन्तर्गत किसानों को ऋण देने में सर्वाधिक भागीदारी व्यापारिक बैंकों की है। नाबार्ड क्रेडिट कार्ड की प्रबंधक इकाई है जबकि सहकारी बैंक क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक तथा वाणिज्यिक बैंक इसे बाँटने की वितरक एजेंसी है।

• किसान क्रेडिट कार्ड की सीमा का निर्धारण प्रचालनात्मक जोत (Operational Land Holding) फसल पैटर्न (Cropping Pat- tern) तथा वित्त के आकार के आधार पर होगा। ऐसे किसान जो 5000 रुपये या अधिक मूल्य के उत्पादन ऋण के लिए अर्ह हैं। वे किसान क्रेडिट कार्ड के हकदार होंगे। किसान साख कार्ड 3 वर्ष के लिए वैध होगा, प्रत्येक निकासी का भुगतान 12 माह के भीतर करना होगा।

शस्य गहनता (Cropping Intensity)

• शस्य गहनता (Cropping Intensity): शस्य गहनता का अर्थ है कि एक कृषि वर्ष के दौरान उसी खेत पर नई फसलें बोई जायें। यह शुद्ध बोए गए क्षेत्र और सकल फसलगत क्षेत्र के बीच अनुपात को अभिव्यक्त करती है।

किसान कॉल सेंटर : 21 जनवरी, 2004 को किसान कॉल सेंटर आरंभ किया गया है। आरंभ में इसे देश के आठ महानगरों में शुरू किया गया। यहाँ से किसान टॉल फ्री नं. 1531 के माध्यम से कृषि संबंधी जानकारी • प्राप्त कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि किसानों को कृषि संबंधी जानकारी उपलब्ध कराने के लिए इंदिरा गाँधी मुक्त विश्वविद्यालय ने 2004 में ही ‘किसान चैनल’ की भी शुरुआत की है।

रुरल नॉलेज सेंटर : नाबार्ड की मदद से भारत सरकार ने देश के ग्रामीण क्षेत्रों में ‘रुरल नॉलेज’ की स्थापना की है। इन केन्द्रों में आधुनिक सूचना प्रोद्योगिकी एवं दूरसंचार तकनीक का उपयोग किसानों को वांछित जानकारी उपलब्ध कराने के लिए किया जाता है। राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिश पर एक-एक लाख रुपए की लागत से कुल एक हजार नॉलेज सेंटर स्थापित किया जा रहा है। इस पर आने वाली लागत का ‘ग्रामीण आधारभूत संरचना विकास कोष’ से धनराशि सरकार द्वारा दी जा रही है। प्रारंभ में यह सेंटर राजस्थान, तमिलानाडु, उत्तराखंड, महाराष्ट्र, कनार्टक, गुजरात, आंध्रप्रदेश एवं पश्चिम बंगाल में स्थापित किए जा रहे हैं।

यह भी पढ़ें: बजट

निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट भारतीय कृषि जरुर अच्छी लगी होगी। भारतीय कृषि के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

2 thoughts on “भारतीय कृषि | Indian Agriculture |”

Leave a Comment