भारत में “हरित क्रांति” | Green Revolution|

भारत में हरित क्रांति

• हरित क्रांति का श्रेय मेक्सिको के कृषि वैज्ञानिक डॉ. नॉरमन बोरलाग को है। इन्हें हरित क्रांति का पिता कहा जाता है।

• ‘हरित क्रांति’ नामकरण विलियम गॉड द्वारा किया गया है।

• हरित क्रांति को ‘आगत क्रांति’ या ‘बीज, उर्वरक, सिंचाई क्रांति’ के नाम से भी जाना जाता है।

• भारत में हरित क्रांति को लाने का श्रेय डॉ. स्वामीनाथन को है। इन्हें भारतीय हरित क्रांति का जन्मदाता कहा जाता है।

• भारत में प्रथम हरित क्रांति 1966-67 ई. से प्रारम्भ हुई और दूसरी हरित क्रांति 1983-84 ई. से प्रारम्भ मानी जाती है।

• प्रथम हरित क्रांति का क्षेत्र – पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी उत्तर प्रदेश था, जबकि द्वितीय हरित क्रांति का क्षेत्र पश्चिम बंगाल, बिहार, ओडिशा, मध्य प्रदेश और पूर्वी उत्तर प्रदेश था।

• हरित क्रांति का सर्वाधिक प्रभाव गेहूँ और चावल के उत्पादन पर पड़ा।

• हरित क्रांति को ‘नई कृषि युक्ति’ भी कहा जाता है।

• हरित क्रांति में रासायनिक उर्वरक, उन्नत बीज, कीटनाशक का प्रयोग, बहुफसली कार्यक्रम, सिंचाई का विस्तार, जल संसाधन प्रबंध, यंत्रीकरण, पौध संरक्षण आदि का उन्नत प्रयोग सम्मिलित है।

• हरित क्रांति से कृषि एवं उद्योग का संबंध घनिष्ठ हुआ है और बाजार प्रेरित उत्पादन की प्रवृत्ति बढ़ी है।

• हरित क्रांति का संबंध संस्थागत पक्ष से न होकर तकनीकी पक्ष से है।

• हरित क्रांति से पाँच फसलों-गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा एवं मक्का के उत्पादन में सर्वाधिक वृद्धि हुई है।

द्वितीय हरित क्रांति

• द्वितीय हरित क्रांति : द्वितीय हरित क्रांति की शुरुआत 2006 में की गई। इसका मुख्य उद्देश्य 2015 तक कृषि उत्पादों को दोगुना करने का था। पहली हरित क्रांति की शुरुआत 1960 के दशक में की गई थी और इसके वांछित परिणाम भी निकले। उत्पादकता में काफी वृद्धि हुई लेकिन उत्पादन में यह वृद्धि गेहूँ एवं चावल तक ही सीमित रही। लेकिन 1990 के दशक तक आते-आते हरित क्रांति के प्रभाव में अपेक्षाकृत कमी आने लगी। इसके अलावा नई कृषि तकनीकों के कारण खासकर अत्याधिक उर्वरक एवं कीटनाशकों के प्रयोग के दुष्परिणाम भी दिखाई देने लगे। किसानों पर इसका बुरा प्रभाव पड़ने लगा। अतः नीति निर्माताओं एवं राष्ट्रीय किसान आयोग की सहमति से कृषि के क्षेत्र में नई पहल की गई जिसे ‘नई हरित क्रांति’ का नाम दिया गया।

ऑपरेशन फ्लड

ऑपरेशन फ्लड : डॉ. वर्गीज कुरियन इसके प्रमुख सूत्रधार हैं जिन्होंने विश्व के इस सबसे बड़े समन्वित डेयरी विकास कार्यक्रम की शुरुआत की। सन् 1964-65 में सर्वप्रथम ‘सघन पशु विकास प्रोग्राम’ चलाया गया। जिसके अंतर्गत ‘श्वेत क्रांति’ लाने हेतु पशु मालिकों को पशुपालन के सुधरे तरीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया गया। इस ‘श्वेत क्रांति को गति प्रदान करने के लिए 1970 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड ने ‘ऑपरेशन फ्लड’ (श्वेत क्रांति) प्रारंभ की। आरंभ में ऑपरेशन फ्लड’ 10 राज्यों से शुरू किया गया। अभी तक ऑपरेशन फ्लड के तीन चरण पूरे हो चुके हैं। इसके अंतर्गत डेयरी उद्योग के संरचनात्मक ढाँचे का विस्तार एवं आधुनिकीकरण किया गया, दुधारू पशुओं का आनुवंशिक सुधार तथा दुग्ध उत्पादन के क्षेत्रीय एवं मौसमी असंतुलन को दूर करने के लिए मिल्क ग्रिड स्थापित किया गया।

न्यूनतम समर्थन मूल्य

न्यूनतम समर्थन मूल्य : किसानों को कीमत जोखिम से दूर रखने के लिए सरकार प्रत्येक फसल वर्ष के प्रारंभ में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा करती है। एमएसपी घोषित करने का मुख्य उद्देश्य अति उत्पादन की स्थिति में कृषि उपज के मूल्य को रोकना तथा किसानों के हितों का संरक्षण करना है। यदि फसल कटाई के समय बाजार मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम हो जाता है, तब सरकार पूर्व निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों द्वारा मार्केट में लाई गई समस्त फसल खरीदने के लिए तैयार रहती है, जिसमें बाजार मूल्य न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे नहीं जा पाता तथा किसान अति उत्पादन की स्थिति में भी अपनी उपज का लाभकारी मूल्य प्राप्त कर लेता है।

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग : 1965 में भारत सरकार ने कृषि आयोग (Commission for Agricultural Cost and Prices- CACP) की स्थापना की। यह आयोग विभिन्न कृषि उत्पादों के लिए उनकी बोआई के समय न्यूनतम समर्थन कीमत, वसूली कीमत और जारी कीमतों की घोषणा करती थी। न्यूनतम समर्थन कीमत वह कीमत है, जिसे हर हाल में सरकार कृषकों को उनकी फसल के लिए देने की घोषणा करती है, चाहे फसल का अधिक उत्पादन से उसकी माँग कितनी भी क्यों न घट जाए। जारी कीमत विभिन्न खाद्य पदार्थों का सरकारी विक्रय मूल्य है तथा इसी कीमत पर सरकारी उचित दर वाली दुकानों की सहायता से गरीब जनता को खाद्य सामग्री उपलब्ध कराती है।

• किसी फसल के लिए अदा की गई वास्तविक सरकारी कीमत को वसूली कीमत कहते हैं। सरकार इसी कीमत पर व्यापारिक मंडियों से विभिन्न उपजों को माँग एवं पूर्ति के आधार पर खरीदती है।

• मार्च 1985 में कृषि कीमत आयोग का पुर्नगठन करके इसका नामकरण ‘कृषि लागत एवं कीमत आयोग’ कर दिया गया। वह आयोग कृषि आयातों की लागतों एवं किसानों की उचित प्रतिफल पर विचार करने के बाद ‘न्यूनतम समर्थन मूल्य’ की संस्तुति सरकार को करती है।

मूल्य स्थिरीकरण कोष

• मूल्य स्थिरीकरण कोष : इस कोष की स्थापना फरवरी 2003 में किया गया। इसके लिए सरकार ने 300 करोड़ रु. का योगदान 150 करोड़ की दो किस्तों में किया है। इस कोष का मुख्य उद्देश्य चाय, कॉफी, रबड़ एवं तम्बाकू के मूल्यों में उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करना है। मूल्य स्थिरीकरण के लिए विगत वर्षों के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य के चल माध्य (Moving Average) के द्वारा बैंचमार्क मूल्य का निर्धारण किया जाता है। यदि बैंचमार्क मूल्य से बाजार मूल्य 20 प्रतिशत तक कम या अधिक है तो कोई कदम नहीं उठाया जाता है, किंतु 20 प्रतिशत से ज्यादा कमी आने पर उत्पादकों को कोष से राहत दी जाती है तथाा 20 प्रतिशत से ज्यादा अधिक होने पर उत्पादकों को अतिरिक्त राशि कोष में जमा करानी होती है। इस योजना का लाभ चार हेक्टेयर तक की जोतों के धारक उठा सकते हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् : भारत सरकार के कृषि मंत्रालय के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा के अंतर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् एक स्वायत्त संस्था है। रॉयल कमीशन की कृषि रिपोर्ट के अनुसरण में सोसायटी रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, 1860 के तहत पंजीकृत और 16 जुलाई, 1929 की स्थापित इस सोसायटी का पहले नाम इंपीरियल काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च था। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में स्थित है।

• यह परिषद् भारत में बागवानी, मत्स्यिकी और पशु विज्ञान सहित कृषि के क्षेत्र में समन्वयन, मार्गदर्शन, अनुसंधान, प्रबंधन एवं शिक्षा के लिए सर्वोच्च निकाय है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने देश में हरित क्रांति लाने और उसके बाद कृषि में निरंतर विकास में अपने अनुसंधान और प्रौद्योगिकी विकास में अग्रणी भूमिका निभाई है। परिषद् के अंतर्गत देशभर में 97 भारतीय कृषि अनुसंधान एवं 53 कृषि विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् के प्रमख संस्थान

संस्थान/संस्थास्थान
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थाननई दिल्ली
भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थानझांसी
राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान एवं प्रबंधन अकादमीहैदराबाद
भारतीय कृषि साख्यिकी अनुसंधान संस्थाननई दिल्ली
केंद्रीय धान (चावल) अनुसंधान संस्थानकटक
केंद्रीय जैव प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थाननई दिल्ली
केंद्रीय कपास प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थानमुंबई
भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थानकानपुर
विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थानअल्मोड़ा
भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थानकालीकट
राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान संस्थानकरनाल
लीची अनुसंधान केंद्रमुजफ्फरपुर
अंगूर अनुसंधान केंद्रपुणे
केंद्रीय कपास अनुसंधान संस्थाननागपुर
केंद्रीय पटसन एवं संबद्ध रेशा अनुसंधान संस्थानबैरकपुर
भारतीय चिकित्सा अनुसंधान संस्थानइज्जतनगर
केंद्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थानजोधपुर
भारतीय मुद्रा विज्ञान संस्थानभोपाल
केंद्रीय कृषि अनुसंधान संस्थानपोर्ट ब्लेयर
केंद्रीय रोपण फसल अनुसंधान संस्थानकासरगोड
केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थानहिसार
केंद्रीय कृषि अभियांत्रिकी संस्थानभोपाल
केंद्रीय मत्स्यिकी शिक्षा संस्थानमुंबई
केंद्रीय तम्बाकू अनुसंधान संस्थानराजामुंद्री
नींबू वर्गीय फल अनुसंधान केंद्रनागपुर
केंद्रीय शुष्क भूमि कृषि अनुसंधान संस्थानहैदराबाद
केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थानशिमला
भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थानबंगलुरु
भारतीय सब्जी अनुसंधान संस्थानवाराणसी
केंद्रीय पक्षी विज्ञान अनुसंधान संस्थानइज्जतनगर
राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि उपयोग नियोजन ब्यूरोनागपुर
केंद्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थानअंबिकानगर
केंद्रीय मृदा एवं जल संरक्षण एवं प्रशिक्षण अनुसंधान संस्थानदेहरादून
केंद्रीय शुष्क बागवानी संस्थानबीकानेर
राष्ट्रीय पटसन एवं संबद्ध रेशा प्रौद्योगिकी अनुसंधान संस्थानकोलकाता
राष्ट्रीय पादप आनुवंशिक संसाधन ब्यूरोनई दिल्ली
केंद्रीय समुद्री मत्स्यिकी अनुसंधान संस्थानकोच्चि
केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थानकोचीन

कमांड विकास कार्यक्रम

• कमांड क्षेत्र विकास कार्यक्रम वर्ष 1974-75 में चलाया गया, जिसका उद्देश्य देश की चयनित बृहत् एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं का समुचित उपयोग सुनिश्चित करना था।

•  मोटे अनाजों में – ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी तथा मिलेट को शामिल किया जाता है।

नेफेड (NAFED)

• कृषि उपजों के विपणन हेतु सहकारी क्षेत्र में राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (National Agricultural Co-opera- tive Marketing Federation of India- NAFED) की स्थापना की गयी है। इसका प्रमुख कार्य चुनी हुई कृषि वस्तुओं को प्राप्त करना, वितरण करना, निर्यात तथा आयात करना है।

कृषि उपजों का भण्डारण – कृषि उपजों के भण्डारण की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए 1956 ई. में राष्ट्रीय सहकारी विकास एवं भण्डागार बोर्ड तथा 1957 ई. में केन्द्रीय भण्डागार निगम की स्थापना की गई।

कृषि क्षेत्र में हुई विभिन्न क्रान्तियाँ :

क्रान्तिउत्पादन/विकास क्षेत्र
हरित क्रान्तिखाद्यान्न उत्पादन
श्वेत क्रान्तिदुग्ध उत्पादन
पीली क्रान्तितिलहन
नीली क्रान्तिमछली उत्पादन
लाल क्रान्तिमांस एवं टमाटर उत्पादन
सुनहरी क्रान्तिफलों के उत्पादन
गुलाबी क्रान्तिझींगा मछली उत्पादन
भूरी क्रान्तिउर्वरक उत्पादन
ब्राउन क्रान्तिगैर परम्परागत ऊर्जा विकास
रजत क्रान्तिअण्डा एवं मुर्गी पालन
खाद्यान्न श्रृंखला क्रान्तिखाद्यान्न, सब्जी एवं फलों को सड़ने से बचाना
ब्लैक क्रान्तिखनिज तेल में आत्मनिर्भरता हेतु
राउण्ड क्रांतिआलू उत्पादन
यह भी पढ़ें: भारतीय कृषि

निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट भारत में हरित क्रांति जरुर अच्छी लगी होगी। भारत में हरित क्रांति के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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