चोल राजवंश
इस पोस्ट में चोल राजवंश,चोल शासकों की प्रशासनिक इकाई,चोल अभिलेखों में उल्लिखित करों के नाम के बारे में बताया गया है, तो आइये विस्तार से इनके बारे में जानते हैं।
Table of Contents
• चोलों का सर्वप्रथम वर्णन अशोक के तेरहवें शिलालेख में मिलता है।
• प्रारम्भिक चोलों की राजधानी तंजौर थी।
• परवर्ती चोल वंश का संस्थापक विजयालय (850 ई.) था। विजयालय पल्लवों का सामंत था।
• विजयालय ने ‘नरकेसरी’ की उपाधि धारण की।
• विजयालय चोल ने तंजौर में दुर्गादेवी का मन्दिर तथा नत्तामलाई में विजय चोलेश्वर मन्दिर बनवाये।
• परान्तक प्रथम ने पाण्डय शासक राजसिंह को हराकर मदुरैकोण्ड की उपाधि धारण की।
• परान्तक प्रथम को तक्कोलम के युद्ध में राष्ट्रकूट शासक कृष्ण तृतीय ने हराया।
चोल शासकों की प्रशासनिक इकाई
प्रांत | प्रशासनिक खंड |
---|---|
मण्डलम | प्रांत |
कोट्टम | कमिश्नरी |
नाडु | जिला |
कुर्टम | ग्रामों का संघ |
• राजराज प्रथम 985 ई. में गद्दी पर बैठा। इसने 1014 ई. तक शासन किया।
• राजराज प्रथम का वास्तविक नाम अरमोलि वर्मन था।
• राजराज प्रथम की प्रमुख विजय केरल, पाण्डय, श्रीलंका तथा मालदीव थी।
• राजराज प्रथम ने काण्डलूर शालैकलमरुत तथा शिवपादशेखर की उपाधि धारण की।
• राजराज प्रथम ने श्रीलंका के महेन्द्र पंचम को हराया। राजराज ने उत्तरी श्रीलंका में चोल साम्राज्य का एक नया प्रान्त बनाया तथा इसका नाम ‘मुन्डि चोल मण्डलम’ दिया।
• राजराज ने अनुराधापुर के स्थान पर पोलोन्नारूव को राजधानी बनाई, तथा इसका नाम जगन्नाथ मंगलम रखा।
• चोलों की नौसेना सर्वाधिक मजबूत थी।
• अपने राज्य की समस्त भूमि की माप राजराज प्रथम ने करवाई।
• तंजौर के राजराजेश्वर मन्दिर का निर्माण राजराज प्रथम ने करवाया।
• राजराज प्रथम ने श्री विजय के शैलेन्द्र शासक श्रीमार विजयोतुंग वर्मन को नागपट्टिनम में एक बौद्ध मठ बनाने की अनुमति दी।
• श्रीलंका के शासक महेन्द्र पंचम को राजेन्द्र प्रथम (1014-1044 ई.) बन्दी बनाकर लाया।
• श्रीलंका में बौद्ध विहारों को राजेन्द्र प्रथम ने नुकसान पहुँचाया।
• गंगा घाटी की विजय के उपलक्ष्य में राजेन्द्र प्रथम ने ‘गंगईकोण्ड चोल’ की उपाधि धारण की।
• राजेन्द्र प्रथम ने अपनी नई राजधानी गंगईकोण्डचोलपुरम् में बनाई।
• दक्षिण-पूर्व एशिया (मलय प्रायद्वीप, जावा, सुमात्रा) की विजय राजेन्द्र प्रथम ने की।
• राजेन्द्र प्रथम के समय श्रीविजय साम्राज्य का शासक संग्राम विजयोतुंग वर्मन था।
• अण्डमान-निकोबार, अराकान तथा पेगू को राजेन्द्र प्रथम ने विजित किया।
• चोल साम्राज्य का सर्वाधिक विस्तार राजेन्द्र प्रथम के शासनकाल में हुआ।
• राजेन्द्र प्रथम ने 1016 और 1033 ई. राजदूत मंडल चीन भेजे।
• राजेन्द्र प्रथम ने बंगाल विजय के उपरान्त सोलह मील लम्बा चोलगंगम नामक तालाब का निर्माण करवाया।
• श्रीलंका के शासक महेन्द पंचम से इन्द्र का निर्मलहार राजेन्द्र प्रथम ने छीना।
• राजाधिराज प्रथम ने कल्याणी विजय के बाद विजय राजेन्द्र की उपाधि धारण की।
• येतगीरी में विजय स्तम्भ राजाधिराज प्रथम ने बनवाया।
• विजयकोण्ड की उपाधि राजाधिराज प्रथम ने धारण की।
• राजेन्द्र द्वितीय ने सोमेश्वर को पराजित कर अपना विजय स्तम्भ कोल्हापुर में स्थापित किया।
• वीर राजेन्द्र ने चालुक्यों को हराकर तुंगभद्रा नदी के तट पर विजय स्तम्भ स्थापित किया।
• 1068 ई. में सोमेश्वर प्रथम ने तुंगभद्रा में डूबकर आत्महत्या कर ली।
• कुलोतुंग प्रथम ने 72 सौदागरों का दूतमण्डल 1077 ई. में चीन भेजा।
• कलिंग के विद्रोह को कुलोतुंग ने दबाया।
• कुलोतुंग प्रथम को अन्य शुड्गम तर्वित्त (करों को हटाने वाला) के नाम से जाना जाता है।
• चिदम्बरम के मन्दिर तथा श्रीरंगम की समाधि कुलोतुंग प्रथम ने बनवाई।
• जयगोन्दार कुलोतुंग प्रथम का राजकवि था।
• ‘कलिंगतुपर्णि’ की रचना जयगोन्दार ने की थी।
• कम्बन द्वारा तमिल रामायण की रचना कुलोतुंग द्वितीय के शासन काल में की गई।
• आदित्य प्रथम ने कुन्नूर का बालसुब्रह्मण्यम् मंदिर तथा कुम्भकोणम का नागेश्वर मन्दिर बनवाये।
• दारासुरम के ऐरावतेश्वर मन्दिर का निर्माण राजराज द्वितीय ने करवाया।
• विक्रमचोल की उपाधि ‘त्याग समुद्र’ थी।
• चोल वंश का अंतिम शासक राजेन्द्र तृतीय था।
• चोल साम्राज्य का अन्त 1279 ई. में पाण्डय नरेश कुलशेखर ने किया।
• सदैव राजा के पास रहने वाले उच्चाधि कारियों को उड़नकूट्टम कहा जाता था।
• विशाल चोल साम्राज्य छ: प्रान्तों में विभाजित था।
• समितियों को वारियम कहा जाता था।
• मणिग्रामम् तथा वलजियर व्यापारिक संगठन थे।
• राजद्रोह को भयंकर अपराध माना जाता था।
• सम्राट की रक्षा के लिये प्राण न्योछावर करने वाले सैनिकों को वलैक्कारर कहा जाता था।
• शैव धर्म सर्वाधिक लोकप्रिय था।
• शैव धर्म के भक्ति गीत नम्बि आण्डार नम्बि ने लिखे थे।
• राजेन्द्र चोल के गुरु इशानशिव एवं सर्वशिव थे।
• विशिष्टाद्वैत के प्रवर्तक रामानुजाचार्य राजेन्द्र प्रथम के समकालीन थे।
• राजराज प्रथम की बहन कुन्दवै ने एक ही स्थान पर शैव, वैष्णव तथा जैन मन्दिरों का निर्माण कराया था।
• चोलकाल में वैष्णव लेखकों ने अपने ग्रन्थ संस्कृत में लिखे।
• अमृतसागर तथा बुद्धिमित्र जैसे जैन एवं बौद्ध भिक्षुओं को चोल शासक ने संरक्षण दिया।
• कोरंगनाथ मंदिर परान्तक प्रथम ने बनवाया।
• चोलकाल में मन्दिरों के प्रवेश द्वार गोपुरम् कहलाते थे।
• चोल शासक समुद्री शक्ति के लिये विख्यात थे।
• चोलकाल की प्रमुख भाषा संस्कृत एवं तमिल थी।
• लिंगायत सम्प्रदाय की स्थापना बासव ने की।
• नयनार संत शिव के उपासक थे।
• अलवार संत विष्णु के उपासक थे।
• अन्न का मान एक कलम (तीन मन) था।
• सोने के सिक्के को काशु कहा जाता था।
• बेलि भूमिमाप की इकाई थी।
• राजस्व विभाग का प्रमुख अधिकारी वरित्पोत्तराक्क कहलाता था।
• सेना की छावनियों को कडगम कहा जाता था।
• सेना की टुकड़ियों के प्रमुख को ‘नायक’ तथा सेनाध्यक्ष या प्रधान सेनापति को ‘महादण्ड नायक’ या सेनापति कहा जाता था।
• सेना के मुख्य अंग-धनुर्धर को विल्लिगल, गजारोही को कुजिरमल्लर, घुड़सवार को कुडिरैच्चेवगर तथा पैदल सेना को बडपेई कैक्कोलर कहा जाता था।
चोल अभिलेखों में उल्लिखित करों के नाम
कर का नाम | संबंधित क्षेत्र |
---|---|
आयम | राजस्व |
कडिमै | लगान |
मरमज्जाडि | वृक्ष कर |
किडाक्काशु | नर पशु पर लगने वाला कर |
पाडिकावल | गांव की रक्षा के लिए लिया जाने वाला कर |
वालल्तिमम् | द्वार कर |
मनैइरै | भवन कर (गृहकर) |
कडैइरै | दुकानों पर लगने वाला कर |
आजीवक्कवकाशु | आजीवकों पर लगने वाला कर |
पेवरि | तेलियों से लिया जाने वाला कर |
मगन्मै | कुम्हार, लुहार, सुनार आदि से लिया जाने वाला कर |
चोल शासकों द्वारा निर्मित कराए गए मंदिर
राजा | स्थान | मंदिर |
---|---|---|
विजयालय | नार्त्तमलाई | चोलेश्वर मंदिर |
आदित्य प्रथम | कुम्भकोणम् | नागेश्वर मंदिर |
आदित्य प्रथम | कन्नूर | बालसुब्रह्मण्यम् मंदिर |
आदित्य प्रथम | तिरुक्कट्टलै | सुन्दरेश्वर मंदिर |
परान्तक प्रथम | श्रीनिवासनल्लूर | कोरंगनाथ मंदिर |
राजराज प्रथम | तंजौर | राजराजेश्वर मंदिर |
राजराज प्रथम | तन्नवेली | विरुवालीश्वरम् मंदिर |
राजराज द्वितीय | दारासुरम् | ऐरावतेश्वर मंदिर |
कुलोतुंग तृतीय | त्रिभुवनम् | कम्पहरेश्वर मंदिर |
मदुरै के पाण्ड्य
• परवर्ती पाण्ड्य वंश की स्थापना कंडुगोन (590-620 ई.) ने किया था।
• मलयादि कुरिचि में चट्टान काटकर जयंत वर्मन ने गुफा मन्दिर बनवाई।
• श्रीमार श्रीवल्लभ (815-862 ई.) एक पराक्रमी तथा साम्राज्यवादी शासक था।
• अन्ततः पाण्ड्य सम्राज्य को पल्लव शासक नृपतुंग ने विजित कर लिया।
• 1310 ई. में अलाउद्दीन के सेनापति मलिक काफूर ने पाण्ड्य राज्य पर आक्रमण कर मदुरा को लूटा तथा ध्वस्त कर दिया।
देवगिरि के यादव
• देवगिरि के यादव वंश का संस्थापक भिल्लम था। भिल्लम चालुक्य शासक सोमेश्वर चतुर्थ का सामंत था।
• भिल्लम ने अपनी राजधानी देवगिरी में बनाई। उसने 1187-1191 ई. तक शासन किया।
• भिल्लम के बाद उसका बेटा जैतुंगी राजा बना।
• महान खगोलशास्त्री भास्कराचार्य का पुत्र लक्ष्मीधर जैतुंगी का दरबारी कवि था।
• यादव वंश का सबसे शक्तिशाली राजा सिंघन था। उसने 1210 ई. से 1247 ई. तक शासन किया।
• सारंगदेव का संगीत रत्नाकर सिंघन के दरबार में लिखा गया।
• वाराहमिहिर के ‘बृहज्जातक’ पर अनन्तदेव ने टिप्पणी लिखी।
• व्रतखांदा का लेखक हेमाद्रि महादेव के दरबार में रहता था।
• देवगिरि को 1309 ई. में अलाउद्दीन खिलजी द्वारा विजित कर लिया गया।
• यादव वंश का अंतिम स्वतन्त्र शासक रामचन्द्र था।
• ‘सिद्धान्त शिरोमणि’ तथा ‘करणकौतुहल’ की रचना भास्कराचार्य ने की।
द्वारसमुद्र के होयसल वंश
• होयसलों का मूल क्षेत्र मैसूर में गंगवाड़ी के पहाड़ी क्षेत्र में था।
• होयसल राज्य का वास्तविक संस्थापक विष्णुवर्द्धन था।
• होयसल यादव वंश से सम्बन्धित थे। अपने को चंद्रवंशी मानते थे।
• होयसलेश्वर के मन्दिर का निर्माण विष्णुवर्द्धन के शासन काल में हुआ।
• वेल्लूर में चेन्ना केशव मन्दिर का निर्माण विष्णुवर्द्धन ने करवाया था।
• होयसल वंश का अंतिम शासक वीर बल्लाल तृतीय था।
• 1310-11 ई. में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने होयसल वंश के शासक बल्लाल तृतीय को पराजित किया। बल्लाल तृतीय ने अलाउद्दीन को वार्षिक कर देना स्वीकार कर लिया। उसने 1339 ई. तक अलाउद्दीन के करद के रूप में शासन करता रहा।
• होयसलों की राजधानी द्वारसमुद्र का आधुनिक नाम हलेबिड (कर्नाटक) है।
कदम्ब राजवंश
• कदम्ब राजवंश की स्थापना मयूर शर्मन ने की थी। मयूर शर्मन ने लगभग 345 ई. से 360 ई. तक शासन किया।
• कदम्ब शासकों की राजधानी बनवासी थी।
• इनकी दूसरी राजधानी का नाम वालासिका था।
• मयूर शर्मन का उत्तराधिकारी मृगेश वर्मन हुआ।
• वालासिका में मृगेश वर्मन द्वारा एक मन्दिर का निर्माण मयूर शर्मन की स्मृति में कराया गया।
• मयूर शर्मन को अठारह अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान कराने वाला कहा गया है।
• कदम्बवंशी शासकों की वंशावली हमें एकमात्र ताल गुण्ड स्तम्भलेख से ज्ञात होती है।
गंग वंश
• गंग वंश की स्थापना कोंकणि वर्मा ने की। कोंकणि वर्मा का समय लगभग 400 ई. माना जाता है।
• गंग वंश का शासन आधुनिक मैसूर के दक्षिण गंगवाडि क्षेत्र में था।
• माधव प्रथम ने दत्तक सूत्र पर टीका लिखी थी।
• गंग शासक श्रीपुरुष ने अपनी राजधानी मान्यपुर में बनाई। श्रीपुरुष 728-788 ई. तक शासन किया।
वारंगल के काकतीय वंश
• काकतीय वंश का संस्थापक बेत प्रथम था।
• काकतीय शासक पश्चिमी चालुक्यों के सामन्त थे।
• प्रोल द्वितीय (काकतीय शासक) ने अपने को चालुक्यों से स्वतन्त्र घोषित किया।
• अनुमाकोंडा के हजार स्तम्भों वाले मन्दिर का निर्माण रुद्रदेव ने करवाया।
• इनकी राजधानी अमकोण्ड थी।
• ओरुगाल्लु (आधुनिक वारंगल) नामक नया शहर रुद्रदेव ने बसाया।
• काकतीय वंश का सबसे शक्तिशाली राजा गणपतिदेव था।
• गणपतिदेव ने अपनी राजधानी वारंगल में स्थापित की।
• रुद्राम्बादेवी गणपतिदेव की पुत्री थी। गणपति के बाद रुद्राम्बा काकतीय राज्य की शासिका बनी।
• प्रतापरुद्रदेव के शासनकाल में (1303 ई. में) होयसल राज्य पर मुस्लिम आक्रमण शुरू हुआ।
• 1323 ई. में मुहम्मद तुगलक ने प्रतापरूद्रदेव के राज्य पर आक्रमण किया। प्रतापरूद्रदेव पराजित हुआ तथा बंदी बना लिया गया और काकतीय राज्य दिल्ली सल्तनत में सम्मिलित कर लिया गया।
• ‘नीतिशास्त्र मुक्तावली’ बाद्देना ने लिखी।
• ‘नीरवचनोत्तर रामायण’ तिक्काना ने लिखी।
• काकतीय राज में कालामुख तथा पाशुपत धर्म प्रचलित था।
• अप्पाचार्य ने ‘प्रतिस्थासार’ लिखी।
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निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट चोल राजवंश जरुर अच्छी लगी होगी। चोल राजवंशके बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
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