बादल किसे कहते हैं?
हवा की रुद्धोष्म प्रक्रिया द्वारा ठण्डा होने पर उसके तापमान के ओसांक से नीचे गिरने से बादल बनते हैं।
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बादलों का वर्गीकरण :
• स्तरी कपासी मेघ : ये गोलाकार परिणामों अथवा बेलनाकार परतों में व्यवस्थित होते हैं, जो आपस में इतने निकट होते हैं कि उनके किनारे मिल जाते हैं।
• वर्षा स्तरी मेघ : ये काला धूसर रंग के एक समान आधार वाले मेघ होते हैं, जो निरंतर वर्षा अथवा हिम देते हैं।
• कपासी मेघ : ये संवहन मेघ होते हैं, जो उस समय बनते हैं जब ऊपर उठती वायुराशि उस स्तर तक पहुँचती है, जहाँ संघनन होता है।
• कपासी वर्षा मेघ : ये नीचे से देखे जाने पर काले, धूसर दिखाई देते हैं लेकिन किनारों से सफेद दिखाई देते हैं। ये तड़ित झंझा से संबंधित मेघ होते हैं, जिनसे तेज वर्षा एवं ओलावृष्टि या हिमपात होता है।
• स्तरी मेघ: इनमें एक समान परतें पाई जाती है जो मन्द, धूसर तथा साधारण दिखाई देते हैं।
• उच्च कपासी मेघ : ये मेघ परतों में होते हैं। जिसे भेड़ मेघ या ऊन के प्रकार के मेघ भी कहा जाता है।
• उच्च स्तरी मेघ : उच्च स्तरी मेघ गहरे मेघ होते हैं, जो सूर्य अथवा चन्द्रमा को पूर्ण रूप से ढक लेते हैं। ये वर्षा का पूर्वाभास देने वाले मेघ होते हैं।
• पक्षाभ मेघ : ये कोमल रेशेदार, भूसे के ढेर के समान मेघ होते हैं। ये मेघ चक्रवात के आने का सूचक होते हैं।
• पक्षाभ स्तरी मेघ : ये महीन और सफेद चादर के समान पूरे आकाश में छाए रहते हैं जो दिन में सूर्य तथा रात्रि में चन्द्रमा के चारों ओर प्रभामंडल बनाते हैं।
• पक्षाभ कपासी मेघ : ये मेघ हिम रवों से बने होते हैं। इसे मेकरेल आकाश कहा जाता है। ये गोभी जैसे दिखाई देते हैं।
वर्षा (Rain)
पृथ्वी पर उपलब्ध जल के वाष्पीकरण होने से वाष्प वायुमंडल में पहुँचता है तथा ऊँचाई पर तापमान कम होने से उसका संघनन होता है। फलस्वरूप मेघ बनते हैं तथा वर्षा बूंदों का निर्माण होता है। जब जलवाष्प की बूंदें जल के रूप में पृथ्वी पर गिरती हैं उसे वर्षा (Rainfall) कहते हैं।
वर्षा के प्रकार : वर्षा तीन प्रकार की होती है-
1. संवहनीय वर्षा : पृथ्वी के ऊपर वायुमंडल में संवहन प्रक्रिया द्वारा जो वर्षा होती है, उसे संवहनीय वर्षा कहते हैं। इस प्रकार की वर्षा विषुवतरेखीय प्रदेश में होती है। गर्म हवा ऊपर उठती है तथा ठंडी होकर बादल का रूप ले लेती है और वर्षा प्रारंभ हो जाती है। वर्षा के पश्चात् ठंडी हवा नीचे उतर जाती है।
2. पर्वतीय वर्षा : जब जलवाष्प स लदा हुई गर्म वायु के मार्ग में पर्वत या अवरोध पड़ने से वह ऊपर उठती है तो ठण्डी हो जाती है और उसमें उपस्थित जलवाष्प का संघनन होता है तो इससे पर्वतीय वर्षा होती है। विश्व में अधिकतर पर्वतीय वर्षा इसी रूप में होती है।
• जिस पर्वतीय ढाल पर वर्षा होती है, उसे वर्षा पोषित या पवनाभिमुख क्षेत्र कहते हैं, जबकि विमुख ढाल पर वर्षा नहीं होती है तथा इसे वृष्टि छाया प्रदेश कहते हैं।
3. चक्रवातीय वर्षा : चक्रवातों द्वारा होने वाली वर्षा को चक्रवातीय या वाताग्री वर्षा कहते हैं। दो विपरीत स्वभाव वाली हवाएं जब आपस में टकराती हैं तो वाताग्र का निर्माण होता है। इस वाताग्र के सहारे गर्म वायु ऊपर की ओर उठती है और वर्षा होती है। यह वर्षा मुख्य रूप से मध्य एवं उच्च अक्षांशों में होती है।
वायुराशियाँ (Air Masses)
वायुमंडल का वह भाग जिसमें तापमान तथा आर्द्रता के भौतिक लक्षण क्षैतिज दिशा में एक समान हों, उसे वायु राशि कहते हैं। वायुराशि में पाये जाने वाले भौतिक लक्षण हैं- तापक्रम, ह्रास दर और आर्द्रता। ये जिस मार्ग पर चलती है उसका तापमान और आर्द्रता संबंधी दशाओं को परिमार्जित, करती है और स्वयं भी उनसे प्रभावित होती हैं।
• एक वायुराशि का अनुप्रस्थ विस्तार कई हजार किलोमीटर और ऊपर की ओर क्षोभमंडल तक रहता है। विश्व के विभिन्न भागों में मौसम संबंधी परिवर्तन विभिन्न वायुराशियों की क्रिया प्रतिक्रिया के कारण होती है।
वायुराशियों के प्रकार
• मुख्य रूप से वायु राशि दो प्रकार की होती है। शीतल या ठंडी वायुराशि तथा गर्म या उष्ण वायुराशि।
• धरातल की तुलना में कम तापमान वाली वायुराशि शीतल वायुराशि कहलाती है जबकि अधिक तापमान वाली वायुराशि गर्म या उष्ण वायुराशि कहलाती है।
• वायुराशियों से उत्पन्न घटनाएँ हैं-वाताग्रों का निर्माण, वायुमण्डलीय विक्षोभ (चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात) तथा क्षेत्रीय मौसमी दशाएँ आदि।
वाताग्र (Fronts)
आपस में दो वायुराशियों के बीच निर्मित सीमा सतह को वाताग्र कहते हैं। वाताग्र धरातलीय सतह पर कुछ कोण पर झुका होता है। वाताग्र का ढाल पृथ्वी की अक्षीय गति पर आधारित होता है, जो कि ध्रुवों की ओर बढ़ता है। वाताग्र उत्पत्ति से संबंधित प्रक्रिया को वाताग्र उत्पत्ति कहते हैं।
• वाताग्र मुख्यतः चार प्रकार के होते हैं
(i) उष्ण वाताग्र- जब गर्म वायु आक्रामक होने के बाद ठण्डी तथा भारी वायु के ऊपर चढ़ जाती है तो उसे उष्ण वाताग्र कहते हैं।
(ii) शीत वाताग्र- जब ठण्डी तथा भारी वायु उष्ण तथा हल्की वायुराशि के विरुद्ध आक्रामक होकर बढ़ती है तो उसे ऊपर की ओर उठा देती है तो इसे शीत वाताग्र कहते हैं।
(iii) अधिविष्ट वाताग्र- जब शीत वाताग्र तीव्र गति से चलकर उष्ण वाताग्र से मिल जाता है तथा गर्म वायु का नीचे से सम्पर्क समाप्त हो जाता है तो अधिविष्ट वाताग्र का निर्माण होता है।
(iv) स्थायी वाताग्र- जब दो विपरीत वायुराशियाँ एक वाताग्र से इस रूप में अलग होती हैं कि वे एक-दूसरे के समानान्तर हो जाती हैं तथा वायु का ऊपर उठना नहीं हो पाता तो स्थायी वाताग्र का निर्माण होता है।
चक्रवात
चक्रवात में निम्न वायुदाब के केन्द्र होते हैं। जिसमें वायुदाब प्रवणता तीव्र रहती है। चक्रवात में पवन घूमती हुई चलती है, उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा वामावर्त (घड़ी की सुई के विपरीत) और अन्दर की ओर होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में इनकी दिशा दक्षिणावर्त रहती है। इनका आकार मुख्यतः अण्डाकार या V अक्षर के समान होता है।
चक्रवात दो प्रकार के होते हैं-
1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात : इनकी उत्पत्ति पछुआ पवनों की पेटी में 30°-65° अक्षांशों के मध्य होती है। ये अण्डाकार होते हैं।
• ये चक्रवात प्रायः पश्चिम से पूर्व दिशा में चलते हैं। आकार में यह 160 किमी. से 3200 किमी. तक हो सकता है।
• इनसे हल्की से मध्यम वर्षा होती है, जो हल्की बौछारों के रूप में होती है। ये बौछारें कभी-कभी भारी बौछारों का रूप ले लेती हैं, जहाँ अस्थिर उष्ण वायु में संवहन होता है, क्योंकि यह वाताग्र के आगे शीत वायु के रूप में तीव्रता से ऊपर उठती है।
2. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात : उष्ण कटिबंधीय चक्रवात एक निम्न भार का तंत्र है जो उष्ण कटिबंधीय अक्षांशों में विकसित होता है। उष्ण कटिबंधीय चक्रवात प्रमुखतः 5° से 15° अक्षांशों के बीच दोनों गोलाद्धों में महासागरों के ऊपर पाए जाते हैं। इनकी उत्पत्ति सागरों के पश्चिमी छोर के निकट होती है, जहां पर उष्ण कटिबंधीय धाराएँ बहुत अधिक जलवाष्प की आपूर्ति करती रहती हैं। इन चक्रवातों का केन्द्रीय भाग चक्रवात की आँख या शांत क्षेत्र कहलाता है। उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों में पवन की दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में वामावर्त और दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणावर्त रहती है।
चक्रवातों के नाम एवं स्थान
नाम | स्थान |
---|---|
हरिकेन | कैरीबियन द्वीप समूह |
टाइफून | दक्षिणी चीन सागर |
विली-विली | ऑस्ट्रेलिया |
टॉरनेडो | यू.एस.ए. |
चक्रवात | हिन्द महासागर |
• हरिकेन : यह पूर्वी प्रशांत महासागर में मेक्सिको, ग्वाटेमाला, होण्डूरास, निकारागुआ और पनामा के तटवर्ती भागों में उत्पन्न होता है। हरिकेन में एक शांत केन्द्रीय क्षेत्र होता है, जिसके चारों ओर उच्च गति (160 किमी. प्रति घंटा) से वायु परिक्रमा करती है।
• टाइफून : पश्चिमी प्रशांत महासागर और चीन सागर में उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को टाइफून कहते हैं। यह एक तीव्र न्यून भार तंत्र होता है, जो उग्र पवनों को उत्पन्न करता है और भारी वर्षा करता है। इसकी गति 160 किमी. प्रतिघंटा तक की होती है।
• टॉरनेडो : एक अत्यंत तीव्र न्यून दाब केन्द्र के चारों ओर विकसित वायु का तीव्रता से घूर्णन टॉरनेडो कहलाता है। यह मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पन्न होता है। यह सबसे विनाशकारी एवं प्रचण्ड होता है। इसकी गति 800 किमी. प्रति घंटा से भी अधिक होती है।
प्रतिचक्रवात
प्रतिचक्रवात की प्रकृति चक्रवात से पूर्णतः विपरीत होती है। यह वृत्ताकार समदाब रेखाओं द्वारा घिरा हुआ वायु का ऐसा क्रम है, जिसके केन्द्र में वायुदाब अधिकतम होता है जो कि बाहर की ओर घटता जाता है जिस कारण हवाएँ केन्द्र से परिधि की ओर चलती है।
उत्तरी गोलार्द्ध में प्रतिचक्रवात पवन का संचरण दक्षिणावर्त तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में वामावर्त रहता है। प्रतिचक्रवात 30-35 किमी प्रति घंटा की चाल से चलता है। इसके केन्द्र में हवाएँ ऊपर से नीचे उतरती है, अतः केन्द्र का मौसम साफ होता है और वर्षा की संभावना नहीं रहती है।
प्रतिचक्रवातों में वाताग्र नहीं बनते हैं। उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र में सर्वाधिक प्रतिचक्रवातों का निर्माण होता है किन्तु भूमध्यरेखा पर सर्वथा अभाव पाया जाता है। शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की श्रृंखला में अक्सर दो चक्रवातों के बीच एक प्रतिचक्रवात स्थित रहता है। ये वायु-विभाजक की तरह कार्य करते हैं।
यह भी पढ़ें: पवन तथा पवनों के प्रकार
निष्कर्ष
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट बादल तथा बादलों का वर्गीकरण जरुर अच्छी लगी होगी। बादल तथा बादलों का वर्गीकरण के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
2 thoughts on “बादल तथा बादलों का वर्गीकरण”