विभिधता एवं भेदभाव : अध्याय – 2

हम क्या हैं और हम कैसे हैं, यह कई चीज़ों पर निर्भर करता है। हम कैसे रहते हैं, कौन-सी भाषाएँ बोलते हैं, क्या खाते हैं, क्या पहनते हैं, कौन-से खेल खेलते हैं और कौन-से उत्सव मनाते हैं इन सब पर हमारे रहने की जगह के भूगोल और उसके इतिहास का असर पड़ता है।

अगर आप संक्षेप में ही निम्नलिखित बिंदुओं पर ध्यान दें तो भी यह अंदाज़ा लग जाएगा कि भारत कितनी विविधताओं वाला देश है।

संसार में आठ मुख्य धर्म हैं। भारत में उन आठों धर्मों के अनुयायी यानी मानने वाले रहते हैं। यहाँ सोलह सौ से ज्यादा भाषाएँ बोली जाती हैं जो लोगों की मातृभाषाएँ हैं। यहाँ सौ से भी ज्यादा तरह के नृत्य किए जाते हैं।

यह विविधता हमेशा खुश होने का कारण नहीं बनती। हम उन लोगों के साथ सुरक्षित एवं आश्वस्त महसूस करते हैं जो हमारी तरह दिखते हैं, बात करते हैं, कपड़े पहनते हैं और हमारी तरह सोचते हैं। कभी-कभी जब हम ऐसे लोगों से मिलते हैं जो हमसे बहुत भिन्न होते हैं, तो हमें वे बहुत अजीब और अपरिचित लग सकते हैं। कई बार हम समझ ही नहीं पाते या जान ही नहीं पाते कि वे हमसे अलग क्यों हैं। लोग अपने से अलग दिखने वालों के बारे में खास तरह की राय बना लेते हैं।

इनमें से कुछ कथन ग्रामीण लोगों को अज्ञानी की तरह देखते हैं जबकि शहर में रहने वाले लोगों को आलसी एवं सिर्फ पैसे से सरोकार रखने वालों की तरह देखते हैं। जब हम किसी के बारे में पहले से कोई राय बना लेते हैं और उसे हम अपने दिमाग में बिठा लेते हैं तो वह पूर्वाग्रह का रूप ले लेती है। ज़्यादातर यह राय नकारात्मक होती है। जैसा कि कथनों में दिया गया है – लोगों को आलसी या कंजूस मानना भी पूर्वाग्रह है।

जब हम यह सोचने लगते हैं कि किसी काम को करने का कोई एक तरीका ही सबसे अच्छा और सही है, तो हम अक्सर दूसरों की इज्ज़त नहीं कर पाते जो उसी काम को दूसरी तरह से करना पसंद करते हैं। उदाहरण के लिए अगर हम सोचें कि अंग्रेज़ी सबसे अच्छी भाषा है और दूसरी भाषाएँ महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, तो हम अन्य भाषाओं को बहुत नकारात्मक रूप से देखेंगे। परिणामस्वरूप हम उन लोगों की शायद इज्ज़त नहीं कर पाएँगे जो अंग्रेज़ी के अलावा अन्य • भाषाएँ बोलते हैं।

हम कई चीज़ों के बारे में पूर्वाग्रही हो सकते हैं – लोगों के धार्मिक विश्वास, उनकी चमड़ी का रंग, जिस क्षेत्र से वे आते हैं, जिस तरह से वे बोलते हैं, जैसे कपड़े वे पहनते हैं इत्यादि। अक्सर दूसरों के बारे में बनाए गए हमारे पूर्वाग्रह इतने पक्के होते हैं कि हम उनसे दोस्ती नहीं करना चाहते। इस वजह से कई बार हमारा व्यवहार ऐसा होता है कि हम उन्हें दुःख पहुँचा देते हैं।

पूर्वाग्रह

उन कथनों को देखिए जो आपको ग्रामीण एवं शहरी लोगों के बारे में सही लगे। जिन कथनों से आप सहमत हैं, उन पर निशान लगाइए। क्या आपके दिमाग में ग्रामीण या शहरी लोगों को लेकर किसी भी प्रकार के पूर्वाग्रह हैं? क्या दूसरे लोगों के दिमाग में भी ये पूर्वाग्रह हैं? लोगों के दिमाग में ये पूर्वाग्रह क्यों होते हैं? जिन पूर्वाग्रहों को आपने अपने आस-पास महसूस किया है उनकी एक सूची बनाइए। ये पूर्वाग्रह लोगों के व्यवहार को कैसे प्रभावित करते हैं?

ग्रामीण लोग

● आधे से ज्यादा भारतीय गाँवों में रहते हैं।

● गाँव के लोग आधुनिक प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करना पसंद नहीं करते हैं।

● फसल की बुवाई और कटाई के समय परिवार के लोग खेतों में 12 से 14 घंटों तक काम करते हैं।

● ग्रामीण लोग काम की तलाश में शहरों की ओर स्थानान्तरण करने को बाध्य होते हैं।

शहरी लोग

● शहरी जीवन बड़ा आसान होता है। बिगड़े हुए और आलसी होते हैं। यहाँ के लोग।

● शहरों में लोग अपने परिवार के सदस्यों के साथ बहुत कम समय बिताते हैं।

● शहरी लोग केवल पैसे की चिंता करते हैं, लोगों की नहीं।

● शहरों में रहना बहुत महँगा पड़ता है। लोगों की कमाई का एक बहुत बड़ा हिस्सा किराए और आने-जाने में खर्च हो जाता है।

लड़के और लड़की में भेदभाव

समाज में लड़के और लड़कियों में कई तरह से भेदभाव किया जाता है। हम सभी इस भेदभाव से परिचित हैं। एक लड़का या लड़की होने का अर्थ क्या होता है? आपमें से कई लोग कहेंगे, “हम लड़के या लड़की की तरह जन्म लेते हैं। यह तो ऐसे ही होता है। इसमें सोचने वाली क्या बात है?” आइए, देखें कि क्या सच्चाई यही है?

ऊपर के चित्रों में जो बच्चे हैं उन्हें पहले ‘विकलांग’ कहा जाता था। इस शब्द को बदलकर आज उनके लिए जो शब्द प्रयोग किए जाते हैं वे हैं- ‘खास ज़रूरतों वाले बच्चे’। उनके बारे में लोगों के पूर्वाग्रहों को यहाँ बड़े अक्षरों में दिया गया है। साथ में उनकी अपनी भावनाएँ और विचार भी दिए गए हैं।

ये बच्चे अपने से जुड़ी रूढ़िबद्ध धारणाओं के बारे में क्या कह रहे हैं और क्यों – इस पर चर्चा कीजिए।

आपकी राय में क्या ख़ास ज़रूरतों वाले बच्चों को सामान्य स्कूल में पढ़ना चाहिए या उनके लिए अलग स्कूल होने चाहिए? अपने जवाब के पक्ष में तर्क दीजिए।

अगर हम इस कथन को लें कि ‘वे रोते नहीं’ तो आप देखेंगे कि यह गुण आमतौर पर लड़कों या पुरुषों के साथ जोड़ा जाता है। बचपन में जब लड़कों को गिर जाने पर चोट लग जाती है तो माता-पिता एवं परिवार के अन्य सदस्य अक्सर यह कहकर चुप कराते हैं कि ‘रोओ मता तुम तो लड़के हो। लड़के बहादुर होते हैं, रोते नहीं हैं।’ जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, वे यह विश्वास करने लगते हैं कि लड़के रोते नहीं हैं।

यहाँ तक कि अगर किसी लड़के को रोना आए भी तो वह अपने आप को रोक लेता है। लड़का यह मानता है कि रोना कमज़ोरी की निशानी है। हालाँकि लड़कों और लड़कियों दोनों का कभी-कभी रोने का मन करता है खासकर जब उन्हें गुस्सा आए या दर्द हो। लेकिन बड़े होने तक लड़के सीख जाते हैं या अपने को सिखा लेते हैं कि रोना नहीं है। अगर एक बड़ा लड़का रोए तो उसे लगता है कि दूसरे उसे चिढ़ाएँगे या उसका मज़ाक बनाएँगे, इसलिए वह दूसरों के सामने रोने से अपने आप को रोक लेता है।

हम लगातार यह सुनते रहते हैं कि ‘लड़के ऐसे होते हैं’ और ‘लड़‌कियाँ ऐसी होती हैं’। समाज की इन मान्यताओं को हम बिना सोचे-समझे मान लेते हैं। हम विश्वास कर लेते हैं कि हमारा व्यवहार इनके अनुसार ही होना चाहिए। हम सभी लड़कों और लड़कियों को उसी छवि के अनुरूप देखना चाहते हैं।

रूढ़िबद्ध धारणाएँ बनाना

जब हम सभी लोगों को एक ही छबि में बाँध देते हैं या उनके बारे में पक्की धारणा बना लेते हैं, तो उसे रूढ़िबद्ध धारणा कहते हैं। कई बार हम किसी खास देश, धर्म, लिंग के होने के कारण किसी को ‘कंजूस’, ‘अपराधी’ या ‘बेवकूफ़’ ठहराते हैं। ऐसा दरअसल उनके बारे में मन में एक पक्की धारणा बना लेने के कारण होता है। हर देश, धर्म आदि में हमें कंजूस, अपराधी, बेवकूफ़ लोग मिल ही जाते हैं। सिर्फ इसलिए कि कुछ लोग उस समूह में वैसे हैं, पूरे समूह के बारे में ऐसी राय बनाना वाजिब नहीं है। इस प्रकार की धारणाएँ हमें प्रत्येक इंसान को एक अनोखे और अलग व्यक्ति की तरह देखने से रोक देती हैं। हम नहीं देख पाते कि उस व्यक्ति के अपने कुछ खास गुण और क्षमताएँ हैं जो दूसरों से अलग हैं।

रूढ़िबद्ध धारणाएँ बड़ी संख्या में लोगों को एक ही प्रकार के खाँचे में जड़ देती हैं। जैसे माना जाता था कि हवाई जहाज़ उड़ाने का काम लड़‌कियाँ नहीं कर सकतीं। इन धारणाओं का असर हम सब पर पड़ता है। कई बार ये धारणाएँ हमें ऐसे काम करने से रोकती हैं जिनको करने की काबिलियत शायद हममें हो।

असमानता एवं भेदभाव

भेदभाव तब होता है जब लोग पूर्वाग्रहों या रुदिबद्ध धारणाओं के आधार पर व्यवहार करते हैं। अगर आप लोगों को नीचा दिखाने के लिए कुछ करते हैं, अगर आप उन्हें कुछ गतिविधियों में भाग लेने से रोकते हैं, किसी खास नौकरी को करने से रोकते हैं या किसी मोहल्ले में रहने नहीं देते, एक ही कुएँ या हैंडपंप से पानी नहीं लेने देते और दूसरों द्वारा इस्तेमाल किए जा रहे कप या गिलास में चाय नहीं पीने देते तो इसका मतलब है कि आप उनके साथ भेदभाव कर रहे हैं।

भेदभाव कई कारणों से हो सकता है। आप याद करें कि पिछले पाठ में समीर एक और समीर दो एक- दूसरे से बहुत भिन्न थे। उदाहरण के लिए उनका धर्म अलग था। यह विविधता का एक पहलू है। पर यह भेदभाव का कारण भी बन सकता है। ऐसा तब होता है जब लोग अपने से भिन्न प्रथाओं और रिवाज़ों को निम्न कोटि का मानते हैं।

दोनों समीरों में एक और अंतर उनकी आर्थिक पृष्ठभूमि का था। समीर दो गरीब विविधता का पहलू नहीं है। यह तो असमानता है। बहुत लोगों के पास अपने खाने, कपड़े और घर की मूल ज़रूरतों को पूरा करने के लिए साधन और पैसे नहीं होते हैं। इस कारण दफ़्तरों, अस्पतालों, स्कूलों आदि में उनके साथ भेदभाव किया जाता है।

भारत के एक महान नेता डा. भीमराव अंबेडकर ने जाति व्यवस्था पर आधारित भेदभाव के अपने अनुभवों के बारे में लिखा है। यह अनुभव उनको

कुछ लोगों को विविधता और असमानता पर आधारित दोनों ही तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है। एक तो इस कारण कि वे उस समुदाय के सदस्य हैं जिनकी संस्कृति को मूल्यवान नहीं माना जाता। ऊपर से यदि वे गरीब हैं और उनके पास अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के साधन नहीं, तो इस आधार पर भी भेदभाव किया जाता है। ऐसे दोहरे भेदभाव का सामना कई जनजातीय लोगों, धार्मिक समूहों और खास क्षेत्र के लोगों को करना पड़ता है।

1901 में हुआ था जब वे केवल 9 साल के थे। वे महाराष्ट्र में कोरेगाँव में अपने भाइयों के साथ पिता से मिलने गए थे।

बड़ी देर हमने इंतजार किया, पर कोई नहीं आया। एक घंटा बीत गया तो स्टेशन मास्टर पूछने आ गए। उन्होंने हमसे हमारे टिकट माँगे जो हमने दिखा दिए। उन्होंने पूछा कि हम वहाँ क्यों रुके हुए थे। हमने बताया कि हमें कोरेगाँव जाना था और हम पिताजी या उनके नौकर के आने का इंतज़ार कर रहे थे। लेकिन दोनों में से कोई भी नहीं पहुँच पाया था और हमें पता नहीं था कि कोरेगाँव कैसे पहुँचते हैं। हमने बहुत अच्छे कपड़े पहन रखे थे। हमारे कपड़ों और बोली से कोई भी यह अंदाज़ नहीं लगा सकता था कि हम अछूतों के बच्चे थे। निश्चय ही स्टेशन मास्टर को यह लगा कि हम ब्राह्मण बच्चे हैं और वे हमारी मुश्किल को देखकर बड़े परेशान हुए। जैसा कि हिंदुओं में होता ही है, स्टेशन मास्टर ने हमसे पूछा कि हम कौन हैं। बिना एक पल भी सोचे मेरे मुँह से निकल गया कि हम महार हैं। (बंबई प्रांत में महार समुदाय को अछूत माना जाता था।) उनको एकदम से धक्का लगा। वे भौंचक्के रह गए। उनके चेहरे पर अचानक परिवर्तन हुआ। हमने देख लिया कि एक अजीब-सी घृणा की भावना उन पर हावी हो गई थी। उन्होंने जैसे ही मेरा जवाब सुना, वे अपने कमरे में वापस चले गए और हम वहीं के वहीं खड़े रह गए। पंद्रह-बीस मिनट बीत गए, सूरज बिल्कुल छिप-सा गया था। पिताजी आए नहीं थे और न ही उनका नौकर और अब स्टेशन मास्टर भी हमें छोड़कर चले गए थे। हम काफी घबराए हुए। थे। यात्रा के शुरू में जो खुशी और उत्साह की भावना थी उसकी जगह अब अत्यधिक उदासी ने ले ली थी।

आधे घंटे के बाद स्टेशन मास्टर लौटकर आए तो पूछा कि हम क्या करने की सोच रहे हैं। हमने कहा कि अगर हमें किराए पर एक बैलगाड़ी मिल जाती तो हम कोरेगाँव जा सकते थे। अगर कोरेगाँव ज्यादा दूर नहीं हो तो हम फौरन निकलना चाहते थे। वहाँ किराए पर कई बैलगाड़ियाँ चल रही थीं। लेकिन मैंने स्टेशन मास्टर को जो जवाब दिया था कि हम महार हैं, उसका पता सबको चल गया था। कोई भी गाड़ीवान अछूत वर्ग की सवारी को ले जाकर अपने आप को गंदा और नीचा नहीं बनाना चाहता था। हम दुगुना किराया देने को तैयार थे, पर हमें एहसास हुआ कि बात पैसे से नहीं बन सकती थी। स्टेशन मास्टर जो हमारे लिए गाड़ीवानों से मोल-तोल कर रहे थे, चुपचाप खड़े हो गए। समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें?

स्रोत- डॉ. बी.आर. अंबेडकर, राइटिंग एंड स्पीचेज़ खंड 12, संपादन – वंसत मून, बंबई शिक्षा विभाग, महाराष्ट्र सरकार कल्पना करके देखिए कि यह कितना मुश्किल होगा अगर लोगों को एक जगह से दूसरी जगह जाने न दिया जाए। यह कितना अपमानजनक और दुखदायी होगा अगर लोग आपसे दूर-दूर रहें, आपको छूने से मना करें और आपको पानी न पीने दें।

डा. भीम राव अंबेडकर का जीवन परिचय

डा. भीम राव अंबेडकर (1891-1956) को भारतीय संविधान के पिता एवं दलितों के सबसे बड़े नेता के रूप में जाना जाता है। डा. अंबेडकर ने दलित समुदाय के अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी थी। उनका महार जाति में जन्म हुआ था जो अछूत मानी जाती थी। महार लोग गरीब होते थे, उनके पास ज़मीन नहीं थी और उनके बच्चों को वही काम करना पड़ता था जो वे खुद करते थे। उन्हें गाँव के बाहर रहना पड़ता था और गाँव के अंदर आने की इजाज़त नहीं थी।

अंबेडकर अपनी जाति के पहले व्यक्ति थे जिसने अपनी कॉलेज की पढ़ाई पूरी की और वकील बनने के लिए इंग्लैंड गए। उन्होंने दलितों को अपने बच्चों को स्कूल-कॉलेज भेजने के लिए प्रोत्साहित किया। दलितों से अलग-अलग तरह की सरकारी नौकरी करने को कहा ताकि वे जाति व्यवस्था से बाहर निकल पाएँ।

दलितों के मंदिर में प्रवेश के लिए जो कई प्रयास किए जा रहे थे, उनका अंबेडकर ने नेतृत्व किया। उन्हें ऐसे धर्म की तलाश थी जो सबको समान निगाह से देखे।

जीवन में आगे चल कर उन्होंने धर्म परिवर्तन करके बौद्ध धर्म को अपनाया। उनका मानना था कि दलितों को जाति प्रथा के खिलाफ अवश्य लड़ना चाहिए और ऐसा समाज बनाने की तरफ काम करना चाहिए जिसमें सबकी इज्ज़त हो, न कि कुछ ही लोगों की।

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समानता के लिए संघर्ष

ब्रिटिश शासन से आज़ादी पाने के लिए जो संघर्ष किया गया था उसमें समानता के व्यवहार के लिए किया गया संघर्ष भी शामिल था। दलितों, औरतों, जनजातीय लोगों और किसानों ने अपने जीवन में जिस गैर-बराबरी का अनुभव किया, उसके खिलाफ़ उन्होंने लड़ाई लड़ी।

जैसा कि पहले भी बात हुई, बहुत सारे दलितों ने संगठित होकर मंदिर में प्रवेश पाने के लिए संघर्ष किया। महिलाओं ने माँग की कि जैसे पुरुषों के पास शिक्षा का अधिकार है वैसे उन्हें भी अधिकार मिले। किसानों और दलितों ने अपने आपको ज़मींदारों और उनकी ऊँची ब्याज़ की दर से छुटकारा दिलाने के लिए संघर्ष किया।

1947 में भारत जब आज़ाद हुआ और एक राष्ट्र बना तो हमारे नेताओं ने समाज में व्याप्त कई तरह की असमानताओं पर विचार किया। संविधान को लिखने वाले लोग भी इस बात से अवगत थे कि हमारे समाज में कैसे भेदभाव किया जाता है और लोगों ने उसके खिलाफ किस तरह संघर्ष किया है। कई नेता इन लड़ाइयों के हिस्सा थे जैसे डॉ. अंबेडकर। इसलिए नेताओं ने संविधान में ऐसी दृष्टि और लक्ष्य रखा जिससे भारत में सभी लोगों को बराबर माना जाए। समानता को एक अहम मूल्य की तरह माना गया है जो हम सभी को एक भारतीय के रूप में जोड़ती है। प्रत्येक व्यक्ति को समान अधिकार और समान अवसर प्राप्त हैं। अस्पृश्यता यानी छुआछूत को अपराध की तरह देखा जाता है और इसे कानूनी रूप से खत्म कर दिया गया है। लोग अपनी पसंद का काम चुनने के लिए बिल्कुल आज़ाद हैं। नौकरियाँ सभी लोगों के लिए खुली हुई हैं। इन सबके अलावा संविधान ने सरकार पर यह विशेष ज़िम्मेदारी डाली थी कि वह गरीबों और मुख्यधारा से अलग-थलग पड़ गए समुदायों को इस समानता के अधिकार के फायदे दिलवाने के लिए विशेष कदम उठाए।

संविधान के लेखकों ने यह भी कहा कि विविधता की इज्ज़त करना, उसे मूल्यवान मानना समानता सुनिश्चित करने में बहुत ही महत्त्वपूर्ण कारक है। उन्होंने यह महसूस किया कि लोगों को अपने धर्म का पालन करने, अपनी भाषा बोलने, अपने त्योहार मनाने और अपने आप को खुले रूप से अभिव्यक्त करने की आज़ादी होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कोई एक भाषा, धर्म या त्योहार सबके लिए अनिवार्य नहीं बनना चाहिए। उन्होंने ज़ोर दिया कि सरकार सभी धर्मों को बराबर मानेगी। इसीलिए भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है जहाँ लोग बिना भेदभाव के अपने धर्म का पालन करते हैं। इसे हमारी एकता के महत्त्वपूर्ण कारक के रूप में देखा जाता है कि हम इकट्ठे रहते हैं और एक दूसरे की इज्ज़त करते हैं।

हालाँकि हमारे संविधान में इन विचारों पर ज़ोर दिया गया है, पर यह पाठ इसी बात को उठाता है कि असमानता आज भी मौजूद है। समानता वह मूल्य है जिसके लिए हमें निरंतर संघर्ष करते रहना होगा। भारतीयों के लिए समानता का मूल्य वास्तविक जीवन का हिस्सा बने, सच्चाई बने इसके लिए लोगों के संघर्ष, उनके आंदोलन और सरकार द्वारा उठाए जाने वाले कदम बहुत ज़रूरी हैं।

अभ्यास

1. निम्नलिखित कथनों का मेल कराइए। रूदिबद्ध धारणाओं को कैसे चुनौती दी जा रही है, इस पर चर्चा कीजिए-

(क) दो डॉक्टर खाना खाने बैठे थे और उनमें से एक ने मोबाइल पर फ़ोन करके :- दमा का पुराना मरीज़ है।

(ख) जिस बच्चे ने चित्रकला प्रतियोगिता जीती, वह मंच पर : – एक अंतरिक्ष यात्री बनने ने सपना अंततः पूरा हुआ।

(ग) संसार के सबसे तेज़ धावकों में से एक :- अपनी बेटी से बात की जो उसी समय स्कूल से लौटी थी।

(घ) वह बहुत अमीर नहीं थी, लेकिन उसका :- पुरस्कार लेने के लिए एक पहियोंवाली कुर्सी पर गया।

Ans. (क) दो डॉक्टर खाना खाने बैठे थे और उनमें से एक ने मोबाइल पर फोन करके अपनी बेटी से बात की जो उसी समय स्कूल से लौटी थी।

व्याख्या: डॉक्टर एक महिला है और उसकी बेटी भी स्कूल जा रही है। ये तथ्य लिंग भेद के रूढिवादी धारणाओं को चुनौती देती है।

(ख) जिस बच्चे ने चित्रकला प्रतियोगिता जीती, वह मंच पर पुरस्कार लेने के लिए एक पहियोंवाली कुर्सी पर गया।

व्याख्याः कुछ लोगों की धारणा होती है कि विकलांग बच्चों में कोई प्रतिभा नहीं होती है। उसका लोग मजाक उड़ाते हैं। लेकिन जब चित्रकला प्रतियोगिता में विजेता बच्चा एक पहियोंवाली कुर्सी पर बैठकर पुरस्कार लेने के लिए मंच पर गया तो लोगों की रूढीवादी धारणा को धक्का लगा।

(ग) संसार के सबसे तेज धावकों में से एक दमा का पुराना मरीज है।

व्याख्याः पूर्वाग्रहो से ग्रसित लोगों में यह भावना बनी होती है कि दमा का पुराना मरीज फुर्ति से कोई शारीरिक क्रिया-कलाप नहीं कर सकते हैं। लेकिन बहुत सारे खिलाड़ियों ने प्रतियोगिता में अपना सर्वश्रेष्ठ स्थान बनाकर इस मिथक को झूठला दिया है।

(ङ) वह बहुत अमीर नहीं थी, लेकिन उसका एक अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना अंततः पूरा हुआ।

व्याख्याः अंतरिक्ष यात्री बनने का सपना पूर करने के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने और विदेश जाने के लिए बहुत खर्च लगता है। फिर भी कुछ मध्यम और निम्न वर्ग के लोग भी अपने सपने को पूरा करने के लिए हर संभव कोशिश कर सफलता प्राप्त करते हैं।

2. लड़कियाँ माँ-बाप के लिए बोझ हैं, यह रूदिबद्ध धारणा एक लड़की के जीवन को किस तरह प्रभावित करती है? उसके अलग-अलग पाँच प्रभावों का उल्लेख कीजिए।
Ans.
भारत के बहुत सारे हिस्सों में लड़‌कियों को माँ-बाप के लिए बोझ समझा जाता है। इस कारण लड़कियों के जीवन पर उल्टा (बुरा) प्रभाव पड़ता है। एक लड़की के माता-पिता और उसके रिश्तेदार हमेशा उसकी कुछ न कुछ आलोचना करते रहते हैं। इन रूढ़िवादी धारणाओं के कारण लड़कियों के साथ उन्हीं के घर में भेदभाव का व्यवहार किया जाता है। जो निम्नलिखित है:

• उसे प्रचुर मात्रा में पोषण नही मिल पाता है, बल्कि उसके हिस्से का पोषित भोजन भी लड़कों को दे दिया जाता है।

• उसे पढने के लिए स्कूल नहीं भेजा जाता है। अगर भेजा भी जाता है तो बस प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के लिए।

• लड़कियों को बचपन का आनंद उठाने नहीं दिया जाता है, बल्कि उसे बचपन में ही घर के कामों में लगा दिया जाता है।

• बीमार पड़ने पर उसे उचित चिकित्सा सेवा भी नहीं मिल पाती है।

• लड़‌कियों को कम उम्र में ही शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है।

3. भारत का संविधान समानता के बारे में क्या कहता है? आपको यह क्यों लगता है कि सभी लोगों में समानता होना ज़रूरी है?
Ans.
भारत के संविधान के अनुसार यहाँ के सभी नागरिक को जाति, धर्म, भाषा और अभिव्यक्ति की समानता का अधिकार है। चूंकि भगवान की नजरों में हम सभी का जन्म समान रूप से हुआ, इसलिए सभी इंसान को समान रूप से देखना चाहिए। सभी इंसान को सामान रूप से शिक्षा और पेशा का अधिकार मिलना चाहिए। किसी के भी साथ पक्षपात नहीं करना चाहिए बल्कि समान व्यवहार करना चाहिए। न ही किसी को सरकारी सुविधा का विशेषाधिकार मिलना चाहिए। समान व्यवहार से सभी लोगों में प्यार और विश्वास की भावना पनपती है।

4. कई बार लोग हमारी उपस्थिति में ही पूर्वाग्रह से भरा आचरण करते हैं। ऐसे में अक्सर हम कोई विरोध करने की स्थिति में नहीं रहते, क्योंकि मुँह पर तुरंत कुछ कहना मुश्किल जान पड़ता है। अपनी कक्षा को दो समूहों में बाँटिए और प्रत्येक समूह इस पर चर्चा करे कि दी गई परिस्थिति में वे क्या करेंगे-

(क) गरीब होने के कारण एक सहपाठी को आपका दोस्त चिढ़ा रहा है।
Ans.
हमलोगों को इस तरह दूसरों को सताने वाले दोस्त या इंसान को सर्वप्रथम यह समझाना चाहिए कि इस मजाक से आपके सहपाठी को बहुत दुःख होता है। फिर भी अगर वो न समझे तो अपने शिक्षक से इस बारे में बात करना चाहिए।

(ख) आप अपने परिवार के साथ टी.वी. देख रहे हैं और उनमें से कोई सदस्य किसी खास धार्मिक समुदाय पर पूर्वाग्रहग्रस्त टिप्पणी करता है।
Ans.
हमें अपने परिवार के सदस्य से हर धार्मिक समुदाय के प्रति श्रद्धा की भावना बनाए रखने की गुजारिश करनी चाहिए। हमें अपने धर्म के अलावा और दूसरे धर्म की अच्छाइयों के बारे में उन्हें समझाना चाहिए। साथ ही हमें यह भी समझाना चाहिए सभी धर्म का सार एक ही है वो है हर इंसान से प्यार करो।

(ग) आपकी कक्षा के बच्चे एक लड़की के साथ मिलकर खाना खाने से इनकार कर देते हैं क्योंकि वे सोचते हैं कि वह गंदी है।
Ans.
सबसे पहले मैं उसके साथ बैठूंगी और उसके साथ खाना खाऊँगी। मेरे ऐसे व्यवहार को देखकर और भी बच्चों का व्यवहार बदलेगा और वे उसे सम्मान देने को विवश हो जाएँगे।

(घ) किसी समुदाय के खास उच्चारण का मज़ाक उड़ाते हुए कोई आपको चुटकुला सुनाता है।
Ans.
सबसे पहले हमें उस आदमी को किसी भी समुदाय के खास उच्चारण का मजाक नहीं उड़ाने के लिए विनती करना चाहिए। साथ ही उसे यह भी समझाना चाहिए कि इस रूढ़िवादी तुच्छ व्यव्हार से क्या नुकसान होता है?

(ङ) लड़के, लड़कियों पर टिप्पणी कर रहे हैं कि लड़कियाँ उनकी तरह नहीं खेल सकतीं।
Ans.
मैं उन सारी खिलाड़ी लड़कियों का शॉर्ट नोट्स के साथ एक सूचीपत्र बनाऊँगी, जो बहुत सारे खेल में अपना वर्चस्व स्थान बना चुकी है। जैसे-पी वी सिंधु, मैरी कौम और मिथाली राज आदि। उन सारे लड़के को दिखाऊँगी।

उपर्युक्त परिस्थितियों में विभिन्न समूहों नें कैसा बर्ताव करने की बात की है, इस पर कक्षा में चर्चा कीजिए, साथ ही इन मुद्दों को उठाते समय कक्षा में कौन-सी समस्याएँ आ सकती हैं, इस पर भी बातचीत कीजिए।

FAQs

Q1: भेदभाव से आप क्या समझते हैं? एक उदाहरण दीजिए।
Ans.
किसी भी व्यक्ति को धर्म, जाति, लिंग या क्षेत्रीयता के आधार पर किसी सुविधा से वंचित रखने को भेदभाव कहते हैं। उदाहरण: कुछ गांवों में पंचायत की तरफ से फैसला सुना दिया जाता है कि लड़‌कियाँ जींस नहीं पहनेंगी और मोबाइल फोन नहीं रखेंगी।

Q2: दलितों के साथ किस तरह का भेदभाव होता है?
Ans.
  दलितों के साथ गांवों और छोटे शहरों में कई तरह के भेदभाव के शिकार होते हैं। दलित व्यक्ति को मंदिर में जाने की अनुमति नहीं है। वह गांव के कुंए से पानी नहीं ले सकता है। वह किसी ऊँची जाति के व्यक्ति के सामने जूते चप्पल पहनकर नहीं जा सकता है।

Q3: पूर्वाग्रह किसे कहते हैं?
Ans.
जब हम किसी के बारे में पहले से कोई राय बना लते हैं और उसे अपने दिमाग में बिठा लेते हैं। इसे पूर्वाग्रह कहते हैं।
Q4: रूढ़िवादी धारणाएँ किसे कहते है?
Ans.
जब हम सभी लोगों को एक ही धारणा में बाँध देते हैं या उनके बारे में पक्की धारणा बना लेते हैं, तो उसे रूढ़िवादी धारणाएँ कहते हैं?

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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