मध्यकालीन धार्मिक आंदोलन
मध्यकालीन धार्मिक आंदोलन उस समय के आध्यात्मिक , सांस्कृतिक और सामाजिक परिदृश्य को बढ़ावा देने में अहम् भूमिका प्रदान की है और अधिक विस्तार में जानकारी के लिए आप पुरा लेख ध्यान से पढ़ें –
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• भक्ति आन्दोलन का सूत्रपात दक्षिण भारत में (7 वीं सदी के दौरान) हुआ।
• दक्षिण भारत में बौद्ध एवं जैन धर्म के पतन की शुरुआत सातवीं शताब्दी के आरम्भ में हुई।
• अलवार विष्णु के भक्त थे।
• नयनारों की संख्या 63 थी।
• महत्वपूर्ण नयनार सन्त अप्पार, नान सबंदर एवं सुन्दरमूर्ति थे।
● प्रमुख धर्माचार्य/संप्रदाय
क्र.सं. | संत | दर्शन | सम्प्रदाय |
---|---|---|---|
1 | रामानुजाचार्य | विशिष्टाद्वैत | श्री सम्प्रदाय |
2 | माध्वाचार्य | द्वैतवाद | ब्रह्म सम्प्रदाय |
3 | वल्लभाचार्य | शुद्धाद्वैतवाद | रुद्र सम्प्रदाय |
4 | शंकराचार्य | अद्वैतवाद | स्मृति सम्प्रदाय |
5 | निम्बार्काचार्य | सनक संप्रदाय | द्वैताद्वैतवाद |
• अप्पार पल्लव नरेश महेन्द्र वर्मन का समकालीन था।
• नाम्बि-आदार-नाम्बि को 11 तिरुमुरायो के विशाल संग्रह कारण ‘तमिल व्यास’ कहा जाता है।
• सुन्दरमूर्ति के भजनों को तेवरम् में संकलित किया गया।
• नंदन, सिरुतलोदेव एवं मनिक्कव- सागर नयनार संत थे।
• अलवार सन्तों की संख्या 12 थी।
• तीन सबसे पुराने अलवार-पोयगी, पुदम तथा पेय थे।
• आण्डाल स्त्री अलवार सन्त थी।
• तिरुमलिसाई, तिरुमंगई, पेरियल्वार, तिरुपन, कुलशेखर, नम्मालवार एवं मधुरकवि अलवार सन्त थे।
• अलवार सन्तों ने तमिल एवं स्थानीय भाषा में उपदेश दिया।
• शंकराचार्य का जन्म 788 ई. में कलादि (केरल) में हुआ था।
• अद्वैत वेदान्त या अद्वैतवादी दर्शन का प्रतिपादन शंकराचार्य ने किया।
• हिन्दू धर्म का एक्वीनास शंकराचार्य को कहा जाता है।
• शंकराचार्य की मृत्यु के बाद चार मठों की श्रृंगेरी (कर्नाटक), द्वारका (गुजरात), पुरी (ओडिशा) और बद्रीनाथ (उत्तराखंड) में स्थापना हुई।
• रामानुज का जन्म 1071 ई. में श्री पेरम्बदूर में हुआ था।
• विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त एवं श्रीवैष्णव सम्प्रदाय की स्थापना रामानुज ने की।
• रामानुज ने वेदान्त सूत्र पर भाष्य एवं गीता भाष्य नामक टीका लिखी।
• रामानुज के प्रमुख अनुयायी वेदांत देशिक और पिल्लई लोकाचार्य थे।
• शिवाद्वैत मत के प्रवर्तक श्रीकांताचार्य थे।
द्वैतवाद के प्रतिपादक माधवाचार्य थे।
• सनक सम्प्रदाय का प्रतिपादन निम्बार्काचार्य ने किया।
• वेदपरिजात सौरभ की रचना निम्बार्काचार्य ने की।
• वल्लभाचार्य का जन्म वाराणसी (उ. प्र.) में हुआ था।
• शुद्धाद्वैत वेदान्त एवं पुष्टिमार्ग दर्शन का प्रवर्तन वल्लभाचार्य ने किया था।
• वल्लभाचार्य ने रुद्र सम्प्रदाय की स्थापना की।
• वल्लभाचार्य ने अपने मत का प्रचार गुजरात एवं राजस्थान में किया।
• शिव ज्ञानबोधम् की रचना मेयकंदार ने की।
• श्रीपादाचार्य हरिदास ने पुरन्दरदास आन्दोलन का श्री गणेश किया।
• कर्नाटक संगीत का पिता पुरन्दरदास को कहा जाता है।
• वीरशैव सम्प्रदाय को लिंगायत सम्प्रदाय के नाम से भी जाना जाता है।
• लिंगायत सम्प्रदाय की स्थापना बासव ने की।
• बासव कल्याण (कर्नाटक) के राजा बिज्जल कलचुरी के प्रधानमंत्री थे।
लिंगायतों की प्रमुख विशेषता जाति प्रथा का विरोध एवं शिवलिंग धारण करना है।
अल्लाना प्रभु एवं अक्कामहादेवी लिंगायत सम्प्रदाय के सन्त थे।
● शंकर द्वारा चार मठ स्थापित
1. ज्योतिषपीठ – बद्रीनाथ (उत्तराखंड)
2. गोवर्धन पीठ – शृंगेरी (कर्नाटक)
3. शारदा पीठ – पुरी (ओडिशा)
4. श्रृंगेरी पीठ – द्वारिका (गुजरात)
• पाशुपत सम्प्रदाय के संस्थापक लकुलीश थे।
• गीतगोविन्द की रचना जयदेव ने की थी।
• जयदेव लक्ष्मण सेन के दरबार में रहते थे।
• प्रथम बंगाली कवि चण्डीदास को कहा जाता है।
• राधा और कृष्ण के प्रेम पर मैथिली भाषा में विद्यापति ने लिखा।
• बांग्ला व्याकरण तथा वर्णमाला की रचना विद्यापति ने की।
• चैतन्य का वास्तविक नाम विश्वम्भर मिश्रा था। चैतन्य का जन्म 1486 ई. में नवद्वीप या नदिया (बंगाल) में हुआ था।
• चैतन्य का प्रारंभिक नाम निमई था।
• आरम्भ में चैतन्य संस्कारिते दासमुनि सम्प्रदाय के सदस्य थे।
• अचिंत्य भेदाभेदवाद की स्थापना चैतन्य ने की।
• चैतन्य ने अपने मत को सामूहिक भजन एवं कीर्तन के माध्यम से व्यक्त किया।
• चैतन्य सगुण विचारधारा के संत थे।
महाराष्ट्र में भक्ति आन्दोलन
• महाराष्ट्र का भक्ति आन्दोलन पण्ढरपुर के विठोबा पर केन्द्रित था।
• वैष्णव मत का प्रमुख ग्रन्थ भागवत पुराण था।
• ‘भावार्थ दीपिका’ अथवा ‘ज्ञानेश्वरी गीता’ की रचना संत ज्ञानेश्वर ने की।
• ज्ञानेश्वर आरम्भ में नाथपंथी थे परन्तु बाद में बारकरी सम्प्रदाय में शामिल हो गये।
• प्रतिवर्ष दो बार पण्ढरपुर की तीर्थयात्रा का विधान ज्ञानेश्वर ने बनाया।
• संत नामदेव रंगसाज और दर्जी जाति के थे।
• नामदेव प्रारम्भ में एक दस्यु और हत्यारे थे।
• नामदेव के गुरु विशोबा खेचर थे।
• नामदेव के शिष्य सेना (नाई जाति), जानबाई (घरेलू नौकरानी) एवं कुम्हार गोरा जाति से सम्बन्धित थे।
• नामदेव के कुछ अभंग गुरुग्रंथ साहिब में शामिल किये गये हैं।
• भक्ति आंदोलन के संतों में नामदेव इस्लाम से अत्यधिक प्रभावित थे।
• ज्ञानेश्वरी को ‘मराठी गीता’ कहा जाता है।
• ज्ञानेश्वरी का पहला विश्वस्त संस्करण एकनाथ ने प्रकाशित किया।
• एकनाथ के अनुसार धार्मिक जीवन के लिये किसी मठ या संसार से पलायन की कोई आवश्यकता नहीं है।
• तुकाराम मराठी सन्त एवं महानतम् कवि थे। तुकाराम जन्म से शूद्र थे। ये शिवाजी के समकालीन थे। महाराज धर्म के उदय में तुकाराम का स्थान महत्वपूर्ण है। उन्हें बरकरी सम्प्रदाय का संस्थापक माना जाता है। उनके उपदेश अभंगों में मौजूद हैं।
• रामदास धरकारी सम्प्रदाय के सन्त थे।
• ‘दासबोध’ की रचना रामदास ने की थी।
• शिवाजी के गुरु समर्थ रामदास थे। महाराष्ट्र में भक्ति सम्प्रदाय इनकी शिक्षाओं द्वारा फैला था।
• उत्तर भारत में भक्ति आन्दोलन के प्रारम्भकर्ता रामानन्द थे।
• रामानन्द सगुण वैष्णव सम्प्रदाय से सम्बन्धित थे।
• रामानन्द के आराध्य देव राम और सीता थे।
• रामानन्द ने रामानन्दी सम्प्रदाय की स्थापना की।
• रामानन्द के प्रमुख शिष्य रैदास (मोची), कबीर (जुलाहा), धन्ना (जाट), सेना (नाई) और पीपा (राजपूत) थे।
• कबीर का जन्म वाराणसी में (विधवा ब्राह्मणी से उत्पन्न) हुआ था। कबीर सिकन्दर लोदी के समकालीन थे।
• कबीर निर्गुण विचारधारा से सम्बन्धित थे। कबीर जाति-प्रथा, मूर्ति-पूजा, अवतार सिद्धांत को स्वीकार नहीं किया।
• कबीर की शिक्षाएं बीजक में संगृहित हैं, इनके अनुयायी कबीरपंथी कहलाते हैं।
• सिखों ने कबीर के गीतों को अपने आदिग्रन्थ में स्थान दिया।
• कबीर के शिष्य धरमदास ने छत्तीसगढ़ में
• धरमदासी सम्प्रदाय की स्थापना की।
• कबीरदास की पत्नी लोई एवं पुत्र कमाल था।
• रैदास (रविदास) निर्गुण विचारधारा के कवि थे।
• चित्तौड़ की रानी शाली रैदास की शिष्या थी।
• रैदास के गीतों को गुरु ग्रंथ साहिब में शामिल किया गया है।
• दादू (दादू दयाल) निर्गुण विचारधारा से सम्बन्धित थे।
• ब्रह्म सम्प्रदाय की स्थापना दादू दयाल ने की।
• असाम्प्रदायिक मार्ग (निपख संप्रदाय) दादू ने चलाया।
• दादू का जन्म 1544 ई. में अहमदाबाद में हुआ था।
• दादू की मृत्यु 1603 ई. राजस्थान के नराना में हुई थी, जहाँ दादू पंथियों का मुख्य केन्द्र है।
• सतनामी सम्प्रदाय के संस्थापक जगजीवन दास थे।
• बाबा मलूकदास इलाहाबाद (प्रयाग) में रहते थे। ‘सत्यप्रकाश’ एवं ‘प्रेम प्रकाश’ की रचना धवनीदास ने की।
• बिहार में सतनामी सम्प्रदाय के प्रवर्तक दरिया साहिब थे।
• पंजाब में सतनामी सम्प्रदाय के प्रवर्तक गरीबदास थे।
• तुलसीदास सगुण विचारधारा के संत थे।
• तुलसीदास ने अवधी में ‘रामचरितमानस’, ‘विनय पत्रिका’, तथा ‘कवितावली’ आदि की रचना की।
• सूरदास वल्लभाचार्य के शिष्य (सगुण संत) थे।
• ‘सूरसागर’ की रचना सूरदास ने की। इन्होंने सूर सारावली तथा साहित्य लहरी की रचना की ।
• मीराबाई मेड़ता के रतन सिंह राठौर की एकमात्र कन्या थी। उनका विवाह जून 1516 ई. में मेवाड़ (सिसोदिया वंश) के राणा साँगा के ज्येष्ठपुत्र भोजराज से हुआ था। मीराबाई के भजन ब्रजभाषा और राजस्थानी में रचे गये हैं। उनके कुछ पद गुजराती में भी हैं। ये भजन कृष्ण के प्रति प्रेम और भक्ति भावना से ओत-प्रोत हैं।
• मीराबाई तुलसीदास के समकालीन थी।
• मीराबाई चित्तौड़ के राजा भोजराज की विधवा थी।
• मीराबाई ने कृष्ण की पति के रूप में आराधना की।
• बुद्ध और मीराबाई के जीवन दर्शन में मुख्य साम्य यह था कि दोनों ने संसार को दुःखपूर्ण माना।
• असम में भक्ति का प्रचार-प्रसार शंकरदेव ने असमिया भाषा में किया।
• शंकरदेव के द्वारा स्थापित संप्रदाय एक शरण सम्प्रदाय के रूप में प्रसिद्ध है।
• शंकरदेव मूर्तिपूजा और कर्मकांड दोनों के विरोधी थे। ये अकेले कृष्ण मार्गी वैष्णव थे जो मूर्ति के रूप में कृष्ण की पूजा के विरोधी थे।
• सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक थे। नानक कर्म और पुनर्जन्म को मानते थे।
• गुरुनानक का जन्म पंजाब के तलवंडी (ननकाना) नामक ग्राम में 1469 ई. में हुआ था।
• गुरुनानक के अनुसार ईश्वर का स्वरूप निरंकार, अकाल और अलख है।
• गुरुनानक ने देश का पाँच बार चक्कर लगाया, जिसे उदासीस कहा जाता है।
• सिखों के दूसरे गुरु अंगद थे। गुरु अंगद ने नानक की वाणियों का संकलन कर आदिग्रंथ की रचना की।
• गुरुमुखी नामक नई लिपि गुरु अंगद ने शुरू की।
• भजनों का संग्रह सिखों के तीसरे गुरु अमरदास ने किया।
• सती प्रथा एवं पर्दा प्रथा का विरोध गुरु अमरदास ने किया।
• अमृतसर की स्थापना सिखों के चौथे गुरु रामदास ने की।
• गुरुओं और अन्य संतों के वचनों को आदिग्रंथ में पाँचवे गुरु अर्जुनदेव ने संकलित किया।
• हरमन्दिर साहिब का निर्माण गुरु अर्जुन देव ने करवाया।
• गुरु अर्जुनदेव को जहाँगीर ने फाँसी दिलवाई।
• सिखों को सशस्त्र छठे गुरु हरगोविन्द ने बनाया। उन्होंने अमृतसर नगर की किलेबन्दी कराई और यहाँ पर 12 फीट ऊँचा अकाल तख्त का निर्माण करवाया, सिखों में सैनिक भावना पैदा की तथा स्वयं की रक्षा के लिए शस्त्र धारण करने की आज्ञा दी।
• सिखों के नौंवे गुरु गुरु तेगबहादुर को औरंगजेब ने फाँसी दी।
• सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविन्द सिंह का जन्म 1666 ई. में पटना में हुआ था।
• खालसा पंथ की स्थापना गुरु गोविन्द सिंह ने 1699 ई. में की।
• पंचककार (केश, कंघा, कड़ा, कच्छा, कृपाण) तथा पंच प्यारे की शुरुआत गुरु गोविन्द सिंह ने की।
• गुरु गोविन्द सिंह की मृत्यु नान्देड़ (महाराष्ट्र) में हुई।
• गुरु गोविन्द सिंह ने पंजाब के आनंदपुर में मुख्यालय बनाया तथा पाहुल प्रथा प्रारंभ किया तथा इस मत में दीक्षित व्यक्ति को खालसा कहा गया तथा नाम के अंत में सिंह उपाधि दी गयी।
• गुरु गोविन्द सिंह ने सुरक्षा की दृष्टि से आनन्दगढ़, केशगढ़ लौहगढ़ एवं फतेहगढ़ किलों का निर्माण कराया। इन्होंने आदिग्रन्थ का पुनः संकलन करवाया। इसे दशम पादशाह का ग्रन्थ कहा जाता है। इसे तीन भाषाओं- ब्रजभाषा, गुरुमुखी और फारसी में लिखा गया है।
सूफी आंदोलन
• वहादत-उल-वजूद अथवा ईश्वर की एकता के सिद्धान्त का प्रतिपादन इब्नुल अरबी ने किया।
• सूफीवाद की फना फिश्शेख फना फिर्रसूल तथा फनाफिल्लाह सीढ़ियाँ हैं।
• बारहवीं शताब्दी तक सूफी सम्प्रदाय 12 सिलसिलों में विभाजित था।
• आइन-ए-अकबरी में अबुल फजल ने 14 सूफी सिलसिलों का उल्लेख किया है।
• जो लोग सूफी संतों से शिक्षा ग्रहण करते थे उन्हें मुरीद कहा जाता था तथा गुरु को पीर।
• सूफी के निवास को खानकाह या मठ कहा जाता था।
• भारत में चिश्ती सिलसिला के प्रवर्तक ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती (1190 ई. में) थे।
• मोइनुद्दीन चिश्ती अन्तत: अजमेर में बस गये। राजस्थान के अजमेर शरीफ सबसे प्रमुख सूफी पूजागृह है। यहाँ पर चिश्ती सिलसिला के संस्थापक ख्वाजा मुइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह है।
• फरीद-उद्दीन गंज-ए-शंकर ने पंजाब तथा हरियाणा को अपना प्रचार क्षेत्र बनाया।
• निजामुद्दीन औलिया बाबा फरीद के शिष्य थे।
• महबूब-ए-इलाही निजामुद्दीन औलिया को कहा जाता था।
• सूफी संतों के केन्द्र विभिन्न खानकाह थे। इसके केन्द्र बिंदु पीर थे। पीरों को अलौकिक शक्ति का प्रतीक माना जाता था। ऐसा माना जाता था कि पीर खुदा के निकट रहने से सब कुछ सहजता से प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए बड़ी संख्या में मुरीद खानकाहों में उपस्थित होते थे।
• सूफी परम्परा में पीर का अर्थ है-गुरु तथा शिष्य को मुरीद कहा जाता है। पीर और मुरीद में बहुत गहरा सम्बन्ध होता है। सूफी दर्शन केवल एक ईश्वर में विश्वास करता था।
अमीर खुसरो निजामुद्दीन औलिया के शिष्य थे। इन्हें ‘योग सिद्ध’ भी कहा जाता था।
निजामुद्दीन औलिया की दरगाह ग्यासपुर (दिल्ली) में है।
• गयासुद्दीन तुगलक को निजामुद्दीन औलिया ने कहा था “अभी दिल्ली दूर है।”
• चिश्ती शाखा के सबसे महान सूफी संत शेख सलीम चिश्ती हुए।
• चिश्ती पंथ के लोग संगीत, योग और अद्वैतवाद के सिद्धान्त में विश्वास करते थे।
• भारत में सुहरावर्दी सिलसिला के प्रवर्तक बहाउद्दीन जकारिया हुए।
• सुहरावर्दी संतों का सिद्धान्त था “यदि हृदय निर्मल है तो धन के संचय और वितरण तथा आरामदेह जीवन बिताने में कोई दोष नहीं है।”
• कादिरी सिलसिला की स्थापना शेख अब्दुल कादिर जिलानी ने की।
• दारा शिकोह कादिरी सिलसिला से सम्बन्धित था।
• ‘मजमा-उल-बहरैन’ दारा शिकोह ने लिखा था।
• दारा शिकोह द्वारा किये गये सभी उपनिषदों का फारसी अनुवाद ‘सिर्र-ए-अकबर’ नाम से हुआ।
• भारत में नक्शबन्दी सिलसिला के प्रवर्तक ख्वाजा बाकी बिल्लाह थे।
• औरंगजेब नक्शबन्दी सिलसिला से संबंधित था।
• अहमद फारुख सरहिन्दी ख्वाजा बाकी बिल्लाह के शिष्य थे।
• शेख अहमद सरहिंदी ने बहादत-उश-शुहूद सिद्धान्त का प्रतिपादन किया।
• सूफियों में सर्वाधिक कट्टरवादी सिलसिला नक्शबन्दी सिलसिला था।
• अकबर द्वारा प्रतिपादित दीन-ए-इलाही धर्म का खण्डन शेख अहमद सरहिन्दी ने किया।
• शत्तारिया सिलसिला के प्रवर्तक शेख अब्दुल सत्तार थे।
• हुमायूँ के समकालीन मुहम्मद गौस शेख अब्दुल सत्तार थे।
• कलंदरिया सिलसिला के प्रवर्तक सूफी संत अब्दुल अजीज मक्की थे।
• मदारिया सिलसिला के प्रवर्तक शेख बहीउद्दीन शाहमदार थे।
• भक्ति और सूफी दोनों आंदोलनों ने ही मूर्ति पूजा को नकारा है।
प्रमुख सूफी सिलसिले
सिलसिला | संस्थापक | प्रभाव क्षेत्र |
---|---|---|
चिश्ती | ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती | सामान्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप |
सुहरावर्दी | हजरत बहाउद्दीन जकारिया | उच्छ (सिंध) एवं मुल्तान |
कादिरी | शेख अब्दुल कादिर जिलानी | मुल्तान, पंजाब |
शत्तारी | शाह अब्दुल्लाह शत्तारी | मध्य और पूर्वी भारत |
नक्शबंदी | ख्वाजा बाकी बिल्लाह | पंजाब एवं दिल्ली |
फिरदौसी | शेख बदरुद्दीन | बिहार |
कुब्रविया | मीर सैय्यद अली हमदानी | कश्मीर |
कलंदरी | शेख अबूबकर लूसी | दिल्ली, पंजाब |
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निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट मध्यकालीन धार्मिक आंदोलन जरुर अच्छी लगी होगी। मध्यकालीन धार्मिक आंदोलन के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
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