मगध का उत्कर्ष : हर्यक वंश ,शिशुनाग वंश तथा नन्द वंश

मगध का उत्कर्ष

इस लेख में मगध का उत्कर्ष के बारे में बताया गया है: हर्यक वंश ,शिशुनाग वंश के शासकों के इतिहास के बारे में बताया गया है तो आइए हम विस्तार से इसके बारे में जानते हैं।

● मगध और अवन्ति का उत्कर्ष हाथी की उपलब्धता और लोहे के खान के कारण हुआ।

अवन्ति का उत्कर्ष चरमसीमा पर नहीं हो पाया क्योकि यहाँ पर कुशल नेतृत्वकर्ता की कमी थी।

Note:-

वज्जि और मल्ल दो ऐसे महाजनपद थे जहां पर गगतंत्रात्मक शासन व्यवस्था थी।

● वज्जि ग गणों का संघ या इसीलिए इसे अष्टकृलिक कहा गया।

हर्यक वंश

● मगध की प्रारम्भिक राजधानी गिरिव्रज थी। मगध राज्य के आरम्भिक इतिहास की जानकारी महाभारत से मिलती है। मगध के सबसे प्राचीन वंश के संस्थापक वृहद्रथ था। जरासंघ वृहद्रथ का पुत्र था।

बिम्बिसार

● बिम्बिसार ने हर्यंक वंश की स्थापना की थी। इन्होंने 544 ई. पू. में मगध की गद्दी पर बैठा।

● बिम्बिसार को श्रेणिक नाम से भी जाना जाता है। इनकी तीन पत्नियाँ महाकोशला, चेलना और मद्र नरेश की पुत्री क्षेमा थी।

● बिम्बिसार ने अंग राजा ब्रह्मदत्त को हराया था।

● बिम्बिसार बौद्ध धर्म का (गौतम बुद्ध का समकालीन) अनुयायी था।

● बिम्बिसार ने अपनी राजधानी गिरीज के स्थान पर राजगृह को बनाया। इस नगर का योजनाकार (वास्तुकार) महागोविन्द थे।

● मगध का सर्वप्रथम वंश बृहदस्थ वंश था जिसकी स्थापना बृहदरथ ने की थी।

● बिम्बिसार ने जीवक को अवन्ति नरेश प्रद्योत के इलाज के लिये भेजा था।

● बिम्बिसार की हत्या उसके पुत्र अजातशत्रु ने 493 ई. पू. की थी। इस कारण हर्यक वंश को पितृवंश भी कहते हैं।

● बुद्धघोष के अनुसार बिम्बिसार के साम्राज्य में 80 हजार गांव थे तथा उसका विस्तार 300 लीग (लगभग 900 मील) था।

● बिम्बिसार ने बेलुवन नामक उद्यान बुद्ध तथा संघ के निमित्त प्रदान कर दिया।

अजातशत्रु

● अजातशत्रु 492 ई. पू. में मगध की गद्दी पर बैठा था। पितृहन्ता अजातशत्रु का दूसरा नाम कुणिक था।

● अजातशत्रु ने गौतम बुद्ध के चचेरे भाई देवदत्त के कहने पर अपने पिता की हत्या की थी।

● अजातशत्रु का विवाह कोशल नरेश प्रसेनजित की पुत्री वाजिरा के साथ हुआ था।

● अजातशत्रु का सुयोग्य मन्त्री वस्सकार था।

लिच्छवि गणराज्य को अजातशत्रु ने मगध में मिला लिया।

● वज्जिसंघ में फूट अजातशत्रु के मंत्री वस्सकार ने डाली थी।

● अजातशत्रु पहले जैन धर्म से प्रभावित था, परन्तु बाद में बौद्ध धर्म को मानने लगा।

● अजातशत्रु ने राजगृह में विशाल स्तूप का निर्माण करवाया था।

● अजातशत्रु ने लिच्छवियों के विरुद्ध युद्ध में महाशिलाकन्टक तथा रथमूसल नामक दो शस्त्रों का प्रथम बार प्रयोग किया।

● अजातशत्रु की हत्या उसके पुत्र उदायिन ने 461 ई. पू. में की थी।

उदायिन

● उदायिन जैन धर्म का अनुयायी था।

● उदायिन ने गंगा और सोन नदियों के संगम पर पाटलिपुत्र नामक नगर की स्थापना की।

● बौद्ध ग्रंथों में उदायिन को पितृहन्ता कहा गया है।

● जैन ग्रंथों में उदायिन को पितृभक्त बताया गया है।

● हर्यक वंश का अंतिम शासक नागदशक था।

शिशुनाग वंश

● नागदशक की हत्या उसके अमात्य शिशुनाग ने की थी।

● शिशुनाग वंश की स्थापना शिशुनाग ने 412 ई. पू. में की थी।

● शिशुनाग ने अवन्ति राज्य को मगध में मिलाया।

● शिशुनाग ने अपनी राजधानी वैशाली में बनाई।

● शिशुनाग वंश का परवर्ती शासक कालाशोक 394 ई. पू. में हुआ। कालाशोक ने अपनी राजधानी पाटलिपुत्र में बनाई।

● कालाशोक के शासनकाल (वैशाली में) में द्वितीय बौद्ध संगीति आयोजित हुई।

● शिशुनाग वंश का अंतिम राजा नन्दिवर्द्धन था।

नन्द वंश

● नन्द वंश का संस्थापक महापद्मनन्द (पुराण व जैन साहित्य के अनुसार यह पहला गैर क्षत्रिय राजा था) नाई जाति का था। महापद्मनन्द ने एकराट, सर्वक्षत्रान्तक (क्षत्रियों का नाश करने वाला) और द्वितीय परशुराम की उपाधि धारण की थी।

● इसने कलिंग को जीता तथा विद्रोही कोसल राज्य का दमन किया।

● नन्द वंश का अन्तिम शासक धनानन्द था।

● भट्टशाल, धनानंद का सेनापति तथा शकटार और राक्षस क्रमशः उसके अमात्य थे।

● नन्द वंश सर्वाधिक धनी राज्य एवं विशाल सेना के लिये प्रख्यात था।

● सिकन्दर का समकालीन शासक धनानन्द था।

● नन्द वंश का विनाश चन्द्रगुप्त मौर्य एवं चाणक्य ने किया।

● नन्द वंश पहले के कुछेक गैर क्षत्रिय राजवंशों में से एक था।

● नन्दों को भारत के पहले साम्राज्य निर्माताओं की संज्ञा मिली है।

प्राचीनकाल में पारसीक एवं यूनानी आक्रमण

● भारत पर प्रथम विदेशी आक्रमण ईरान के हखमनी वंश के राजाओं ने किया।

● डेरियस प्रथम को भारत पर आक्रमण करने में प्रथम सफलता मिली।

● डेरियस प्रथम ने भारतीय भू-भाग को जीतने के बाद इसे अपने साम्राज्य का बीसवां प्रांत बनाया।

सायरस (588- 529 ई. पू. ) प्रथम विदेशी था, जिसने भारत पर चढ़ाई करने का प्रयास किया था।

● डेरियस प्रथम के पुत्र जेरेक्सस ने अपने भारतीय प्रान्तों का पूर्ण उपयोग सैनिक जत्था बनाने के लिये किया। जेरेक्सस ने भारतीय सैनिकों को लड़ने के लिये ग्रीस में भेजा था।

● ईरानी आक्रमण के चलते पश्चिमोत्तर भारत में खरोष्ठी लिपि का प्रचार हुआ।

● ईरानी आक्रमण से आरमेइक लिपि का प्रचार हुआ।

● अभिलेख उत्कीर्ण करने की प्रथा ईरानियों द्वारा प्रारम्भ की गयी।

● क्षत्रप प्रणाली का विकास ईरानी आक्रमण के कारण हुआ।

● दारा प्रथम के तीन अभिलेखों बेहिस्तून, पर्सिपोलिस और नक्शेरूस्तम से सिद्ध होता है कि उसी ने सर्वप्रथम सिन्धु नदी के तटवर्ती भारतीय भू-भागों को अधिकृत किया।

● दारा तृतीय को यूनानी शासक सिकन्दर द्वारा परास्त कर दिए जाने पर भारत पर पारसीक (ईरानी) आधिपत्य समाप्त हो गया।

● अशोक ने चट्टानों पर अभिलेख खुदवाने की प्रथा एकमेनिड शासकों से ली थी।

● पारसीक क्षत्रप प्रणाली का प्रयोग भारत में शक तथा कुषाण शासकों ने किया। पारसीक राजाओं ने महाराजाधिराज, परमदैवत् तथा परमभागवत जैसी भारतीय उपाधियाँ धारण की।

● डेरियस तृतीय ने भारतीय सैनिकों को सूचीबद्ध करके उन्हें सिकन्दर से लड़ने के लिये भेजा था।

● ईरानी शासकों ने सिन्ध तथा गांधार प्रदेशों पर अधिकार किया।

सिकन्दर

● हखमनी शासक दारा तृतीय को सिकन्दर ने हराया।

● सिकन्दर के पिता का नाम फिलिप द्वितीय था तथा उसका जन्म 356 ई.पू. में हुआ। सिकन्दर का गुरु यूनानी दार्शनिक अरस्तू था।

● सिकन्दर के प्रिय घोड़ा का नाम बुकेफेलस था।

● सिकन्दर की अंतिम विजय पाटल थी।

● सिकन्दर का प्रधान सेनापति सेल्यूकस निकेटर था।

● सिकन्दर की सेना ने व्यास नदी के आगे जाने से मना कर दिया।

● भारत विजय अभियान के अंतर्गत सिकन्दर ने 326 ई. पू. में बल्ख (बैक्ट्यिा) को जीतने के बाद काबुल होता हुआ हिन्दुकुश पर्वत को पार किया।

● 326 ई. पू. में सिकन्दर ने सिंधु नदी पार कर भारत की धरती पर कदम रखा। उसके सबसे प्रसिद्ध युद्ध झेलम नदी के तट पर पौरव राज पुरू (पोरस) के साथ हुआ जो ‘वितस्ता का युद्ध’ या हाइडेस्पीन के युद्ध के नाम से जाना जाता है।

● सिकन्दर ने दो नगरों की स्थापना की-पहला नगर ‘निकैया’ अर्थात् विजयनगर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष्य में तथा दूसरा नगर ‘बुकेफेलस’ अपने प्रिय घोड़े के नाम पर स्थापित किया।

● सिकन्दर विजित भारतीय क्षेत्रों को अपने सेनापति फिलिप को सौंपकर भारत से वापस हो गया।

● सिकन्दर स्थल मार्ग से (325 ई.पू.) भारत से लौटा।

● सिकन्दर की मृत्यु 323 ई.पू. में बेबीलोन में ज्वर से हुई थी।

● तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकन्दर के सामने घुटने टेक दिये।

● सिकन्दर की सेना जल सेनापति नियार्कस के नेतृत्व में समुद्र के रास्ते वापस गई।

● सिकन्दर ने जीते हुए भारतीय क्षेत्र को तीन प्रदेशों में गठित किया।

● झेलम नदी के किनारे हाइडेस्पीज अथवा वितस्ता का युद्ध पोरस और सिकन्दर के बीच हुआ था।

● सिकन्दर भारत में 19 महीने रहा तथा भारतीय प्रदेशों को सेनापति फिलिप को सौंपकर वापस लौट गया।

● सिकन्दर के अभियान से भारतीयों को चार स्थल एवं चार जलीय मार्गों का पता चला।

सिकन्दर के आक्रमण का प्रभाव

● सिकन्दर के आक्रमण से यहाँ के राजाओं की आपसी वैमनस्यता प्रदर्शित हो गई क्योंकि कोई भी राज्य एकजुट होकर सिकन्दर के आक्रमण का सामना नहीं कर सका बल्कि कुछ एक राज्य ने तो सिकन्दर की मदद की। इस आक्रमण के बाद इतिहास की तिथिवार जानकारी प्राप्त होने लगती है।

● आक्रमण के पश्चात् अनेक छोटे-छोटे राज्यों का विलय प्रारंभ हो जाता है।

● पश्चिमी भारत के कई राज्यों में यूनानी शासन की स्थापना हो गई।

● आक्रमण के कारण नये व्यापार मार्गों का पता चला, जिससे वाणिज्य व्यापार को बढ़ावा मिला।

● यूनानी मुद्रा का प्रचलन भारत में प्रारंभ हुआ, जिससे भारतीय मुद्रा पर भी यूनानी प्रभाव नजर आने लगा।

● यूनानी कला का भारतीय कला के साथ समन्वय स्थापित हुआ जिसके परिणाम स्वरूप ‘गांधार कला’ अस्तित्व में आई।

● यूनानी मुद्रा की तरह भारत में भी ‘उलूक शैली’ के सिक्के प्रचलित हुए।

● सिकन्दर भारतीय दार्शनिक ‘कालानास’ को अपने साथ ले गया।

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निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट मगध का उत्कर्ष जरुर अच्छी लगी होगी। मगध का उत्कर्ष के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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