अशोक (273 ई.पू. – 232 ई.पू. )
इस लेख में मौर्य साम्राज्य के शासक अशोक के बारे में बताया गया है: मौर्य साम्राज्य के शासक चन्द्रगुप्त मौर्य, बिंदुसार, और अशोक के इतिहास के बारे में बताया गया है तो आइए हम विस्तार से इसके बारे में जानते हैं।
● मौर्य साम्राज्य का महानतम् शासक अशोक था। सिंहली अनुश्रुति के अनुसार अशोक ने अपने 99 भाइयों की हत्या की थी।
Table of Contents
● अभिलेखों में अशोक को देवानामप्रिय या देवानामप्रियदर्शी नाम से सम्बोधित किया गया है। पुराणों में अशोक को अशोक वर्द्धन नाम से जाना जाता है।
● अशोक ने कश्मीर में श्रीनगर बसाया।
● अशोक ने कलिंग विजय 261ई.पू. में की थी।
अशोक के नाम
अशोक मौर्य | गिरनार अभिलेख |
अशोक वर्द्धन | पुराण |
पियदस्सी | भानु शिलालेख |
अशोक | मास्की, गुर्जरा, नेत्तूर, उदेगोलम अभिलेख |
कलिंग
● 261 ई. पू. में नंदराज शासक था।
● हाथियों के लिए प्रसिद्ध था।
● अशोक के तेरहवें शिलालेख से ज्ञात होता है कि अशोक ने 261ई.पू. में कलिंग विजय की थी।
● 261 ई. पू. में कलिंग का शासक नंदराज था।
● कलिंग की राजधानी तोसली थी।
● कलिंग हाथियों के लिये प्रसिद्ध था।
● कलिंग युद्ध का वर्णन अशोक के तेरहवें शिलालेख से मिलता है।
● अशोक ने नेपाल में ललितपत्तन नगर बसाया।
● अशोक चक्र, धर्मचक्र का वर्णन करता है जिसमें 24 तिलियाँ हैं। इसे अशोक चक्र इसलिए कहते हैं क्योंकि लॉयन कैपिटल सारनाथ सहित सम्राट अशोक द्वारा जारी अशोक के फरमानों पर चक्र उत्कीर्ण किए गए हैं।
● कलिंग युद्ध के बाद अशोक ने भेरी घोष त्याग कर धम्म घोष अपनाया।
● अशोक की कर नीति की जानकारी रुम्मिनदेई अभिलेख से मिलती है।
● बौद्ध धर्म अपनाने से पहले वह भगवान शिव की पूजा करता था।
प्रांतीय प्रशासन
उत्तरापथ | तक्षशिला |
अवन्ति राष्ट्र | उज्जयिनी |
कलिंग | तोसली |
दक्षिणापथ | सुवर्णगिरी |
प्राची | पाटलिपुत्र |
● अशोक को उपगुप्त ने बौद्ध धर्म में दीक्षित किया।
● बाराबर पहाड़ी पर आजीवकों के लिये अशोक ने कर्ण, चोपार, सुदामा, एवं विश्वझोपड़ी गुफाओं का निर्माण कराया।
● अशोक ने लुम्बिनी को धार्मिक करों से मुक्त कर दिया।
● अशोक की माता का नाम सुभद्रांगी था। सुभद्रांगी चंपा के एक ब्राह्मण की पुत्री थी।
● असंधिमित्रा एवं कारूवाकी अशोक की पत्नियाँ थी।
● कारूवाकी के पुत्र का नाम तीवर था।
● बौद्धग्रन्थ दिव्यावदान के अनुसार पद्मावती अशोक की एक अन्य पत्नी थी।
● अशोक की एक अन्य पत्नी नागदेवी से उत्पन्न पुत्र-पुत्री महेन्द्र एवं संघमित्रा थे। जो विदिशा के श्रेष्ठी की पुत्री थी।
● अशोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिये पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को श्रीलंका भेजा।
मौर्य कालीन साम्राज्य चार प्रान्तों में बँटा था :
■ उत्तरापथ- इसकी राजधानी तक्षशिला थी तथा इसके अन्तर्गत कम्बोज, गान्धार, कश्मीर, पंजाब तथा अफगानिस्तान थे।
■ अवन्ति राष्ट्र- इसकी राजधानी उज्जयिनी थी तथा इसके अन्तर्गत काठियावाड़, मालवा, गुजरात तथा राजपूताना के प्रदेश थे।
■ पूर्वीप्रदेश या प्राची- इसकी राजधानी पाटलिपुत्र थी। प्राची मगध को कहा जाता था। इसके अन्तर्गत उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के प्रदेश थे।
■ दक्षिणापथ- इसकी राजधानी सुवर्णगिरि थी। विन्ध्याचल के दक्षिण में स्थित क्षेत्र इस प्रदेश के अन्तर्गत आता था।
● कलिंग-इसकी राजधानी तोसली थी।
● प्रादेशिक, राज्जुक और युक्तक ये सभी अधिकारी प्रति पांचवें वर्ष राज्य निरीक्षाटन के लिए जाते थे।
अशोक के धर्म के मुख्य सिद्धांत
● कलिंग युद्ध के भीषण रक्तपात को देखकर अशोक का हृदय काँप उठा और उसने भविष्य में अहिंसा की नीति अपनाने की ठानी।
● उसने बौद्ध धर्म से दीक्षा ली और एक नए मत का संस्थापक बन गया जो अशोक के धम्म के नाम से जाना जाता है।
अशोक के धम्म के प्रमुख सिद्धांत
1. बड़ों का आदर | 2. छोटों के प्रति उचित व्यवहार | 3. सत्य भाषण |
4. अहिंसा | 5. दान | 6. पवित्र जीवन |
7. सत्य | 8. शुभ कर्म | 9. धार्मिक सहनशीलता आदि। |
अशोक के राज्यादेश
● अशोक ने अपनी प्रजा के पथ-प्रदर्शन एवं उन्हें धार्मिक सिद्धांतों से परिचित कराने के लिए चट्टानों, स्तंभों तथा गुफाओं पर राज्यादेश खुदवाये।
● ये आदेश अशोक के साम्राज्य के तीस भिन्न स्थानों पर मिले हैं।
● शिला लेख : इनमें अशोक की धार्मिक यात्राओं, धर्म के नियमों, अहिंसा की नीति के विषय में लिखा है।
– चौदह शिलालेख
– दो लघु शिलाओं वाले राज्यादेश
– दो कलिंग राज्यादेश
– भाब्रू राज्यादेश
● स्तम्भ लेख : तीन प्रकार के हैं (1) सात स्तंभ राज्यादेश, (2) लघु स्तंभ राज्यादेश, (3) तराई के स्तंभ लेख।
● गुफा लेख : जो गया के पास बाराबर की पहाड़ियों के तीन गुफाओं के दरवाजों पर मिले हैं।
तृतीय बौद्ध संगीति के बाद अशोक द्वारा भेजे गए धर्म प्रचारक
प्रचारक | स्थान |
महेन्द्र एवं संघमित्रा | लंका |
रक्षित | उत्तरी कनारा |
महादेव | मैसूर |
मज्झान्तिक | कश्मीर-गांधार |
धर्मरक्षित | पश्चिमी भारत |
मज्झिम | हिमालय |
महाधर्मरक्षित | महाराष्ट्र |
महारक्षित | यवन राज्य |
अर्थशास्त्र में निर्दिष्ट प्रमुख अध्यक्ष
लक्षणाध्यक्ष | मुद्रा तथा टकसाल का अध्यक्ष |
पौतवाध्यक्ष | मापतौल का अध्यक्ष |
सीताध्यक्ष | राजकीय कृषि विभाग का अध्यक्ष |
आकराध्यक्ष | खानों का अध्यक्ष |
गणिकाध्यक्ष | वेश्याओं का अध्यक्ष |
नवाध्यक्ष | जहाजरानी विभाग का अध्यक्ष |
पत्तनाध्यक्ष | बन्दरगाहों का अध्यक्ष |
देवताध्यक्ष | धार्मिक संस्थाओं का अध्यक्ष |
मुद्राध्यक्ष | पासपोर्ट विभाग का अध्यक्ष |
लोहाध्यक्ष | धातु विभाग का अध्यक्ष |
सुवर्णाध्यक्ष | पशुधन विभाग का अध्यक्ष |
शुल्काध्यक्ष | राजकीय धन जुर्माना आदि कार्यों का अध्यक्ष |
विविताध्यक्ष | चारागाहों का अध्यक्ष |
सूनाध्यक्ष | बूचड़खाने का अध्यक्ष |
पण्याध्यक्ष | बाणिज्य व्यापार का अध्यक्ष |
सूत्राध्यक्ष | रूई कातने, कपड़ा बुनने के उद्योग का संचालन करने वाला |
मौर्यकालीन शिलालेख
शिलालेख | खोज का वर्ष | लिपि |
(1) शाहबाजगढ़ी | 1836 | खरोष्ठी |
(2) मानसेहरा | 1889 | खरोष्ठी |
(3) गिरनार | 1822 | ब्राह्मी |
(4) धौली | 1837 | ब्राह्मी |
(5) कालसी | 1837 | ब्राह्मी |
(6) जौगढ़ | 1850 | ब्राह्मी |
(7) सोपारा | 1882 | ब्राह्मी |
(8) एरागुड़ी | 1916 | ब्राह्मी |
अशोक के स्तम्भ लेख
स्तम्भ | लेख स्थान |
1. प्रयाग स्तम्भ लेख | इलाहाबाद |
2. दिल्ली-टोपरा | दिल्ली |
3. दिल्ली-मेरठ | दिल्ली |
4. रामपुरवा | चम्पारण (बिहार) |
5. लौरिया नन्दन गढ़ | चम्पारण (बिहार) |
6. लौरिया अरेराज | चम्पारण (बिहार) |
अशोक के लेखों से संबंधित तथ्य
● अशोक का उल्लेख मास्की, नेत्तूर, गुर्जरा एवं उदेगोलम अभिलेख में है।
● अशोक के अभिलेखों को 1837 ई. में जेम्स प्रिसेंप ने सर्वप्रथम पढ़ा।
● टोपरा और मेरठ के स्तम्भों को फिरोजशाह तुगलक ने दिल्ली मंगवाया।
● कौशाम्बी स्तम्भ को अकबर इलाहाबाद लाया था जिसे अशोक ने स्तंभलेख उत्कीर्ण करवाये थे।
● बैराट का अभिलेख कनिंघम कलकत्ता लाया।
अशोक के शिलालेख और उनके विषय
पहला शिलालेख – पशुबलि निषेध किया गया है।
दूसरा शिलालेख – मनुष्य एवं पशु चिकित्सा व्यवस्था तथा विदेशों में धम्म प्रचार का उल्लेख
तीसरा शिलालेख – राज्जुक एवं युक्त की नियुक्ति तथा राजकीय अधिकारियों को हर पांच वर्ष पर राज्य भ्रमण करने का आग्रह
चौथा शिलालेख –भेरीघोष की जगह धम्मघोष की घोषणा
पाँचवां शिलालेख – धम्म-महामात्रों की नियुक्ति
छठा शिलालेख – प्रशासनिक सुधारों एवं आत्म-नियंत्रण की शिक्षा का उल्लेख
सातवाँ शिलालेख – अशोक की सभी धार्मिक मतों के प्रति निष्पक्षता
आठवाँ शिलालेख – बोधगया की यात्रा का उल्लेख एवं विहार यात्रा के स्थान पर धम्म यात्रा का प्रतिपादन
नवाँ शिलालेख – सच्ची भेंट तथा सच्चे शिष्टाचार का उल्लेख
दसवाँ शिलालेख – राजा तथा उच्च अधिकारी हमेशा प्रजा के हित सोचें
ग्यारहवाँ शिलालेख – धम्म की व्याख्या
बारहवाँ शिलालेख – धार्मिक सहिष्णुता पर जोर एवं स्त्री महामात्रों की नियुक्ति
तेरहवाँ शिलालेख – कलिंग युद्ध का वर्णन एवं अशोक के हृदय परिवर्तन की बात तथा धम्म विजय की घोषणा, विदेशों में धम्म प्रचार (पांच विदेशी राज्यों की चर्चा) का उल्लेख किया गया है।
चौदहवाँ शिलालेख – पहले तेरह शिलालेखों का पुनरावलोकन तथा जनता को धार्मिक जीवन बिताने के लिए प्रेरित किया गया है।
● अशोक के अधिकांश अभिलेख ‘ब्राह्मी लिपि’ में लिखे गये हैं।
● दो वृहद् शिलालेख मानसेहरा और शाहबाजगढ़ी ‘खरोष्ठी लिपि’ में लिखे गए हैं।
● ‘कंधार अभिलेख’ दो भाषाओं ग्रीक एवं आर्मेइक भाषा में लिखे गये हैं।
● अशोक के अभिलेखों में कंधार को छोड़कर शेष सभी प्राकृत भाषा में लिखे गये हैं।
● लैम्पाक में खंडित अवस्था में एक अभिलेख पाया गया है, जो आर्मेइक भाषा में है।
● इलाहाबाद स्तम्भ जो कौशाम्बी से लाया गया था, इस पर समुद्रगुप्त और जहाँगीर के भी अभिलेख हैं।
● वृहद् शिलालेखों की संख्या 14 है।
● स्तम्भ लेखों की कुल संख्या 13 है, जो दस स्तम्भों पर अंकित है। तेरह में से सात प्रधान स्तम्भ लेख, चार लघु स्तम्भ लेख तथा दो स्मारक स्तम्भ लेख हैं।
● चार लघु स्तम्भ लेखों में से एक को ‘रानी का लेख’ कहा जाता है, जो इलाहाबाद में है।
● विभाजित लेख इलाहाबाद, साँची और सारनाथ स्तम्भों पर पाए गए हैं।
अशोक के स्तम्भ लेखों पर उत्कीर्ण पशु
अभिलेख | पशु |
लौरिया नन्दनगढ़ | एक सिंह |
रामपुरवा | एक सिंह |
सारनाथ | चार सिंह |
सांची | चार सिंह |
● अशोक के स्तम्भ एकाश्म अर्थात् एक ही पत्थर से तराश कर बनाए गए हैं। इनके निर्माण में चुनार के बलुआ पत्थर का उपयोग हुआ है।
● सांची का स्तूप (विदिशा, मध्यप्रदेश), भरहुत का स्तंभ (सतना, मध्यप्रदेश) तथा सारनाथ स्थित धर्मराजिका स्तूप का निर्माण अशोक ने करवाया था।
● मौर्य वंश का राजकीय चिह्न मयूर (मोर) था।
● रुम्मिनदेई और निगालीसागर (दोनों नेपाल में) स्मारक स्तम्भ लेख हैं।
● प्रधान शिलालेखों में सबसे बड़ा 13वां शिलालेख है।
● सातवां स्तम्भ लेख सभी लेखों में सबसे बड़ा है।
● अशोक के शिलालेख की खोज 1750 ई. में पाद्रेटी फेन्थैलर ने की थी।
● राज्याभिषेक से सम्बन्धित मास्की के लघु शिलालेख में अशोक ने स्वयं को बुद्ध शाक्य कहा है।
● कलिंग युद्ध तथा उसके परिणामों के विषय में अशोक के तेरहवें शिलालेख से विस्तृत सूचना प्राप्त होती है।
● सोहगौरा तथा महास्थान अभिलेख में दुर्भिक्ष के अवसर पर राज्य द्वारा कोष्ठागार से अनाज वितरण का विवरण मिलता है।
● भाबू अभिलेख अशोक का सबसे लम्बा स्तंभ लेख है।
● बौद्ध परंपरा अशोक को 84 हजार स्तूपों के निर्माण का श्रेय प्रदान करती है।
● अशोक का प्रधानमंत्री राधागुप्त था।
● फ्लीट अशोक के धम्म को राजधर्म मानते हैं।
● रोमिला थापर के अनुसार धम्म अशोक का अपना आविष्कार था।
मौर्य प्रशासन
● सत्ता का केन्द्रीयकरण राजा में होते हुए भी वह निरंकुश नहीं होता था।
● कौटिल्य ने राज्य के सात अंग निर्दिष्ट किए हैं : राजा, अमात्य, जनपद, दुर्ग, कोष, सेना और मित्र।
● राजा द्वारा मुख्यमंत्री एवं पुरोहित की नियुक्ति उनके चरित्र की भली-भाँति जाँच के बाद की जाती थी, इस क्रिया को ‘उपधा परीक्षण’ कहा जाता था।
● अर्थशास्त्र में 18 विभागों का उल्लेख है, जिसे ‘तीर्थ’ का गया है। तीर्थों के अध्यक्ष को महामात्र कहा गया है।
● समाहर्त्ता का कार्य राजस्व एकत्र करना, आय-व्यय का ब्यौरा रखना तथा वार्षिक बजट तैयार करना था।
● सन्निधातृ (कोषाध्यक्ष) का कार्य साम्राज्य के विभिन्न भागों में कोषगृह और अन्नागार बनवाना था।
● प्रांतों का शासन राजवंशीय ‘कुमार’ या ‘आर्यपुत्र’ नामक पदाधिकारियों द्वारा होता था।
● विषय (जिला) विषयपति के अधीन होता था। जिले का प्रशासनिक अधिकारी स्थानिक था जो समाहर्त्ता के अधीन था।
● प्रशासन की सबसे छोटी इकाई ‘गोप’ था, जो दस गाँवों का शासन संभालता था।
● समाहर्त्ता के अधीन प्रदेष्ट्रि नामक अधिकारी भी होता था, जो स्थानिक, गोप एवं ग्राम अधिकारियों के कार्यों की जाँच करता था।
● मेगस्थनीज के अनुसार नगर का प्रशासन 30 सदस्यों का एक मंडल करता था, जो 6 समितियों में विभक्त था। प्रत्येक समिति में 5 सदस्य होते थे।
प्रथम समिति – उद्योग शिल्पों का निरीक्षण
द्वितीय समिति – विदेशियों की देख-रेख
तृतीय समिति – जन्म-मरण का लेखा-जोखा
चतुर्थ समिति – व्यापार/वाणिज्य
पांचवीं समिति – निर्मित वस्तुओं के विक्रय का निरीक्षण
छठी समिति – विक्रय मूल्य का दसवाँ भाग विक्रय कर के रूप में वसूलना।
● सैनिक प्रबंध की देख-रेख करने वाला तथा सीमांत क्षेत्रों का व्यवस्थापक अंतपाल होता था।
● मौर्यकाल में दो प्रकार के न्यायालय थे : (1) कण्टकशोधन – यह फौजदारी न्यायालय था। (2) धर्मस्थीय – यह दीवानी न्यायालय था।
● नगर न्यायाधीश को व्यावहारिक महामात्र तथा जनपद न्यायाधीश को ‘राज्जुक’ कहते थे।
● चाणक्य के अनुसार कानून के चार मुख्य अंग थे-धर्म, व्यवहार, चरित्र और शासन।
● मौर्यकाल में दो प्रकार के गुप्तचर (गूढ़ पुरुष) थे। (1) संस्था- एक जगह स्थिर होकर गुप्तचरी करते थे। (2) संचार-घूम-घूमकर गुप्तचरी करते थे।
● स्त्री गुप्तचर भी थी जिन्हें वृषली, भिक्षुकी तथा परिव्राजक कहा जाता था।
● राज्य की अर्थ-व्यवस्था ‘कृषि, पशुपालन और वाणिज्य’ पर आधारित थी, जिन्हें सम्मिलित रूप से ‘वार्ता’ कहा गया है।
● अदेवमातृक (मुख्य कृषि भूमि) – ऐसी भूमि जिसमें बिना वर्षा के भी अच्छी खेती हो सके।
● मौर्यकाल में चाँदी की आहत मुद्रायें चलती थीं, जिन पर मयूर, पर्वत और अर्द्धचंद्र की मुहर अंकित होती थी।
● निजी खेती करने पर राजा को उपज का 1/6 भाग दिया जाता था।
● बलि एक प्रकार का भू-राजस्व था।
● हिरण्य कर अनाज के रूप में न होकर नकद लिया जाता था।
● राजकीय भूमि से होने वाली आय को सीता कही जाती थी।
● एग्रोनोमई मार्ग निर्माण के विशेष अधिकारी कहा जाता था।
● दूरी मापने की इकाई को 10 स्टेडिया कहा जाता है।
● कौटिल्य के अनुसार दक्षिण से बहुमूल्य वस्तुयें-मुक्ता, मणि, हीरा, सोना, शंख इत्यादि आने के कारण, दक्षिण से व्यापार अधिक लाभदायक था।
● भारत का व्यापार रोम, फारस, सीरिया, मिस्र आदि देशों से होता था।
● पूर्वी तट पर ताम्रलिप्ति तथा पश्चिमी तट पर सोपारा एवं भड़ौच (भृगुकच्छ) प्रमुख बन्दरगाह थे।
● ब्याज को रूपिका एवं परीक्षण कहा जाता था।
● व्यापारियों के श्रेणी के प्रधान को सार्थवाह कहा जाता था।
मौर्य साम्राज्य के पतन के कारण
• अशोक के दुर्बल अधिकारी
• उत्तराधिकारी के निश्चित नियम का अभाव
• ब्राह्मणों द्वारा विद्रोह
• राज्यपालों के अत्याचार
• आन्तरिक विद्रोह
• विदेशी आक्रमण
• विशाल साम्राज्य
• धन का अभाव
• गुप्तचर विभाग का अभाव
• सैनिक शक्ति का क्षीण होना
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निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट मौर्य साम्राज्य का महानतम् शासक अशोक जरुर अच्छी लगी होगी। मौर्य साम्राज्य का महानतम् शासक अशोक के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
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