क्या निराश हुआ जाए : अध्याय 5

क्या निराश हुआ जाए

मेरा  मन कभी-कभी बैठ जाता है। समाचार पत्रों में ठगी, डकैती, चोरी, तस्करी और भ्रष्टाचार के समाचार भरे रहते हैं। आरोप-प्रत्यारोप का कुछ ऐसा वातावरण …

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भगवान के डाकिए : अध्याय 4

भगवान के डाकिए

पक्षी और बादल,ये भगवान के डाकिए हैं,जो एक महादेश सेदूसरे महादेश को जाते हैं।हम तो समझ नहीं पाते हैंमगर उनकी लाई चिट्ठियाँपेड़, पौधे, पानी और …

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दीवानों की हस्ती : अध्याय 3

दीवानों की हस्ती

हम दीवानों की क्या हस्ती,हैं आज यहाँ, कल वहाँ चले,मस्ती का आलम साथ चला,हम धूल उड़ाते जहाँ चले। आए बनकर उल्लास अभी,आँसू बनकर बह चले …

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लाख की चूड़ियां : अध्याय 1

लाख की चूड़ियां

सारे गाँव में बदलू मुझे सबसे अच्छा आदमी लगता था क्योंकि वह मुझे सुंदर-सुंदर लाख की गोलियाँ बनाकर देता था। मुझे अपने मामा के गाँव …

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संघर्ष के कारण मैं तुनुकमिज़ाज हो गया – धनराज : अध्याय 14

धनराज

हॉकी के सुप्रसिद्ध खिलाड़ी धनराज पिल्लै जब पैतींस वर्ष के हो गए, उनका एक साक्षात्कार विनीता पाण्डेय ने लिया था। इस साक्षात्कार का संपादित अंश …

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वीर कुँवर सिंह : अध्याय 13

वीर कुँवर सिंह

आपने सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ‘झाँसी की रानी’ छठी कक्षा में पढ़ी होगी। इस कविता में ठाकुर कुँवर सिंह का नाम भी आया है। …

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भोर और बरखा :  अध्याय 12

भोर और बरखा

जागो बंसीवारे ललना!जागो मोरे प्यारे!रजनी बीती, भोर भयो है, घर-घर खुले किंवारे।गोपी दही मथत, सुनियत हैं कंगना के झनकारे।।उठो लालजी! भोर भयो है, सुर-नर ठाढ़े …

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नीलकंठ : अध्याय 11

नीलकंठ

उस दिन एक अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर मैं लौट रही थी कि चिड़ियों और खरगोशों की दुकान का ध्यान आ गया और मैंने ड्राइवर को …

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