धर्म सुधार आंदोलन
• धर्म सुधार आंदोलन शब्द यूरोप के इतिहास में पुनर्जागरण के उत्तरकाल में हुए दो प्रमुख परिवर्तनों के लिए प्रयुक्त होता है। इनमें प्रथम था-प्रोटेस्टेंट धर्म सुधार, इसके कारण ईसाई धर्म में फूट पैदा हुई, अनेक राष्ट्र रोमन कैथोलिक चर्च से अलग हो गए और उन देशों में सामान्यतया राष्ट्रीय स्तर पर पृथक चर्चों की स्थापना हुई ।
• दूसरा परिवर्तन रोमन कैथोलिक चर्च के भीतर हुए उन सुधारों से संबंधित था जिन्हें आमतौर पर कैथोलिक धर्म सुधार या प्रति धर्म सुधार के नाम से जाना जाता है।
Table of Contents
धर्म सुधार आंदोलन के कारण
• पुनर्जागरण ने धर्म सुधार आंदोलन को प्रभावित किया, क्योंकि पुनर्जागरण से संपूर्ण यूरोप को एक नई दिशा मिली। लोगों के अंदर तार्किक दृष्टिकोण में वृद्धि हुई ।
• व्यापारी वर्ग धार्मिक कानूनों से परेशान था। सोलहवीं सदी तक अन्तर्राष्ट्रीय पैमाने पर व्यापार होने लगा था । व्यापार-व्यवसाय के लिए पूँजी की आवश्यकता थी । व्यापारी या सेठ साहूकार ब्याज पर पूँजी लगाना पसन्द करते थे। लेकिन, चर्च सूदखोरी का विरोधी था।
• ‘महान पाश्चात्य विभाजन’-दो पोप का निर्वाचन हुआ, एक फ्रांस का प्रतिनिधित्व कर रहा था एवं दूसरा इटली का प्रतिनिधित्व कर रहा था। परिणामस्वरूप संघर्ष आरंम्भ हो गया और कुछ ने परस्पर सशस्त्र युद्ध आरंभ कर दिया । अतः जनसमुदाय में गिरजाघर के प्रति आदर और सम्मान की भावना समाप्त हो गई।
धर्म सुधार आंदोलन के परिणाम
• धर्म सुधार आंदोलन ने राष्ट्रीयता की भावना को बढ़ाया । केवल फ्रांस और स्पेन को छोड़कर यूरोप के अधिकांश देशों में प्रोटेस्टेंट धर्म की स्थापना हुई। कैथोलिक और प्रोटेस्टेंट के बीच धर्म के नाम पर युद्ध हुआ जिसे तीस वर्षीय युद्ध (1618-48 ई०) कहते हैं। युद्ध का केन्द्र जर्मनी था।
• ईसाई सम्प्रदाय की एकता खंडित हो गई । ईसाई सम्प्रदाय कैथोलिक तथा प्रोटेस्टेंट दो प्रमुख सम्प्रदायों में विभाजित हो गया । सार्वभौमिक गिरजाघर के स्थान पर राष्ट्रीय गिरजाघर स्थापित किए गए।
• ईसाई धर्म कई सम्प्रदायों में बँट गया। लूथर ने जिस धर्म को चलाया, वह लूथेरियन कहा गया । ज्विगली ने जिस सम्प्रदाय को चलाया, वह ज्विगली सम्प्रदाय कहलाया एवं काल्विन ने प्रेसबिटेरियन सम्प्रदाय को जन्म दिया ।
• यूरोप में राष्ट्रीय राज्यों की स्थापना के साथ ही राष्ट्रीय भाषाओं का विकास हुआ । अब तक लैटिन भाषा ही ईसाई जगत की भाषा समझी जाती थी । लेकिन धर्म सुधार के बाद परिस्थितियाँ बदल गईं । स्वयं सुधार के स्तंभ मार्टिन लूथर ने बाइबिल का अनुवाद जर्मन भाषा में किया । लैटिन का महत्त्व जाता रहा । धर्म संबंधी सभी साहित्य राष्ट्रीय भाषाओं में अनुवादित एवं प्रकाशित होने लगे।
ईसाई धर्म के सम्प्रदाय- प्रोटेस्टेण्ड, कैथोलिक, लूथेरियन, ज्विंगली, प्रेसबिटेरियन।
धर्म सुधार आंदोलन की विशेषताएँ
धर्म सुधार आंदोलन की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:
1. मार्टिन लुथर: मार्टिन लुथर, एक जर्मन संत और थियोलॉजियन, ने रिफॉर्मेशन में केंद्रीय भूमिका निभाई। 1517 में, उन्होंने अपने नाइंटी-फाइव थीसिस को विटेनबर्ग कैसल चर्च के दरवाजे पर चढ़ाया, जिसमें उन्होंने इंडल्जेंस के बेचने और पोप की अधिकारिता पर सवाल उठाया।
2. कैथोलिक चर्च की आलोचना: लुथर, जॉन कैल्विन, और अन्यों जैसे रिफॉर्मर्स ने कैथोलिक चर्च के अभ्यासों की आलोचना की, जिसमें इंडल्जेंस के बिक्री, क्लर्जी के बीच की भ्रष्टाचार, और हायरार्की की अत्यधिक धन और शक्ति को शामिल हैं।
3. बाइबिल का अनुवाद: रिफॉर्मेशन के हिस्से के रूप में, बाइबिल को सामान्य लोगों के लिए पहुंचाने के लिए पुनर्निर्मित करने पर नया जोर दिया गया। बाइबिल को वर्नाक्यूलर भाषाओं में अनुवाद करने से व्यक्तियों को स्वयं पढ़ने और विचार करने की अनुमति मिली।
4. प्रोटेस्टेंटिज्म: रिफॉर्मेशन ने प्रोटेस्टेंटिज्म की उत्पत्ति की, जो कैथोलिक चर्च से अलग एक शाखा है। विभिन्न प्रोटेस्टेंट धर्म-प्रवृत्तियों, जैसे कि लुथेरान, कैल्विनिस्ट, और एंग्लिकनिज्म, विभिन्न धाराओं पर आधारित हैं।
5. रिफॉर्मेशन विचारों का प्रसार: रिफॉर्मेशन के विचार छपाकर इनका विस्तार हुआ। पैम्फलेट, किताबें, और बाइबिल के अनुवाद व्यापक रूप से फैले, जिससे सुधारवादी विचारों का प्रसार हुआ।
6. ट्रेंट सभा: रिफॉर्मेशन का प्रतिसाद के रूप में, कैथोलिक चर्च ने ट्रेंट सभा (1545–1563) का आयोजन किया। इस सभा ने सोम्यांतर विचारों का पतन करने के लिए कुछ उत्तरदाता समझा और कुछ कैथोलिक सिद्धांतों और अभ्यासों की पुनरादान की।
7. धर्मिक युद्ध: रिफॉर्मेशन ने धार्मिक संघर्षों और युद्धों की शुरुआत की, जैसे कि जर्मन पीसेंट्स वॉर और तीस वर्षीय युद्ध। इन संघर्षों में धार्मिक और राजनीतिक आयाम दोनों शामिल थे।
8. शिक्षा पर प्रभाव: प्रोटेस्टेंटिज्म ने सभी के लिए शिक्षा के महत्व को जोर दिया। लोगों को पढ़ाई के लिए स्कूल स्थापित की गई और शिक्षा सामान्य जनता के लिए अधिक पहुंचने का साधन बन गई।
9. धार्मिकता का कमी: रिफॉर्मेशन ने धार्मिकता के कमी की प्रक्रिया में योगदान किया, क्योंकि धार्मिक प्राधिकृति कम हुई और राजनीतिक नेताओं को चर्च से अधिक स्वतंत्रता मिली।
10. विरासत: रिफॉर्मेशन मूवमेंट ने यूरोप के धार्मिक और सांस्कृतिक कपड़े को गहरे रूप से परिवर्तित किया। इसने विभिन्न प्रोटेस्टेंट धर्म-प्रवृत्तियों की विकास की बुनियाद रखी और ईसा धर्म और चर्च के बीच संबंध को स्थायी रूप से परिवर्तित किया।
धर्म सुधार आंदोलन के प्रभाव
धर्म सुधार आंदोलन के प्रभाव कुछ महत्वपूर्ण रूप से बदले गए थे, जो समाज, सांस्कृतिक और राजनीतिक क्षेत्रों में हुए। यहां इस आंदोलन के प्रमुख प्रभावों की कुछ कुंजी बिंदुएं हैं:
1. धार्मिक बदलाव: धर्म सुधार आंदोलन ने धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा पद्धतियों और पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं में सुधार की प्रेरणा दी। यह साधु-संतों और समाज के साथियों द्वारा प्रेरित बदलावों की एक धारा शुरू कर दी, जिसने सामाजिक और आध्यात्मिक उन्नति की दिशा में कदम बढ़ाया।
2. सामाजिक सुधार: धर्म सुधार आंदोलन ने समाज में विभिन्न असमानताओं और अद्यतित बुराइयों के खिलाफ उत्कृष्ट विरोध पैदा किया। सती प्रथा, बाल विवाह, और जातिवाद के खिलाफ आंदोलनें हुईं जिनमें सामाजिक सुधार का महत्वपूर्ण योगदान था।
3. शिक्षा में सुधार: आंदोलन ने शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधार को प्रोत्साहित किया। सामाजिक रूप से बंधनबद्ध वर्गों के लिए शिक्षा का सुधार हुआ और लोगों को सामाजिक जागरूकता बढ़ाने के लिए शिक्षा का महत्वपूर्ण रूप से बढ़ावा मिला।
4. साहित्यिक और कला में सुधार: धर्म सुधार ने साहित्य, कला, और सांस्कृतिक क्षेत्रों में भी सुधार का मार्ग प्रशस्त किया। नए और आधुनिक धाराएं, लेखन, पेंटिंग, और संगीत में नए आयाम स्थापित हुए, जिससे समृद्धि हुई और सांस्कृतिक सामर्थ्य बढ़ा।
5. राजनीतिक प्रभाव: धर्म सुधार ने राजनीतिक संरचना में भी परिवर्तन की चेष्टा की। सामाजिक न्याय, सामाजिक समरसता, और सभी वर्गों के लिए समान अधिकार की मांग ने राजनीतिक विचार धारा में भी सुधार को प्रेरित किया।
6. प्रतिक्रियाशीलता: धर्म सुधार आंदोलन ने धार्मिक प्रणाली में सुधार की मांग को बढ़ावा दिया और लोगों को अपने धार्मिक अधिकारों की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया।
7. सांस्कृतिक एकता: आंदोलन ने विभिन्न सामाजिक वर्गों और समुदायों को एक सामाजिक प्लेटफ़ॉर्म पर आने के लिए प्रोत्साहित किया और सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा दिया।
8. सही और गलत में विवेक: आंदोलन ने लोगों को सही और गलत के बीच विवेकपूर्ण निर्णय लेने के लिए प्रेरित किया। यह एक व्यक्ति की आत्म-निर्धारण और अधिकार की महत्वपूर्णता को बढ़ाता है।
धर्म सुधार आंदोलन ने समाज को बदलने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और सामाजिक, धार्मिक, और सांस्कृतिक प्रदर्शनों को प्रभावित किया।
यह भी पढ़ें: पुनर्जागरण
निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट धर्म सुधार आंदोलन जरुर अच्छी लगी होगी। धर्म सुधार आंदोलन के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
बहुत ही बेहतरीन तरीका है समझाने का आपका ,धन्यवाद!