अपने वंश अथवा प्रजाति को बनाए रखने के अ लिए पादप और जंतुओं के लिए जनन आवश्यक है। कक्षा 6 के अध्याय 6 में आपने पढ़ा था कि सभी जीव अपने समान जीवों का जनन करते हैं। माता-पिता से संतति का जन्म जनन कहलाता है। लेकिन, पादप कैसे जनन करते हैं? पादपों में जनन विभिन्न विधियों द्वारा होता है, जिनके बारे में हम इस अध्याय में पढ़ेंगे।
8.1 जनन की विधियाँ
कक्षा 6 में आपने पुष्पीय पादप के विभिन्न भागों के बारे में पढ़ा था। पादप के विभिन्न भागों के नाम बताइए और प्रत्येक के प्रकार्यों के बारे में लिखिए। अधिकांश पादपों में मूल, तना और पत्तियाँ होती हैं। ये पादप के कायिक अंग कहलाते हैं। वृद्धि की निश्चित अवधि के बाद, अधिकांश पादपों में पुष्प निकलते हैं। आपने बसंत ऋतु में आम के वृक्षों को पुष्पित होते देखा होगा। यही पुष्प बाद में आम के उन रसीले फलों को निर्मित करते हैं, जिनका आनंद हम गर्मियों में उठाते हैं। हम फलों को खाते हैं और सामान्यतः बीजों को फेंक देते हैं। बीज अंकुरित होकर नया पादप बनाते हैं। यदि ऐसा है, तो पादप में पुष्पों की क्या भूमिका है? पुष्प पादप में जनन का कार्य करते हैं। वास्तव में, पुष्प पादप के जनन अंग होते हैं। किसी पुष्प में केवल नर जनन अंग अथवा मादा जनन अंग या फिर दोनों ही जनन अंग हो सकते हैं।
पादप अनेक विधियों द्वारा अपनी संतति उत्पन्न करते हैं। इनमें जनन दो प्रकार से होता है- (i) अलैंगिक जनन और (ii) लैंगिक जनन। अलैंगिक जनन में पादप बिना बीजों के ही नए पादप को उत्पन्न कर सकते हैं, जबकि लैंगिक जनन में नए पादप बीजों से प्राप्त होते हैं।
अलैंगिक जनन
अलैंगिक जनन में नए पादप बीजों अथवा बीजाणुओं के उपयोग के बिना ही उगाए जाते हैं।
कायिक प्रवर्धन
यह एक प्रकार का अलैंगिक जनन है, जिसमें पादप के मूल, तने, पत्ती, अथवा कली (मुकुल) जैसे किसी कायिक अंग द्वारा नया पादप प्राप्त किया जाता है। चूँकि जनन पादप के कायिक भागों से होता है, अतः इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं।
क्रियाकलाप 8.1
गुलाब अथवा चंपा के पौधे की एक शाखा को उसकी पर्वसंधि से काटिए। पर्वसंधि तने या शाखा का वह भाग है, जहाँ से पत्ती निकलती है (चित्र 8.1)। शाखा के इस टुकड़े को कर्तन या कलम कहते हैं। अब कलम को मिट्टी में दबा दीजिए। कलम को प्रतिदिन पानी दीजिए और इसकी वृद्धि को देखिए। नोट कीजिए कि जड़ (मूल) के निकलने और नई पत्तियों के निकलने में कितने दिन लगे? इसी क्रियाकलाप को जल से भरे पात्र में मनीप्लांट का पौधा उगाकर दोहराइए और अपने प्रेक्षणों को नोट कीजिए।
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आपने पुष्पकलिकाओं से पुष्पों को खिलते देखा होगा। पुष्पकलिकाओं के अतिरिक्त, पत्तियों के कक्ष (पत्ती के पर्वसंधि से जुड़ाव का बिंदु) में भी कलिकाएँ (मुकुल) होती है। ये कलिकाएँ प्ररोहों (अंकुरों) के रूप में विकसित होती हैं और कायिक कलिकाएँ कहलाती हैं (चित्र 8.2)। कली में एक छोटा तना होता है, जिसके चारों ओर अपरिपक्व पत्तियाँ एक दूसरे के ऊपर अध्यारोपित रहती हैं। कायिक कलिकाएँ भी नए पादप को जन्म दे सकती हैं।
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क्रियाकलाप 8.2
एक ताजा आलू लीजिए। आवर्धक लेंस की सहायता से इस पर पड़े क्षत चिह्नों को देखिए। आपको इनमें कलिका या कलिकाएँ दिखाई दे सकती हैं। क्षत चिह्न को आँख भी कहते हैं। आलू के कुछ टुकड़े काटिए, जिनमें से प्रत्येक में एक आँख अवश्य हो और उन्हें मिट्टी में दबा दीजिए। उस स्थान पर कुछ दिनों तक पानी डालते रहिए, जहाँ आपने आलू के टुकड़ों को मिट्टी में दबाया था। कुछ दिन बाद आलू के टुकड़ों को खोदकर निकाल लीजिए। आप क्या देखते हैं?
इसी प्रकार आप अदरक अथवा हल्दी भी उगा सकते हैं (चित्र 8.3)।
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ब्रायोफिलम (पत्थरचट्टा) में पत्ती के किनारे के गर्त में कलिकाएँ होती हैं (चित्र 8.4)। यदि इस पादप की पत्ती आर्द्र मृदा पर गिर जाए, तो प्रत्येक कलिका (मुकुल) नए पादप को जन्म दे सकती है। कुछ पादपों की जड़ें (मूल) भी नए पादपों को जन्म दे सकती हैं। उदाहरण के लिए, शकरकंद और डालिया (डहेलिया)।
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कैक्टस जैसे पादप के वे भाग, जो मुख्य पादप से अलग (विलग्न) हो जाते हैं, नए पादप को जन्म देते हैं। प्रत्येक विलग्न भाग नए पादप के रूप में वृद्धि कर सकता है।
कायिक प्रवर्धन द्वारा पादप कम समय में उगाए जा सकते हैं। बीजों से उगाए जाने वाले पादप की अपेक्षा कायिक प्रवर्धन द्वारा उत्पन्न पादपों में पुष्प और फल कम अवधि में ही आ जाते हैं। नए पादप जनक पादप की यथार्थ प्रतिलिपि होते हैं, क्योंकि वे एक ही जनक द्वारा उत्पन्न होते हैं। इस अध्याय में आगे आप पढ़ेंगे कि इसके विपरीत लैंगिक जनन द्वारा उत्पन्न होने वाले पादप में माता-पिता (जनक) दोनों के गुण होते हैं। लैंगिक जनन के परिणामस्वरूप पादप बीज उत्पन्न करते हैं।
मुकुलन
आपने पहले यीस्ट के बारे में पढ़ा है, जिसे केवल सूक्ष्मदर्शी द्वारा ही देखा जा सकता है। इनके लिए यदि पर्याप्त पोषण उपलब्ध हो, तो यीस्ट कुछ ही घंटों में वृद्धि करके गुणन (अर्थात् जनन) करने लगते हैं। याद रखिए कि यीस्ट एक एकल कोशिका (एककोशिक) जीव है। आइए, हम देखते हैं कि ये जनन कैसे करते हैं।
क्रियाकलाप 8.3
(शिक्षक/शिक्षिका द्वारा प्रदर्शित किए जाने के लिए)
बेकरी से यीस्ट केक अथवा केमिस्ट की दुकान से यीस्ट पाउडर खरीद लें। चुटकीभर यीस्ट लेकर इसे किसी ऐसे पात्र में रखें, जिसमें कुछ जल हो। इसमें एक चम्मच शक्कर डालकर उसे जल में घोल लें। अब उस पात्र को किसी कमरे के गर्म भाग में रखें। एक घंटे के पश्चात्, इस द्रव की एक बूँद काँच की स्लाइड (पट्टी) पर रखकर सूक्ष्मदर्शी में देखें। आपको क्या दिखाई देता है? आप नई यीस्ट कोशिकाओं को देख सकते हैं (चित्र 8.5)।
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यीस्ट कोशिका से बाहर निकलने वाला छोटे बल्ब जैसा प्रवर्ध मुकुल या कली कहलाता है। मुकुल क्रमशः वृद्धि करता है और जनक कोशिका से विलग होकर नई यीस्ट कोशिका बनाता है। नई यीस्ट कोशिका विकसित होकर परिपक्व हो जाती है और फिर नई यीस्ट कोशिकाएँ बनाती है। कभी-कभी नवीन मुकुल से नए मुकुल विकसित हो जाते हैं जिससे एक मुकुल श्रृंखला बन जाती है। यदि यह प्रक्रम चलता रहे, तो कुछ ही समय में बहुत अधिक संख्या में यीस्ट कोशिकाएँ बन जाती हैं?
खंडन
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आपने तालाबों अथवा ठहरे हुए पानी के अन्य जलाशयों में हरे रंग के अवपंकी गुच्छे (फिसलनदार) तैरते हुए देखे होंगे। ये शैवाल हैं। जब जल और पोषक तत्त्व उपलब्ध होते हैं, तो शैवाल वृद्धि करते हैं और तेज़ी से खंडन द्वारा गुणन करते हैं। शैवाल दो या अधिक खंडों में विखंडित हो जाते हैं। ये खंड अथवा टुकड़े नए जीवों में वृद्धि कर जाते हैं (चित्र 8.6)। यह प्रक्रम निरंतर चलता रहता है और कुछ ही समय में शैवाल एक बड़े क्षेत्र में फैल जाते हैं।
बीजाणु निर्माण
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अध्याय 1 में आपने पढ़ा कि डबलरोटी में, वायु में उपस्थित बीजाणुओं से कवक उग जाते हैं। अध्याय 1 में दिए गए क्रियाकलाप 1.2 को दोहराइए। डबलरोटी पर रुई के जाल में बीजाणुओं को देखिए। जब बीजाणु निर्मुक्त होते हैं, तो ये वायु में तैरते रहते हैं। चूँकि ये बहुत हल्के होते हैं, इसलिए ये लंबी दूरी तक जा सकते हैं (चित्र 8.7)।
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बीजाणु अलैंगिक जनन ही करते हैं। प्रत्येक बीजाणु उच्च ताप और निम्न आर्द्रता जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों को झेलने के लिए एक कठोर सुरक्षात्मक आवरण से ढका रहता है, इसलिए ये लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं और नए जीव में विकसित हो जाते हैं। मॉस और फर्न जैसे पादप में भी जनन बीजाणुओं द्वारा होता है (चित्र 8.8)।
8.2 लैंगिक जनन
पुष्प की संरचना के बारे में आप पहले पढ़ चुके हैं। आप जानते हैं कि पुष्प पादप के जनन अंग होते हैं। पुंकेसर नर जनन अंग और स्त्रीकेसर मादा जनन अंग हैं (चित्र 8.9)।
क्रियाकलाप 8.4
सरसों, गुड़हल या पिटूनिया का कोई पुष्प लीजिए और इसके जनन अंगों को पृथक कीजिए। पुंकेसर और स्त्रीकेसर के विभिन्न भागों का अध्ययन कीजिए।
ऐसे पुष्प, जिनमें या तो केवल पुंकेसर अथवा केवल स्त्रीकेसर उपस्थित होते हैं, एकलिंगी पुष्प कहलाते हैं। जिन पुष्पों में पुंकेसर और स्त्रीकेसर दोनों ही होते हैं, वे द्विलिंगी पुष्प कहलाते हैं। मक्का, पपीता और ककड़ी या खीरे के पौधे में एकलिंगी पुष्प होते हैं, जबकि सरसों, गुलाब और पिटूनिया के पौधों में द्विलिंगी पुष्प होते हैं। नर और मादा एकलिंगी पुष्प दोनों एक ही पादप पर उपस्थित हो सकते हैं अथवा भिन्न पादपों पर पाए जा सकते हैं।
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क्या आप पुंकेसर में परागकोश और तंतु को पहचान सकते हैं [चित्र 8.9 (a)]? परागकोश में परागकण होते हैं, जो नर युग्मकों को बनाते हैं। स्त्रीकेसर में वर्तिकाग्र, वर्तिका और अंडाशय होते हैं। अंडाशय में एक या अधिक बीजांड होते हैं। मादा युग्मक अथवा अंड का निर्माण बीजांड में होता है [चित्र 8.9 (b)]। लैंगिक जनन में नर और मादा युग्मकों के युग्मन से युग्मनज बनता है।
परागण
सामान्यतः परागकणों में दृढ़ सुरक्षात्मक आवरण होता है, जो उन्हें सूखने से बचाता है। क्योंकि परागकण हल्के होते हैं, अतः वह वायु अथवा जल द्वारा बहाकर ले जाए जा सकते हैं। पुष्पों पर बैठने वाले कीटों के शरीर पर परागकण चिपक जाते हैं। जब कीट उसी प्रकार के किसी अन्य पुष्प पर बैठते हैं, तो पुष्प के वर्तिकाग्र पर कुछ परागकण गिर जाते हैं।
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परागकणों का परागकोश से पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण परागण कहलाता है। यदि परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं, तो इसे स्व-परागण कहते हैं [चित्र 8.10 (a)]। जब पुष्प के परागकण उसी पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं, तो इसे पर-परागण कहते हैं [चित्र 8.10 (a) और (b)]।
निषेचन
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नर तथा मादा युग्मकों के युग्मन (संयोग) द्वारा बनी कोशिका युग्मनज कहलाती है। युग्मनज बनाने के लिए नर और मादा युग्मकों के युग्मन का प्रक्रम निषेचन कहलाता है (चित्र 8.11)। युग्मनज़ भ्रूण में विकसित होता है।
8.3 फल और बीज का विकास
निषेचन के पश्चात् अंडाशय, फल में विकसित हो जाता है, जबकि पुष्प के अन्य भाग मुरझाकर गिर जाते हैं। परिपक्व हो जाने पर अंडाशय फल के रूप में विकसित हो जाता है। बीजांड से बीज विकसित होते हैं। बीज में एक भ्रूण होता है, जो सुरक्षात्मक बीजावरण के अंदर रहता है।
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कुछ फल गूदेदार और रसीले होते हैं, जैसे आम, सेब और संतरा। कुछ फल कठोर होते हैं, जैसे बादाम और अखरोट आदि [चित्र 8.12 (a) और (b)]।
8.4 बीज प्रकीर्णन
प्रकृति में एक ही प्रकार के पादप विभिन्न स्थानों पर उगे हुए पाए जाते हैं। ऐसा बीजों के विभिन्न स्थानों पर प्रकीर्णन के कारण होता है। कभी-कभी किसी वन अथवा खेत या फिर उद्यान में चहलकदमी करते समय आपको अपने वस्त्रों पर फलों के बीज चिपके दिखाई दिए होंगे। क्या आपने कभी यह जानने का प्रयास किया है कि ये बीज आपके वस्त्रों पर कैसे चिपक जाते हैं?
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कल्पना कीजिए कि किसी पादप के सभी बीज एक ही स्थान पर गिरकर वहीं उग आए। आपके विचार में इस परिस्थिति में क्या होगा? पादप के नवोद्भिदों (नए उगे पौधे) के बीच धूप, जल, खनिजों और स्थान के लिए गंभीर स्पर्धा होगी। संभवतः उनमें से कोई भी स्वस्थ पादप के रूप में विकसित नहीं होगा। पादपों को बीजों के प्रकीर्णन से लाभ होता है। इससे एक ही प्रकार के पादप के नवोद्भिदों में सूर्य के प्रकाश, जल और खनिजों के लिए परस्पर स्पर्धा की संभावना कम हो जाती है। प्रकीर्णन पादप को व्यापक क्षेत्र में वितरित होने में सहायक होता है, ताकि वे नए आवासों में अपनी पकड़ बनाने में समर्थ हो सकें।
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प्रकृति में पादप के फलों और बीजों का प्रकीर्णन पवन, जल और जंतुओं द्वारा होता है। सहजन (ड्रमस्टिक) तथा द्विफल (मैपिल) जैसे पादप के पंखयुक्त बीज [चित्र 8.13 (a) और (b)], घासों के हल्के बीज अथवा आक (मदार) के रोमयुक्त बीज और सूरजमुखी के रोमयुक्त फल पवन के साथ उड़कर सुदूर स्थानों तक चले जाते हैं [चित्र 8.14 (a) और (b)]। कुछ बीज जल द्वारा प्रकीर्णित होते हैं। ऐसे बीजों अथवा फल के आवरण स्पंजी अथवा तंतुमय होते हैं, ताकि वे जल में प्लवन (तैरते) करते हुए एक स्थान से दूसरे स्थान तक जा सकें। उदाहरण के लिए, नारियल। कुछ बीज जंतुओं द्वारा प्रकीर्णित होते हैं, विशेषरूप से कंटकी (काँटेदार) बीज, जिनमें हुक जैसी संरचनाएँ होती हैं, जिससे बीज जंतुओं के शरीर से चिपक जाते हैं और दूरस्थ स्थानों तक ले जाए जाते हैं। इनके उदाहरण यूरेना एवं जैन्थियम हैं (चित्र 8.15)।
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कुछ पौधों के फल झटके के साथ फट जाते हैं, जिससे उनके अंदर स्थित बीज प्रकीर्णित हो जाते हैं। बीज जनक पादप से दूर जाकर गिरते हैं। एरंड और बाल्सम के पादप में ऐसा ही होता है।
यह भी पढ़ें : जंतुओं और पादप में परिवहन : अध्याय 7
आपने क्या सीखा
• सभी जीव अपनी किस्म को बनाए रखने के लिए जनन या गुणन करते हैं।
• पादप में जनन दो प्रकार से होता है- अलैंगिक और लैंगिक।
• अलैंगिक जनन की कुछ विधियाँ खंडन, मुकुलन, बीजाणु निर्माण और कायिक प्रवर्धन है।
• लैंगिक जनन में नर और मादा युग्मकों का युग्मन होता है।
• कायिक प्रवर्धन में पत्तियाँ, तना और मूल जैसे कायिक भागों से नए पादप उगाए जाते हैं। ep
• पुष्प, पादप का जनन अंग है।
• एकलिंगी पुष्प में या तो नर अथवा मादा जनन अंग होते हैं।
• द्विलिंगी पुष्प में नर और मादा जनन अंग दोनों ही होते हैं।
• नर युग्मक परागकणों के अंदर और मादा युग्मक बीजांड में पाए जाते हैं।
• किसी पुष्प के परागकोश से उसी पुष्प अथवा किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र तक परागकणों के स्थानांतरण का प्रक्रम परागण कहलाता है।
• परागण दो प्रकार का होता है, स्व-परागण और पर परागण। स्वपरागण में, परागकण परागकोश से उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं। पर-परागण में परागकण एक पुष्प के परागकोश से उसी प्रकार के दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरित होते हैं।
• परागण पवन, जल और कीटों के द्वारा हो सकता है।
• नर और मादा युग्मकों का युग्मन निषेचन कहलाता है।
• निषेचित अंड युग्मनज कहलाता है। युग्मनज का विकास भ्रूण में होता है।
• फल एक परिपक्व अंडाशय है, जबकि बीजांड बीज में विकसित होता है। बीज में विकासशील भ्रूण होता है।
• बीजों का प्रकीर्णन पवन, जल अथवा जंतुओं के द्वारा होता है।
• बीज प्रकीर्णन (i) एक ही स्थान पर पादप की अधिक संख्या की वृद्धि को रोकने, (ii) सूर्य के प्रकाश, जल और खनिजों के लिए स्पर्धा को कम करने और (iii) नए आवासों के अधिग्रहण में सहायक होता है।
अभ्यास
1. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
(क) जनक पादप के कायिक भागों से नए पादप के उत्पादन का प्रक्रम कायिक प्रवर्धन कहलाता है।
(ख) ऐसे पुष्पों को, जिनमें केवल नर अथवा मादा जनन अंग होता है र्कलिंगी पुष्प कहते हैं।
(ग) परागकणों का उसी अथवा उसी प्रकार के अन्य पुष्प के परागकोश से वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण का प्रक्रम परागण कहलाता है।
(घ) नर और मादा युग्मकों का युग्मन निषेचन कहलाता है।
(च) बीज प्रकीर्णन हवा, पानी और जीवों के द्वारा होता है।
2. अलैंगिक जनन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए। प्रत्येक का उदाहरण दीजिए।
Ans. अलैंगिक जनन में नर तथा मादा की आवश्यकता नहीं होती। इसमें जीव स्वयं अपनी संख्या में वृद्धि करते। हैं। अलैंगिक जनन की विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित हैं।
कायिक प्रवर्धनः इस प्रकार के अलैगिक जनन में पादप के मूल, तने, पत्ती अथवा कलि जैसे कसी कायिक अंग द्वारा नया पादप प्राप्त किया जाता है। उदहारणः गुलाब, ब्रयोफिलम, आलू, अदरक आदि।
मुकुलनः इस विधि में कोशिक में बहार की और छोटी बल्ब जैसा प्रवर्ध मुकुल या कली बनती हैं। जो क्रमशः वृद्धि करता हैं और जनक कोशिका से अलग होकर नए जीव में परिवर्तित हो जाता है। उदाहरणः यीस्ट ।
खंडनः इस विधि में जीव दो या दो से अधिक खड़ों में विखंडित हो जाते हैं। ये खडं अथवा टुकड़े वृद्धि करके जीवों में परिवर्तित हो जाते हैं। उदाहरणः शैवाल, कवक आदि।
बीजाणु निर्माणः कुछ जीव बहुत अधिक बीजाणुओं का निर्माण करते हैं जो निर्मुक्त होते हैं और हवा में तैरते रहते हैं। हल्के होने के कारण ये लंबी दूरी तक जा सकते हैं। ये बीजाणु उच्च ताप तथा निम्र आर्द्रता जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों को भी सह सकते हैं। अनुकूल परिस्थितियों में बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं और नए जीव में विकसित हो जाते हैं। उदाहरण: कवक, फर्न आदि।
अथवा
मुकुलन : पूर्ण विकसित पौधे के शरीर पर एक उभार की तरह की संरचना बन जाती है, जिसे मुकुल कहते हैं। शरीर की कोशिका में से केंद्रक दो भागों में विभाजित हो जाता है तथा इनमें से एक केंद्रक मुकुल में आ जाता है।
मुकुल : पैतृक जीव के शरीर से पृथक हो जाते हैं तथा वृद्धि करके पूर्ण विकसित जीव बन जाता है।
खंडन विधि : जतीय पादप जैसे शेवाल में खंडन विधि द्वारा गुणन होता है। शेवाल दो या दो से अधिक खंडों में विखंडित हो जाते हैं और प्रत्येक खंड, नए जीवन के रूप में वृद्धि करने लगता है। यह प्रक्रम निरंतर चलता रहता है।
कायिक प्रवर्धन : बीजों के बिना पौधों के किसी कायिक बहुकोशिक भाग से नए पौधे उत्पन्न करके वंश चलाना कायिक प्रवर्धन कहलाता है। यह मुख्यतः दो प्रकार का है-
• प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन तथा
• कृत्रिम कायिक प्रवर्धन।
प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन प्रकृति में पौधों की जड़, तना, पत्तों आदि पर उपस्थित कलिकाओं से नए पौधे पैदा करना प्राकृतिक कायिक जनन कहलाता है, जैसे आलू, अदरक, पत्थरचट्ट आदि।
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन : रोपण द्वारा, कलम लगाकर या दाब कलम लगाकर मनुष्य स्वयं भी अपने प्रयत्नों से पौधों को तैयार करता रहता है। इस प्रक्रिया को कृत्रिम कायिक प्रवर्धन कहते हैं, जैसे गुलाब, आम आदि।
बीजाणुः कवकों में बीजाणुओं द्वारा जनन होता है। कवकों के बीजाणु वायु में उपस्थित रहते हैं। ये उच्च ताप व निम्न आर्द्रता जेसी प्रतिकूल परिस्थिति को भी झेलने के लिए अनुकूल होते हैं। इनकी रक्षा एक कठोर सुरक्षात्मक कवच (आवरण) करता है। जीवाणु लंबे समय तक जीवित रह सकते हैं। अनुकूल परिस्थितियों को पाकर जीवाणु अंकुरित होते हैं और नए जीव को जन्म देते हैं। मॉस और फर्न में बीजाणुओं द्वारा जनन होता है।
3. पादपों में लैंगिक जनन के प्रक्रम को समझाइए।
Ans. लैंगिक जनन के लिए यह जरूरी होता है कि किसी तरह परागकण और अंडप का मिलन हो। परागकोश से वर्तिकाग्र तक परागकणों के पहुँचने की क्रिया को परागन कहते हैं। निषेचनः नर और मादा युग्मकों (परागकण और अंडप) के मिलन की प्रक्रिया को निषेचन (फर्टिलाइजेशन) कहते हैं। निषेचन के बाद युग्मनज (जाइगोट) का निर्माण होता है। जाइगोट विकसित होकर भ्रूण बन जाता है। भ्रूण एक ऊपर एक आवरण बनता है और बीज का निर्माण होता है। बीज के अंकुरन के बाद नये पादप का जन्म होता है।
4. अलैंगिक और लैंगिक जनन के बीच प्रमुख अंतर बताइए।
Ans.
अलैंगिक जनन | लैंगिक जनन |
1. इसमें जीव अकेला ही वंश वृद्धि करता है। | 1. इसमें नर और मादा दोनों जीवों की आवश्यकता पड़ती है। |
2. इसमें निषेचन की क्रिया नहीं होती। | 2. इसमें निषेचन की क्रिया होती है। |
3. इससे उत्पन्न संतान में नए गुण उत्पन्न नहीं हो सकते है। | 3. इससे उत्पन्न संतान में नए गुण पैदा हो सकते हैं। |
4. यह जनन निम्न श्रेणी के पादपों में पाया जाता है। | 4. यह जननं उच्च श्रेणी के पादपों में पाया जाता है। |
5. इनमें बीजों की आवश्यकता नहीं होती। | 5. इनमें बीजों की आवश्यकता होती है। |
6. प्रायः पैतृक पादप जनन उपरांत अदृश्य हो रहता है। | 6. पैतृक पादप जनन उपरांत संतान के रूप में जीवित जाता है। |
5. किसी पुष्प का चित्र खींचकर उसमें जनन अंगों को नामांकित कीजिए।
Ans. स्वयं करें।
6. स्व-परागण और पर-परागण के बीच अंतर बताइए।
Ans.
स्व-परागण : जब किसी पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं तो इसे स्व-परागण कहते हैं।
पर-परागण : जब किसी एक पुष्प केपरागकण किसी अन्य पुष्प के वर्तिकान पर गिरते हैं, तो कहते हैं। इसे पर-परागण कहते हैं।
7. पुष्पों में निषेचन का प्रक्रम किस प्रकार संपन्न होता है?
Ans. सबसे पहले परागन होता है जिससे परागकण वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं। उसके बाद परागकण से एक ट्यूब जैसी संरचना निकलती है और वर्तिका को बेधते हुए अंडप तक पहुँचती है। उसके बाद परागकण से न्यूक्लियस निकलकर अंडप के न्यूक्लियस से फ्यूज कर जाता है। इस तरह से निषेचन संपन्न होता है।
8. बीजों के प्रकीर्णन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
Ans. प्रकृति ने बीजों के प्रकीर्णन के लिए कई अनूठे तरीके इजाद किए हैं।
हवा से प्रकीर्णनः कुछ पादपों के बीज हवा के सहारे दूर दूर तक पहुँच जाते हैं। डेंडेलियन के बीज पर रोयें जेसी संरचनाएँ निकली होती हैं। अपने हल्के वजन और रोयें जैसे संरचनाओं के कारण ये बीज हवा में उड़कर बहुत दूर पहुँच जाते हैं। सहजन और मेपल के बीजों में डेने जैसी रचना होती है जिनकी मदद से ये हवा के सहारे उड़ जाते हैं।
जल से प्रकीर्णनः नारियल का फल बहुत बड़ा और भारी होता है। लेकिन नारियल के छिलके के भीतर हवा भरी होती है जिसके कारण वह पानी के ऊपर उतराता रहता है। इस तरह नारियल के बीज बहुत दूर तक पहुँच पाते हैं। कुछ जलीय पादपों के बीज बहुत छोटे और वजन में हल्के होते हैं। इसलिए ये बीज पानी के ऊपर उतराते हुए दूर दूर तक पहुँच जाते हैं।
जंतुओं द्वारा प्रकीर्णनः जेधियम के बीज के ऊपर हुक जेसी संरचनाएँ होती हैं। इनकी मदद से जैधियम के बीज पशुओं के रोएँ से चिपक जाते हैं और दूर दूर तक पहुँच पाते हैं। बंदर और कई अन्य जीव जब फलों को खाते हैं तो उनके बीजों को इधर उधर बिखेर देते हैं। कुछ बीज चिड़िया की बीट के साथ जगह जगह पहुँच जाते हैं।
फल के फटने से प्रकीर्णनः भिंडी की फली जब पकने के बाद सूखती है तो वह फट पड़ती है। फटने के कारण जो धमाका होता है उसके कारण भिंडी के बीज दूर तक बिखर जाते हैं। एरंड और बालसम के बीजों के साथ भी ऐसा ही होता है।
9. कॉलम A में दिए गए शब्दों का कॉलम B में दिए गए जीवों से मिलान कीजिए-
कॉलम A | कॉलम B |
कली/मुकुल | मैपिल |
आँख | स्पाइरोगाइरा |
खंडन | यीस्ट |
पंख | डबलरोटी की फफूँद |
बीजाणु | आलू |
गुलाब |
Ans.
कॉलम A | कॉलम B |
कली/मुकुल | यीस्ट |
आँख | आलू |
खंडन | स्पाइरोगाइरा |
पंख | मैपिल |
बीजाणु | डबलरोटी की फफूँद |
10. सही विकल्प पर (√) निशान लगाइए-
(क) पादप का जनन भाग होता है, उसका
(i) पत्ती अथवा पर्ण
(ii) तना
(iii) मूल
(iv) पुष्प
Ans. पुष्प
(ख) नर और मादा युग्मक के युग्मन का प्रक्रम कहलाता है
(i) निषेचन
(ii) परागण
(iii) जनन
(iv) बीज निर्माण
Ans. निषेचन
(ग) परिपक्व होने पर अंडाशय विकसित हो जाता है-
(i) बीज में
(ii) पुंकेसर में
(iii) स्त्रीकेसर में
(iv) फल में
Ans. फल में
(घ) बीजाणु उत्पन्न करने वाला एक पादप जीव है-
(i) गुलाब
(ii) डबलरोटी का फफूँद
(iii) आलू
(iv) अदरक
Ans. डबलरोटी का फफूँद
(च) ब्रायोफिलम अपने जिस भाग द्वारा जनन करता है, वह है-
(i) तना
(ii) पत्ती
(iii) मूल
(iv) पुष्प
Ans. पत्ती
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