संगम युग
‘संगम’ का शाब्दिक अर्थ होता है- साहित्यकारों की सभा या मंडली। भारत में तीन संगम-प्रथम मदुरई, दूसरा कपाटपुरम और तीसरा पुनः मदुरई में हुए। इन तीनों संगमों में अनेक देवताओं और महात्माओं ने भाग लिया। साथ ही अनेक महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना हुई। ये ग्रंथ दक्षिण भारत का इतिहास एवं तमिल संस्कृति की जानकारी के लिए एकमात्र स्रोत हैं। उत्तर भारत की अपेक्षा दक्षिण भारत में इतिहास का प्रारंभ देर से हुआ। उत्तर भारत में रचित वैदिक ग्रंथों तथा महाकाव्यों में अनेक ऐसे संकेत मिलते हैं जिनसे यह पता चलता है कि वैदिक संस्कृति दक्षिण की ओर बढ़ रही थी। संगम साहित्य से भी हमें दक्षिण और उत्तर भारत की संस्कृतियों के सफल समन्वय का स्पष्ट चित्र प्राप्त होता है।
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प्रमुख राजवंश
संगम साहित्य से हमें सुदूर दक्षिण के तीन प्रमुख राज्यों-पांड्य, चोल तथा चेर के उद्भव और विकास का विवरण प्राप्त होता है। इन राज्यों के विविध राजाओं के शासन काल का स्पष्ट निर्धारण संभव न होने पर भी उस साहित्य से कृष्णा नदी के दक्षिण के सुदूर प्रायद्वीप की राजनीतिक गतिविधियों पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है।
संगम साहित्य- तीन संगम हुए
● प्रथम संगम – स्थान : मदुरई
• 89 पाण्ड्य राजाओं का संरक्षण • भाग लेने वाले कुल 549 संस्थान, 7 कवि, 4499 लेखक
• 4400 वर्ष तक चला
• अध्यक्षता : ऋषि अगस्त (अगत्तियवार)
• प्रमुख उपस्थित देवता : अगस्त्य, तिरिपुरामेरीथा (शिव), कुमरामेरिंडा (मुरुगन या सुब्रह्मण्यम), मुरांजीयुर (आदि शेष)।
• मानक ग्रंथ : अक्कतियम् (अगस्त्यकृत), परिपदल, मुदुनरै, मुदकुग, कलरियाविरुई आदि।
• उपलब्ध ग्रंथ : कोई नहीं
• इस संगम के आचार्य थे अगत्तियार या अगस्त्य जो कि उत्तर भारत से आर्य-संस्कृति को लेकर दक्षिण भारत आये ।
● द्वितीय संगम
• स्थान : कपाटपुरम (वर्तमान अलवै-समुद्र में विलीन)
• 59 पाण्ड्य राजाओं का संरक्षण
• भाग लेने वाले 49 अकादमी सदस्य, 3700 कवि
• 3700 वर्ष तक चला
• इस संगम के आचार्य थे अगत्तियार एवं तोलकाप्पियर (कार्यकारी अध्यक्ष)
• मानक ग्रंथ : अक्कतियम् (अगस्त्यकृत), तोलकाप्पियम, मापुरानम, इसै-नुनुक्कम्, भूतपुरानम्, केलि, कुरुकु, वेन्दालि एवं व्यालमलय आदि।
• तोलकाप्पियम : लेखक – तोलकाप्पियर
• उपलब्ध ग्रंथ : तोलकाप्पियम यह तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण ग्रंथ है।
• इसके तीन भाग हैं-
(i) इलुथु वर्ग विचार
(ii) सोल वाक्य विचार
(iii) पोरूल – वस्तु
● तृतीय संगम
• स्थान : उत्तरी मदुरई
• इसमें 49 पाण्ड्य राजा, 49 संस्थान और 449 कवि सम्मिलित थे।
• 1850 वर्ष तक चला।
• प्रमुख उपस्थित व्यक्ति-नक्कीरर (अध्यक्ष), पाण्ड्यराजा उद्र, सित्तलै सित्तनार कपिलर, परनर आदि।
• इस संगम के आचार्य थे नक्कीरर ।
• मानक ग्रंथ-पदित्तुप्पत्रु, परिपादल, वरि, वेरिसै आदि।
• द्वितीय शताब्दी तमिल साहित्य का स्वर्णयुग-अगस्त्य युग
• तृतीय संगम में जैन, बौद्ध, हिन्दू तीनों संप्रदाय के लोगों ने भाग लिया।
पाँच महाकाव्य
1. शिलप्पदिकारम् (नूपुर की कहानी)- लेखक इलांगो आदिगल (बौद्ध)
2. मणिमेखलै-लेखक सित्तलै सित्तनार (बौद्ध)
3. जीवक चिन्तामणि-लेखक तिरूत्तक्कदेवर (जैन)
4. वलयपलि
5. कुंडलकेशि
पाँच काव्य
1. यशोधरा काव्यम् (संस्कृत ग्रंथ पर आधारित)
2. चुलामणि (सबसे बड़ा और सबसे अच्छा)
3. उद्यनकाव्यम
4. नागकुमारम्
5. नीलकेशी (बौद्ध दर्शन पर आधारित)
• दक्षिण भारत में आर्य संस्कृति अगस्त्य ऋषि ने फैलाई।
• संगम युग का समय लगभग 300ई.पू. से 300 ई. तक था।
• दक्षिण भारत की प्राचीन भाषा तमिल है।
• संगम शब्द का प्रयोग विद्वत् परिषद् के लिये होता था।
• विद्वत् परिषद् मदुरई एवं कपाटपुरम में आयोजित होती थी।
• पाण्डय शासकों की राजधानी मदुरई में थी।
• ‘तोलकाप्पियम्’ की रचना तोलकाप्पियर ने की थी, जिसे तमिल भाषा का व्याकरण कहा जाता है।
• ‘शिल्प्पादिकारम्’ की रचना इलांगोआदिगल ने की। यह एक प्रेम कथा है। यह तमिल काव्य का इलियड कहलाता है।
• ‘मणिमेखलै’ सित्तलैसित्तनार ने लिखा था। इसे तमिल काव्य का ओडिसी कहा जाता है। इसमें संगमयुगीन ललितकला के विकास का उल्लेख है।
•’जीवक चिंतामणि’ तिरूत्तक्कदेवर ने लिखा।
• इसे विवाह की पुस्तक भी कहा जाता है।
• चेर राज्य की राजधानी वाजि या करूयुर थी।
• चोलों की राजधानी उरैयुर में थी।
• चोलों का राजकीय चिह्न बाघ था।
• संगम युग में सती प्रथा का उल्लेख मणिमेखल अभिलेख में मिलता है।
• मेगास्थनीज ने सर्वप्रथम पाण्ड्यों का उल्लेख किया है।
• चेर देश गोलमिर्च एवं हल्दी के लिये प्रसिद्ध था।
• चेरों का राजकीय चिह्न धनुष था।
• उरैयुर सूती वस्त्र के लिये प्रसिद्ध था।
• बड़े कृषक तथा शासक वर्ग को वेल्लाल कहा जाता था।
• शिकारियों को एनियार कहा जाता था।
• पाण्ड्य देश मोतियों के लिये प्रसिद्ध था।
• पाण्ड्यों का राजकीय चिह्न मछली था।
• वेंगी नदी पाण्ड्य राज्य की जीवन रेखा थी।
• यवन व्यापारियों की बस्तियाँ मुजरिस, पुहार तथा तोण्डी में थी।
• रथों को बैलों से खींचा जाता था।
• संगमकाल के प्रमुख निर्यात मोती, मसाले, कीमती पत्थर, हाथी दांत से बनी वस्तुएं थी।
• संगमकाल की प्रमुख फसलें धान, गन्ना एवं रागी (मरूआ) थीं।
संगमकालीन समाज
(i) अरसर (शासक)
(ii) अडनर (ब्राह्मण)
(iii) बेनिगर (वणिक)
(iv) वेल्लाल (कृषक)
• संगमकालीन लोगों का प्रिय भोजन चावल था।
• संगम युग के प्रतिनिधियों की सभा मनरम् कहलाती थी।
• अरिकमेडु व्यापारिक केन्द्र के रूप में प्रसिद्ध था।
• विष्णु पुराण का उल्लेख मणिमेखलै अभिलेख में मिलता है।
• सिन्धु से कन्याकुमारी तक चौबीस बन्दरगाहों का उल्लेख ‘पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी’ नामक अज्ञात लेखक की पुस्तक में मिलता है।
• सबसे शक्तिशाली चोल शासक करिकाल था।
• भारत एवं रोम के बीच व्यापार का पता ‘पेरिप्लस ऑफ द इरिथ्रियन सी’ से चलता है।
• मॉनसून की खोज हिप्पोलस ने की थी।
• कृषि भूमि को मरुदम् कहा जाता था।
• कुरिंज-पार्वत्य प्रदेश से सम्बन्धित था।
• नेयतल-समुद्रतट को कहा जाता था।
• मुलै-अरण्य भूमि को कहा जाता था।
• पलै-निर्जल स्थल या सूखी भूमि को कहा जाता था।
• रोमनों ने मुजरिस स्थल पर आगस्टस का मन्दिर बनवाया।
• शासक वर्ग को संगम काल में असरार जाता था।
• पत्नि पूजा चेर शासक शेनगुटूवन के शासनकाल से प्रारम्भ हुआ।
• चोल शासक करिकाल ने कावेरी नदी पर लम्बा बाँध बनवाया।
• भूमि कर को ‘करै’, सीमाशुल्क को ‘उल्गु’ तथा अतिरिक्त कर को ‘इखै’ कहा जाता था।
• तमिल क्षेत्र में छोटे गांव को ‘सिकर’ तटीय शहर को ‘पट्टिनम’ प्रमुख सड़कों को ‘साले’ एवं नगर की मुख्य गली को तेरु कहा जाता था।
• संगम युग का सर्वाधिक लोकप्रिय देवता मुरुगन था।
• इन्द्र, मुरुगन, शिव, विष्णु, कृष्ण, बलराम को संयुक्त रूप से ‘देववृन्द’ कहा जाता था।
• संगम युग में मन्दिर को नागर कहा जाता था।
• संगम युग की संस्कृति तमिल और आर्य संस्कृतियों का समन्वय है।
सभा के लिये संगम साहित्य में प्रयुक्त शब्द
मनरम्-शाब्दिक अर्थ-यवन। पोडियाल- शाब्दिक अर्थ-सार्वजानिक स्थल। मनरम् के अर्थ में ‘अवै’ शब्द भी मिला है। राजा अपनी सभा ‘नालवै’ में प्रजा की कठिनाइयों पर विचार करता था। सर्वोच्च न्यायालय-मनरम्। राजा-मन्नम, वेदन, कौशवन, इरैवन। राजा का जन्मदिन-पेरुनल।
• कुरलमारम/कादीमारम राजमहल में प्रचलित एक विशेष प्रथा जिसके अंतर्गत प्रत्येक शासक अपनी शक्ति के प्रतीक के रूप में अपने राजमहल में एक महान वृक्ष रखते थे।
• पुरुनानुरु से चक्रवर्ती राजा की अवधारणा का उल्लेख मिलता है। राजदरबार में सांस्कृतिक कार्यक्रम पर विशेष ध्यान दिया जाता था। गायकों के गायन के साथ नर्तकियाँ नाचती थी, जिन्हें ‘पाणर’ या ‘विडैलियर’ कहा जाता था।
• राजा की सहायता हेतु नियुक्त अधिकारियों का समूह पाँच परिषदों में विभाजित था।
• अमईचार (मंत्री), सेनापत्तियार, पुरोहित्तार (पुरोहित), दुत्तार, ओर्रार (गुप्तचर)।
• राज्य मंडलों में, मंडल नाडु या जिला में तथा नाडु ऊर या गाँव में विभाजित थे।
• पत्तिनम-समुद्रतटीय कस्बा था।
• पेरूर-बड़े गाँव, सिरूर-छोटे गाँव, मुडुर-पुराने गाँव को कहा जाता था।
भू-राजस्व प्रशासन
• कृषि-राजकीय आय का मुख्य स्रोत ।
• तमिलप्रदेश अपनी ऊर्वरता के लिए प्रसिद्ध था। कावेरी डेल्टा-बहुत उपजाऊ था।
• आवूर किलार के अनुसार-हाथी के लेटने में जितनी जमीन घिरती थी, उतनी जमीन में सात लोगों के खाने के लिए अनाज पैदा होता था।
• एक अन्य कवि के अनुसार-एक वेलि भूमि में एक सहस ‘कलम’ चावल पैदा होता था।
• महत्वपूर्ण बंदरगाह-पुहार (चोल), शालीपुर (पाण्ड्य), बंदर (चेर) था।
• चेरों की प्राचीन राजधानी कुरूर, से रोमन सामग्री प्राप्त होती है।
• विरुक्काम्पलिया-चोल, चेर, पांड्य-तीनों राज्यों का संगम स्थल था।
• रोम के अतिरिक्त मिस्र, अरब, चीन और मालद्वीप के साथ व्यापार होता था।
• मासात्तवा-स्थलीय सार्थवाह।
• तिरुक्करल ग्रंथ को तमिल बाइबिल के नाम से जाना जाता है।
• मणिमेखलै में कापालिक शैव संन्यासियों की चर्चा है।
• तोलकाप्पियम- में आठ प्रकार के विवाहों का उल्लेख है जो धर्म शास्त्रों में व्यवस्थित है।
• नडुमान अंजी (चेर) ने दक्षिण में गन्ने की खेती की परंपरा का शुभारंभ किया।
संगम जातियाँ
• एनाडि-सेनानायक को दी जाने वाली उपाधि।
• बल्लाल-धनी किसान-चोल एवं पांड्य राज्य में इनकी नियुक्ति सैनिक एवं असैनिक पद पर की जाती थी।
• अरसर-शासकवर्ग
• कडैसियर-निचले वर्ण के खेत मजदूर होते थे।
• अटियोर/विनैवल्लार- खेत मजदूर होते थे।
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निष्कर्ष:
हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट संगम युग जरुर अच्छी लगी होगी। संगम युग के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!
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