मौर्योत्तर काल | Mauryottar Kaal |

मौर्योत्तर काल

मौर्योत्तर काल में शुंग ,कण्व एवं सातवाहन राजवंश के बारे में वर्णन किया गया है तो आइये मै आपको इस लेख के माधयम से विस्तृत जानकारी देता हूँ।

• मौर्य वंश के बाद शुंग वंश ने राज्य स्थापित किया।

• पुष्यमित्र शुंग मौर्यों का सेनापति था।

• मौर्य वंश के अंतिम शासक वृहद्रथ की हत्या करके पुष्यमित्र शुंग राजा बना।

• शुंग वंश का संस्थापक पुष्यमित्र शुंग (184ई.पू. में) था।

• पुष्यमित्र शुंग ब्राह्मण धर्म का उपासक एवं संरक्षक था।

• पुष्यमित्र शुंग के दो बार अश्वमेध यज्ञ करने की पुष्टि पतंजलि के महाभाष्य से होती है।

• शुंग वंश का चौथा प्रतापी राजा वसुमित्र (यवनों को हराया था) था।

• शुंग शासकों की राजधानी विदिशा थी।

• शुंगकाल में संस्कृत भाषा एवं ब्राह्मण व्यवस्था का पुनरुत्थान हुआ। इसी काल में पहला स्मृति ग्रंथ मनुस्मृति की रचना की गई।

• कालिदास के मालविकाग्निमित्र नाटक का नायक अग्निमित्र था।

• वसुमित्र तथा यवन सेनापति मिनाण्डर के बीच युद्ध सिन्धु नदी के तट पर हुआ था।

• पुष्यमित्र शुंग को कलिंग नरेश खारवेल ने पराजित किया था।

• पाणिनि की अष्टाध्यायी पर पतंजलि ने महाभाष्य लिखा।

• भरहुत एवं साँची के स्तूपों का पुनर्निर्माण शुगकाल में हुआ था।

• शुंग वंश के अंतिम शासक देवभूति को उसके अमात्य वासुदेव ने 73 ई. पू. में हत्या करके कण्व वंश की स्थापना की।

• सुशर्मा कण्व वंश का अंतिम शासक था जिनकी हत्या सातवाहन नरेश सिमुक ने कर दी।

• सातवाहन वंश की स्थापना सिमुक ने (30 ई.पू. में) की थी।

• शातकर्णि प्रथम के बारे में नागनिका के नानाघाट अभिलेख से जानकारी मिलती है।

• सातवाहन शासनकाल के दौरान प्रसिद्ध अजन्ता गुफाओं में उत्कीर्णन का काम सबसे पहले शुरू किया गया था।

• शातकर्णि प्रथम ने अपनी राजधानी प्रतिष्ठान को बनाया।

• गाथा सप्तशती की रचना सातवाहन नरेश हाल ने (हाल कवि एवं साहित्यकार भी था) की। यह प्राकृत भाषा का ग्रन्थ है।

• सातवाहन वंश का महानतम शासक गौतमी पुत्र शातकर्णि था।

• गौतमी पुत्र ने शक शासक नहपान, यवनों, पल्लवों एवं क्षहरातों को पराजित किया।

• गौतमी पुत्र ने वेणकटक स्वामी की उपाधि धारण की थी।

• शून्यवाद के संस्थापक नागार्जुन गौतमी पुत्र शातकर्णि के समकालीन थे।

• शक महाक्षत्रप रुद्रदामन की पुत्री का विवाह – वाशिष्ठी पुत्र पुलुमावी से हुआ था।

• पुलुमावी ने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि धारण की थी।

• सातवाहनों ने अधिकांशतः सीसे के सिक्के चलाये।

• सातवाहन काल में चाँदी एवं ताँबे के सिक्कों का प्रयोग होता था जिसे कार्षापण कहा जाता था।

• ब्राह्मणों को सर्वप्रथम भूमिदान एवं जागीर देने की प्रथा का आरम्भ सातवाहनों ने किया।

• सातवाहनों की राजकीय भाषा प्राकृत थी जो कि ब्राह्मी लिपि में थी।

• अजंता एवं एलोरा की गुफाओं का निर्माण, अमरावती एवं नागार्जुनकोंडा के स्तूपों का निर्माण तथा कार्ले के चैत्य का निर्माण सातवाहनों ने कराया।

• यज्ञ श्री शातकर्णि के सिक्कों पर जलपोत के चिह्न मिलते हैं।

• गौतमी पुत्र शातकर्णि ने वेणकटक नामक नगर की स्थापना की।

• शातकर्णि प्रथम को पुराणों में कृष्ण का पुत्र कहा गया है।

• सर्वमान्य तौर पर सातवाहनों का मूल स्थान महाराष्ट्र के प्रतिष्ठान को माना जाता है।

• सातवाहन वंश के शासकों को दक्षिणाधिपति तथा इनके द्वारा शासित प्रदेश को दक्षिणापथ कहा जाता है।

• सातवाहनों में मातृसत्तात्मक सामाजिक व्यवस्था थी।

सातवाहनों के उत्तराधिकारी

नासिकआभीर
बरारवाकाटक
उत्तरी कनाराकुन्तल
दक्षिण-पूर्वपल्लव

विदेशी आक्रमणकारियों का भारत में आगमन

• बैक्ट्रियाई शासकों का इतिहास उनके सिक्कों के आधार पर लिखा गया है।

• बैक्ट्रियाई या यूनानी वंश की दो शाखायें थीं- (1) यूथेडेमस वंश (2) यूक्रेटाइड्स वंश।

• यूथेडेमस वंश की राजधानी स्यालकोट या साकल थी।

• यूक्रेटाइड्स वंश की राजधानी तक्षशिला थी।

• भारत के भीतरी भाग में प्रवेश करने वाला पहला यूनानी शासक डेमेट्रियस था।

• डेमेट्रियस ने अपने पिता की स्मृति में यूथीडेमिया नामक नगर बसाया।

• मिलिन्द अथवा मिनाण्डर की बौद्धमत के प्रति बहुत श्रद्धा थी।

• ‘मिलिन्दपन्हों’ नामक ग्रन्थ में मिनाण्डर एवं बौद्ध भिक्षु नागसेन के बीच संवाद का संकलन है।

• मिनाण्डर के सिक्कों पर खरोष्ठी के साथ-साथ ब्राह्मी लिपि का भी प्रयोग हुआ है।

• युक्रेटाइडिस को यूनानी स्रोतों में एशिया का संरक्षक कहा गया है।

• भारत में सबसे पहले सोने के सिक्के यूनानियों ने जारी किये।

• सिक्कों पर राजाओं के चित्र एवं तिथि लेखन की परिपाटी यूनानियों ने ही शुरू किया।

• यूनानियों ने ही भारतीयों को हेलनेस्टिक कला से परिचित कराया, जिसने बाद में गांधार शैली का रूप लिया।

• भारत में पहला पार्थियन या पहलव शासक माउस (90 ई. पू.-70 ई. पू.) था।

• गोन्दोफर्निस पहलव वंश का सबसे शक्तिशाली शासक था।

• इसके शासनकाल का एक अभिलेख ‘तख्तेबही’ पेशावर से प्राप्त हुआ है।

• गोन्दोफर्निस के समय ही इसाई धर्म प्रचारक सेन्ट थॉमस भारत आया था।

• पहलवों के समय चाँदी के सिक्के कम जारी किये गये।

• पहलवों के सिक्कों का भण्डार तक्षशिला में सिरकप के पास खुदाई में मिला है।

• कुषाणों ने पहलवों का साम्राज्य विजित कर लिया।

• भारत में शकों की दो शाखायें थी, जो पश्चिमी भारत में केन्द्रित थी- (1) क्षहरात (2) कार्द्धमक

• क्षहरात शक महाराष्ट्र के नासिक में केन्द्रित थे।

• कार्द्धमक सौराष्ट्र-क्षेत्र के उज्जैन में केन्द्रित थे।

• क्षहरात वंश का पहला शासक माउस या मोग था।

• नहपान ने क्षत्रप और महाक्षत्रप दोनों ही उपाधियाँ धारण की थी।

• नहपान ने महाराष्ट्र का एक बड़ा भाग सातवाहनों से छीना था।

• प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र भड़ौच पर क्षहरातों का कब्जा था।

• कार्द्धमक शक शाखा का संस्थापक यशोमितिक था।

• कार्द्धमक शाखा का सबसे प्रसिद्ध शासक रुद्रदामन (130-150 ई०) था।

• रुद्रदामन के सम्बन्ध में जानकारी उसके गिरनार (जूनागढ़) अभिलेख से मिलती है।

• जूनागढ़ अभिलेख संस्कृत भाषा में लिखा पहला बड़ा शिलालेख है।

• रुद्रदामन ने सुदर्शन झील के बाँध का पुनर्निर्माण कराया था।

• कार्द्धमक वंश का अंतिम् शासक रुद्र सिंह द्वितीय था।

• पहलव तथा शकों ने शासन की क्षत्रप प्रणाली को अपनाया।

कुषाण वंश

• भारत में कुषाण वंश की स्थापना कुजुल कडफिसेस ने 15 ई० में की।

• चीनी स्रोतों के अनुसार कुषाण चीन के पश्चिमोत्तर क्षेत्र के यू-ची कबीले के थे।

• कुजुल कडफिसेस ने काबुल और कश्मीर में हरमोयस को हराकर अपना राज्य स्थापित किया।

• कुजुल कडफिसेस ने केवल ताँबे के सिक्के चलवाये।

• कुजुल कडफिसेस के सिक्कों पर महाराजाधिराज, धर्मथिदस एवं धर्मथित उपाधि मिलती है।

• कुजुल कडफिसेस के बाद विम कडफिसेस (65 ई. में) राजा बना।

• विम कडफिसेस ने सोने एवं ताँबे के सिक्के जारी किये। यद्यपि उसके ताम्र तथा रजत (चाँदी) के सिक्के भी मिले हैं तथापि स्वर्ण सिक्के की संख्या अधिक है।

• भारत में सर्वप्रथम यूनानियों ने ही सोने के सिक्के जारी किए, जिनकी मात्रा कुषाणों के शासन काल में बढ़ी। कुषाण शासकों ने स्वर्ण एवं ताँबा दोनों ही प्रकार के सिक्कों को प्रचलित किया था।

• विम कडफिसेस ने महाराज, राजाधिराज, महेश्वर एवं सर्वलोकेश्वर की उपाधि धारण की।

• विम कडफिसेस के सिक्कों पर शिव, नन्दी एवं त्रिशूल की आकृति खुदी थी।

• विम कडफिसेस शैव धर्म को मानता था।

• कुषाण वंश का सबसे प्रतापी शासक कनिष्क था।

• कनिष्क 78 ई. में राजा बना। कनिष्क ने 78 ई. में शक संवत् शुरू किया था। यही आजकल भारत का राष्ट्रीय पंचांग है।

• कनिष्क की राजधानी पुरुषपुर (पेशावर) थी।

• कनिष्क की द्वितीय राजधानी मथुरा में थी।

• कनिष्क ने पाटलिपुत्र के शासक को हराकर, वहाँ से विद्वान अश्वघोष, बुद्ध का भिक्षापात्र एवं एक अनोखा मुर्गा साथ लाया।

• कनिष्क ने कश्मीर विजय के बाद वहाँ कनिष्कपुर नगर बसाया।

• कनिष्क की सबसे महत्वपूर्ण विजय चीन के यारकंद, खोतान तथा काशगर की विजय थी।

• चौथी बौद्ध संगीति का आयोजन कनिष्क ने कश्मीर के कुण्डलवन में कराया था।

• चौथी बौद्ध संगीति का अध्यक्ष वसुमित्र (अश्वघोष उपाध्यक्ष थे) था।

• चौथी बौद्ध संगीति में लगभग 500 विद्वान भिक्षुओं ने भाग लिया।

• कनिष्क बौद्ध धर्म की महायान शाखा का अनुयायी था।

• चौथी बौद्ध संगीति में बौद्ध धर्म हीनयान तथा महायान नामक शाखाओं में बँट गया।

• चौथी बौद्ध संगीति में ‘विभाषाशास्त्र’ पुस्तक लिखी गई।

• कनिष्क के सिक्के यूनानी एवं ईरानी भाषा में थी।

• मथुरा से प्राप्त कनिष्क की मूर्ति सैनिक वेशभूषा में है।

• बुद्ध के अवशेषों पर कनिष्क ने पेशावर में एक स्तूप एवं मठ का निर्माण करवाया।

• कनिष्क के दरबार में महान दार्शनिक अश्वघोष रहता था। अश्वघोष कनिष्क के राजकवि थे।

• अश्वघोष ने बुद्धचरित् एवं सूत्रालंकार की रचना की।

अश्वघोष

• कनिष्क का राजकवि अश्वघोष था।

• कनिष्क ने पाटलिपुत्र के शासक को युद्ध में पराजित कर जीता था।

• इसने बुद्धचरित एवं सूत्रालंकार ग्रन्थों की रचना की थी।

• कुषाण शासक कनिष्क के समकालीन नागार्जुन, अश्वघोष एवं वसुमित्र थे।

• कुषाण काल में सबसे अधिक विकास कला के क्षेत्र में हुआ। इस समय कला की दो शैलियाँ (1) मथुरा शैली तथा (2) गांधार शैली प्रसिद्ध थीं। गांधार शैली में निर्मित बुद्ध तथा बोधिसत्व मूर्तियाँ ही विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। मथुरा शैली में अनेक स्तूपों, विहारों तथा मूर्तियों का निर्माण किया गया है।

• गांधार शैली को यूनानी-बौद्ध, इण्डो ग्रीक-रोमन कला भी कहा जाता है।

• प्रसिद्ध दार्शनिक एवं वैज्ञानिक तथा शून्यवाद का प्रतिपादक नागार्जुन कनिष्क के दरबार में रहता था।

• नागार्जुन ने ‘माध्यमिक सूत्र’ ग्रंथ लिखा।

• ‘विभाषाशास्त्र’ की रचना वसुमित्र ने की।

• कनिष्क का दरबारी चिकित्सक चरक था।

• चरक ने ‘चरक संहिता’ लिखी थी।

• बौद्ध धर्म का विश्वकोष ‘विभाषाशास्त्र’ को कहा जाता है।

• कनिष्क का पुरोहित संघरक्ष था।

• कनिष्क को बौद्ध धर्म में अवश्घोष ने दीक्षित किया।

• भारत का आइन्सटीन नागार्जुन को कहा गया है।

• कुषाण वंश का अंतिम शासक वासुदेव था।

• वासुदेव शैव मतानुयायी था। उसकी मुद्राओं पर शिव तथा नन्दी की आकृतियाँ उत्कीर्ण मिलती हैं।

• तक्षशिला में सिरकप नगर की स्थापना कनिष्क ने की।

• सर्वाधिक शुद्ध सोने के सिक्के कुषाणों ने चलाये।

• कुषाण शासकों को देवपुत्र कहा जाता था।

• कुषाणों में मृत शासकों की मूर्तियों को मन्दिरों में रखा जाता था।

• सेना में घुड़सवारी की दक्षता, सैनिक वेशभूषा एवं व्यूह रचना के क्षेत्र में कुषाणों ने भारत को नई जानकारियां दी।

• 78 ई. में राज्यारोहण के अवसर पर कनिष्क ने शक संवत् चलाया।

• मथुरा से कनिष्क की एक सिर रहित मूर्ति मिली है। जिस पर ‘महाराज राजाधिराजा देवपुत्रों कनिष्को’ अंकित है।

• अश्वघोष की रचनाओं की पाण्डुलिपियाँ मध्य एशिया के तुरफान से मिली हैं।

• चीन से व्यापार करने के लिये रोम को कुषाणों से मधुर संबंध बनाने पड़े। यह व्यापार महान रेशम मार्ग या सिल्क मार्ग से सम्पन्न होता था। इससे कुषाणों को बहुत अधिक आय होती थी।

• सर्वाधिक बुद्ध की मूर्तियों का निर्माण गांधार कला के अन्तर्गत हुआ है।

• पतंजलि ने मथुरा से सटका नामक वस्त्र पायें जाने का उल्लेख किया है।

• भारत में इथोपिया से हाथी दाँत एवं सोना आता था।

• तक्षशिला विभिन्न दिशाओं से आने वाले माल के संग्रह स्थल के रूप में प्रसिद्ध था।

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निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट मौर्योत्तर काल जरुर अच्छी लगी होगी। मौर्योत्तर काल के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में उदाहरण देकर समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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