नादान दोस्त : अध्याय 3

केशव के घर कार्निस के ऊपर एक चिड़िया ने अंडे दिए थे। केशव व और उसकी बहन श्यामा दोनों बड़े ध्यान से चिड़िया को वहाँ आते जाते देखा करते। सवेरे दोनों आँखें मलते कार्निस के सामने पहुँच जाते और चिड़ा और चिड़िया दोनों को वहाँ बैठा पाते। उनको देखने में दोनों बच्चों को न मालूम क्या मजा मिलता, दूध और जलेबी की सुध भी न रहती थी। दोनों के दिल में तरह-तरह के सवाल उठते। अंडे कितने बड़े होंगे? किस रंग के होंगे? कितने होंगे? क्या खाते होंगे? उनमें से बच्चे किस तरह निकल आएँगे? बच्चों के पर कैसे निकलेंगे? घोंसला कैसा है? लेकिन इन बातों का जवाब देने वाला कोई नहीं। न अम्माँ को घर के काम-धंधों से फुरसत थी, न बाबू जी को पढ़ने-लिखने से। दोनों बच्चे आपस ही में सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली दे लिया करते थे।

श्यामा कहती क्यों भइया, बच्चे निकलकर फुर्र से उड़ जाएँगे? केशव विद्वानों जैसे गर्व से कहता नहीं री पगली, पहले पर निकलेंगे। बगैर परों के बेचारे कैसे उड़ेंगे?

श्यामा-बच्चों को क्या खिलाएगी बेचारी ?

केशव इस पेचीदा सवाल का जवाब कुछ न दे सकता था।

इस तरह तीन-चार दिन गुज़र गए। दोनों बच्चों की जिज्ञासा दिन-दिन बढ़ती जाती थी। अंडों को देखने के लिए वे अधीर हो उठते थे। उन्होंने अनुमान लगाया कि अब जरूर बच्चे निकल आए होंगे। बच्चों के चारे का सवाल अब उनके सामने आ खड़ा हुआ।

चिड़िया बेचारी इतना दाना कहाँ पाएगी कि सारे बच्चों का पेट भरे ! गरीब बच्चे भूख के मारे चूँ-चूँ करके मर जाएँगे।

इस मुसीबत का अंदाजा करके दोनों घबरा उठे। दोनों ने फैसला किया कि कार्निस पर थोड़ा-सा दाना रख दिया जाए। श्यामा खुश होकर बोली-तब तो चिड़ियों को चारे के लिए कहीं उड़कर न जाना पड़ेगा न?

केशव नहीं, तब क्यों जाएँगी?

श्यामा-क्यों भइया, बच्चों को धूप न लगती होगी?

केशव का ध्यान इस तकलीफ़ की तरफ़ न गया था। बोला-जरूर तकलीफ़ हो रही होगी। बेचारे प्यास के मारे तड़पते होंगे। ऊपर छाया भी तो कोई नहीं।

आखिर यही फ़ैसला हुआ कि घोंसले के ऊपर कपड़े की छत बना देनी चाहिए। पानी की प्याली और थोड़े से चावल रख देने का प्रस्ताव भी स्वीकृत हो गया।

दोनों बच्चे बड़े चाव से काम करने लगे। श्यामा माँ की आँख बचाकर मटके से चावल निकाल लाई। केशव ने पत्थर की प्याली का तेल चुपके से जमीन पर गिरा दिया और उसे खूब साफ़ करके उसमें पानी भरा।

अब चाँदनी के लिए कपड़ा कहाँ से आए? फिर ऊपर बगैर छड़ियों के कपड़ा ठहरेगा कैसे और छड़ियाँ खड़ी होंगी कैसे?

केशव बड़ी देर तक इसी उधेड़बुन में रहा। आखिरकार उसने यह मुश्किल भी हल कर दी। श्यामा से बोला जाकर कूड़ा फेंकनेवाली टोकरी उठा लाओ। अम्माँ जी को मत दिखाना।

श्यामा-वह तो बीच से फटी हुई है। उसमें से धूप न जाएगी?

केशव ने झुंझलाकर कहा-तू टोकरी तो ला, मैं उसका सूराख बंद करने की कोई हिकमत निकालूंगा।

श्यामा दौड़कर टोकरी उठा लाई। केशव ने उसके सूराख में थोड़ा-सा कागज़ दूँस दिया और तब टोकरी को एक टहनी से टिकाकर बोला-देख, ऐसे ही घोंसले पर उसकी आड़ कर दूँगा। तब कैसे धूप जाएगी?

श्यामा ने दिल में सोचा, भइया कितने चालाक हैं!

2

गरमी के दिन थे। बाबू जी दफ़्तर गए हुए थे। अम्माँ दोनों बच्चों को कमरे में सुलाकर खुद सो गई थीं। लेकिन बच्चों की आँखों में आज नींद कहाँ? अम्माँ जी को बहलाने के लिए दोनों दम रोके, आँखें बंद किए, मौके का इंतज़ार कर रहे थे। ज्यों ही मालूम हुआ कि अम्माँ जी अच्छी तरह से सो गईं, दोनों चुपके से उठे और बहुत धीरे से दरवाज़े की सिटकनी खोलकर बाहर निकल आए। अंडों की हिफ़ाज़त की तैयारियाँ होने लगीं। केशव कमरे से एक स्टूल उठा लाया, लेकिन जब उससे काम न चला तो नहाने की चौकी लाकर स्टूल के नीचे रखी और डरते-डरते स्टूल पर चढ़ा।

श्यामा दोनों हाथों से स्टूल पकड़े हुए थी। स्टूल चारों टाँगें बराबर न होने के कारण जिस तरफ़ ज़्यादा दबाव पाता था, जरा-सा हिल जाता था। उस वक्त केशव को कितनी तकलीफ़ उठानी पड़ती थी, यह उसी का दिल जानता था। दोनों हाथों से कार्निस पकड़ लेता और श्यामा को दबी आवाज़ से डाँटता-अच्छी तरह पकड़,वरना उतरकर बहुत मारूँगा। मगर बेचारी श्यामा का दिल तो ऊपर कार्निस पर था। बार-बार उसका ध्यान उधर चला जाता और हाथ ढीले पड़ जाते।

केशव ने ज्यों ही कार्निस पर हाथ रखा, दोनों चिड़ियाँ उड़ गईं। केशव ने देखा, कार्निस पर थोड़े तिनके बिछे हुए हैं और उन पर तीन अंडे पड़े हैं। जैसे घोंसले उसने पेड़ों पर देखे थे, वैसा कोई घोंसला नहीं है। श्यामा ने नीचे से पूछा कै बच्चे हैं भइया ?

केशव-तीन अंडे हैं, अभी बच्चे नहीं निकले।

श्यामा-जरा हमें दिखा दो भइया, कितने बड़े हैं?

केशव-दिखा दूँगा, पहले जरा चिथड़े ले आ, नीचे बिछा दूँ। बेचारे अंडे तिनकों पर पड़े हैं।

श्यामा दौड़कर अपनी पुरानी धोती फाड़कर एक टुकड़ा लाई। केशव ने झुककर कपड़ा ले लिया, उसकी कई तह करके उसने एक गद्दी बनाई और उसे तिनकों पर बिछाकर तीनों अंडे धीरे से उस पर रख दिए।

श्यामा ने फिर कहा-हमको भी दिखा दो भइया।

केशव दिखा दूँगा, पहले जरा वह टोकरी तो दे दो, ऊपर छाया कर दूँ।

श्यामा ने टोकरी नीचे से थमा दी और बोली- अब तुम उतर आओ, मैं भी तो देखें।

केशव ने टोकरी को एक टहनी से टिकाकर कहा-जा, दाना और पानी की प्याली ले आ, मैं उतर आऊँ तो तुझे दिखा दूँगा।

श्यामा प्याली और चावल भी लाई। केशव ने टोकरी के नीचे दोनों चीजें रख दीं और आहिस्ता से उतर आया।

श्यामा ने गिड़गिड़ाकर कहा-अब हमको भी चढ़ा दो भइया।

केशव-तू गिर पड़ेगी।

श्यामा-न गिरूँगी भइया, तुम नीचे से पकड़े रहना।

केशव-न भइया, कहीं तू गिर-गिरा पड़ी तो अम्माँ जी मेरी चटनी ही कर डालेंगी। कहेंगी कि तूने ही चढ़ाया था। क्या करेगी देखकर ? अब अंडे बड़े आराम से हैं। जब बच्चे निकलेंगे, तो उनको पालेंगे।

दोनों चिड़ियाँ बार-बार कार्निस पर आती थीं और बगैर बैठे ही उड़ जाती थीं। केशव ने सोचा, हम लोगों के डर से नहीं बैठतीं। स्टूल उठाकर कमरे में रख आया, चौकी जहाँ की थी, वहाँ रख दी।

श्यामा ने आँखों में आँसू भरकर कहा-तुमने मुझे नहीं दिखाया, मैं अम्माँ जी से कह दूँगी।

केशव अम्माँ जी से कहेगी तो बहुत मारूँगा, कहे देता हूँ।

श्यामा तो तुमने मुझे दिखाया क्यों नहीं?

केशव और गिर पड़ती तो चार सर न हो जाते !

श्यामा हो जाते, हो जाते। देख लेना मैं कह दूँगी !

इतने में कोठरी का दरवाजा खुला और माँ ने धूप से आँखों को बचाते हुए कहा-तुम दोनों बाहर कब निकल आए? मैंने कहा न था कि दोपहर को न निकलना ? किसने किवाड़ खोला?

किवाड़ केशव ने खोला था, लेकिन श्यामा ने माँ से यह बात नहीं कही। उसे डर लगा कि भइया पिट जाएँगे। केशव दिल में काँप रहा था कि कहीं श्यामा कह न दे। अंडे न दिखाए थे, इससे अब उसको श्यामा पर विश्वास न था। श्यामा सिर्फ़ मुहब्बत के मारे चुप थी या इस कसूर में हिस्सेदार होने की वजह से, इसका फैसला नहीं किया जा सकता। शायद दोनों ही बातें थीं।

माँ ने दोनों को डाँट-डपटकर फिर कमरे में बंद कर दिया और आप धीरे-धीरे उन्हें पंखा झलने लगी। अभी सिर्फ़ दो बजे थे। बाहर तेज्ज लू चल रही थी। अब दोनों बच्चों को नींद आ गई थी।

3

चार बजे यकायक श्यामा की नींद खुली। किवाड़ खुले हुए थे। । वह दौड़ी हुई कार्निस के पास आई और ऊपर की तरफ़ ताकने लगी। टोकरी का पता न था। संयोग से उसकी नजर नीचे गई और वह उलटे पाँव दौड़ती हुई कमरे में जाकर जोर से बोली-भइया, अंडे तो नीचे पड़े हैं, बच्चे उड़ गए।

केशव घबराकर उठा और दौड़ा हुआ बाहर आया तो क्या देखता है कि तीनों अंडे नीचे टूटे पड़े हैं और उनसे कोई चूने की-सी चीज्ज बाहर निकल आई है। पानी की प्याली भी एक तरफ टूटी पड़ी है।

उसके चेहरे का रंग उड़ गया। सहमी हुई आँखों से जमीन की तरफ़ देखने लगा।

श्यामा ने पूछा-बच्चे कहाँ उड़ गए भइया?

केशव ने करुण स्वर में कहा-अंडे तो फूट गए।

श्यामा और बच्चे कहाँ गए?

केशव-तेरे सर में। देखती नहीं है अंडों में से उजला-उजला पानी निकल आया है। वही तो दो-चार दिनों में बच्चे बन जाते।

माँ ने सोटी हाथ में लिए हुए पूछा-तुम दोनों वहाँ धूप में क्या कर रहे हो?

श्यामा ने कहा- अम्माँ जी, चिड़िया के अंडे टूटे पड़े हैं।

माँ ने आकर टूटे हुए अंडों को देखा और गुस्से से बोलीं- तुम लोगों ने अंडों को छुआ होगा।

अब तो श्यामा को भइया पर ज़रा भी तरस न आया। उसी ने शायद अंडों को इस तरह रख दिया कि वह नीचे गिर पड़े। इसकी उसे सजा मिलनी चाहिए। बोली-इन्होंने अंडों को छेड़ा था अम्माँ जी।

माँ ने केशव से पूछा-क्यों रे?

केशव भीगी बिल्ली बना खड़ा रहा।

माँ-तू वहाँ पहुँचा कैसे?

श्यामा-चौकी पर स्टूल रखकर चढ़े अम्माँ जी।

केशव-तू स्टूल थामे नहीं खड़ी थी?

श्यामा तुम्हीं ने तो कहा था।

माँ-तू इतना बड़ा हुआ, तुझे अभी इतना भी नहीं मालूम कि छूने से चिड़ियों के अंडे गंदे हो जाते हैं। चिड़िया फिर उन्हें नहीं सेती।

श्यामा ने डरते-डरते पूछा तो क्या चिड़िया ने अंडे गिरा दिए हैं अम्माँ जी?

माँ-और क्या करती ! केशव के सिर इसका पाप पड़ेगा। हाय, हाय, तीन जानें ले लीं दुष्ट ने!

केशव रोनी सूरत बनाकर बोला-मैंने तो सिर्फ अंडों को गद्दी पर रख दिया था अम्माँ जी !

माँ को हँसी आ गई। मगर केशव को कई दिनों तक अपनी गलती पर अफ़सोस होता रहा। अंडों की हिफ़ाज़त करने के जोग में उसने उनका सत्यानाश कर डाला। इसे याद कर वह कभी-कभी रो पड़ता था।

दोनों चिडियाँ वहाँ फिर न दिखाई दी।

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प्रश्न-अभ्यास

कहानी से

1. अंडों के बारे में केशव और श्यामा के मन में किस तरह के सवाल उठते थे? वे आपस ही में सवाल-जवाब करके अपने दिल को तसल्ली क्यों दे दिया करते थे?
Ans.
बालमन जिज्ञासाओं से भरा होता है। उन्होंने पहले कभी अंडे नहीं देखे थे। उनके घरवालों ने भी उनको अंडों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी थी। उनको पता नहीं था कि अंडों का आकार कितना बड़ा होता है? अंडे किस रंग के होते हैं? उनमें बच्चे कैसे पैदा होते हैं? वे क्या खाते हैं? उनका घोसला कैसा होता है? बच्चों के मन में इस तरह के सवाल स्वाभाविक ही थे।

2. केशव ने श्यामा से चिथड़े, टोकरी और दाना-पानी मँगाकर कार्निस पर क्यों रखे थे?
Ans.
कार्निंस पर चिड़िया के अंडे थे। केशव और श्यामा ने सोचा कि अंडों से बच्चे निकल आए होंगे। उन्हें धूप से बचाने के लिए छत बनाना था इसलिए टोकरी मँगाई गई। चिथड़ों से उनके लिए गद्दी बनाई गई। दाना-पानी मँगाकर उनकी भूख मिटाने का प्रबंध किया गया। प्याली में खाने के लिए दाना और पानी रख दिया।

3. केशव और श्यामा ने चिड़िया के अंडों की रक्षा की या नादानी?
Ans.
केशव और श्यामा ने अपनी ओर से तो उन अंडों की रक्षा करनी चाही, पर यह उनकी नादानी सिद्ध हुई। चिड़िया अपने अंडों की रक्षा स्वयं कर सकती थी। बच्चे ने अंडों की रक्षा करने के प्रयास में उन्हें छूकर गंदा कर दिया। उन्हें नहीं मालूम था कि यदि वे अंडों को छू लेंगे तो चिड़िया उन्हें छोड़ ही देगी। वास्तव में वे तो उन अंडों की रक्षा करना चाहते थे लेकिन नादानी में रक्षा में हत्या हो गई।

कहानी से आगे

1. केशव और श्यामा ने अंडों के बारे में क्या-क्या अनुमान लगाए? यदि उस जगह तुम होते तो क्या अनुमान लगाते और क्या करते?
Ans.
केशव और श्यामा ने अनुमान लगाया कि अब उन अंडों से बच्चे निकल आए होंगे। चिड़िया इतना कहाँ से लाएगी। गरीब बच्चे इस तरह चूं-चू करके मर जाएँगे। उन्हें धूप से भी कष्ट होगा। यदि केशव और श्यामा की जगह हम होते तो हम अनुमान लगाते कि कोई जानवर या अन्य जीव-जंतु तो अंडों तक नहीं पहुँच जाएगा कार्निस तक कोई जानवर न पहुँचे, मैं इसका प्रयास करता। हम अंडों के साथ छेड़-छाड़ नहीं करते। चिड़ियों के लिए दाना हम कार्निस पर रखने की जगह नीचे जमीन पर बिखेर देते।

2. माँ के सोते ही केशव और श्यामा दोपहर में बाहर क्यों निकल आए? माँ के पूछने पर भी दोनों में से किसी ने किवाड़ खोलकर दोपहर में बाहर निकलने का कारण क्यों नहीं बताया?
Ans.
क्योंकि वही समय ऐसा था जब वे बाहर आकर चुपचाप चिड़िया के बच्चे को देख सकते थे। माँ उनको देख लेती तो अंडों को हाथ न लगाने देती। माँ के पूछने पर पिटाई के डर से दोनों में से किसी ने बाहर निकलने का कारण नहीं बताया।

3. प्रेमचंद ने इस कहानी का नाम ‘नादान दोस्त’ रखा। तुम इसे क्या शीर्षक देना चाहोगे?
Ans.
हम इसका दूसरा अन्य शीर्षक रक्षा में हत्या या बच्चों की नादानी देना चाहेंगे।

अनुमान और कल्पना

1. इस पाठ में गरमी के दिनों की चर्चा है। अगर सरदी या बरसात के दिन होते तो क्या-क्या होता? अनुमान करो और अपने साथियों को सुनाओ।
Ans.
अगर सर्दी के दिन होते तो केशव और श्यामा अंडों को ठंड से बचाने की व्यवस्था करते। उनकी माँ उन्हें इतनी सर्दी में बाहर निकलने के लिए डाँटती। अगर बरसात का मौसम होता तो वे अंडों को पानी से बचाने के लिए चिंतित रहते। उस समय उन्हें पानी में बाहर निकलने के लिए माँ से डाँट सुननी पड़ती।

2. पाठ पढ़कर मालूम करो कि दोनों चिड़ियाँ वहाँ फिर क्यों नहीं दिखाई दी? वे कहाँ गई होंगी? इस पर अपने दोस्तों के साथ मिलकर बातचीत करो।
Ans.
चिड़ियों के सारे अंडे फूट गए, इसलिए दोनों वहाँ से चली गईं और फिर कभी वापस नहीं आईं। वे दोनों वहाँ से किसी दूसरी सुरक्षित जगह पर गई होंगी, वहाँ घोंसला बनाया होगा और फिर समय आने पर अंडे दिए होंगे।

3. केशव और श्यामा चिड़िया के अंडों को लेकर बहुत उत्सुक थे। क्या तुम्हें भी किसी नयी चीज या बात को लेकर कौतूहल महसूस हुआ है? ऐसे किसी अनुभव का वर्णन करो और बताओ कि ऐसे में तुम्हारे मन में क्या-क्या सवाल उठे?
Ans.
मुझे अपने घर में पैदा हुए बिल्ली के नवजात बच्चों के प्रति कौतूहल बना रहता था। एक बार मेरे घर के पिछले हिस्से में एक बिल्ली ने तीन बच्चे दिए थे। उन्हें देखकर मुझे बहुत कौतूहल हुआ। बिल्ली अपने बच्चों को मुँह में दबाकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाती थी। उन्हें देखना मुझे बहुत अच्छा लगता था। मैं माँ से छुपा कर कटोरी में दूध रख आया करती थी और कभी कभी अपने हिस्से की रोटी भी उन्हें खिला देती थी। मेरे मन में अक्सर यह सवाल उठता था कि बिल्ली अपने बच्चों को मुँह में दबाती है, तो क्या उन्हें दर्द नहीं होता है।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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