हिन्दी की उपभाषाएँ एवं बोलिंयाँ

हिन्दी की उपभाषाएँ व बोलियाँ

हिन्दी की उपभाषाएँ व बोलियाँ निम्नलिखित है।

बोली : एक छोटे क्षेत्र में बोली जानेवाली भाषा बोली कहलाती है। बोली में साहित्य रचना नहीं होती ।

उपभाषा : अगर किसी बोली में साहित्य रचना होने लगती है और क्षेत्र का विस्तार हो जाता है तो वह बोली न रहकर उपभाषा बन जाती है।

भाषा : साहित्यकार जब उस उपभाषा को अपने साहित्य के द्वारा परिनिष्ठित सर्वमान्य रूप प्रदान कर देते हैं तथा उसका और क्षेत्र विस्तार हो जाता है तो वह भाषा कहलाने लगती है।

» एक भाषा के अंतर्गत कई उपभाषाएँ होती हैं तथा एक उपभाषा के अंतर्गत कई बोलियाँ होती हैं।

» सर्वप्रथम एक अंग्रेज प्रशासनिक अधिकारी जार्ज अब्राहम ग्रियर्सन ने 1889 ई० में ‘मार्डन वरनाक्यूलर लिटरेचर ऑफ हिन्दोस्तान’ में हिन्दी का उपभाषाओं व बोलियों में वर्गीकरण प्रस्तुत किया। बाद में ग्रियर्सन ने 1894 ई० से भारत का भाषाई सर्वेक्षण आरंभ किया जो 1927 ई० में संपन्न हुआ । उनके द्वारा संपादित ग्रंथ का नाम है- ‘ए लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इण्डिया’। इसमें उन्होंने हिन्दी क्षेत्र की बोलियों को पाँच उपभाषाओं में बाँटकर उनकी व्याकरणिक एवं शाब्दिक विशेषताओं का विस्तार से विवरण प्रस्तुत किया है।

» इसके बाद, 1926 ई० में सुनीति कुमार चटर्जी ने ‘बांग्ला भाषा का उद्भव और विकास (‘Origin and Development of Bengali Language’) में हिन्दी का उपभाषाओं व बोलियों में वर्गीकरण प्रस्तुत किया । चटर्जी ने पहाड़ी भाषाओं को छोड़ दिया है। वे उन्हें भाषाएं नहीं गिनते ।

» धीरेन्द्र वर्मा (‘हिन्दी भाषा का इतिहास’, 1933 ई०) का वर्गीकरण मुख्यतः सुनीति कुमार चटर्जी के वर्गीकरण पर ही आधारित है, केवल उसमें कुछ संशोधन किये गये हैं जैसे उसमें पहाड़ी भाषाओं को शामिल किया गया है।

» इनके अलावे, कई विद्वानों ने अपना वर्गीकरण प्रस्तुत किया है। आज इस बात को लेकर आम सहमति है कि हिन्दी जिस भाषा-समूह का नाम है, उसमें 5 उपभाषाएँ और 17 बोलियाँ हैं।

» हिन्दी क्षेत्र की समस्त बोलियों को 5 वर्गों में बाँटा गया है। इन वर्गों को उपभाषा कहा जाता है। इन उपभाषाओं के अंतर्गत ही हिन्दी की 17 बोलियाँ आती हैं।

हिन्दी भाषी क्षेत्र / हिन्दी क्षेत्र/हिन्दी पट्टी (Hindi Belt): हिन्दी पश्चिम में अम्बाला (हरियाणा) से लेकर पूर्व में पूर्णिया (बिहार) तक तथा उत्तर में बद्रीनाथ-केदारनाथ (उत्तराखंड) से लेकर दक्षिण में खंडवा (मध्य प्रदेश) तक बोली जाती है। इसे हिन्दी भाषी क्षेत्र या हिन्दी क्षेत्र के नाम से जाना जाता है। इस क्षेत्र के अन्तर्गत १ राज्य – उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा व हिमाचल प्रदेश तथा 1 केन्द्र शासित प्रदेश (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र) – दिल्ली – आते हैं। इस क्षेत्र में भारत की कुल जनसंख्या के 43% लोग रहते हैं।

उपभाषाबोलियाँ मुख्य क्षेत्र
राजस्थानीमारवाड़ी (पश्चिमी राजस्थानी)
जयपुरी या ढूँढाड़ी (पूर्वी राजस्थानी)
मेवाती (उत्तरी राजस्थानी)
मालवी (दक्षिणी राजस्थानी)
राजस्थान
पश्चिमी हिन्दीकौरवी या खड़ी बोली
बाँगरू या हरियाणवी
ब्रजभाषा
बुंदेली
कन्नौजी
हरियाणा, उत्तर प्रदेश
पूर्वी हिन्दीअवधी
बघेली
छतीसगढ़ी
मध्य प्रदेश,
छत्तीसगढ़,
उत्तर प्रदेश
बिहारीभोजपुरी
मगही
मैथिली
बिहार,
उत्तर प्रदेश
पहाड़ीकुमाऊँनी
गढ़वाली
उत्तराखंड, हिमाचल
प्रदेश

नोट : एक भाषा विद्वान के अनुसार, शुद्ध भाषा-वैज्ञानिक दृ ष्टि से हिन्दी की दो मुख्य उपभाषाएँ हैं-पश्चिमी हिन्दी व पूर्वी हिन्दी ।

बोली, विभाषा एवं भाषा

» विभिन्न बोलियां राजनीतिक-सांस्कृतिक आधार पर अपना क्षेत्र बढ़ा सकती है और साहित्य रचना के आधार पर वे अपना स्थान ‘बोली’ से उच्च करते हुए ‘विभाषा’ तक पहुँच सकती है।

» विभाषा का क्षेत्र बोली की अपेक्षा अधिक विस्तृत होती है। यह एक प्रांत या उपप्रांत में प्रचलित होती है। इसमें साहित्यिक रचनाएं भी प्राप्त होती हैं। जैसे-हिन्दी की विभाषाएं हैं ब्रजभाषा, अवधी, खड़ी बोली, भोजपुरी व मैथिली ।

» विभाषा स्तर पर प्रचलित होने पर ही राजनीतिक, साहित्यिक या सांस्कृतिक गौरव के कारण भाषा का स्थान प्राप्त कर लेती है, जैसे-खड़ी बोली मेरठ, बिजनौर आदि की विभाषा होते हुए भी राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत होने के कारण राष्ट्रभाषा के पद पर अधिष्ठित हुई है।

» इस प्रकार, दो बातें स्पष्ट होती हैं-

(i) बोली का विकास विभाषा में और विभाषा का विकास भाषा में होता है।
बोली विभाषा → भाषा

(ii) उदाहरण
भाषा – खड़ी बोली हिन्दी
विभाषा – हिन्दी क्षेत्र की प्रमुख बोलियां-ब्रजभाषा, अवधी, खड़ी बोली, भोजपुरी व मैथिली
बोली – हिन्दी क्षेत्र की शेष बोलियाँ

प्रमुख बोलियों का संक्षिप्त परिचय

कौरवी या खड़ी बोली

मूल नाम-कौरवी

» साहित्यिक भाषा बनने के बाद पड़ा नाम-खड़ी बोली

» अन्य नाम-बोलचाल की हिन्दुस्तानी, सरहिन्दी, वर्नाक्यूलर खड़ी बोली आदि ।

» केन्द्र कुरु जनपद अर्थात् मेरठ-दिल्ली के आस-पास का क्षेत्र । खड़ी बोली एक बड़े भू-भाग में बोली जाती है। अपने ठेठ रूप में यह मेरठ, बिजनौर, मुरादाबाद, रामपुर, सहारनपुर, देहरादून और अम्बाला जिलों में बोली जाती है। इनमें मेरठ की खड़ी बोली आदर्श और मानक मानी जाती है।

» बोलने वालों की संख्या-1.5 से 2 करोड़

» साहित्य-मूल कौरवी में लोक-साहित्य उपलब्ध है जिसमें गीत, गीत-नाटक, लोक कथा, गप्प, पहेली आदि हैं।

» विशेषता-आज की हिन्दी मूलतः कौरवी पर ही आधारित है। दूसरे शब्दों में, हिन्दी भाषा का मूलाधार/मूलोद्गम (Substratum या Basic dialect) कौरवी या खड़ी बोली है।

>» नमूना कोई बादसा था। साब उसके दो राण्याँ थीं। वो एक रोज अपनी रान्नी से केने लगा मेरे समान ओर कोइ बादसा है बी? तो बड़ी बोल्ले के राजा तुम समान ओर कोन होगा। छोटी से पुच्छा तो किया कि एक बिजाण सहर है उसके किल्ले में जितनी तुम्हारी सारी हैसियत है उतनी एक ईंट लगी है। ओ इसने मेरी कुच बात नई रक्खी इसको तग्मार्ती (निर्वासित) करना चाइए। उस्कू तग्मार्ती कर दिया। ओर बड़ी कू सब राज का मालक कर दिया ।

ब्रजभाषा

» केन्द्र-मथुरा

» प्रयोग क्षेत्र-मथुरा, आगरा, अलीगढ़, धौलपुरी, मैनपुरी, एटा, बदायूं, बरेली तथा आस-पास के क्षेत्र

» बोलनेवालों की संख्या-3 करोड़

» देश के बाहर ताज्जुबेकिस्तान में ब्रजभाषा बोली जाती है जिसे ‘ताज्जुबेकी ब्रजभाषा’ कहा जाता है।

» साहित्य-कृष्ण भक्ति काव्य की एकमात्र भाषा, लगभग सारा रीतिकालीन साहित्य । साहित्यिक दृष्टि से हिन्दी भाषा की सबसे महत्वपूर्ण बोली । साहित्यिक महत्व के कारण ही इसे ब्रजबोली नहीं ब्रजभाषा की संज्ञा दी जाती है। मध्यकाल में इस भाषा ने अखिल भारतीय विस्तार पाया। बंगाल में इस भाषा से बनी भाषा का नाम ‘ब्रज बुलि’ पड़ा। असम में ब्रजभाषा ‘ब्रजावली’ कहलाई आधुनिक काल तक इस भाषा में साहित्य सृजन होता रहा। पर परिस्थितियां ऐसी बनीं कि ब्रजभाषा साहित्यिक सिंहासन से उतार दी गई और उसका स्थान खड़ी बोली ने ले लिया।

» रचनाकार-भक्तिकालीन सूरदास, नंद दास आदि । रीतिकालीन : बिहारी, मतिराम, भूषण, देव आदि । आधुनिक कालीन : भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, जगन्नाथ दास ‘रत्नाकर’ आदि ।

» नमूना-एक मथुरा जी के चौबे हे (थे), जो डिल्ली सैहर कौ चलै । गाड़ी वारे बनिया से चौबेजी की भेंट है गई। तो वे चौबे बोले, अर भइया सेठ, कहाँ जायगो । वौ बोलो, महराजा डिल्ली जाऊँगी। तो चौबे बोले, भइया हमऊँ बैठाल्लेय। बनिया बोलो, चार रूपा चलिंगे भाड़े के । चौबे बोले, अच्छा भइया चारी दिंगे।

अवधी

» केन्द्र-अयोध्या/अवध

» प्रयोग क्षेत्र-लखनऊ, इलाहाबाद, फतेहपुर, मिर्जापुर (अंशतः), उन्नाव, रायबरेली, सीतापुर, फैजाबाद, गोंडा, बस्ती, बहराइच, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, बाराबंकी आदि ।

» बोलनेवालों की संख्या-2 करोड़

» देश के बाहर फीजी में अवधी बोलनेवाले लोग हैं।

» साहित्य-सूफी काव्य, रामभक्ति काव्य । अवधी में प्रबंध काव्य परपंरा विशेषतः विकसित हुई।

» रचनाकार-सूफी कवि : मुल्ला दाउद (‘चंदायन’), जायसी (‘पद्मावत’), कुत्बन (‘मृगावती’), उसमान (‘चित्रावली’) रामभक्त कवि : तुलसीदास (‘रामचरित मानस’)

» नमूना-एक गाँव मा एक अहिर रहा। ऊ बड़ा भोंग रहा । सबेरे जब सोय के उठे तो पहले अपने महतारी का चार टन्नी धमकाय दिये तब कौनो काम करत रहा। बेचारी बहुत पुरनिया रही नाहीं तौ का मजाल रहा केऊ देहिं पै तिरिन छुआय देत ।

भोजपुरी

» केन्द्र-भोजपुर (बिहार)

» प्रयोग क्षेत्र-बनारस, जौनपुर, मिर्जापुर, गाजीपुर, बलिया, गोरखपुर, देवरिया, आजमगढ़, बस्ती; भोजपुर (आरा), बक्सर, रोहतास (सासाराम), भभुआ, सारन (छपरा), सिवान, गोपालगंज, पूर्वी चम्पारण, पश्चिमी चम्पारण आदि अर्थात् उत्तर प्रदेश का पूर्वी एवं बिहार का पश्चिमी भाग ।

» बोलने वालों की संख्या-3.5 करोड़ (बोलनेवालों की संख्या की दृष्टि से हिन्दी प्रदेश की बोलियों में सबसे अधिक बोली जानेवाली बोली)

» इस बोली का प्रसार भारत के बाहर सूरीनाम, फिजी, मारिशस, गयाना, त्रिनिडाड में है। इस दृष्टि से भोजपुरी अतर्राष्ट्रीय महत्व की बोली है।

» साहित्य-भोजपुरी में लिखित साहित्य नहीं के बराबर है। मूलतः भोजपुर भाषी साहित्यकार मध्यकाल में ब्रजभाषा व अवधी में तथा आधुनिक काल में हिन्दी में लेखन करते रहे हैं। लेकिन अब स्थिति में परिवर्तन आ रहा है।

» रचनाकार-भिखारी ठाकुर (उपनाम ‘भोजपुरी का शेक्सपियर’ – जगदीश चंद्र माथुर द्वारा प्रदत्त । ‘अनगढ़ हीरा’- राहुल सांकृत्यायन के शब्दों में । ‘भोजपुरी का भारतेन्दु’)

» सिनेमा-सिनेमा जगत में भोजपुरी ही हिन्दी की वह बोली है जिसमें सबसे अधिक फिल्में बनती हैं।

» नमूना काहे दस-दस पनरह-पनरह हजार के भीड़ होला ई नाटक देखें खातिर । मालूम होत्आ कि एही नाटक में पबलिक के रस आवेला ।

मैथिली

» लिपि-तिरहुता व देवनागरी

» केन्द्र-मिथिला या विदेह या तिरहुत

» प्रयोग क्षेत्र-दरभंगा, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, पूर्णिया, मुंगेर आदि ।

» बोलनेवालों की संख्या-1.5 करोड़

» साहित्य-साहित्य की दृष्टि से मैथिली बहुत संपन्न है।

» रचनाकार-विद्यापति (‘पदावली’) : यदि ब्रजभाषा को सूरदास ने, अवधी को तुलसीदास ने चरमोत्कर्ष पर पहुँचाया तो मैथिली को विद्यापति ने, हरिमोहन झा (उपन्यास- कन्यादान, द्विरागमन, कहानी संग्रह-एकादशी, ‘खट्टर काकाक तरंग’), नागार्जुन (मैथिली में ‘यात्री’ नाम से लेखन; उपन्यास-पारो, कविता संग्रह-‘कविक स्वप्न’, ‘पत्रहीन नग्न गाछ’), राजकमल चौधरी (‘स्वरगंधा’) आदि ।

» 8वीं अनुसूची में स्थान – 92वां संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 के द्वारा संविधान की 8वीं अनुसूची में 4 भाषाओं को स्थान दिया गया। मैथिली हिन्दी क्षेत्र की बोलियों में से 8वीं अनुसूची में स्थान पानेवाली एकमात्र बोली है।

» नमूना-

पटना किए एलऽह ?पटना एलिअइ नोकरी करैले ।
भेटलह नोकरी ?नोकरी कत्तौ नइ भेटल।
गाँ में काज नइ भेटइ छलऽह ?भेटै छलै, रूपैयाबला नइ, अऽनबला ।
तखन एलऽ किऐ ?रिनियाँ तङ केलकइ, ते।
कत्ते रीन छऽह ?चाइर बीस ।
सूद कत्ते लइ छऽह?दू पाइ महिनबारी ।

हिन्दी का उसकी बोलियों में रूपान्तरण

हिन्दी : किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उनमें से छोटे ने पिता से कहा कि हे पिता अपनी संपत्ति में से जो मेरा अंश होता है सो मुझे दीजिए। तब उन्होंने उनमें अपनी संपत्ति बाँट दी । कुछ दिन बीते छोटा पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके दूर देश चला गया और वहाँ लुच्चेपन में दिन बिताते हुए उसने अपनी संपत्ति उड़ा दी।

कौरवी या खड़ी बोली : किसी मनुष्य के दो पुत्र थे। उनमें से छुटके ने पिता से कहा कि हे पिता अपनी संपत्ति में से जो मेरा अंश हो सो मुझे दीजिये। तब उसने उनको अपनी संपत्ति बाँट दी। कुछ दिन बीते छुटका पुत्र सब कुछ इकट्ठा करके दूर देश चला गया और वहाँ लुचपन में दिन बिताते हुए उसने अपनी संपत्ति उड़ा दी।

बाँगरू या हरियाणवी : एक माणस कै दो छोरे थे। उन मैं तै छोटे छोरे ने बाप्पू तै कह्या अक बाप्पू हो धन का जौण सा हिस्सा मेरे बाँडे आवै सै मन्नै दे दे । तौ उस ने धन उन्हें बाँड दिया। अर थोड़े दिना पाछे छोट्टा छोरा सब कुछ इकट्ठा कर कै परदेस ने चाल्ल गया और उड़े अपणा धन खोटे चळण मैं खो दिया । 1

ब्रजभाषा : एक जने के दो छोरा हे। उनमें-ते लोहरे-ने कही कि काका मेरे बट-कौ धन मोए दे । तब वा-ने धन उन्हें बटि-करि दियौ । और थोरे दिना पाछे लोहरे बेटा-ने सिगरौ धन इक ठौरौ करिके दूर देसन कूँ चल्यों और वा जगे अपनौ धन उड़ाय दियौ ।

बुंदेली : एक जने के दो कुँवर तै। लौरे ने मालकान तें कई कि एँ जू मौ काँ धन मैं से जो मोरो हिसा होय सो मिलबै आवै। तब उनने अपनो धन बाँट दओ । कछु दिनन भयेते कि लौरे कुँवर बोत धन जोर के परदेश जात रये। माँ लूचपन में दिन खोये और अपनो धन उड़ा डारो।

कन्नौजी : एक जने के दोए लड़िका हते। उनमैं से छोटे ने बाप से कही कि हे पिता मालु को हीसाँ जो हमारी चाहिये सो देओ । तब उन ने मालु उन्हें बाँट दओ। औरू थोरे दिनन पीछे छोटे लड़िका ने सब कुछ इकट्ठा करि के एक दूरि के देस को चलो गओ और हुआँ अपनी मालु बुरे चलन में उड़ाओ ।

अवधी : एक मनई के दुइ बेटवे रहिन । ओह-माँ लहुरा अपने बाप से कहिस दादा धन माँ जवन हमरा बखरा लागत-होय तवन हम -का दै-द अउर वै आपन धन उन-का बाँट दिहिन । अउर ढेर दिन नाहीं बीता कि लहुरा बेटवा सब धन बटोर-के परदेस चल गय अउर उहाँ आपन धन कुचाल माँ लुटाय पड़ाय दिहिस ।

बघेली : कौनेउ मड़ई के दुइ गद्याल रहैं। उन अपने बाप तन कहिन कि अरे मोरे बाप तैं हमरे हौंसन का माल-टाल हमैं बाँटि दै। तब मड़े-ने आपन सब लैया पूँजिया द्वानौँ गद्यालन-का बाँटि दिहिस। कुछ दिन बीते छोटे गद्याले आपन सब माल-टाल जमा किहिस और लै-कै बड़ी दूरी विदेसै निकरि गवा । हुन आपन सब रुपया पैसा गुँडई-माँ उठाय डारिस ।

छत्तीसगढ़ी : कोनो आदमी के दू छोकरा रहिस है। वो माँ के सबसे छोटे-हर अपन बाप से कहिस के जोन मोर हिस्सा होय वो-ला दे-दे । तब वो हर अपन जायदाद-ला बाँट दिहिस । थोरेक दिन के पिछे छोटे छोकरा-हर आपन सब जायदाद-ला जोर-के दुरिह्या देस चले गइस और उहां अपन सब जायदाद-ला फूंक दिहिस ।

भोजपुरी: कउनी अदिमी के तुइठे लरिका रहुए। उन्हि मैं छोटका बाबू-जी से कहलसि की ए बाबू जी धन मैं जे किछ हमार बखरा होइ से हमरा के बाँट दी। तब उहाँ का आपन धन बाँट दिहलीं। बहुत दिन ना बीतल की छोटका आपन कुल धन ले के परदेश में चल गउए और उहाँ लुचई मैं आपन धन उड़ा दिहलसि ।

मगही : कोई आदमी के दू बेटा हलइ । ओकर में से छोटका आपन बाप से कहलइ कि ए बाप धन दौलत के जे हमर बंखरा होव हइ से हमरा दे द । तब ऊ अपन धन-दौलत बाँट देलइ । ढेर दिन नइ बितलइ कि छोटका बेटा सब जमा करलइ अवर दूर देश चल गेलइ अवर उ हुआँ धन-दौलत लुचइ में उड़ा देलइ ।

मैथिली : एक केहु आदमी कें दू लरिका रहै। ओह में से छोटका बाप से कहलक, हो बाबू धन सर्बस मैं से जे हम्मर हिस्सा बखरा होय से हमरी के दे द । त ऊ ओकरा के अपन धन बाँट देलक । बहुत दिन न भैलैक कि छोटका लरिका सब किछिओ जमा करके दूर देस चल गेल और उहां लम्पटै मे दिन गमवैत अप्पन सर्बस गमा देलक ।

कुमाऊँनी : एक मैसाक द्वि च्याला छ्या । उनून में नान् च्याला ले बाबू थें क्यों कि ओ बाबा तुमार धन में जो मेरो बाँणो को होऔं बो मैकै दी दिय। तब वीले आपन धन उनून में बाँणि दियो । मनै दिन भ्या कि नान चेलो सब कुछ बटोलिबेर परदेस न्हैग्यो और वाँ वीले आपनि गठि उड़े दी।

गढ़वाली : एक झण का दूइ नौन्याल थ्या । ऊँ-मा-न-काणसा न अपना बूबा माँ बोले कि हे बूबा बिरसत को बाँठो जो मेरो छ मैं दे। तब वै न बिरसत ऊ सणी बाँटी दिने; और भिंडे दिन नि होया काणसा नौन्याल न सब कठो करी क एक दूर देस चल्ला और अख अपणी रोजी कुकर्म में उडाये।

यह भी पढ़ें: राजभाषा क्या है ?

निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट हिन्दी की उपभाषाएँ एवं बोलिंयाँ जरुर अच्छी लगी होगी। हिन्दी की उपभाषाएँ एवं बोलिंयाँ के बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में उदाहरण देकर समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

FAQs

Q1. ‘ब्रजभाषा’ है-
Ans. पश्चिमी हिन्दी
Q2. ‘मगही’ किस उपभाषा की बोली है ?
Ans. बिहारी
Q3. हिन्दी खड़ी बोली किस अपभ्रंश से विकसित हुई है?
Ans. शौरसेनी
Q4. भाषा के आधार पर भारतीय राज्यों की पुनः संरचना की गई थी-
Ans. 1956 ई० में
Q5. भाषाई आधार पर सर्वप्रथम किस राज्य का गठन हुआ ?
Ans. आंध्र प्रदेश
Q6. ‘बघेली’ बोली का संबंध किस उपभाषा से है ?
Ans. पूर्वी हिन्दी
Q7. किस तिथि को हिन्दी को राजभाषा बनाने का निर्णय लिया गया ?
Ans. 14 सितम्बर, 1949 ई०

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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