गांव ,शहर और व्यापार : अध्याय -8

लोहे के औज़ार और खेती

लोहे का प्रयोग आज एक आम बात है। लोहे की चीजें हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गई हैं। इस उपमहाद्वीप में लोहे का प्रयोग लगभग 3000 साल पहले शुरू हुआ। महापाषाण कब्रों में लोहे के औज़ार और हथियार बड़ी संख्या में मिले हैं। इनके बारे में तुम अध्याय 4 में पढ़ चुके हो। करीब 2500 वर्ष पहले लोहे के औज़ारों के बढ़ते उपयोग का प्रमाण मिलता है। इनमें जंगलों को साफ़ करने के लिए कुल्हाड़ियाँ और जुताई के लिए हलों के फाल शामिल हैं। अध्याय 5 में तुमने पढ़ा था कि लोहे के फाल के इस्तेमाल से कृषि उत्पादन बढ़ गया।

कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए उठाए गए अन्य कदमः सिंचाई

समृद्ध गाँवों के बिना राजाओं तथा उनके राज्यों का बने रहना मुश्किल था। जिस तरह कृषि के विकास में नए औजार तथा रोपाई (अध्याय 5) महत्वपूर्ण कदम थे, उसी तरह सिंचाई भी काफी उपयोगी साबित हुई। इस समय सिंचाई के लिए नहरें, कुएँ, तालाब तथा कृत्रिम जलाशय बनाए गए।

इसमें तुम्हें सिंचाई से आए परिवर्तन दिखाए गए हैं।

1. राजा को सेना, महल और किले बनवाने के लिए धन चाहिए।
2. वे किसानों से कर लेते हैं।
3. कर अदा करने के लिए किसानों को उत्पादन बढ़ाना था।
4. यह सिंचाई से ही संभव था।
5. राजाओं ने सिंचाई की योजना बनाई और धन खर्च किया।
6. लोगों द्वारा परिश्रम किया गया।
7. कृषि उत्पादन बढ़ा।
8. राजस्व भी बढ़ा।
9. किसानों को लाभ मिला, क्योंकि अब उत्पादन की अनिश्चितता घटी।

गाँवों में कौन रहते थे?

इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी तथा उत्तरी हिस्सों के अधिकांश गाँवों में कम से कम तीन तरह के लोग रहते थे। तमिल क्षेत्र में बड़े भूस्वामियों को वेल्लला, साधारण हलवाहों को उणवार और भूमिहीन मज़दूर, दास कडैसियार और अदिमई कहलाते थे।

देश के उत्तरी हिस्से में, गाँव का प्रधान व्यक्ति ग्राम-भोजक कहलाता था। अक्सर एक ही परिवार के लोग इस पद पर कई पीढ़ियों तक बने रहते थे। यानी कि यह पद आनुवंशिक था। ग्राम-भोजक के पद पर आमतौर पर गाँव का सबसे बड़ा भू-स्वामी होता था। साधारणतया इनकी ज़मीन पर इनके दास और मज़दूर काम करते थे। इसके अतिरिक्त प्रभावशाली होने के कारण प्रायः राजा भी कर वसूलने का काम इन्हें ही सौंप देते थे। ये न्यायाधीश का और कभी-कभी पुलिस का काम भी करते थे।

ग्राम-भोजकों के अलावा अन्य स्वतंत्र कृषक भी होते थे, जिन्हें गृहपति कहते थे। इनमें ज्यादातर छोटे किसान ही होते थे। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे स्त्री-पुरुष थे, जिनके पास अपनी ज़मीन नहीं होती थी। इनमें दास कर्मकार आते थे, जिन्हें दूसरों की ज़मीन पर काम करके अपनी जीविका चलानी पड़ती थी।

अधिकांश गाँवों में लोहार, कुम्हार, बढ़ई तथा बुनकर जैसे कुछ शिल्पकार भी होते थे।

प्राचीनतम तमिल रचनाएँ

तमिल की प्राचीनतम रचनाओं को संगम साहित्य कहते हैं। इनकी रचना करीब 2300 साल पहले की गई। इन्हें संगम इसलिए कहा जाता है क्योंकि मदुरै (देखो मानचित्र 7) के कवियों के सम्मेलनों में इनका संकलन किया जाता था। गाँव में रहने वालों के जिन तमिल नामों का उल्लेख यहाँ किया गया है, वे संगम साहित्य में पाए जाते हैं।

सिक्के

पुरातत्त्वविदों को इस युग के हज़ारों सिक्के मिले हैं।  सबसे पुराने आहत सिक्के थे, जो करीब 500 साल चले। इसका चित्र नीचे दिया गया है। चाँदी या ताँबे के सिक्कों पर विभिन्न आकृतियों को आहत कर बनाए जाने के कारण इन्हें आहत सिक्का कहा जाता था।

आहत सिक्के

• आहत सिक्के सामान्यतः आयताकार और कभी- कभी वर्गाकार या गोल होते थे। ये या तो धातु की चादर को काटकर या धातु के चपटे गोलिकाओं से बनाये जाते थे। इन सिक्कों पर कुछ लिखा हुआ नहीं था, बल्कि इन पर कुछ चिन्ह ठप्पे से बनाये जाते थे। इसीलिए ये आहत सिक्के कहलाए। ये सिक्के उपमहाद्वीप के लगभग अधिकांश हिस्सों में पाए जात है और ईसा की आरंभिक सदियों तक ये प्रचलन में रहे।

नगर : अनेक गतिविधियों के केंद्र

अक्सर नगर कई कारणों से महत्वपूर्ण हो जाते थे। उदाहरण के लिए मथुरा (मानचित्र 7) को देखो।

यह 2500 साल से भी ज्यादा समय से एक महत्वपूर्ण नगर रहा है क्योंकि यह यातायात और व्यापार के दो मुख्य रास्तों पर स्थित था। इनमें से एक रास्ता उत्तर-पश्चिम से पूरब की ओर, दूसरा उत्तर से दक्षिण की ओर जाने वाला था। शहर के चारों ओर किलेबंदी थी, इसमें अनेक मंदिर थे। आस-पास के किसान तथा पशुपालक शहर में रहने वालों के लिए भोजन जुटाते थे। मथुरा बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का केंद्र था।

लगभग 2000 साल पहले मथुरा कुषाणों की दूसरी राजधानी बनी। इसके बारे में तुम आगे पढ़ोगे। मथुरा एक धार्मिक केंद्र भी रहा है। यहाँ बौद्ध विहार और जैन मंदिर हैं। यह कृष्ण भक्ति का एक महत्वपूर्ण केंद्र था।

मथुरा में प्रस्तर-खंडों तथा मूर्तियों पर अनेक अभिलेख मिले हैं। आमतौर पर ये संक्षिप्त अभिलेख हैं, जो स्त्रियों तथा पुरुषों द्वारा मठों या मंदिरों को दिए जाने वाले दान का उल्लेख करते हैं। प्रायः शहर के राजा, रानी, अधिकारी, व्यापारी तथा शिल्पकार इस प्रकार के दान करते थे। उदाहरण के लिए मथुरा के अभिलेख में सुनारों, लोहारों, बुनकरों, टोकरी बुनने वालों, माला बनाने वालों और इत्र बनाने वालों के उल्लेख मिलते हैं।

मथुरा के लोगों के व्यवसायों की एक सूची बनाओ। एक ऐसे व्यवसाय का नाम बताओ जो हड़प्पा में नहीं था।

शिल्प तथा शिल्पकार

पुरास्थलों से शिल्पों के नमूने मिले हैं। इनमें मिट्टी के बहुत ही पतले और सुंदर बर्तन मिले हैं, जिन्हें उत्तरी काले चमकीले पात्र कहा जाता है क्योंकि ये ज्यादातर उपमहाद्वीप के उत्तरी भाग में मिले हैं।

ध्यान रहे कि अन्य दूसरे शिल्पों के अवशेष नहीं बचे होंगे। जैसे कि विभिन्न ग्रंथों से हमें पता चलता है कि कपड़ों का उत्पादन बहुत महत्वपूर्ण था। उत्तर में वाराणसी और दक्षिण में मदुरै इसके प्रसिद्ध केंद्र थे। यहाँ स्त्री-पुरुष दोनों काम करते थे।

अनेक शिल्पकार तथा व्यापारी अपने-अपने संघ बनाने लगे थे, जिन्हें श्रेणी कहते थे। शिल्पकारों की श्रेणियों का काम प्रशिक्षण देना, कच्चा माल उपलब्ध कराना तथा तैयार माल का वितरण करना था। जबकि व्यापारियों की श्रेणियाँ व्यापार का संचालन करती थीं। श्रेणियाँ बैंकों के रूप में काम करती थीं, जहाँ लोग पैसे जमा रखते थे। इस धन का निवेश लाभ के लिए किया जाता था। उससे मिले लाभ का कुछ हिस्सा जमा करने वाले को लौटा दिया जाता था या फिर मठ आदि धार्मिक संस्थानों को दिया जाता था।

उत्तरी काले चमके पात्र (NBPW)

ये एक कठोर, चाक निर्मित, धातु की तरह दिखने वाले तथा चमकदार काली सतह वाले पात्र हैं। इसे बनाने के लिए कुम्हार मिट्टी के बर्तनों को भट्टों पर उच्च तापमान पर रखते थे जिसके परिणामस्वरूप इन बर्तनों की बाहरी सतह काली हो जाती थी। इन पर एक पतली काली लेप भी लगायी जाती थी जो इस बर्तन को शीश जैसी चमक प्रदान करता था।

सूत कातने और बुनने के नियम

ये नियम अर्थशास्त्र के हैं। अध्याय 7 में अर्थशास्त्र का उल्लेख किया गया है। इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार एक विशेष पदाधिकारी की देखरेख में कारखानों में सूत की कताई और बुनाई की जाती थी।

ऊन, पेड़ों की छाल, कपास, पटुआ तथा सन को तैयार करने के काम में विधवाओं, सक्षम-अक्षम महिलाओं, भिक्खुणियों, वृद्धा वेश्याओं, राजा की अवकाशप्राप्त दासियों, सेविकाओं और अवकाशप्राप्त देवदासियों को लगाया जा सकता है।

इन्हें इनके काम के और गुणवत्ता के अनुसार पारिश्रमिक देना चाहिए। जिन महिलाओं को बाहर निकलने की अनुमति नहीं है, वे अपनी दासियों को भेजकर कच्चे माल को मंगवा सकती हैं और फिर तैयार माल उन्हें भिजवा सकती है।

वे औरतें, जो कारखाने तक जा सकती हैं, उन्हें अपना माल कारखाने तक तड़के ले जाना पड़ता था, जहाँ उन्हें पारिश्रमिक मिलता था। इस समय माल को अच्छी तरह जाँचने के लिए रोशनी रहती है। अगर निरीक्षक उस औरत की तरफ़ देखता है या इधर-उधर की बातें करता है, तो उसे सजा मिलनी चाहिए।

अगर औरत ने अपना काम पूरा नहीं किया, तो उसे जुर्माना देना होगा, इसके लिए उसका अंगूठा भी काटा जा सकता है।

उन महिलाओं की सूची बनाओ जिन्हें निरीक्षक नियुक्त कर सकता था।

क्या काम करने के दौरान महिलाओं को मुश्किलें झेलनी पड़ती थीं?

सूक्ष्म निरीक्षण : अरिकामेडु

मानचित्र 7 में अरिकामेडु (पुदुच्चेरी में) ढूँढ़ो। लगभग 2200 से 1900 साल पहले अरिकामेडु एक पत्तन था, यहाँ दूर-दूर से आए जहाज़ों से सामान उतारे जाते थे। यहाँ ईंटों से बना एक ढाँचा मिला है जो संभवतः गोदाम रहा हो। यहाँ भूमध्य सागरीय क्षेत्र के एंफोरा जैसे पात्र मिले हैं। इनमें शराब या तेल जैसे तरल पदार्थ रखे जा सकते थे। इनमें दोनों तरफ़ से पकड़ने के लिए हत्थे लगे हैं। साथ ही यहाँ ‘एरेटाइन’ जैसे मुहर लगे लाल-चमकदार बर्तन भी मिले हैं। इन्हें इटली के एक शहर के नाम पर ‘एरेटाइन’ पात्र के नाम से जाना जाता है। इसे मुहर लगे साँचे पर गीली चिकनी मिट्टी को दबा कर बनाया जाता था।

कुछ ऐसे बर्तन भी मिले हैं, जिनका डिज़ाइन तो रोम का था, किन्तु वे यहीं बनाए जाते थे। यहाँ रोमन लैंप, शीशे के बर्तन तथा रत्न भी मिले हैं।

साथ ही छोटे-छोटे कुण्ड मिले हैं, जो संभवतः कपड़े की रंगाई के पात्र रहे होंगे। यहाँ पर शीशे और अर्ध-बहुमूल्य पत्थरों से मनके बनाने के पर्याप्त साक्ष्य मिले हैं।

रोम के साथ संबंध दर्शाने वाले साक्ष्य की सूची बनाओ।

अभिलेखित मिट्टी के बर्तन । कई बर्तनों पर ब्राह्मी लिपि में अभिलेख मिले हैं। प्रारंभ में तमिल भाषा के लिए इसी लिपि का प्रयोग किया जाता था। इसीलिए इन्हें तमिल ब्राह्मी अभिलेख भी कहा जाता है।

एक यूनानी नाविक द्वारा दिया गया विवरण

बेरिगाज़ा (भरूच का यूनानी नाम) की कहानी

बेरिगाज़ा की संकरी खाड़ी में समुद्र से आने वालों के लिए नाव चला पाना बहुत मुश्किल होता है।

राजा के द्वारा नियुक्त कुशल और अनुभवी स्थानीय मछुआरे ही यहाँ जहाज ला सकते थे।

बेरिगाज़ा में शराब, ताँबा, टिन, सीसा, मूँगा, पुखराज, कपड़े, सोने और चाँदी के सिक्कों का आयात होता था। हिमालय की जड़ी-बूटियाँ, हाथी-दाँत, गोमेद, कार्नीलियन, सूती कपड़ा, रेशम तथा इत्र यहाँ से निर्यात किए जाते थे।

राजा के लिए व्यापारी विशेष उपहार लाते थे। इनमें चाँदी के बर्तन, गायक-किशोर, तथा उत्कृष्ट महीन कपड़े शामिल थे। सुंदर औरतें, अच्छी शराब

बेरिगाजा से आयात और निर्यात होने वाली चीज़ों की सूची बनाओ। दो ऐसी चीजें बताओ, जिनका उपयोग हड़प्पा युग में नहीं होता था।

व्यापार और व्यापारी

तुमने उत्तरी काले पॉलिश वाले बर्तनों के बारे में पढ़ा है। ये खूबसूरत बर्तन, खास तौर से इनकी कटोरियाँ तथा थालियाँ, इस उपमहाद्वीप के अनेक पुरास्थलों से मिले हैं। सवाल उठता है कि इन जगहों पर ये बर्तन कैसे पहुँचे होंगे? ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि जहाँ ये बनते थे, वहाँ से व्यापारी इन्हें ले जाकर अलग-अलग जगहों पर बेचते थे।

दक्षिण भारत सोना, मसाले, खास तौर पर काली मिर्च तथा कीमती पत्थरों के लिए प्रसिद्ध था। काली मिर्च की रोमन साम्राज्य में इतनी माँग थी कि इसे ‘काले सोने’ के नाम से बुलाते थे। व्यापारी इन सामानों को समुद्री जहाज़ों और सड़कों के रास्ते रोम पहुँचाते थे। दक्षिण भारत में ऐसे अनेक रोमन सोने के सिक्के मिले हैं। इससे यह अंदाजा लगाया जाता है कि उन दिनों रोम के साथ बहुत अच्छा व्यापार चल रहा था।

क्या तुम बता सकती हो कि ये सिक्के भारत कैसे और क्यों पहुँचे होंगे?

व्यापारियों ने कई समुद्री रास्ते खोज निकाले। इनमें से कुछ समुद्र के किनारे चलते थे कुछ अरब सागर और बंगाल की खाड़ी पार करते थे। नाविक मानसूनी हवा का फ़ायदा उठाकर अपनी यात्रा जल्दी पूरी कर लेते थे। वे अफ्रीका या अरब के पूर्वी तट से इस उपमहाद्वीप के पश्चिमी तट पर पहुँचना चाहते थे तो दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के साथ चलना पसंद करते थे। इन लंबी यात्रओं के लिए मज़बूत जहाज़ों का निर्माण किया जाता था।

समुद्र तटों से लगे राज्य

इस उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में बड़ा तटीय प्रदेश है। इनमें बहुत-से पहाड़, पठार और नदी के मैदान हैं। नदियों के मैदानी इलाकों में कावेरी का मैदान सबसे उपजाऊ है। मैदानी इलाकों तथा तटीय इलाकों के सरदारों और राजाओं के पास धीरे-धीरे काफी सम्पत्ति और शक्ति हो गई। संगम कविताओं में मुवेन्दार की चर्चा मिलती है। यह एक तमिल शब्द है, जिसका अर्थ तीन मुखिया है। इसका प्रयोग तीन शासक परिवारों के मुखियाओं के लिए किया गया है। ये थे- चोल, चेर तथा पांड्य, (मानचित्र 7) जो करीब 2300 साल पहले दक्षिण भारत में काफी शक्तिशाली माने जाते थे। इन तीनों मुखियाओं के अपने दो-दो सत्ता केंद्र थे। इनमें से एक तटीय हिस्से में और दूसरा अंदरूनी हिस्से में था। इस तरह छह केंद्रों में से दो बहुत महत्वपूर्ण थे। एक चोलों का पत्तन पुहार या कावेरीपट्टिनम, दूसरा पांड्यों की राजधानी मदुरै।

ये मुखिया लोगों से नियमित कर के बजाय उपहारों की माँग करते थे। कभी-कभी ये सैनिक अभियानों पर भी निकल पड़ते थे और आस-पास के इलाकों से शुल्क वसूल कर लाते थे। इनमें से कुछ धन वे अपने पास रख लेते थे, बाकी अपने समर्थकों, नाते-रिश्तेदारों, सिपाहियों तथा कवियों के बीच बाँट देते थे। अनेक संगम कवियों ने उन मुखियाओं की प्रशंसा में कविताएँ लिखी हैं जो उन्हें कीमती जवाहरात, सोने, घोड़े, हाथी, रथ या सुंदर कपड़े दिया करते थे।

इसके लगभग 200 वर्षों के बाद पश्चिम भारत (मानचित्र 7,) में सातवाहन नामक राजवंश का प्रभाव बढ़ गया। सातवाहनों का सबसे प्रमुख राजा गौतमी पुत्र श्री सातकर्णी था। उसके बारे में हमें उसकी माँ, गौतमी बलश्री द्वारा दान किए एक अभिलेख से पता चलता है। वह और अन्य सभी सातवाहन शासक दक्षिणापथ के स्वामी कहे जाते थे। दक्षिणापथ का शाब्दिक अर्थ दक्षिण की ओर जाने वाला रास्ता होता है। पूरे दक्षिणी क्षेत्र के लिए भी यही नाम प्रचलित था। श्री सातकर्णी ने पूर्वी, पश्चिमी तथा दक्षिणी तटों पर अपनी सेनाएँ भेजीं।

क्या तुम बता सकती हो कि श्री सातकर्णी तटों पर नियंत्रण क्यों करना चाहता था?

रेशम मार्ग और कुषाण

कुछ शासक इसके बड़े-बड़े हिस्सों पर अपना नियंत्रण करना चाहते थे क्योंकि इस रास्ते पर यात्रा कर रहे व्यापारियों से उन्हें कर, शुल्क तथा तोहफों के ज़रिए लाभ मिलता था। इसके बदले, ये शासक इन व्यापारियों को अपने राज्य से गुजरते वक्त लुटेरों के आक्रमणों से सुरक्षा देते थे।

सिल्क रूट पर नियंत्रण रखने वाले शासकों में सबसे प्रसिद्ध कुषाण थे। करीब 2000 साल पहले मध्य-एशिया तथा पश्चिमोत्तर भारत पर इनका शासन था। पेशावर और मथुरा इनके दो मुख्य शक्तिशाली केंद्र थे। तक्षशिला भी इनके ही राज्य का हिस्सा था। इनके शासनकाल में ही सिल्क रूट की एक शाखा मध्य एशिया से होकर सिंधु नदी के मुहाने के पत्तनों तक जाती थी। फिर यहाँ से जहाज़ों द्वारा रेशम, पश्चिम की ओर रोमन साम्राज्य तक पहुँचता था।

यह भी पढ़ें: राज्य से साम्राज्य : अध्याय -7

आओ याद करें

1. खाली जगहों को भरो

(क) तमिल में बड़े भूस्वामी को बेल्लला कहते थे।

(ख) ग्राम-भोजकों की जमीन पर प्रायःदास और मजदूरों द्वारा खेती की जाती थी। 

(ग) तमिल में हलवाहे को उणवार कहते थे।

(घ) अधिकांश गृहपति स्वतंत्रत व छोटे भूस्वामी होते थे।

2. ग्राम-भोजकों के काम बताओ। वे शक्तिशाली क्यों थे?
Ans.
‘ग्राम-भोजक’ के पद पर आमतौर पर गाँव का सबसे बड़ा भू-स्वामी होता था। साधारणतया इनकी जमीन पर इनके दास और मजदूर काम करते थे। इसके अतिरिक्त प्रभावशाली होने के कारण प्रायः राजा भी कर वसूलने का काम इन्हें ही सौंप देते थे। ये न्यायाधीश का और कभी-कभी पुलिस का काम भी करते थे।

3. गाँवों तथा शहरों दोनों में रहने वाले शिल्पकारों की सूची बनाओ।
Ans.
बढ़ई, बुनकर, कुम्हार, सुनार, मूर्तिकार जैसे शिल्पकार गाँव व शहर दोनों जगह रहते थे।

4. सही जवाब ढूँढ़ो

(क) आहत सिक्के
• चाँदी
• सोना
• टिन
• हाथी दाँत के बने होते थे।
Ans. चाँदी

(ख) मथुरा महत्वपूर्ण
• गाँव
• पत्तन
• धार्मिक केंद्र
• जंगल क्षेत्र था।
Ans. धार्मिक केंद्र

(ग) श्रेणी

• शासकों
• शिल्पकारों
• कृषकों
• पशुपालकों का संघ होता था
Ans. शिल्पकारों

5. अपने शहर की जल निकास व्यवस्था की तुलना तुम उन शहरों की व्यवस्था से करो, जिनके बारे में तुमने पढ़ा है। इनमें तुम्हें क्या-क्या समानताएँ और अंतर दिखाई दिए?
Ans.
हमारे शहर में जल निकास व्यवस्था को योजनाबद्ध तरीके से बनाया गया है। इसी तरह की जल निकास व्यवस्था को हमारे पढ़े गए शहरों में अपनाया गया था। ये दोनों व्यवस्थाएँ अनेक प्रकार से समान थी, लेकिन इन दोनों व्यवस्थाओं में केवल। एक ही अंतर था कि हमारी व्यवस्था आधुनिक है, जबकि वह व्यवस्था प्राचीन। थी। प्राचीन जल निकास व्यवस्था में कीचड़, ईंट और फैंस का प्रयोग किया जाता था जो लंबे समय तक काम नहीं कर सकती थी, लेकिन आज की व्यवस्था मजबूत चीजों से तैयार की गयी है तथा लंबे समय तक उपयोग में लाई जा सकती है।

आओ करके देखें

6. अगर तुमने किसी शिल्पकार को काम करते हुए देखा है तो कुछ वाक्यों में उसका वर्णन करो। (संकेत उन्हें कच्चा माल कहाँ से मिलता है, किस तरह के औजारों का प्रयोग करते हैं, तैयार माल का क्या होता है, आदि)
Ans.
मैंने बढ़ई शिल्पकार को काम करते देखा है। वह लकड़ी के रूप में कच्चा टिंबर मार्किट से खरीदता है। टिंबर मार्किट में लकड़ी वनों से काटकर लायी जाती है। वह कई प्रकार के औजार, जैसे- लकड़ी घिसने वाला रंदा, लकड़ी काटने वाली आरी, छेद करने वाला, हथौड़ी का प्रयोग करता है। तैयार माल के रूप में मेज, कुर्सी, पलंग, दीवान इत्यादि होते हैं।

7. अपने शहर या गाँव के लोगों के कार्यों की एक सूची बनाओ। मथुरा में किए जाने वाले कार्यों से ये कितने समान और कितने भिन्न हैं?
Ans.
मैं शहरों के परिवारों में स्त्री और पुरुष दोनों को काम करते हुए देखता हूँ। स्त्रियाँ और पुरुष दोनों दफ्तरों और अन्य स्थानों पर काम करते हैं। मथुरा यातायात और व्यापार के दो मुख्य रास्तों पर स्थित था तथा वह एक धार्मिक केंद्र भी था। मथुरा बेहतरीन मूर्तियाँ बनाने का भी केंद्र था।

FAQs

Q1: लोहे का उपयोग इस महाद्वीप में कब शुरू हुआ?
Ans.
  लगभग 3000 साल पहले

Q2: लौह युग में कृषि के क्षेत्र में सबसे महत्वपूर्ण सुधार क्या हुआ?
Ans. 
लौह युग में कृषि के क्षेत्र में नए औज़ार और रोपाई की शुरूआत हुई। साथ ही सिंचाई के लिए नहरे, कुएँ, तालाब और कृत्रिम जलाशय बनाए गए। जिससे कृषि उत्पादन बढ़ा।

Q3: बेरिगाजा किसका यूनानी नाम है?
Ans. 
भरूच

Q4: यूनानी नाविकों के अनुसार भरूच के बंदरगाहों से किन किन सामानों का आयात और निर्यात होता था? सूची बनाओ
Ans.
 भरूच के बंदरगाहों पर शराब, ताम्बा, टिन, सीसा, मूंगा, पोखराज, कपड़े, सोने और चाँदी के सिक्के आयातित किए जाते थे। हिमालय की जड़ी-बूटियाँ, हाथी-दाँत, गोमेद, कार्नीलियन, सूती कपड़ा, रेशम और इत्र निर्यातित किए जाते थे।

Q 5: आहत सिक्का किसे कहते हैं?
Ans. 
सिक्के धातुओं से बनाए जाते थे। ज्यादातर सिक्के सोने और चाँदी की चादरों पर ठप्पों से विभिन्न आकृतियो को आहत कर बनाए जाते थे। इसलिए इसे आहत सिक्का कहा जाता है।

Q6: संगम साहित्य के अनुसार उस समय विनिमय के अन्य साधन क्या थे?
Ans.
नमक

Q7: उन नगरों के बारे में बताओ जहाँ उस समय के धार्मिक केंद्र थे।
Ans.
मथुरा उस समय का एक महत्वपूर्ण नगर था। नगर के चारों ओर किलेबंदी कि गई थी। इसमें अनेक मंदिर थे। यह कृष्ण भक्ति का महत्वपूर्ण केंद्र था। यहाँ बौद्ध विहार और जैन मंदिर है। मथुरा में बेहतरीन मूर्तियाँ बनाई जाती थी।

Q8: श्रेणी किसे कहते थे? इसका क्या काम था?
Ans.
शिल्पकारों और व्यापारियों के संघ को श्रेणी कहते थे। शिल्पकारों की श्रेणियों का काम प्रशिक्षण देना, कच्चा माल उपलब्ध कराना और तैयार माल का वितरण करना था। व्यपारियों की श्रेणियों का काम बैंकों के रूप में काम करना तथा व्यपार को सुचारू रूप से चलाना था।

Q9: रोम का रंगमहल (एम्फिथियेटर) किसने और कब बनवाया?
Ans.
रोम का रंगमहल आगस्टस ने 2000 साल पहले बनवाया।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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