जैन धर्म | Jain Dharm |

जैन धर्म

जैन धर्म के पहले तीर्थंकर एवं संस्थापक ऋषभदेव थे।

जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर अजितनाथ थे

22वें तीर्थंकर नेमिनाथ का प्रतीक चिह्न शंख था।

• 23 वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का प्रतीक सर्प फन था, 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी का प्रतीक चिह्न शेर था।

तीर्थंकर प्रतीक चिह्न
नेमिनाथ (22)शंख
पार्श्वनाथ (23)सर्प फन
महावीर (24)शेर

अंतिम तीर्थंकर महावीर स्वामी के अनुयायी निर्ग्रन्थ कहलाते थे।

महावीर स्वामी का जन्म 540 ई. पू. में वैशाली के कुण्डग्राम में हुआ था, यह बिहार राज्य में है।

उनकी मात्रा त्रिशला वैशाली के लिच्छवी गणराज्य के प्रमुख चेटक की बहन थी। पिता सिद्धार्थ ज्ञातृक क्षत्रियों के संघ के प्रधान थे। उनके बड़े भाई नंदिवर्धन थे।

महावीर स्वामी की मृत्यु पावापुरी में 468 ई. पू. में हुई थी।

पार्श्वनाथ के चार व्रतों अहिंसा (हिंसा नहीं करना), अमृषा या झूठ न बोलना, अचौर्य या चोरी न करना, अपरिग्रह या संपत्ति अर्जित नहीं करना में महावीर ने पाँचवाँ व्रत ब्रह्मचर्य या इंद्रिय निग्रह करना जोड़ा।

महावीर स्वामी से संबंधित तथ्य

सिद्धार्थमहावीर स्वामी के पिता का नाम
त्रिशलामहावीर स्वामी की माता का नाम
यशोदामहावीर स्वामी की पत्नी
प्रियदर्शनामहावीर स्वामी की पुत्री
जामालिमहावीर स्वामी के दामाद (प्रथम शिष्य)

• जैन भिक्षुओं को नग्न रहने की शिक्षा महावीर स्वामी ने दी थी।

जैन धर्म में पूर्ण ज्ञान को कैवल्य ज्ञान कहा गया है।

जैन धर्म का सबसे महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त अहिंसा था।

प्रथम जैन परिषद् (300 ई. पू. ) पाटलिपुत्र में आयोजित हुई थी। द्वितीय जैन परिषद् का आयोजन महर्षि देवर्धि क्षमा श्रमण की अध्यक्षता में, वल्लभी (गुजरात) में (512 ई.) हुआ था।

• जैन साहित्य को अंग कहते हैं।

• सम्यक् श्रद्धा, सम्यक् ज्ञान एवं सम्यक् आचरण जैन धर्म के त्रिरत्न है।

त्रिरत्न : (i) सम्यक् श्रद्धा (ii) सम्यक् ज्ञान (iii) सम्यक् आचरण

• जैन धर्म के मौलिक ग्रन्थ पूर्व कहलाते हैं।

• जैन धर्म के अनुसार निर्वाण प्राप्ति के लिये त्रिरत्न का अनुशीलन आवश्यक है।

• जैन धर्म का सबसे बड़ा केन्द्र चम्पानगरी था।

जैन धर्म के 24 तीर्थकर

1. ऋषभदेव2. अजितनाथ3. सम्भवनाथ4. अभिनंदन स्वामी
5. सुमति नाथ 6. पद्मप्रभु7. सुपार्श्वनाथ8. चन्द्रप्रभु
9. सुविधिनाथ10. शीतलनाथ11. श्रेयांसनाथ12. वासुपूज्यनाथ
13. विमलनाथ 14. अनन्तनाथ15. धर्मनाथ16. शान्तिनाथ
17. कुन्थुनाथ 18. अरनाथ19. मल्लिनाथ 20. मुनिसुब्रत
21. नेमिनाथ22. अरिष्टनेमि 23. पार्श्वनाथ 24. महावीर स्वामी

• शुरू में जैनियों द्वारा प्राकृत भाषा को अपनाया गया।

• महावीर स्वामी ने अपना प्रथम उपदेश राजगीर में (पालि भाषा में) दिया था।

• कर्नाटक में जैन धर्म को चन्द्रगुप्त मौर्य ले गया।

जैन सिद्धों की पांच श्रेणियाँ

1. तीर्थंकरजिसने मोक्ष प्राप्त किया हो।
2. अर्हतजो निर्वाण प्राप्ति की ओर अग्रसर हो।
3. आचार्यजो जैन भिक्षु समूह का प्रमुख हो।
4. उपाध्यायजैन शिक्षक।
5. साधुसभी जैन भिक्षु।

श्रवणबेलगोला में गोमतेश्वर की मूर्ति चामुण्डराय ने बनवाई।

जैन तीर्थंकरों के पाँच मन्दिरों का निर्माण चंदेल शासकों ने, खजुराहो में करवाया।

• कलिंग राजा खारवेल तथा अजातशत्रु का पुत्र उदायिन जैन धर्म के अनुयायी थे।

• महावीर स्वामी ने प्राकृत भाषा को प्रचार का माध्यम बनाया।

• मथुरा मूर्तिकला के विकास में जैन मत का सर्वाधिक योगदान रहा।

• जैन धर्म दो सम्प्रदायों, श्वेताम्बर एवं दिगम्बर में बँट गया।

मोक्ष प्राप्ति के लिए तीन साधन (त्रिरत्न)

(1) सम्यक ज्ञानसच्चा और पूर्ण ज्ञान
(2) सम्यक दर्शनतीर्थंकर में पूर्ण विश्वास
(3) सम्यक चरित्र जैन धर्म के पांच सिद्धांतों का आचरण

• महावीर स्वामी को जम्भृक ग्राम के निकट, ऋजुपालिका नदी के तट पर ज्ञान प्राप्त हुआ था।

• जैन धर्म का प्रसिद्ध सिद्धान्त स्याद्वाद (सप्तभंगी ज्ञान) है।

जैनियों द्वारा शरीर को भूखा रखकर प्राण त्यागने को ‘सल्लेखना विधि’ कहा जाता है।

जैन मठों को बसदि कहा जाता था।

महावीर की मृत्यु के बाद सुधर्मन, जो गंधर्व था, जैन धर्मगुरु बना।

जैन धर्म के पंचमहाव्रत

1. अहिंसा2. सत्य3. ब्रह्मचर्य4. अस्तेय5. अपरिग्रह

जैन साहित्य ( आगम)

1. बारह अंक2. बारह उपांग3. दस प्रकीर्ण4. छह छेद सूत्र5. चार मूल सूत्र6. अनुयोग सूत्र 7. नन्दि सत्र

जैन धर्म में ईश्वर एवं आत्मा की मान्यता नहीं है।

जैन तीर्थंकर ऋषभदेव तथा अरिष्टनेमि का उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है।

• विष्णु पुराण तथा भागवत पुराण में ऋषभदेव का उल्लेख नारायण के अवतार के रूप में मिलता है।

• भद्रबाहु एवं उनके अनुयायियों को दिगम्बर कहा गया। ये दक्षिणी जैनी कहे जाते थे।

• स्थलबाहु एवं उनके अनुयायियों को श्वेताम्बर कहा गया।

जैन अनुश्रुतियों के अनुसार पार्श्वनाथ को 100 वर्ष की आयु में ‘सम्मेद पर्वत’ पर निर्वाण प्राप्त हुआ।

बौद्ध साहित्य में महावीर को निगण्ठ-नाथपुत्त कहा गया है।

• जैन धर्मानुसार ज्ञान के तीन स्रोत हैं-(1) प्रत्यक्ष (2) अनुमान (3) तीर्थंकरों के वचन।

• महावीर के जीवन काल में ही 10 गणधर की मृत्यु हो गयी, महावीर के बाद केवल सुधर्मण जीवित था।

जैन धर्म पुनर्जन्म एवं कर्मवाद में विश्वास करता है। उनके अनुसार कर्मफल ही जन्म तथा मृत्यु का कारण है।

जैन परम्परा के अनुसार अरिस्टनेमि कृष्ण के समकालीन थे।

• चम्पा के शासक दधिवाहन की पुत्री चन्दना महावीर की पहली महिला भिक्षुणी थी।

प्रथम जैन संगीति

समय 300 ई० पू०
स्थल पाटलिपुत्र
अध्यक्षस्थूलभद्र
शासकचन्द्रगुप्त मौर्य
कार्य12 अंगों का प्रणयन,
जैन धर्म का दो भागों में विभाजन-
श्वेताम्बर और दिगम्बर।

द्वितीय जैन संगीति

समय512 ई० पू०
स्थलवल्लभी
अध्यक्षदेवर्धिक्षमाश्रमण
कार्य धर्म ग्रंथों को अन्तिम रूप से
संकलित कर लिपिबद्ध किया गया।

श्वेताम्बर एवं दिगम्बर में अंतर

श्वेताम्बरदिगम्बर
① श्वेत वस्त्र पहनते थे।① नग्न अवस्था में रहते थे।
② इसके अध्यक्ष स्थूलभद्र थे।② इसके अध्यक्ष भद्रबाहु थे।
③ ये मगध में रहने वाले थे।③ ये श्रवणबेलगोला के रहने वाले थे।
④ महावीर स्वामी को विवाहित मानते थे।④ महावीर स्वामी को अविवाहित मानते थे।
⑤ इनको तेरापंथी कहते थे।⑤ इनको समैया भी कहा गया।
⑥ ये आगम ग्रंथ को नहीं मानते थे।⑥ ये आगम ग्रन्थ को मानते थे।

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निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट जैन धर्म जरुर अच्छी लगी होगी। जैन धर्मके बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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