ग्रामीण क्षेत्र में आजीविका : अध्याय -7

कलपट्टु गाँव

तमिलनाडु में समुद्र तट के पास एक गाँव है कलपट्टु। यहाँ लोग कई तरह के काम करते हैं। दूसरे गाँवों की तरह यहाँ भी खेती के अलावा कई काम होते हैं, जैसे – टोकरी, बर्तन, घड़े, ईंट, बैलगाड़ी इत्यादि बनाना।

कलपट्टु में कुछ लोग नर्स, शिक्षक, धोबी, बुनकर, नाई, साइकिल ठीक करने वाले और लोहार के रूप में अपनी सेवाएँ देते हैं। यहाँ कुछ दुकानदार एवं व्यापारी भी हैं। जो मुख्य गली है वह बाज़ार की तरह दिखती है। उसमें आपको तरह-तरह की कई छोटी दुकानें दिखेंगी, जैसे- चाय, सब्ज़ी, कपड़े की दुकान तथा दो दुकानें बीज और खाद की। चार दुकानें चाय की हैं जहाँ ‘टिफ़िन’ भी मिलता है। यहाँ टिफ़िन का मतलब है खाने-पीने की हल्की-फुल्की चीजें, जैसे – सुबह इडली, डोसा व उपमा मिलता है और शाम के नाश्ते में वड़ा, बौंडा व मैसूरपाक मिलता है। चाय की दुकानों के पास एक कोने में एक लोहार का परिवार रहता है। उसके घर में ही लोहे की चीजें बनाने का काम होता है। बगल में साइकिल की मरम्मत की एक दुकान है। वहाँ साइकिल किराए पर भी मिलती है। गाँव में दो परिवार कपड़े धोकर अपनी आजीविका चलाते हैं। कुछ लोग पास के शहर में जाकर मकान बनाने और लॉरी चलाने का काम करते हैं।

गाँव छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा हुआ है। सिंचित जमीन पर मुख्यतः धान की खेती होती है। ज़्यादातर परिवार खेती के द्वारा अपनी आजीविका कमाते हैं। यहाँ आम और नारियल के काफ़ी बाग हैं। कपास, गन्ना और केला भी उगाया जाता है। आइए, कुछ लोगों से मिलें जो कलपट्टु के खेतों में काम करते हैं और देखें कि हम उनकी आजीविका के बारे में क्या सीख सकते हैं।

तुलसी

हम सब यहाँ रामलिंगम की ज़मीन पर काम करते हैं। उसके परिवार के पास कलपट्टु में बीस एकड़ धान के खेत हैं। शादी से पहले भी मैं मायके में धान के खेतों में ही मज़दूरी करती थी। यहाँ मैं सुबह 8.30 से शाम 4.30 तक काम करती हूँ। रामलिंगम की पत्नी करुथम्मा काम की निगरानी करती है।

साल में कुछ ही मौके ऐसे होते हैं जब मुझे नियमित रूप से मज़दूरी मिलती है। यह उन मौकों में से एक है। मैं धान रोप रही हूँ। जब धान की फ़सल थोड़ी बढ़ जाएगी तो रामलिंगम हमें निराई के लिए और बाद में कटाई के लिए बुलाएगा।

जब मैं कम उम्र की थी तो निराई-कटाई का काम आसानी से कर लेती थी। लेकिन अब जैसे-जैसे उम्र हो रही है मुझे झुककर काम करने और देर तक पानी में पैर डुबोए रहने से तकलीफ़ होती है। रामलिंगम एक दिन का 40 रुपया मज़दूरी देता है। मेरे गाँव में मज़दूरी के ‘रेट’ से यह थोड़ा कम है। फिर भी मैं मज़दूरी के लिए यहीं आती हूँ। रामलिंगम पर मुझे भरोसा है कि काम होने पर वह मुझे ही बुलाएगा। बाकी लोगों की तरह वह आस-पड़ोस के गाँवों में सस्ते मज़दूर ढूँढ़ने नहीं जाता।

मेरा पति रमन भी एक मज़दूर है। हमारे पास कोई ज़मीन नहीं है। साल के इन महीनों में वह खेतों में कीड़ों की दवाई छिड़कता है। जब खेतों में कोई काम नहीं मिलता तो उसे पास की खान से पत्थर या नदी से बालू ढोने का काम मिल जाता है। ये पत्थर और बालू पास के शहरों में मकान बनाने के लिए ट्रक से ले जाए जाते हैं। खेत में काम करने के अलावा मैं घर का सारा काम करती हूँ। मैं घर में सबके लिए खाना बनाती हूँ, कपड़े धोती हूँ और सफ़ाई करती हूँ। दूसरी औरतों के साथ जाकर जंगल से लकड़ी भी लाती हूँ। गाँव से करीब एक किलोमीटर दूर ‘बोरवेल’ है जहाँ से पानी लेकर आती हूँ। मेरा पति घर का सामान जैसे साग-सब्ज़ी खरीदने में मेरी मदद करता है।

हमारी दो बेटियाँ हमारे जीवन की खुशी हैं। दोनों ही स्कूल जाती हैं। पिछले साल एक बेटी बीमार पड़ गई थी तो उसे शहर के अस्पताल ले जाना पड़ा। हमने उसके इलाज के लिए रामलिंगम से उधार लिया था और उस उधार को चुकाने के लिए हमें अपनी गाय बेचनी पड़ी।

जैसा कि आपने तुलसी की कहानी में पढ़ा ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवारों का बहुत सारा समय पानी और जलावन की लकड़ी लाने एवं जानवर चराने में बीतता है। इन कामों से कोई पैसा नहीं मिलता है, लेकिन गरीब परिवारों में ये काम बहुत महत्त्वपूर्ण हो जाते हैं। वे मज़दूरी से जो थोड़ा-सा पैसा कमाते हैं उससे गुज़ारा नहीं होता। घर चलाने और जिंदगी बसर करने के लिए इन कामों को करना पड़ता है।

हमारे देश के ग्रामीण परिवारों में से करीब 40 प्रतिशत खेतिहर मज़दूर हैं। कुछ के पास ज़मीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं, बाकी तुलसी की तरह भूमिहीन हैं। कई बार जब पूरे साल उन्हें काम नहीं मिल पाता तो मजबूरन काम की खोज में उन्हें दूर-दराज़ के इलाकों में जाना पड़ता है। इस तरह का पलायन कुछ विशेष मौसमों में ही होता है।

शेखर

हमें यह धान अपने घर लेकर जाना है। मेरे परिवार ने अभी-अभी फ़सलों की कटाई पूरी की है। हमारे पास बस दो एकड़ ज़मीन है। हम अपने खेत का सारा काम खुद ही कर लेते हैं। मैं कई बार कटाई के समय दूसरे छोटे किसानों की मदद ले लेता हूँ और बदले में उनके खेतों में कटाई करवा देता हूँ।

व्यापारी मुझे उधार पर बीज और खाद देता है। इसे चुकाने के लिए मुझे थोड़े कम दामों पर उसे धान बेचना पड़ता है। अगर बाज़ार में बेचूँ तो ज़्यादा पैसे मिल जाएँगे। लेकिन मुझे उधार भी तो चुकाना है। व्यापारी ने किसानों को याद दिलाने के लिए अपना एजेंट भेजा है कि जिन किसानों ने उधार लिया है वे उसी को अपना धान बेचें। मुझे अपने खेत से 60 बोरी धान मिलेगा। इनमें से कुछ से मैं अपना उधार चुका दूँगा और बाकी घर में लग जाएगा। लेकिन मेरे हिस्से में जो आता है वह सिर्फ आठ महीने तक ही चल पाता है। इसलिए मुझे और पैसा कमाने की ज़रूरत पड़ती है। इसके लिए मैं रामलिंगम की चावल की मिल में काम करता हूँ। वहाँ मैं पड़ोसी गाँव के किसानों से धान इकट्ठा करने में उसकी मदद करता हूँ। हमारे पास एक संकर गाय भी है। उसका दूध हम यहीं की सहकारी समिति में बेच देते हैं। इससे रोज़ के खर्चों के लिए थोड़ा और पैसा मिल जाता है।

कर्ज लेने पर

जैसा कि आपने ऊपर पढ़ा कई बार शेखर जैसे किसान ज़रूरी चीजें खरीदने के लिए पैसा कर्ज लेते हैं। अक्सर ये पैसा बीज, खाद और कीटनाशक खरीदने के लिए साहूकार से कर्ज़ लिया जाता है। अगर बीज अच्छी किस्म के नहीं होते या फ़सल को कीड़ा लग जाता है तो पूरी फ़सल बर्बाद हो सकती है। बारिश पूरी नहीं होने पर भी फ़सल खराब हो सकती है। ऐसी स्थिति में किसान अपना उधार नहीं चुका पाते। कई बार परिवार चलाने के लिए उन्हें और पैसा कर्ज़ के तौर पर लेना पड़ता है।

जल्दी ही कर्ज़ इतना बढ़ जाता है कि किसान कितना भी कमा ले, वह उसे चुका नहीं पाता। इस स्थिति में कहते हैं कि किसान कर्ज़ तले दब गया। पिछले कुछ सालों में यह किसानों की विपदा का मुख्य कारण बन गया है। कई क्षेत्रों में किसानों ने कर्ज के बोझ से दबकर आत्महत्या तक कर ली है।

रामलिंगम और करुथम्मा

ज़मीन के अलावा रामलिंगम के परिवार के पास एक चावल की मिल है और बीज व कीटनाशक बेचने के लिए एक दुकान है। चावल की मिल में उन्होंने कुछ अपना पैसा लगाया और थोड़ा सरकारी बैंक से कर्ज लिया था। वे कलपट्टु और आस-पास के गाँवों से ही धान खरीदते हैं। मिल का चावल आस-पास के शहरों के व्यापारियों को बेचा जाता है। इससे उनकी अच्छी खासी कमाई हो जाती है।

भारत के खेतिहर मज़दूर और किसान

कलपट्टु गाँव में तुलसी की तरह के खेतिहर मज़दूर हैं, शेखर की तरह के छोटे किसान हैं और रामलिंगम जैसे बड़े किसान हैं। भारत में प्रत्येक पाँच ग्रामीण परिवारों में से लगभग दो परिवार खेतिहर मज़दूरों के हैं। ऐसे सभी परिवार अपनी कमाई के लिए दूसरों के खेतों पर निर्भर रहते हैं। इनमें से कई भूमिहीन हैं और कइयों के पास ज़मीन के छोटे-छोटे टुकड़े हैं।

शेखर जैसे छोटे किसानों को लें तो उनकी ज़रूरतों के हिसाब से खेत बहुत ही छोटे पड़ते हैं। भारत के 80 प्रतिशत किसानों की यही हालत है। भारत में केवल 20 प्रतिशत किसान रामलिंगम जैसे बड़े किसानों की श्रेणी में आते हैं। ऐसे किसान गाँव की अधिकतर ज़मीन पर खेती करते हैं। उनकी उपज का बहुत बड़ा भाग बाज़ार में बेचा जाता है। कई बड़े किसानों ने अन्य काम-धंधे भी शुरू कर दिए हैं, जैसे – दुकान चलाना, सूद पर पैसा देना, छोटी-छोटी फैक्ट्रियाँ चलाना इत्यादि।

हमने कलपट्टु में होने वाली खेती के बारे में पढ़ा। ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के साथ-साथ लोग जंगल की उपज और पशुओं आदि पर निर्भर रहते हैं। उदाहरण के लिए मध्य भारत के कुछ गाँवों में खेती और जंगल की उपज दोनों ही आजीविका के महत्त्वपूर्ण साधन हैं। महुआ बीनने, तेंदू के पत्ते इकट्ठा करने, शहद निकालने और इन्हें व्यापारियों को बेचने जैसे काम अतिरिक्त आय में मदद करते हैं। इसी तरह सहकारी समिति को या पास के शहर के लोगों को दूध बेचना भी कई लोगों के लिए आजीविका कमाने का मुख्य साधन है।

समुद्रतटीय इलाकों में हम देखते हैं कि पूरे के पूरे गाँव मछली पकड़ने में लगे हुए हैं। आइए, अरुणा और पारिवेलन के जीवन के बारे में पढ़कर मछली पकड़ने वाले एक परिवार के बारे में थोड़ा और जानें। यह परिवार कलपट्टु के पास पुदपेट नाम के गाँव में रहता है।

नागालैंड की सीढ़ीनुमा खेती

यह एक गाँव है जिसका नाम चिजामी है। यह नागालैंड के फेक ज़िले में है। इस गाँव में रहने वाले लोग चखेसंग समुदाय के हैं। वे ‘सीढ़ीनुमा’ खेती करते हैं। इसका मतलब है कि पहाड़ी की ढलाऊ ज़मीन को छोटे-छोटे सपाट टुकड़ों में बाँटा जाता है और उस ज़मीन को सीढ़ियों के रूप में बदल दिया जाता है। प्रत्येक सपाट टुकड़े के किनारों को ऊपर उठा देते हैं जिससे पानी भरा रह पाए, यह चावल की खेती के लिए सबसे अच्छा है।

चिजामी के लोगों के पास अपने-अपने खेत हैं, लेकिन वे इकट्ठे होकर एक-दूसरे के खेतों में भी काम करते हैं। वे छः से आठ लोगों का एक समूह बनाते हैं और इकडे मिलकर पहाड़ के एक हिस्से पर घास-पतवार साफ़ करते हैं। जब दिन का काम खत्म हो जाता है तो सारा समूह इकट्ठ बैठकर खाना खाता है। ऐसा कई दिनों तक चलता रहता है जब तक काम खत्म नहीं हा जाता।

अरुणा और पारिवेलन

पुदुपेट कलपट्टु से ज़्यादा दूर नहीं है। यहाँ लोग मछली पकड़कर अपनी आजीविका चलाते हैं। उनके घर समुद्र के पास होते हैं और वहाँ चारों ओर जाल और ‘कैटामरैन’ (मछुआरों की खास तरह की छोटी नाव) की पंक्तियाँ दिखाई देती हैं। सुबह 7 बजे समुद्र किनारे बड़ी गहमागहमी रहती है। इस समय सारे कैटामरैन मछलियाँ पकड़ कर लौट आते हैं। मछली खरीदने और बेचने के लिए बहुत सारी औरतें इकट्ठी हो जाती हैं।

मेरा पति पारिवेलन, मेरा भाई और जीजा आज बड़ी देर से लौटे। मैं बहुत परेशान हो गई थी। ये हमारे कैटामरैन में इकट्ठे ही समुद्र में जाते हैं। उन्होंने बताया कि आज वे तूफान में फँस गए थे।

आज जो मछलियाँ पकड़ी गईं उनमें से मैंने परिवार के लिए कुछ मछलियाँ एक तरफ उठा कर रख दीं। बाकी मैं नीलाम कर दूँगी। इस नीलामी से जो पैसा मुझे मिलता है वह चार भागों में बँट जाता है। तीन हिस्से उन तीन लोगों में बँट जाते हैं जो मछली पकड़ने जाते हैं, बाकी एक हिस्सा उसे मिलता है जिसकी नाव और जाल वगैरह होते हैं। चूँकि जाल, कैटामरैन और उसका इंजन हमारे हैं तो वह हिस्सा भी हमें ही मिल जाता है। हमने बैंक से उधार लेकर एक इंजन खरीदा है, जो कैटामरैन में लगा हुआ है। इससे ये लोग समुद्र में दूर तक जा पाते हैं और ज़्यादा मछलियाँ मिल जाती हैं।

नीलामी में जो ओर्थों यहाँ से मछलियाँ खरीदती हैं वे टोकरे भर-भरकर पास के गाँवों में बेचने के लिए ले जाती हैं। कुछ व्यापारी भी हैं जो शहर की दुकानों के लिए मछलियाँ खरीदते हैं। मैं दोपहर 12 बजे तक ही नीलामी का काम निपटा पाती हूँ। शाम को मेरा पति और बाकी रिश्तेदार मिलकर जाल को सुलझाते हैं और उसकी मरम्मत करते हैं। कल सुबह-सुबह दो बजे वे फिर समुद्र की तरफ चल देंगे। हर साल मॉनसून के दौरान करीब चार महीने तक वे समुद्र में नहीं जा पाते क्योंकि यह मछलियों के प्रजनन का समय होता है। इन महीनों में हम व्यापारी से उधार लेकर अपना गुज़ारा चलाते हैं। इस कारण बाद में हमें मजबूरी में उसी व्यापारी को मछली बेचनी पड़ती है और हम खुद खुली नीलामी नहीं कर पाते। वे खाली महीने काटना सबसे मुश्किल होता है। पिछले साल सुनामी के कारण हमारा बड़ा नुकसान हुआ।

ग्रामीण क्षेत्रों में आजीविका के साधन

ग्रामीण क्षेत्रों में लोग अपनी आय विभिन्न तरीकों से कमाते हैं। कुछ खेती-बाड़ी का काम करते हैं और कुछ अन्य काम करके अपनी आजीविका चलाते हैं। खेती में कई तरह के काम शामिल हैं, जैसे – खेत तैयार करना, रोपाई, बुवाई, निराई और कटाई। फ़सल अच्छी हो इसके लिए हम प्रकृति पर निर्भर हैं। इस तरह जीवन ऋतुओं के इर्द-गिर्द ही चलता है। बुवाई और कटाई के समय लोग काफी व्यस्त रहते हैं और दूसरे समय काम का बोझ कम रहता है। देश के अलग-अलग क्षेत्रों में ग्रामीण लोग अलग-अलग तरह की फ़सलें उगाते हैं। फिर भी हम उनके जीवन की परिस्थितियों में और उनकी समस्याओं में काफी समानताएँ पाते हैं।

लोग कैसे ज़िंदगी बसर करते हैं और कितना कमा पाते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि वे जिस ज़मीन को जोतते हैं वह कैसी है। कई लोग उस ज़मीन पर मज़दूरों के रूप में निर्भर हैं। ज़्यादातर किसान अपनी ज़रूरतों को पूरा करने और बाज़ार में बेचने के लिए भी फ़सलें उगाते हैं।

कुछ किसानों को अपनी फ़सल उन व्यापारियों को बेचनी पड़ती है जिनसे वे पैसा उधार लेते हैं। गुजर-बसर करने के लिए कई परिवारों को काम की खातिर उधार लेना पड़ता है या फिर तब लेना पड़ता है जब उनके पास कोई काम नहीं रहता। ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ परिवार ऐसे हैं जो बड़ी-बड़ी ज़मीनों, व्यापार और अन्य काम-धंधों पर फल-फूल रहे हैं। फिर भी ज़्यादातर छोटे किसानों, खेतिहर मज़दूरों, मछली पकड़ने वाले परिवारों और गाँव में हस्तशिल्प का काम करने वाले लोगों को पूरे साल रोज़गार नहीं मिल पाता।

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अभ्यास

1. आपने संभवतः इस बात पर ध्यान दिया होगा कि कलपट्टु गाँव के लौंग खेती के अलावा और भी कई काम करते हैं। उनमें से पाँच कामों की सूची बनाइए।
Ans.
कलपटू गाँव के लोग खेती के अलावा जो काम करते हैं वे इस प्रकार है:

• टोकरी, बर्तन, घड़े, ईंट आदि बनाते हैं।
• लोग लोहार, धोबी बनुकर, शिक्षक और नर्स के रूप में सेवाएँ देते हैं।
• लोग चाय, नाई आदि की दुकानें चलाते हैं।
• मरम्मत की दुकान।
• मकान बनाने और कॉरी चलाने का काम।

2. कलपट्टु में विभिन्न तरह के लोग खेती पर निर्भर हैं। उनकी एक सूची बनाइए। उनमें से सबसे गरीब कौन है और क्यों?
Ans.
खेती पर निर्भर लोग हैं:

• ज़मीन के मालिक, जिनके पास अपने खेत हैं। वे खेतों पर काम के लिए कर्मचारी नियुक्त करते हैं।
• ऐसे किसान जिनके पास छोटे खेत हैं, वे अपना सारा काम स्वयं करते हैं। कभी-कभी दूसरे किसानों से मदद लेते हैं। तथा बदले में वे उनकी खेती-किसानी में मदद कर देते हैं।
• भूमिहीन मजदूर, जो दूसरे के खेतों पर काम करते हैं। इनमें से सबसे गरीब भूमिहीन किसान हैं जो कठोर परिश्रम करते हैं, लेकिन फिर भी अपनी जरूरतें पूरी नहीं पाते। ये साल में कुछ महीने बेकार भी बैठेते हैं जब खेतों में काम नहीं होता।

3. कल्पना कीजिए कि आप एक मछली बेचने वाले परिवार की सदस्य हैं। आपका परिवार यह चर्चा कर रहा है कि इंजन के लिए बैंक से उधार लें कि न लो आप क्या कहेंगी?
Ans.
मछली बेचने वाले परिवार को इंजन खरीदने के लिए बैंक से उधार लेना चाहिए क्योंकि जब कैटामरैन (मछुआरों की खास तर की छाटी नाव) में इंजन लगा होगा तो ये लोग समुद्र में अधिक दूर तक जा सकते हैं और इन्हें ज्यादा मछलियाँ मिल सकेगी।

4. तुलसी जैसे गरीब ग्रामीण मज़दूरों के पास अक्सर अच्छी शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाओं एवं अन्य साधनों का अभाव होता है। आपने इस किताब की पहली इकाई में असमानता के बारे में पढ़ा। तुलसी और रामलिंगम के बीच का अंतर एक तरह की असमानता ही है। क्या यह एक उचित स्थिति है? आपके विचार में इसके लिए क्या किया जा सकता है? कक्षा में चर्चा कीजिए।
Ans.
भूमिहीन मजदूरों और किसानों की हालत सुधारने के लिए सरकार निम्न उपाय कर सकती हैं: जमीन देकर जिस पर व्यक्तिगत रूप से या कई परिवार मिलकर खेती कर सकते हैं।

• किसानों को आसान शर्तों पर कम ब्याज दर पर कर्ज देकर।
• उन्हें उच्च उपज वाले बीज, कीटनाशक, उर्वरक आदि देकर।
• जल और विद्युत देकर।

5. आपके अनुसार सरकार शेखर जैसे किसानों को कर से मुक्ति दिलाने में कैसे मदद कर सकती है? चर्चा कीजिए।
Ans.
सरकार आसान शर्तों और कम ब्याज दरों पर उन्हें ग्रामीण बैंकों से कर्ज दिलवा सकती है।

6.खाली जगहों को भरो :

(क) तमिल में बड़े भूस्वामी को वेल्लला कहते थे।

(ख) ग्राम-भोजकों की ज़मीन पर प्रायः दास या मजदूर द्वारा खेती की जाती थी।

(ग) तमिल में हलवाहे को उणवार कहते थे।

(घ) अधिकांश गृहपति छोटे भूस्वामी होते थे।

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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