अलंकार तथा अलंकार के प्रकार 

अलंकार किसे कहते हैं ?

अलंकार का शाब्दिक अर्थ ‘आभूषण’ होता है।

काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्वों को ‘अलंकार कहते हैं।

जैसे : वर को छोड और वर मांगो।
        (दुल्हा)              (वरदान)

अलंकार के प्रकार 3 होते हैं, मुख्य रूप 2 से होते हैं:-

① शब्द अलंकार
② अर्थ भलंकार
③ उभय अलंकार
→ 12 वी.. सरस्वती कण्ठाभरण(पुस्तक)- भोजराज

1. शब्द अलंकार

शब्द अलंकार :- जहाँ पर काव्य में शब्दों के द्वारा चमत्कार उत्पन्न होते हैं उन्हे शब्द अलंकार कहते है।
इसके मुख्यतः ⑤ भेद होते हैं:-

A. अनुप्रास अलंकार (अनुप्रासालंकार):- अनुप्रास अलंकार, शब्द अलंकार का ही भेद है इसमे काव्य में वर्णो  की आवृति बार बार होती है।

इसके 5 भेद होते हैं:-

①द्देकानुप्रास
② वृत्यानुप्रास
③ लाटानुप्रास

④ अन्त्यानुप्रास
⑤ श्रुत्यानुप्रास

‘छविलाअश्रु’  याद रखने का Trick

① छेकानुप्रास अलंकार :- जब वर्णो की अवृत्ति स्वरूपतः और क्रमतः आवृत्ति होती है अर्थात दो बार आते हैं तो वहाँ पर छेकानुप्रास अलंकार होता है। जैसे :

»वन्दऊ गुरु पद पदुम परागा।
सुरुचि सुवास सरस अनुरागा ।।

»रीझि रीझि रहसि रहसि हंसि हंसि उठे ।
  सांसै भरि आँसु भरि कहत दई दई ।।

② वृत्यानुप्रास अलंकार :- जहा पर वर्णो की आवृत्ति बार-बए होती है वहाँ वृत्यानुप्रास अलंकार होता है। जैसे :

»तरनि तनूजा तर तमाल तरूवर बहु छाये ।
झुके कुल जो परसन हित मनह सुहाएं ।।

③ लाटानुमास अलंकार : जब वर्णो गत या शब्द गत, कामागत (,) के अन्तर्गत परिवर्तन आता है, वहा लाटानुप्रास होता है। जैसे :

»वही मनुष्य है कि जो मनुष्य के लिए मरे।

»माँगी नाव न, केवट आना ।
माँगी नाव, न केवट आना ।

»पूत कपूत तो का धन संचय ।
पूत सपूत तो का धन संचय ।

④ अन्त्यानुप्रास अलंकार :- जब किसी काव्य मे अन्तिम शब्द बार-बार आते हैं, तो वहां अन्त्यानुप्रास अलंकार होता है। जैसे:

»सेस महेस दिनेस गनेस ।
सुरेशहु जाहि निरंतर गावे ।।

»जितने गुण सागर नागर है।
कहते यह बात उजागर है ।।

⑤ श्रुत्यानुप्रास अलंकार :- जब एक ही उच्चारण स्थान से अनेक बार आवृत्ति होती है तो वहां पर श्रुत्यानुप्रास होता है। जैसे:

»दिनांत थे दिननाथ सधेनु आते गृह खान वाल थे।
चरर मरर खुल गये अरर रव स्फूतो से ।

B. यमक अलंकार :- जहाँ एक ही शब्द की आवृत्ति एक बार अथवा एक से अधिक बार होती है किन्तु इसके अर्थ अलग-अलग होते है तो वहाँ यमक अलंकार होगा। जैसे:

»सजना है, मुझे सजना के लिए ।

»कनक-कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय ।
या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय ।

दीपक   युवती                आँचल
सारंग ले सारंग चली, करी सारंग की ओट ।
सारंग झीनी जानि के, मारी सारंग ने चोट ।
फटा                               हवा

C. श्लेष अलंकार:- जहाँ पर कोई शब्द एक बार आता है लेकिन उसके अर्थ एक से अधिक होते है तो उसे श्लेष अलंकार कहते हैं।जैसे:

»चरन धरत चिंता करत चितवत चारिहुँ ओर।
सुबिरन को खोजत फिरत कवि व्यभिचारी, चोर ।।

»सीधी चलते राह जो रहते सदा निःशकं ।
जो करते विप्लव उन्हें, हरि करते आतंक।।

विप्लव = बंदर को चिढ़‌ना तथा  गलत काम
आतंक= ईश्वर का डर  तथा बंदर का आतंक

D. वाक्रोक्ति अलंकार: जब वक्ता के द द्वारा कुछ कहा जाता तो श्रोता वह न समझ के दूसरा अर्थ ले लेता है वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है।जैसे:

»आये हूँ मधुमास कि प्रियतम ऐहे नाही।
आये हूं मधुमास कि प्रियतम ऐहे नाही?

»एक कबूतर देखा हाथ में पूछा कहाँ अपर है।
उसने कहा अपर कैसा? वह उड़ गया सपर है।

E. वीप्सालंकार : हर्ष, विषाद, ग्लानि आदि की व्यक्त करने के लिए शब्द का दुहराव  होता है तो वहा पर वीप्सा अलंकार होता है। जैसे :

» चिता जलाकर पिता की हाय हाय मैं दीन ।
» वाह! वाह !
» नगरी नगरी द्वारे द्वारे दूढ़ो रे सांवरिया।

2. अर्थ अलंकार

अर्थ अलंकार:- जहां पर काव्य में अर्थ के द्वारा चमत्कार उत्पन्न हो जाता है वहा अर्थ अलंकार होता है।

उप‌मा अलंकार :- सर्वाधिक समानता के कारण सर्वथा भिन्न होते हुए भी एक वस्तु की तुलना दूसरे प्रसिद्ध वस्तु से की जाती है, लो वहाँ पर उपमा अलंकार होता है
Or
उपमेय (प्रत्यक्ष । प्रस्तुत) की तुलना उपमान से की जाती है।
Or
जहाँ पर दो वस्तुओ / व्यक्तियो में रूप ,रंग, गुण आदि के आधार पर समानता कराया जाए तो वहां पर उपमा अलंकार होता है।

उपमा अलंकार के चार तत्व :-

» उपमेय ( प्रत्यक्ष )- (कोई धाक्ति) काला प्रत्यक्ष –
» उपमान (अप्रत्यक्ष)-तावा
» साधारण धर्म – जो उपमेय + उपमान दोनो में उपस्थित हो ।
» वाचक शब्द – सा, सी, सरिस, सम्

उपमा अलंकार 3 प्रकार के होते हैं।

① पूर्णोपमालंकार :- जब किसी पंक्ति में उपमा के चारो तत्व होगें वहां पूर्णोपमालंकार होता है। जैसे:

उपमान             उपमेय
»’पीपर पात सरिस मन डोला’

»हाय! फूल सी कोमल बच्ची हुई राख की थी।

② लुप्तोपमा अलंकार : जब किसी पंक्ति में उपमा के दो तत्व या चारों तत्व नहीं होगे वहा लुप्तोपमालंकार होता है। जैसे:

»मखमल से झूले पड़े, हाथी या टीला

»विभा चन्द्रमा जैसी है।

»कोटि कुलिस सम बचन तुम्हारा । व्यर्थ धरहू धनु बान कुठारा ।।

③ मालोपमालंकार:- जब किसी पंक्ति में उपमान अनेक और उपमेय – एक हो वहा पर मालोपमालंकार होता है। जैसे :

»सफरी से चंचल घने , मृग से पीन सूएन ।
कमल पत्र से चारू पे, राधे जू के नैन।

»काम सा रूप, प्रताप दिनेश सा
सोम सा शील है राम महीप का।

रूपक अलंकार

• रूपक अलंकार :- जहाँ पर दो वस्तुओ / व्यक्तियों में इस प्रकार से समानता हो कि अन्तर करना कठिन हो जाए तो वहां रुपक अलंकार होता है।
Or
जहाँ पर उपमेय और उपमान मे कोइ भेद न रह जाए वहाँ रूपक अलंकार होता है।
Or
जब उपमेय का निषेध करके उपमान का आरोप किया जाए तो वहाँ पर रूपक अलंकार होता है। जैसे:

»चरण कमल बंदौ हरि राई’

»मैया में तो चन्द्र – खिलैना लैंहों

»बीती विभावरी जाग री,
अम्बर पनघट में डुबो रही, ताराघट उषा नागरी ।।

उत्प्रेक्षा अलंकार

• उत्प्रेक्षा अलंकार :- जहा पर उपमेय में उपमान की कल्पना की जाय वहां पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है।जैसे :

»’फूले कास, सकल महि छाई,
जनु बरसा रितु प्रकट बुढ़ाई’

»चमचमात चंचल नयन बिच घूघट पत झीन ।
मानहुँ सुर सरिता विमल जल उछरत युग मीन ।।

भ्रांतिमान अलंकार

• भ्रांतिमान अलंकार:- जहा पर समानता के कारण किसी वस्तु में अन्य वस्तु का भ्रम हो जाये तो वहाँ भ्रांतिमान अलंकार है। जैसे :

»फिरत धरन नूतन पथिक चले चकित चित भागि।
फूल्यो देख पलास वन, समुहें समुझि दवागि ।।

»ओस बिन्दु चुग रही हंसिनी, मोती उनको जान ।

»पाय महावर देन को नाइन बैठी आय ।
पुनि-पुनि जानि महावरी एड़ी मोडित जाय।

»जानि श्याम धनश्याम को, नाचि उठे वन मोर ।

संदेह अलंकार

संदेह अलंकार:- जहाँ उपमेये व उपमान के बीच संशय बना रहे ।
Or
जहाँ किसी वस्तु को देखकर निश्चितता का बोध नहीं होता है अर्थात संशय बना रहता है, तो वहाँ संदेह अलंकार होगा। जैसे:

»सारी बीच नारी है, कि नारी बीच सारी है।
कि सारी है की नाही है, कि नारी है की सारी है।।

अतिशयोक्ति अलंकार

• अतिशयोक्ति अलंकार : जब किसी का वर्णन इतना बढा- चढ़ाकर किया जाय कि वह लोक सीमा से बाहर हो, तो वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।जैसे :

» बालो को खोलकर यू मत चलाकर,
नहीं तो दिन में राहता भूल जायेंगा दिनकर ।

»बाधा था बिधु को किसने इन काले जंजीरो से ।
मणि वाले कणियों का मुख क्यों भरा हुया था हीरो से ।।

»हनुमान की पूंछ में लग न पायी आग ।
लंका नगरी जल गयी, गये निशाचर भाग ।।

»राणा प्रताप के घोड़े से पड़ गया हवा का पाला था।

विरोधाभास अलंकार

• विरोधाभास अलंकार:- जहां पर विरोध न हो फिर भी विरोध का आभास हो तो वहाँ पर विरोधाभास अलंकार होता है।जैसे :

»या अनुरागी चित की गति समुझे नहि कोई।
ज्यों-ज्यों बूढ़े श्याम रंग, त्यों-त्यौ उज्ज्वल होय।

»बैन सुन्दा जब ते मधुर, तब से सुनत न बैन ।

»सुलगती अनुराग की आग जहाँ,
जल से भरपूर तढ़ांग वहाँ ।

विशेषयोक्ति अलंकार

• विशेषयोक्ति अलंकार :- जहा कारण के होने पर भी कार्य न हो, तो वहाँ पर विशेषयोक्ति अलंकार होता है।जैसे :

»देखों दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी।

»फूलई फलई न बेंत, जदपि सुधा बरसहिं जलद ।
मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिलई विरंचि सम ।।

»पानी बिच मीन प्यासी, मोहि सुनि-सूनि आवै हांसी ।

»लाग न उर उपदेश, जदपि क‌हयौ सिव बार बहु ।

»कहां कहैं हरि के गये, विरह बसी अनुरागि।
बहत नयन सौ नीर नद, तदपि दहति विरहागि ।।

विभावना अलंकार

• विभावना अलंकार : विभावना से तात्पर्य विशेष प्रकार की कल्पना से है, जहां कारण न हो फिर भी कार्य की उत्पत्ति हो तो वहाँ विभावना अलंकार होता है।
Or
जहाँ पर बिना कारण के कार्य का होना पाया जाय वहाँ पर विभावना अलंकार होता है।जैसे :

»बिनु पद चलै, सुनें बिनु काना ।
कर बिनु करम करै विधि नाना ।।

»आनन रहित सकल रस भोगी।
बिनु बानी वक्ता बड़ जोगी ।।

»राज भवन  को छोड़ कृष्ण थे चले गये।
तेप चमकता था उनका फिर भी भास्वर ।।

मानवीकरण अलंकार

• मानवीकरण अलंकार:- जहाँ पर जड़ सा प्रकृति पर मानवीय चेष्टांओ का आरोप किया जाता है तो वहा पर मानवीकरण अलंकार होता है। जैसे:

»फूल हंसे कलियां मुस्काई।
जगी वनस्पतियाँ, मुख धोती शीतल जल से ।

»है विखेर देती वसुन्धरा, मोती सबके सोने पर।
रवि बटोर लेता है उनको, सदा सवेरा होने पर ।।

»देख दशा रघुबीर की, वृक्ष फूट-फूट कर रोये।

»मेघ आये बन ठन के संवर के।

अन्योक्ति अलंकार

• अन्योक्ति अलंकार:- जब किसी बात को सीधे न कहकर अप्रत्यक्ष रूप से कही जाये वहां पर अन्योक्ति अलंकार होता है।

जब उपमान के बहाने उपमेय (प्रस्तुत) का वर्णन किया जाय तो उसे अन्योक्ति अलंकार कहलाता है। जैसे :

»नहीं पराग नहिं मधुर मधु, नहिं विकास इह काल ।
अली कली ही सों बध्यो, आगे कौन हवाल ।।

»जिन जिन देखे वे कुसुम, गई सुवीति बहार।
अब अलि रही गुलाब मे, अपत कंटीली डार।।

»केरा तबहि  न चोतया, जब ढिंग लागी बेर ।
अब के चेते का भयों ,जब काटनि लीन्ही घेर ।।

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निष्कर्ष:

हम आशा करते हैं कि आपको यह पोस्ट अलंकार तथा अलंकार के प्रकार जरुर अच्छी लगी होगी। इसके बारें में काफी अच्छी तरह से सरल भाषा में अलंकार तथा अलंकार के प्रकार के बारे में उदाहरण देकर समझाया गया है। अगर इस पोस्ट से सम्बंधित आपके पास कुछ सुझाव या सवाल हो तो आप हमें कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताये। धन्यवाद!

FAQs

Q1. नवल सुन्दर श्याम शरीर में कौन-सा अलंकार है ?
Ans. उल्लेख
Q2. तरनि तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए में कौन-सा अलंकार है?
Ans. अनुप्रास
Q3. चरर मरर खुल गए अरर रवस्फुटों से में कौन-सा अलंकार है ?
Ans. अनुप्रास
Q4. बड़े न हूजे गुनन बिनु विरद बड़ाई पाय ।
कहत धतूरे सों कनक, गहनो गढ़ो न जाय ।।
प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
Ans. अर्थान्तरन्यास
Q5. तीन बेर खाती थी वे तीन बेर खाती हैं में कौन सा अलंकार है ?
Ans. यमक
Q6. अब अलि रही गुलाब में, अपत कटीली डार में कौन-सा अलंकार है?
Ans. अन्योक्ति
Q7. संदेसनि मधुवन-कूप भरे में कौन-सा अलंकार है ?
Ans. अतिशयोक्ति
Q8. पट-पीत मानहुं तड़ित रुचि, सुचि नौमि जनक सुतावरं में कौन-सा अलंकार है ?
Ans. उपमा
Q9. रहिमन जो गति दीप की, कुल कपूत गति सोय । बारे उजियारै लगै, बढ़े अंधेरो होय ।।
प्रस्तुत पंक्तियों में कौन-सा अलंकार है ?
Ans. श्लेष
Q10. कुन्द इन्दु सन देह, उमा रमन वरुण अमन में कौन-सा अलंकार है ?
Ans. उपमा

मेरा नाम सुनीत कुमार सिंह है। मैं कुशीनगर, उत्तर प्रदेश का निवासी हूँ। मैं एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हूं।

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